प्रतिष्ठा गिराने के लिये साइबर शिकार से सम्बन्धित वाद का वर्णन ।
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प्रतिष्ठा गिराने के लिए साइबर शिकार (Cyber Stalking for damaging reputation)
प्रतिष्ठा गिराने के लिए साइबर शिकार- सुश्री अरुणा काशीनगर बनाम प्रमाणन प्राधिकारियों का नियंत्रण एवं अन्य AIR 2009 का वाद यह दर्शाता है कि किस तरह साइवर शिकार नामक अपराध का प्रयोग किसी संगठन या व्यक्ति की छवि धूमिल करने के लिए किया जा सकता है।
वाद के तथ्यों के अनुसार, सुश्री अरुणा काशीनाथ कई ई-डाकों की प्रतिलिपियों को मुद्रित प्रतियाँ प्राप्त कर सदमे में आ गयी जिन्हें प्रत्यक्षतः काशीनाथ डॉट अरुणा ऐट जी मेल डॉट कॉम नामक ई-डाक (ई-मेल) खाते, जिसे उनके नाम से कुछ अज्ञात व्यक्तियों द्वारा डब्ल डब्ल्यू डब्ल्यू जी मेल डॉट कॉम की ई-सेव के अन्तर्गत कपटपूर्ण तरीके से सृजित किया गया था, से भेजा गया था। ऐसे अज्ञात लोगों ने असत्य एवं रिष्टिपूर्ण सूचना भरकर उक्त ई-खाता सृजित किया था, और तदनन्तर उसका इस्तेमाल अपमानजनक एवं घृणास्पद ई-डाक भेजने हेतु किया था।
उक्त फर्जी ई-डाक पहचान का प्रयोग करके अज्ञात व्यक्तियों ने 22 नवम्बर, 2008 और 07 जनवरी, 2009 के बीच कम्पनी के भविष्य की निराशाजनक तस्वीर चित्रित करते हुए अलग अलग व्यक्तियों को 5 ई-मेल प्रेषित किये और प्रेषितीगण से कम्पनी को इस दुरवस्था से बचाने हेतु कुछ विनती की। इन ई-डाकों के जरिये मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.ई.ओ.) और अध्यक्ष को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया जो कम्पनी की आस्तियों (assets) को लूटने का प्रयास कर रहा था
“हर कोई जानता है कि सैन्डी ने करोड़ो डॉलर ने घर बनाये हैं (न्यूयार्क में 4, दिल्ली। में 2 एवं ऐसे ही कई अन्य शहरों में भी) जिनमें जी.डी.आर. (जिसका सम्भवतः अपतटीय निवेश कम्पनियों के जटिल संजाल के जरिये चतुराई से प्रबन्धन किया जाता है), स्वचालित मशीनों आदि के धन का इस्तेमाल किया गया है, और जिसने व्यक्तिगत दायित्वों को निगम के दायित्व के रूप में परिवर्तित कर दिया है।
कम्पनी का खजाना सूख गया है और इसका एक-एक दिन जिन्दा रहना कठिन हो गया है, और दिसम्बर के अन्त तक यह पूरी तरह बन्द भी हो सकती है। आप शायद अर्जनों (acquisitions) के वर्तमान स्वामियों से सीधे बात करना चाहेंगे और उनके मुद्दों पर भी और आप यह पायेंगे कि अर्जनों के मूल्य को अच्छा दिखाया गया है (जहाँ तक प्रकाशित रिपोर्टों और वास्तविक एस.पी.ए. की बात है) और अंशों (Shares) को निकाल लिया गया है।”
सुश्री अनुणा काशीनाथ ने प्रमाणन प्राधिकारियों के नियंत्रक के समक्ष इन सब बातों का वर्णन करते हुए और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के उल्लंघनों का हवाला देते हुवे एक शिकायती पत्र 24 सितम्बर, 2009 को दाखिल किया और उसी दिन अधिकरण के सम्मुख प्रस्तुत होकर वर्तमान अफील दायर कर दी।
अपीलकर्ता ने अधिकरण से प्रार्थना की कि प्रत्यर्थी संख्या 1 (नियंत्रक) को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के कथित उल्लंघनों के बारे में जाँच शुरू करने का निर्देश दिया जाय और प्रत्यर्थी संख्या 2 और 3 (क्रमशः जी मेल और गूगल इनकार्पोरेटेड) को प्रत्यर्थी संख्या 1 की मदद करने हेतु अग्रिम निर्देश दिया जाय।
