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अन्तर्राष्ट्रीय साइबर अपराध की विधि का वर्णन। Cyber Crime in International

अन्तर्राष्ट्रीय साइबर अपराध की विधि
अन्तर्राष्ट्रीय साइबर अपराध की विधि

अन्तर्राष्ट्रीय साइबर अपराध की विधि का वर्णन। Legal Status of Cyber Crime in International

अन्तर्राष्ट्रीय साइबर अपराध की विधि – अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य (International Perspective of Cyber Law) समस्त विश्व के लिए साइबर अपराधियों ने कम्प्यूटर नेटवर्क के लिए एक गम्भीर खतरा उत्पन्न क दिया है। अतः इस समस्या के विश्व स्तर पर निपटने के लिए एक सर्वमान्य एण्टी-साइबर क्रिमिनसल लॉ लागू किये जाने की आवश्यकता है।

इस हेतु टोकियो (जापान) में सन् 1998 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा विशेषज्ञों के एक कार्य दल की बैठकत आयोजित की गई थी ताकि साइबर आपराधिकता के निवारण एवं नियन्त्रण हेतु कारगर कदम उठाये जा सकें। इसी प्रकार साइर अन्तरिक्ष में होने वाले अपराधों के विषय में विचार-विमर्श करने हेतु गठित विशेषताओं कती यूरोपियन समिति ने अप्रैल 2001 में आयोजित सम्मेलन में साइबर अपराधों से जूझने की रणनीति तथा इस हेतु अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता हेतु दो कन्वेन्शनों का प्रारूप तैयार किया गया, जो सभी यूरोपियन देशों की राय और परामर्श हेतु भेजा गया था।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह अनुमान किया गया है कि यदि विश्व-देशों को सूचना प्रौद्योगिकी तथा कम्प्यूटर विज्ञान के विकास के फलस्वरूप होने वाले साइबर अपराधों में निरंतर हो रही वृद्धि को नियन्त्रित रखना है तो इस हेतु संयुक्त प्रयास एवं सहयोग तथा एक-समान साइबर कानून पारित किये जाने की नितांत आवश्यकता है।

यद्यपि विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization या WIPO) ने सन् 1996 में दो इन्टरनेट संधियाँ (Internet Treaties) पारित रके इस दिशा में एक अच्छी सार्थक पहल की थी, परन्तु इनमें केवल संचार के अधिकार (Rig lit of Communication) पर जोर दिया था तथा पुनरुत्पादन के अधिकार (Right of reproduction) के विषय में कोई उल्लेख नहीं था।

इसके अतिरिक्त इन्टरनेट सेवा प्रदाता (Internet Service Providers या ISP’s) के दायित्वों के बारे में उक्त संधियाँ थीं और यह मुद्दा सम्बन्धित सदस्य राष्ट्रों के स्वयं के निर्णय के लिए छोड़ दिया गया था ताकि वे अपनी घरेलू आवशयकतानुसार पारित कर सकें। इस दृष्टि से ये संधियाँ विशेष प्रभावी सिद्ध नहीं हुई। क्योंकि इन्टरनेट एसवा प्रदाता के दायित्व के अभाव में उन पर कोई नियन्त्रण नहीं था तथा साइवर अपराधों का क्रियान्वयन बहुधा डिजीटल नेटवर्क से ही होता है जिन पर इन्टरनेट सेवा प्रदाता का एकाधिकार होता है।

यूरोपियन समुदाय (European Community) ने सन् 2002 में इलेक्ट्रानिक कामर्स सम्बन्धी निर्देश (Directives on c-commerce) लागू किये जिनमें इन्टरनेट मध्यस्थों (Internet Intermediaries) के लिए नियमों तथा उसके द्वारा किये जाने वाले अवैध कृत्यों एवं गतिविधियों को रोकने सम्बन्धी व्यवस्था दी गई है। परन्तु इनका दायरा यूरोपियन सदस्य देशों तक ही सीमित होने के कारण इनका प्रभाव विश्व-व्यापी नहीं है।

