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पाठ्यक्रम की रूपरेखा का छात्रों की आवश्यकता के रूप में वर्णन कीजिए। (Describe the design of curriculums as need of the children)
पाठ्यक्रम की रूपरेखा का छात्रों की आवश्यकता के रूप में- पाठ्यक्रम को विद्यालयी प्रक्रिया का आधार माना जाता है क्योंकि विद्यालय की समूची क्रियाओं और गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु पाठ्यक्रम ही होता है। यहाँ विद्यालयी प्रक्रिया से अभिप्राय केवल शिक्षण अधिगम प्रक्रिया न होकर विद्यालय के अन्दर-बाहर घटित होने वाली उन सभी क्रियाओं से होता है जो बालक के सर्वांगीण विकास में सहायक होती हैं। बालक के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए भी पाठ्यक्रम का संगठन किया जाता है जिसके पीछे अलग-अलग पाठ्यक्रम निर्धारक के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं। इन विभिन्न दृष्टिकोण के आधार पर पाठ्यक्रम को अग्र भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) मूल पाठ्यक्रम (Core Curriculum)
जैसा कि नाम से ही बोध होता है कि पाठ्यक्रम में कुछ विषय तो अनिवार्य होते हैं जिनमें किसी प्रकार का अन्य विकल्प नहीं होता जबकि कुछ विषय ऐसे भी हैं जिन्हें विद्यार्थी अपनी व्यक्तिगत रुचि व योग्यतानुसार चुनते हैं। इन विषयों को विद्यार्थी और समुदाय का सर्वांगीण विकास करना होता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि सम्बन्धित पाठ्यक्रम विद्यार्थी को व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन हेतु जानकारी प्रदान करता है ताकि वह अपने अनुभवों के आधार पर भावी जीवन में आने वाली समस्याओं को लड़कर उनका समाधान कर सके और देश का उत्तम नागरिक बन सके।
मूल पाठ्यक्रम में आने वाले अनिवार्य विषय निम्न प्रकार से हैं—
(1) भाषा
(2) गणित
(3) विज्ञान
(4) सामाजिक विज्ञान
(5) कला एवं संगीत सम्बन्धी विषय
(6) स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा
मूल पाठ्यक्रम की विशेषताएँ
मूल पाठ्यक्रम में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए-
(i) यह पाठ्यक्रम पूर्णतया बाल केन्द्रित होनी चाहिए।
(ii) यह छात्रों की रुचि, योग्यता और आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए।
(iii) इसमें ज्ञान की विभिन्नता होनी चाहिए।
(iv) विद्यार्थियों को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में योग्य होना चाहिए।
(v) पाठ्यक्रम विद्यार्थियों के लिए उचित मार्गदर्शन होना चाहिए।
(vi) पाठ्यक्रम शिक्षक छात्र सम्बन्धों में घनिष्ठता लाने वाला होना चाहिए।
(vii) मूल पाठ्यक्रम विद्यार्थियों की जिज्ञासा को शान्त करने वाला होना चाहिए।
(viii) मूल पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों को पढ़ाने का समय निर्धारित होता है।
(ix) इस प्रकार के पाठ्यक्रम से विद्यार्थियों को आधारभूत ज्ञान प्राप्त होता है।
(x) इस पाठ्यक्रम में बालक को जीवनोपयोगी शिक्षा मिलती है।
(2) बाल आधारित पाठ्यक्रम (Child Based Curriculum)
किसी भी बालक को प्रभावी शैक्षिक ज्ञान प्रदान करने के लिए जरूरी है कि सर्वप्रथम उसके मनोविज्ञान को जाना जाए बाल मनोविज्ञान की जानकारी रखने वाला अध्यापक ही अपनी शैक्षिक प्रक्रिया को प्रभावी बना सकता। क्योंकि इस प्रकार की शैक्षिक प्रक्रिया और पाठ्यक्रम का आधार कोई विषय विशेष न होकर बालक होता है। बाल आधारित पाठ्यक्रम से भी हमारा अभिप्राय ऐसे पाठ्यक्रम से है जो बालक की रुचि, योग्यता, क्षमता व आवश्यकता को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है क्योंकि इस प्रकार के पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास होता है इसलिए इसके निर्माण में बालक और उसकी समस्त गतिविधियों को ध्यान में रखा जाता है।