अपने जवाब में प्रत्यर्थी संख्या 1 ने अपील को प्रथमतः शून्य बताया क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनयम, 2000 के अनुभाग 57 के तहत केवल नियंत्रक के आदेश के विरुद्ध ही अपील दायर की जा सकती है, जबकि वर्तमान में ऐसा कोई आदेश मौजूद नहीं था। ऐसा करना, सिद्धान्तों और प्रक्रियाओं का मजाक उड़ाने जैसा था। प्रत्यर्थीकरण ने यह भी आरोप लगाया कि अपीलकर्ता ने अधिकरण के सम्मुख आने के पहले अपनी शिकायत पर नियंत्रक की कार्रवाई के लिए युक्तियुक्त समय तक प्रतीक्षा नहीं की।
प्रत्यर्थी संख्या 2 एवं 3 ने अभिकथन किया कि अपीलकर्ता ने प्रत्यर्थी संख्या 2 को गलत तरीके से मुकदमे में शामिल किया है, क्योंकि यह गूगल इनकारपोरेटेड द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली एक सेवा है और अपने आप में कोई विधिक एकक नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि अधिकरम की स्थापना नियंत्रक के आदेश से व्यथित किसी पक्षकार को उपचार हेतु एक मंच प्रदान करने के स्पष्ट और लिखित उद्देश्य के साथ की गयी थी और इसलिए उनकी दलील थी की क्षेत्राधिकार को किसी ऐसे आवेदन या पेटीशन (petition) तक नहीं प्रसूत (extend) किया जा सकता है जिसकी प्रकृति नियंत्रक या निर्णयकर्ता अधिकारी के आदेश के विरुद्ध की जाने वाली अपील जैसी नहीं है।
अधिकरण द्वारा जो मुद्दे रचित किये गये वो ये थे कि (1) क्या प्रमाणन प्राधिकारियों के नियंत्रक या निर्णयकर्ता अधिकारी, जिन्हें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत नियुक्त किया गया है, के सम्मुख जाने के वैकल्पिक उपचार को समाप्त किये बिना वर्तमान अपील पोषणीय है; (ii) क्या प्रस्तुत अपराध अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत आता है; और (iii) अनुतोष, यदि कोई हो।
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सूचना प्रौद्योगिकी अधिनयम, 2000 के संगत प्रावधानों पर विचारोपरान्त अधिकरण इस निष्कर्ष रपर पहुँचा कि इसके समक्ष अपील सिर्फ प्रमाणन प्राधिकारियों के नियंत्रक या निर्णयकर्ता अधिकारी के आदेश के विरुद्ध ही ही की जा सकती है। अधिकरण ने शीर्षस्थ न्यायालय ने कुछ ऐतिहासिक निर्णयों के आलोक में यह प्रेक्षण देते हुए कि जहाँ विधि द्वारा प्रक्रिया निर्धारित की गयी है वहाँ ऐसी प्रक्रिया से बचने के लिए अन्तर्निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, अपीलकर्ता द्वारा दीवानी प्रक्रिया संहिता के अनुभाग 151 के तहत अन्तर्निहित शक्तियों के की अपीलकर्ता द्वारा दी गयी दलील ठुकरा दी।
अधिकरण ने यह भी निर्धारित किया कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत नियुक्त निर्णयकर्त्ता अधिकारी के समक्ष आवेदन करने के वैकल्पिक उपचार को समाप्त किये बिना अधिनियम के अनुभाग 57 के तहत कोई अपील पोषणनीय नहीं है।
इसने आगे यह भी प्रेक्षण दिया कि प्रमाणन प्राधिकारियों के नियंत्रक के समक्ष दाखिल की गयी शिकायत से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अनुभाग 46 की आवश्यकताएं पूरी नहीं होंगी, और अपीलकर्ता को निर्देश किया कि वह निर्णयकर्ता अधिकारी के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज कराये जिसके पास प्रश्नगत प्रकृति के विवादों के निर्णय करने का क्षेत्राधिकार हैं।
दाखिले के स्तर पर ही अधिकरण ने प्रस्तुत अपील के गुणों से रहित मानते हुए खारिज कर दिया; परन्तु अपीलकर्ता को निर्णय के 30 दिनों के भीतर शिकायत दर्ज कराने का समय दिया और निर्णयकर्ता अधिकारी को निर्दिष्टि किया कि वह कालातीत होने के आधार पर अपीलकर्ता को शिकायत दाखिल करने से न रोके।
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