विगत दशक में विश्व के प्रायः सभी विकसित एवं विकासशील देशों ने अपनी साइबर विधियाँ विकसित की है जो अधिकांशतः राष्ट्र संघ द्वारा निर्मित मॉडेल साइवर लॉ पर आधारित है। इन्टरनेट दवआरा संचालित आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम हेतु अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, फिलीपीन्स, पेरु, तुर्की, चीन, भारत आदि देशों ने अपनी साइबर विधियों को अद्यतन बनाया है जबकि ब्राजील, चेक गणराज्य स्पेन पोलैंड, मलेशिया, डेनमार्क आदि अपने साइवर लॉ को अद्यतन करन की ओर अग्रसर हैं। प्रमुख देशों द्वारा अपनाए गई साबर विधियों की विवेचना करना यहां समीचीन होगा।

संयुक्त राज्य अमेरिका की साइबर विधि

अमेरिका में सर्वप्रथम संघीय कम्प्यूटर क्राइम विधेयक, सन् 1986 में पारित हुआ जिसे ‘कम्प्यूटर फ्राड एण्ड एब्यूज एक्ट, 1986‘ कहा गया। वर्तमान समय में अमेरिका के विभिन्न राज्यों तथा संघीय सरकार ने अपनी साइबर विधियाँ पारित की हैं। राज्यों में घटित होएन वाले साइबर अपराधों के प्रति केलीफोर्निया की दण्ड संहिता के उपबंध लागू होते हैं जिनमें कम्प्यूटर, कम्प्यूटर सिस्टम या कम्प्यूटर नेटवर्क में अनधिकृत अभिगमन (unauthorized access) के विधियों में कम्प्यूटर डाटा या नेटवर्क से छेड़छाड़, अवैध हस्तक्षेप तथा इन्हें क्षतिग्रस्त करने के लिए दण्ड की व्यवस्था है।

न्यूयार्क कम्प्यूटर क्राइम लॉ में इसी प्रकार के प्रावधान है। इन दोनों अपराध के लिए दाण्डिक प्रावधान भी है। फेडरल कम्प्यूटर क्राइम लॉ, 1995 के अन्तर्गत कम्प्यूटर के अनधिकृत उपयोग या इसमें संग्रहीत रिकार्ड, डाटा आदि को नष्ट करने या अनधिकृत तौर से बदलने आदि सम्बन्धी उपबंध दिये गये हैं।

आस्ट्रेलिया की साइबर विधि

आस्ट्रेलिया ने अपनी प्रारंभिक साइबर विधि सन् 2001 में अधिनियम की जिसे ‘साइबर क्राइम 2001′ कहा गया है। यह अधिनियम अप्रैल 2, 2002 से लागू किया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत साइबर अपराधों को तीन प्रमुख वर्गों में रखा गया है–

(i) अनधिकृत अभिगमन (unauthorized Access)

(ii) डाटा का अनधिकृत उपांतरण (Unauthorized modification of data),

(iii) इलेक्ट्रानिक संचार का अनधिकृत हास (impairment)।

इसके अतिरिक्त कोई साइबर अपराध कारित करने के आशय से डाटा कब्जे में रखना या उस पर नियन्त्रण रखना भी दंडनीय अपराध माना गया है जिसके लिए तीन वर्ष तक के कारावास का दण्ड देय होगा। साइबर अपराध कारित करने के आशय से डाटा तैयार करना या उसकी पूर्ति करना भी इसी भाँति दंडनीय है।

जापान की साइबर विधि

जापान ने यूरोपियन साइबर क्राइम कन्वेशन की संधि पर हस्ताक्षर किये हैं अतः वह इसका सदस्य देश होने के कारण उसने साइबर अपराधों से निपटने के लिए दो कानून पारित किये हैं जिन्हें (1) अनअथराइज्ड कम्प्यूटर एसेस लॉ, 1999 (Unauthorized Computer Access Law, 1999) तथा (2) कम्प्यूटर क्राइम एक्ट (The Computer Crime Act) कहा गया है।