बाल आधारित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Child based Curriculum)
बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम के मुख्य गुण निम्न प्रकार से हैं-
(i) यह पाठ्यक्रम पूर्णतया बालक की रुचियों, क्षमताओं और आवश्यकताओं के अनुरूप होता है।
(ii) इस प्रकार का पाठ्यक्रम बालक के क्रियान्वयन पक्ष को मजबूत करता है।
(ii) यह पाठ्यक्रम बालक के व्यक्तित्व विकास में अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
(iv) यह पाठ्यक्रम पूर्णतया बाल मनोविज्ञान के सिद्धान्तों के अनुरूप होता है।
(v) यह पाठ्यक्रम बालक के अधिगम सम्बन्धी पक्ष को मजबूत करता है।
(vi) इसी पाठ्यक्रम के आधार पर आधुनिक शिक्षण पद्धतियाँ विकसित हुई हैं जो विद्यार्थियों के ज्ञानात्मक, बोधात्मक और भावात्मक पक्ष को मजबूत करती हैं।
(vii) यह पाठ्यक्रम बालक को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करता है जिससे उसकी प्रायोगिक प्रवृत्ति विकसित होती है। इसमें पुस्तकीय तथा सैद्धान्तिक पक्ष को अधिक महत्ता नहीं दी जाती।
(viii) अत्यधिक व्यावहारिक होने के कारण यह भावी जीवन हेतु अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है।
(ix) इस प्रकार के पाठ्यक्रम से बालक की शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न होती है, जिस पर भावी जीवन की कुशलता निर्भर करती है।
(x) पाठ्यक्रम छात्रों का ज्ञान, सूझ-बूझ, जीवन मूल्यों आदि का ज्ञान प्रदान करता है जिससे उनमें समाज कल्याण की योग्यता विकसित हो जाती है।
(3) क्रिया आधारित पाठ्यक्रम (Activity Based Curriculum)
क्रिया आधारित पाठ्यक्रम वह पाठ्यक्रम है जिससे विभिन्न प्रकार की क्रियाओं और विभिन्न गतिविधियों में उनकी रुचि और योग्यता झलकती है। इन्हीं रुचियों और योग्यताओं को आधार मानकर अध्यापक विभिन्न स्तरों के विद्यार्थियों के लिए क्रियाओं का चुनाव करते हैं। ये चयनित क्रियायें बालक और समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप होती हैं। क्रिया आधारित पाठ्यक्रम को महत्त्व प्रदान करने वालों में अमरीकी शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी का नाम प्रमुख है। इसके अनुसार, “बालकों के ऐसे कार्यों के द्वारा शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जिससे आगे चलकर बालक समाजोपयोगी कार्य करने में सक्षम हो सके।”
क्रिया आधारित पाठ्यक्रम की प्रमुख विशेषताएँ (Main Qualities of Activitiy Based Curriculum)
(i) यह पाठ्यक्रम बालक के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
(ii) यह पाठ्यक्रम समाज कल्याण की भावना का प्रमुख उत्प्रेरक है।
(iii) पाठ्यक्रम निर्माण में बालक की रुचियों और आवश्यकताओं को विशेष महत्त्व दिया जाता है।
(iv) चयनित पाठ्यवस्तु भी विद्यार्थी और समाज की उपयोगिता के अनुरूप होती है।
(v) बालक में क्रियात्मक के भाव उत्पन्न करने में सहायक है।
(vi) इस प्रकार की पाठ्यवस्तु के क्रियान्वयन में बालक अत्यधिक रुचि लेते हैं।
(vii) बालकों में स्वयं करके सीखने की आदत का विकास होता है।
(4) अनुभव आधारित पाठ्यक्रम (Experienced Based Curriculum)
