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शिक्षा की परिभाषाएँ | Definition of Education in hindi

शिक्षा की परिभाषाएँ
शिक्षा की परिभाषाएँ

शिक्षा की परिभाषाएँ

1. शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करने वाली कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार दृष्टव्य हैं “व्यक्ति की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है।” -स्वामी विवेकानन्द

2. “अन्तर्निहित ज्योति की उपलब्धि के लिए शिक्षा विकासशील आत्मा की प्रेरणादायिनी शक्ति है। – श्री अरविन्द

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3. “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक तथा मनुष्य में अन्तर्निहित शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक श्रेष्ठतम शक्तियों को प्रकाश में लाना है।” महात्मा गाँधी

4. “शिक्षा को मनुष्य और समाज का निर्माण करना चाहिये। इस कार्य को किए बिना शिक्षा निर्धन और अपूर्ण है।” -डॉ० राधाकृष्णन्

5. “शिक्षा व्यक्ति की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक, समरूप तथा प्रगतिशील विकास है।” -पैस्टालॉजी

6. “बीज रूप में जो कुछ मौजूद है, उसको खोलना ही शिक्षा है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा अपनी आन्तरिक योग्यताओं को बाह्य रूप प्रदान करता है।” -फ्रोबेल

शिक्षा प्रक्रिया का परिवर्तित होता स्वरूप

सर्वप्रथम शिक्षा ज्ञान केन्द्रित तत्पश्चात् अध्यापक केन्द्रित हुई। एक स्थिति ऐसी भी आई जबकि शिक्षा को द्विभुजीय प्रक्रिया के रूप में एडम्स महोदय ने स्वीकार किया अपनी पुस्तक ‘Evolution of Educational Theory’ में, जिसमें उन्होंने एक ध्रुव पर शिक्षक तथा दूसरे ध्रुव पर शिक्षार्थी को रखा और इसका विश्लेषण करते हुए बताया कि –

1. शिक्षा एक द्विभुजीय प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्तित्व दूसरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है जिससे उसके व्यवहार में परिवर्तन हो जाये।

2. यह प्रक्रिया सचेतन ही नहीं सोद्देश्य भी है जिसमें शिक्षक का एक स्पष्ट प्रयोजन रहता है।

3. वे साधन जिनके द्वारा बालक के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है, वे दो हैं—(1) शिक्षक के व्यक्तित्व का बालक के व्यक्तित्व पर प्रभाव, (2) ज्ञान के विभिन्न अंगों का प्रयोग।

शिक्षा को त्रिभुजीय प्रक्रिया के रूप में मान्यता प्रदान करते हुए प्रसिद्ध अमेरिका के शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी ने शिक्षा के दो ध्रुवों पर शिक्षक और शिक्षार्थी तथा तीसरे पर सामाजिक पक्ष को जोड़ा है, जिस पर उसने बहुत कम बल दिया है।

जॉन डीवी ने यह स्वीकार किया है कि एक शिक्षक को शिक्षित करने के लिए उसकी जन्मजात शक्तियों का ज्ञान होना आवश्यक है किन्तु साथ में यह भी सत्य है कि समाज से अलग रहकर बालक की शिक्षा नहीं हो सकती। पाठ्यक्रम का निर्धारण समाज एवं सामाजिक परिस्थितियाँ ही करती हैं। अतः पाठ्यक्रम ही एक ऐसी धुरी है जो शिक्षक और शिक्षार्थी इन दो धुरियों को मिलाती है। इस प्रकार शिक्षा प्रक्रिया के त्रिभुजीय स्वरूप एवं शिक्षक शिक्षार्थी मध्य चलने वाले अन्तःक्रियात्मक सम्बन्धों को चित्रात्मक रूप से इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।

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shubham yadav

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