इनमें से प्रथम अधिनियम 3फरवरी, 2000 से प्रवृत्त हुआ जिसमें अनधिकृत कम्प्यूटर अभिगमन (unauthorized access) के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था है। कम्प्यूटर क्राइम अधिनियम द्वारा जापानी दण्ड संहिता को संशोधित किया गया है। ताकि इन्टरनेट के माध्यम से कारित होने वाले साइबर अपराधों का इस संहिता के प्रवधानों के अधीन निस्तरण किया जा सके।

ब्रिटिश कम्प्यूटर विधि (U.K. Computer Law)

ब्रिटेन में कम्प्यूटर मिसयूज अधिनियम, 1990 पारित किया जिसे सन् 2006 में कम्प्यूटर अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत ‘सेवा के प्रत्याख्यान’ (Denial of Service या DOS) आक्रामकों (attackers) के केन्द्र बिन्दु बनाया गया है ताकि वे कम्प्यूटर के सुचारू रूप से संचालन में विघड या बाधा उत्पन्न न कर सकें और डाटा, इन्टरनेट आदि से छेड़छाड़ के अपराध घटित न हो। इस अपराध के लिए दस वर्ष तक के कारावास का दण्ड दिया जा सकता है।

किसी अन्य व्यक्ति को कम्प्यूटर प्रोग्राम या डाटा में अवैध हस्तक्षेप या उसे नष्ट करने या बीच में ही रोकने के लिए उत्प्रेरित करना भी साइबर अपराध होगा जिसके लिए दोषी (उकसाने वाले) व्यक्ति को दो वर्ष तक के लिए कारावासित किया जा सकेगा।

इंग्लैंड की साइबर विधि के अनुसार सेवा के प्रत्याख्यान का आक्रमण (Denial of Service Attack या DOS) सबसे क्षतिकारक अपराध होएन के कारण इसके लिए कठोर दण्ड प्रावधान है। इस विधि से ऐसे आक्रमणों पर नियंत्रण रखने में पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई है।

फ्रांस की साइबर विधि

फ्रांस का कम्प्यूटर कानून अधिकांशतः यूरोपियन कम्प्यूटर विधि पर आधारित है तथा इसके अधीन बनाए गए नियम प्रायः सभी यूरोपियन देशों के प्रति लागू होते हैं। फ्रांस ने यूरोपियन कम्प्यूटर निदेश (European Directives) तथा इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर एवं ई-कामर्स सेवाओं सम्बन्धी विधिक ढाँचा (Legal framework for electronic signature & e-commerce services) 8 जून, 2000 से प्रवृत्त किया है।

कम्प्यूटर सिस्टम के माध्यम से कारित होने वाले बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघनो को नियन्त्रण में रखने हेतु फ्रांस में एक नेशनल सुपरवाइजिंग एजेंसी कार्यरत है, जो इनसे सम्बन्धित अपराधों पर निगरगानी रखती है। फ्रांस ने ‘इंटरनेट कोऑपरेशन फॉर एसाइन्ड नेम एण्ड नम्बर्स (Internet Co-operation of Assigned Name And Numbers) जिसे संक्षेप में ‘ICANN कहा जाता है, के नियमों को अंगीकार किया है ताकि ऑनलाइन व्यापार करने वालों के डोमेन नामों (Domain Names) को समुचित सुरक्षा प्रदान की जा सके।

चीन का साइबर कानून

चीन गणराज्य में साम्यवादी सत्ता के दौरान साफ्टवेयर को उचित संरक्षण प्रदान करने गये थे। परन्तु सूचना प्रौद्योगिकी तथा इन्टरनेट में नब्बे के दशक में हुए विकास के फलस्वरूप साइबर अपराधों में निरंतर हो रही वृद्धि को ध्यान में रखते हुए चीन सरकार ने सम्पूर्ण ऑनलाइन इन्टरनेट अधीसंरचना को शासकीय नियन्त्रण में ले लिया तथा इसके उचित प्रबन्धन के लिए सन् 1997 में साइबर लॉ पारित किया।