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस प्रकार के पाठ्यक्रम का मुख्य आधार अनुभव होते हैं। इस प्रकार के पाठ्यक्रम का निर्माण अनुभवों को आधार मानकर किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि वह पाठ्यक्रम जिसमें बालकों के सर्वांगीण विकास हेतु पाठ्यक्रम व विभिन्न ज्ञानात्मक तथ्यों की अपेक्षा अनुभवों को अधिक महत्त्व दिया जाता है, अनुभव आधारित पाठ्यक्रम कहलाता है।
अनुभव आधारित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Experience Based Curriculum)
(i) यह पाठ्यक्रम पूर्णतया मनोवैज्ञानिक माना जाता है, क्योंकि इसका सम्बन्ध बालक की रुचियों, क्षमताओं एवं योग्यताओं तथा अनुभवों से होता है।
(ii) इस प्रकार का पाठ्यक्रम अत्यन्त लचीला पाठ्यक्रम माना जाता है क्योंकि इसके परिवर्तन का आधार बालकों के अनुरूप होता है। बालकों के अनुभव बदलते ही पाठ्यक्रम में बदलाव जरूरी हो जाता है।
(iii) यह पाठ्यक्रम बालक और शिक्षक तथा विद्यालय और समाज के मध्य सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
(iv) बालक के सामाजिक समायोजन में यह अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
(v) बालक के मानसिक एवं बौद्धिक विकास में यह सहायक होता है।
(vi) बालक के सृजनात्मक पक्ष को विकसित करता है।
(vii) बालक को भौतिक वातावरण से समायोजन सिखाता है।
(viii) बालक के सर्वांगीण विकास में भी अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
(5) विषय आधारित पाठ्यक्रम (Subject Based Curriculum)
इस प्रकार के पाठ्यक्रम का मुख्य आधार विषय विशेष होता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम के निर्माण में किसी विषय को केन्द्र बिन्दु माना जाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में बालक की रुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं और आवश्यकताओं को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। विषय केन्द्रित होने के कारण इस प्रकार के पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य पुस्तकीय ज्ञान और पुस्तकीय पाठ्यक्रम की पूर्णता होती है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम की सीमाएँ निश्चित होती हैं पाठ्य पुस्तक में अंकित विषय वस्तु के आधार पर ही अध्यापक और विद्यार्थी को ज्ञान प्रदान एव ग्रहण करना पड़ता है विषय-वस्तु की पूर्णता के पश्चात् मूल्यांकन प्रक्रिया का आधार भी सम्बन्धित विषय की जानकारी ही होती है। इस कार्य की पूर्णता पाठ्य वस्तु परीक्षा के माध्यम से पूर्ण हो जाती हैं।
विषय आधारित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ
विषय आधारित पाठ्यक्रम की निम्न विशेषताएँ मानी जाती हैं-
(i) इस प्रकार के पाठ्यक्रम में शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया (Teaching learning process) सुनिश्चित होती है। अध्यापक और विद्यार्थी को केवल निर्धारित पाठ्यवस्तु के ज्ञान ‘का ही अध्ययन-अध्यापन करना पड़ता है।
(ii) इस प्रकार के पाठ्यक्रम के लक्ष्य एवं उद्देश्य पहले से ही स्पष्ट होते हैं।
(iii) इस पाठ्यक्रम का मुख्य आधार शिक्षा और समाज की अपनी विचारधारा को माना जाता है
(iv) इस प्रकार का पाठ्यक्रम विभिन्न विषयों के आपसी सम्बन्धों को मजबूती प्रदान करता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सभी विषय किसी-न-किसी रूप में परस्पर सम्बन्धित होते हैं।