इन्टरनेट कनेक्टीविटी (Internet connectivity) को समन्वित करने के लिए चीन में सूचना टास्क फोर्स (Information Task Force) गठित किये हैं। इन्टरनेट सुविधा प्राप्त करने हेतु सरकार के दूर संचार मंत्रालय को आवेदन करना होता है क्योंकि निजी व्यक्तिगण एजेन्सियाँ इन्टरनेट कनेक्शन देने के लिए अधिकृत नहीं है। इन्टरनेट सेवा प्रदाता (ISP’S) को भी इन्टरनेट सेवा प्रदाय करने हेतु सरकार को लायसेंस प्राप्त करना अनिवार्य है।

चीन के ब्यूरो ऑफ पब्लिक सिक्योरिटी (Chinese Bureau of Public Security) को यह शक्ति प्राप्त है कि वह साइबर विनियमों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध विधिक कार्यवाही कर सकता है तथा लाइसेंस के बगैर इन्टरनेट सेवा प्रदान करने वाले प्रदाता को 1500 RMB तक के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।

ज्ञातव्य है कि विश्व में इन्टरनेट और कम्प्यूटर नेटवर्क के फैलाव के कारण नए प्रकार के अपराधों का जन्म हुआ है जिन्हें साइबर अपराध कहा जाता है। इनका सर्वाधिक दुष्प्रभाव आर्थिक और सुरक्षा क्षेत्रों पर पड़ा है जो साइवर-कपट (धोखा) तथा साइबर आतंकवाद के रूप में देश की आर्थिक दशा तथा सुरक्षा व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। इन्टरनेट जनित अपराधों में बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों के उल्लंघन, सुरक्षा या व्यापारिक गोपनीय सूचनाओं का भंग होना, मनी लाउंड्रिग आदि देश के लिए विशेष घातक होता है जिन्हें रोकने हेतु प्रायः सभी देश प्रयत्नशील हैं।

साइबर अपराधों के निवारण तथा नियन्त्रण हेतु किये जा रहे अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों के परिप्रेक्ष्य में सरसरी तौर पर दृष्टिपात करने से यह स्पष्ट होता है कि विश्व के प्रायः सभी देश इन अपराधों में तीव्रगति से ले रही बढ़ोत्तरी को सामाजिक, आर्थिक एवं वाणिज्यिक क्षेत्रों के लिए एक गम्भीर खतरा मानते हैं और इनसे प्रभावी ढंग से निपटना विधि प्रवर्तकों के समक्ष एक गम्भीर चुनौती है।

भारतीय साइबर अपराध विधि के सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि सूचना प्रोद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 (2009 का अधिनियम संख्या 10) द्वारा सन् 2000 के मूल अधिनियम में व्यापक संशोधन किये गये जो इस कानून की कमियों तथा दोषों का निवारणकरने कारागार सिद्ध हुए हैं। इसी प्रकार हाल ही में अप्रैल 2011 में अप्रैल 2011 में इस अधिनियम के अन्तर्गत निर्मित नियमों को भी संशोधित किया गया है।

परन्तु इतन सब प्रयासों के बावजूद कम्प्यूटरों से अपराध कम होने के बजाय निरंतर बढ़ते जा रहे हैं क्योंकि इनकी अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति के कारण विभिन्न देशों की अधिकारिता सम्बन्धी समस्या (Jurisdictional Problems) के कारण साइवर अपराधियों पर शिकंजा कसना कठिन हो रहा है। साथ ही ये अपराध साइबर स्पेस में घटित होने के कारण अपराधियों की पहचान एक गम्भीर समस्या है।

केवल इतना ही अनेक प्रकरणों में तो उत्पीड़ित व्यक्ति (victim) को भी काफी समय बाद पता चलता है कि वह किसी साइबर अपराध का शिकार हुआ है। अतः अपराध की रिपोर्टिंग में विलम्ब के कारण अपराधी को साक्ष्य मिटाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है और वे पकड़े जाने या दोष सिद्ध होने से वच निकलते हैं।

पाकिस्तान की साइबर विधि

पाकिस्तान की साइबर विधि- पाकिस्तान में प्रिवेन्शन ऑफ इलेक्ट्रानिक क्राइम एक्ट, 2007 दिनांक 17 जनवरी, 2007 से प्रवृत्त हुआ। इस अधिनियम के अन्तर्गत इलेक्ट्रानिक नेटवर्क से जानकारी सूचना की चोरी करने, उसके पारेषण (transmission) को अवैध तरीके से रोकने, बाधित करने या नष्ट करने के अपराधों के लिए कड़े दण्ड निर्धारित हैं।