(v) इस प्रकार के पाठ्यक्रम में प्रचलित विभिन्न कार्य (पाठ्यक्रम निर्माण, क्रियान्वयन और मूल्यांकन) अत्यन्त सरलता से पूर्ण किये जा सकते हैं।
(vi) सरलता के गुण के कारण ही शिक्षक और छात्र इस प्रकार के पाठ्यक्रम को अत्यन्त महत्त्व देते हैं।
(vii) इस प्रकार के पाठ्यक्रम का सम्बन्ध प्राचीन रूढ़ियों से होने के कारण परम्परागत ज्ञान को बढ़ावा मिलता है।
(viii) पाठ्यक्रम की सरलता के कारण ही इसमें संशोधनों और परिवर्तनों की अधिकता रहती है।
(ix) विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम को मूल्यांकित करना सबसे सरल माना जाता है।
(6) व्यवसाय आधारित पाठ्यक्रम (Vocational Based Curriculum)
इस प्रकार के पाठ्यक्रम का मुख्य लक्ष्य बालक को किसी व्यवसाय विशेष से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाना है। आधुनिक युग में इस प्रकार के पाठ्यक्रम को अत्यन्त पसन्द किया जाता है, क्योंकि इस प्रकार के पाठ्यक्रम के ज्ञान से रोजगार प्राप्ति में सुविधा होती है और भावी जीवन अत्यन्त सफल रहता है इस प्रकार के पाठ्यक्रम में हालांकि कुछ अन्य विषय (सामान्य शैक्षिक विषय) भी पढ़ाये जाते हैं, लेकिन मुख्य उद्देश्य बालक के उस कौशल (Skill) को विकसित करना होता है, जो उसे स्वावलम्बी बनाने में सहायक होता है।
व्यवसाय आधारित पाठ्यक्रम की प्रमुख विशेषताएँ (Main Characteristics of Vocational Based Curriculum)
(i) इस प्रकार का पाठ्यक्रम बालक को किसी व्यवसाय से जोड़ता है।
(ii) बालक में आत्मनिर्भरता का गुण विकसित होता है।
(iii) व्यावसायिक कौशल के साथ-साथ सामान्य विषयों का ज्ञान भी प्रदान किया जाता है।
(iv) बालक में करके सीखने (Learning by doing) की आदत का विकास होता है।
(v) व्यावसायिक कुशलता के कारण बालक के भावी जीवन की सफलता की कामना की जा सकती है।
(7) शिल्पकला आधारित पाठ्यक्रम (Craft based Curriculum)
शिल्पकला से हमारा अभिप्राय कताई, बुनाई, रंगाई, सिलाई, कपड़े, चमड़े, लकड़ी और कृषि कार्यों की ..जानकारी से है। शिल्पकला आधारित पाठ्यक्रम में इस प्रकार के कार्यों को ही केन्द्र बिन्दु माना जाता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि इस प्रकार के पाठ्यक्रम में विभिन्न शिल्प-कलाओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इन कलाओं के अतिरिक्त इस पाठ्यक्रम में अन्य विषयों को भी शामिल किया जाता है, लेकिन शिक्षण प्रशिक्षण का केन्द्र इन्हीं शिल्पकलाओं को ही माना जाता है। गाँधीजी की आधारभूत शिक्षा (Basic Education) में भी इस प्रकार की शिल्प-कलाओं का वर्णन मिलता है।
शिल्पकला आधारित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Craft based Curriculum)
(i) इस प्रकार के पाठ्यक्रम से बालक को विभिन्न शिल्प कलाओं की जानकारी मिलती है, क्योंकि इस पाठ्यक्रम का केन्द्र बिन्दु शिल्पकला ही होती है।
(ii) भारतीय सांस्कृतिक विकास में यह पाठ्यक्रम अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
(iii) विभिन्न कलाओं के साथ-साथ अन्य विषयों के अध्ययन से बालक की सामान्य जानकारी में वृद्धि होती है।
(iv) बालकों की समाज तथा समाजिक कार्यों के प्रति रुचि विकसित होती है।
(v) इस प्रकार का पाठ्यक्रम बालक को किसी व्यवसाय से जोड़ने में भी सहायक सिद्ध होता है।
(8) शास्त्रीय पाठ्यक्रम (Classical Curriculum)
यह पाठ्यक्रम विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम का दूसरा रूप है। इस पाठ्यक्रम के अन्तर्गत अनेक शास्त्रीय भाषाओं, अनेक शास्त्रों, दर्शनों तथा ज्योतिष सम्बन्धी शिक्षा प्रदान की जाती है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम का उद्देश्य बालक के नैतिक और आध्यात्मिक पक्ष को मजबूत करना होता है। इसी के फलस्वरूप केन्द्र-बिन्दु भी विभिन्न नैतिक और आध्यात्मिक विषय ही होते हैं। वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था जब गुरुकुलों और आश्रमों में प्रदान की जाती थी, तब इस शिक्षा का अत्यन्त महत्त्व था लेकिन आधुनिक युग में यह पाठ्यक्रम विद्यार्थी और समाज की आवश्यकताओं के अनुसार खरा नहीं उतरता जिसके कारण इस पाठ्यक्रम की उपयोगिता धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
शास्त्रीय पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Cassical Curriculum)
शास्त्रीय पाठ्यक्रम की निम्नलिखित विशेषताएँ हो सकती हैं-
(1) बालक के नैतिक विकास में सहायक सिद्ध होता है।
(2) यह पाठ्यक्रम बालक के आध्यात्मिक पहलू को भी विकसित करने में सहायक होता है।
(3) शास्त्र सम्बन्धी जानकारी के अतिरिक्त बालकों की अन्य जानकारी बौद्धिक और मानसिक विकास में सहायक है।
(4) इस पाठ्यक्रम के माध्यम से बालकों का आचरण और सकारात्मक व्यवहार विकसित होता है।
(5) बालक में तर्क-शक्ति और चिन्तन मनन की योग्यता विकसित होती है।
(6) बालक में विशुद्ध चरित्र और विनम्रता के भाव विकसित होते हैं।
(9) समस्या आधारित पाठ्यक्रम (Problem Based Curriculum)
इस प्रकार के पाठ्यक्रम का केन्द्र-बिन्दु कोई विशेष क्रिया या अनुभव न होकर एक समस्या होती है।
यह समस्या किसी बालक विशेष या सम्पूर्ण कक्षा या विद्यालय से सम्बन्धित हो सकती है । इस प्रकार के पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बालकों तथा उनके शिक्षण-अधिगम की विभिन्न समस्याओं का निराकरण करना होता है ताकि बालकों को उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रेरित किया जा सके।
समस्या आधारित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Problem based Curriculum)
समस्या आधारित पाठ्यक्रम की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(i) बालकों की विभिन्न समस्याओं के समाधान में सहायक सिद्ध होता है।
(ii) इस प्रकार के पाठ्यक्रम में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया अत्यन्त सहज और वास्तविक होती है।
(iii) वास्तविक शैक्षिक प्रक्रिया के कारण वास्तविक निर्देशन (Guidance) सम्भव हो पाता है।
(iv) आधुनिक युग में इस पाठ्यक्रम का कोई महत्त्व नहीं है।
(v) इस पाठ्यक्रम में सामाजिक आवश्यकताएँ और इच्छाएँ भी पूर्ण नहीं हो पातीं।
(vi) शिक्षण के प्रति बालकों की रुचि विकसित करने में सहायक सिद्ध होता है।
(10) एकीकृत पाठ्यक्रम (Integrated Curriculum)
जैसा कि नाम से प्रकट होता है कि एकीकृत पाठ्यक्रम विभिन्न विषयों के एकीकरण से सम्बन्धित है। इस प्रकार पाठ्यक्रम में सभी विषय परस्पर सम्बन्धित होते हैं। यहाँ तक कि पाठ्यक्रम में निहित पाठ्यक्रम विषयों की अध्ययन सामग्री भी आपस में सम्बन्धित होती है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में बालक को विभिन्न विषयों का अध्ययन न करके अपने मनचाहे विषय का अध्ययन करना पड़ता है इस पाठ्यक्रम का जन्म अमेरिकी विद्यालयों में ‘गेस्टाल्टवाद’ नामक मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त के परिणामस्वरूप हुआ माना जाता है।