उक्त अधिनियम की कमियों तथा दोषों के निवारण हेतु सितम्बर 2007 को एक नया साइबर कानून-साइबर क्राइम (प्रिवेंन्शन ऑफ इलेक्ट्रानकि क्राइम्स) बिल, नेशनल एसेंम्बली के पटल पर रखा गया परन्तु इसका सभी ओर से इस आधार पर कड़ा विरोध हुआ कि यह प्रस्ताविक विधेयक (Bill) अत्यंत कठोर तथा अमानवीय होने के कारण इसके गम्भीर हानिकारक परिणाम होंगे। अतः इसे पारित न किया जाना ही न्यायोचित होगा। इसके परिणामस्वरूप यह विधेयक अधिनियम का रूप नहीं ले सका।

बंग्लादेश का साइबर विधि

बंग्लादेश का साइबर विधि- बंग्लादेश ने अपना साइवर अपराध अधिनियम सन् 2004 में पारित किया जिसमें ऑनलाइन आपराधिक गतिविधियों को गम्भीर साइवर अपराध मानते हुए कड़े दण्ड का प्रावधान है। बंग्लादेश में कम्प्यूटर नेटवर्क सर्वप्रथम सन् 1964 स्थापित हुए परन्तु सन् 1971 के पाक युद्ध के कारण इसके मुख्य ढाँचे का अधिष्ठापन (installation of main frame) सन् 1974 तक रुका रहा। तथापि बंग्लादेश की स्वतंत्रता के पश्चात् यह कार्य सन् 1975 में प्रारंभ हुआ।

साइबर अपराधों के निवारण हेतु एक कारगर विधिक ढांचागत प्रारूप तैयार करने के लिए बांग्लादेश सरकार ने जून 1997 में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की जिसने जनवरी 1999 में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में एक व्यापक साइबर विधायन सम्बन्धी 45 अनुशंसाए (recommendations) की। इस पर सरकार की ओर से कतिपय बदलाव सुझाये गए तथा उन पर विचार करने के पश्चात् विशेषज्ञ समिति ने अपनी पुनरीक्षित (Revised) रिपोर्ट जून 2002 में सरकार को सौंपी। इसके परिणामस्वरूप साइवर अपराधों के निवारण एवं रोकथाम के लिए साइबर क्राइम एक्ट, 2004 पारित हुआ।

साइबर अपराधों के निवारण हेतु विधिक उपाय (Legal Measures For Prevention of Cyber Crimes)

विधि का मुख्य प्रयोजन समाज की आवश्कताओं की पूर्ति करना तथा शांति व्यवस्था बनाए रखना है। सामाजिक परिवर्तनों के साथ विधि में भी परिवर्तन करना आवश्यक होता है। इसी श्रृंखला में सूचना प्रौद्योगिकी एवं कम्प्यूटर विज्ञान की प्रगति के फलस्वरूप इनसे जुड़े अपराधों की रोकथाम के लिए कानून निर्मित किये जाना तथा विद्यमान कानूनों में संशोधन किया जाना आवश्यक हुआ।

वर्तमान 21 सदी के कम्प्यूटर युग में अनेक ऐसे नये अपराध अस्तित्व में आये जिनके बारे में पहले कभी कल्पना भी नहीं नहीं की जा सकती थी। अब साइबर अपराध एक ही स्थान से दूरस्य देशों में विभिन्न जगहों पर कारित होना सम्भव हो गया है जबकि अपराधी का अपराध के स्थान पर उपस्थित रहना आवश्क नहीं है। नई प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप दूर संचार क्षेत्र में प्रगति के कारण अब कम्प्यूटर की छोटी सी डिस्क या फाइल में सन्देशों या जानकारी का अपार भंडार संग्रहीत करना, पारिचालित करना या डाटा इधर-उधर वितरित करना अत्यन्त सरल हो गया है।

परन्तु साइबर अपराधियों द्वारा इनका दुरुपयोग किये जाने के अवसरों में भी उतनी ही वृद्धि हुई है। इनसे कम्प्यूटर नेटवर्क के माध्यम डाटा की चोरी, अश्लील सामग्री का प्रसारण, अधिकृत-अभिगमन (unauthorized access or Hacking), वाणिज्यिक एवं बैंकों में धोखाधड़ी, गबन आदि के साइवर अपराध बहुलता से घटित हो रहे हैं। चूंकि साइवर अन्तरिक्ष की कोई भौगोलिक सीमाएँ नहीं होती और न इसमें लिंग, आयु, स्वभाव आदि जैसे मानवीय लक्षण ही होते हैं, इसलिए विधि प्रवर्तनकारियों के लिए साइबर स्पेस में घटित होने वाले अपराधों पर नियंत्रण रखना कठिन होता है।

यद्यपि व्यावहारिक दृष्टि से इन्टरनेट का उपयोग करने की स्थिति उत्पन्न होती है तो इन्हें हर करने हेतु कोई अन्तर्राष्ट्रीय साइबर कानून अस्तित्व में नहीं होने के कारण समस्या उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक ही है। साइबर अपराधी की गुमनामी (anonymity) तथा उसके पकड़े जाने की संभावना न्यूनतम होने के कारण वे कम्प्यूटर तकनीक से अपराध कारित करना बेहतर समझते हैं क्योंकि उत्पीड़ित व्यक्ति के लिए अपराधी की पहचान करना समभव नहीं होता है।

तथापि भारत में साइबर अपराधों के निवारण एवं नियन्त्रण के लिए दंडविधि तथा साक्ष्य विधि में कतिपय संशोधनों के अतिरिक्त एक पृथक कानून अस्तित्व में लाया गया है, जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के रूप में प्रभावी है।

ज्ञातव्य है कि साइबर अपराधों की बहुलता की दृष्टि से विश्व में भारत पाँचवे स्थान पर हैं। सन् 2010-2014 की अवधि में भारत हुए वेबसाइट हैकिंग की वार्षिक औसत दर 9500 के लगभग है। वर्तमान समय में साइबर अपराधियों ने अपना दायरा केवल कम्प्यूटर तक सीमित न रखते हुए सेल फोन, स्मार्टफोन, मोबाइल और टेबलेट्स पर साइबर हमले तक बढ़ा लिया है।

अधिकांश प्रमुख सर्विस प्रोवाइडर जैसे याहू, हॉटमेल, गूगल, फेसबुक, टिवटर आदि अमेरिका से संचालित होने के कारण, साइबर अपराध सम्बन्धी किसी सूचना को प्राप्त करने में लगभग 15 से 45 दिनों का समय लगता है जो स्वयं में काफी लम्बा समय है। इसके अतिरिक्त अनेक मामलों की छानबीन के लिए लाग्ज (Logs) प्रोफाइल तथा ई-मेल के टेक्स्ट की आवश्यकता होती है।

इस कारम आपसी विधिक सहायता सन्धि (Mutual Legal Assistance Treaty MLAT) तथा लेटर रोगेटरी (Latter Rogatory-LR) माध्यम सहायता करने में हिचकिचाते हैं क्योंकि इसमें एक अत्यन्त दीर्घकालीन प्रक्रिया अन्तर्निहित होती हैं जिससे अन्वेषण कार्यवाही के व्यर्थ सिद्ध होने की सम्भावनाएँ बनी रहती है।

साइबर अपराधों की सूचनाओं के त्वरित (शीघ्र) आदान-प्रदान हेतु भारत ने अमेरिका के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि एक भारत-अमेरिका चेतावनी तथा निगरानी नेटवर्क (Indo-American Alert, Watch & Warm Network) स्थापित किया जाए जिससे दोनों देशों की अन्वेषण-एजेन्सियो आपस में साइबर अपराधों सम्बन्धी सूचनाओं का आदान-प्रदान करें ताकि इनका अविलम्ब पता लगाकर कार्यवाही की जा सके।

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shubham yadav

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