एकीकृत पाठ्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ (Characteristics of Integrated Curriculum)
एकीकृत पाठ्यक्रम का मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं-
(i) इस प्रकार का पाठ्यक्रम बालकों की रुचियों के अनुरूप होता है।
(ii) इस प्रकार का पाठ्यक्रम सर्वांगीण विकास के साथ-साथ जीवनोपयोगी शिक्षा प्रदान करता है।
(iii) इस प्रकार के पाठ्यक्रम के माध्यम से बालकों को विभिन्न विषयों का ज्ञान एक. साथ प्राप्त होता है।
(iv) इस प्रकार के पाठ्यक्रम से छात्रों के पूर्व ज्ञान और नवीन तथ्यों को सहज रूप से सम्बन्धित किया जा सकता है।
(11) मिश्रित पाठ्यक्रम (Fused Curriculum)
मिश्रित पाठ्यक्रम से हमारा अभिप्राय उस पाठ्यक्रम से है जिसमें दो या दो से अधिक विषयों को एक ही विषय के अन्तर्गत मिला लिया जाता है। इस प्रकार का पाठ्यक्रम मिश्रण के सिद्धान्त को विकसित करता है। इसके अतिरिक्त इस पाठ्यक्रम में अधिगम की अन्य इकाइयों को भी मिला लिया जाता है।
उदाहरणस्वरूप- इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र व अर्थशास्त्र आदि विषयों को मिलाकर सामाजिक-विज्ञान बना दिया जाता है और भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान को मिलाकर ‘सामान्य विज्ञान’ का नाम दिया जाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम को मिश्रित पाठ्यक्रम का नाम दिया जाता है।
मिश्रित पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Fused Curriculum)
(i) बालकों की ज्ञानार्जन सम्बन्धी जिज्ञासाएँ शान्त हो जाती हैं।
(ii) इस प्रकार का पाठ्यक्रम बालकों के लिए बोझिल और उबाऊ नहीं होता।
(iii) इस प्रकार के पाठ्यक्रम में विभिन्न सम्बन्धित विषयों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।
सैद्धान्तिक पाठ्यक्रम (Theoretical Curriculum)– सैद्धान्तिक पाठ्यक्रम का सम्बन्ध पाठ्यक्रम के उस क्षेत्र से होता है जो कि सिद्धान्तों पर आधारित होते हैं। यह सिद्धान्त पाठ्यक्रम के विभिन्न क्षेत्र जैसे—अनुशासन, विषय-वस्तु, शिक्षण प्रणालियों तथा प्रविधियों से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार के पाठ्यक्रम का क्षेत्र सिद्धान्त आधारित व सीमित होता है।
व्यावहारिक पाठ्यक्रम (Applied Curriculum)— व्यावहारिक पाठ्यक्रम को मुख्य रूप से व्यवहार में लाया जा सकता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम का सम्बन्ध मुख्यत: ‘करके सीखो’ (Learning by doing) से होता है। यह पाठ्यक्रम मुख्य रूप से मेडिकल क्षेत्र में लागू किया जाता है।
उत्पादकता सम्बन्धी पाठ्यक्रम (Productive Curriculum) – इस प्रकार के पाठ्यक्रम का सम्बन्ध मुख्यतः उत्पादकता से होता है। यह पाठ्यक्रम कृषि विज्ञान तथा अन्य मैकेनिकल कार्यों से सम्बन्धित होता है। यह पाठ्यक्रम भी व्यवहारिक पाठ्यक्रम ही कहलाता है।
व्यावसायिक पाठ्यक्रम (Professional Curriculum)- व्यावहारिक पाठ्यक्रम का सम्बन्ध मुख्य रूप से व्यवसाय से होता है। इसके द्वारा बालकों को व्यवसाय से सम्बन्धित शिक्षा प्रदान की जाती है इस प्रकार के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत व्यावसायिक कोर्स जैसे— B.Ed., BHMS, BAMS, BDS आदि को रखा जाता है।
एकीकृत पाठ्यक्रम (Integrated Curriculum) — एकीकृत पाठ्यक्रम का सम्बन्ध मुख्यत: एक निश्चित पाठ्यक्रम से होता है। यहाँ एकीकृत का तात्पर्य एक ही विषय पर केन्द्रित पाठ्यक्रम से है अर्थात् B. Com. Hons. या B.Sc. Hons. आदि जिसमें एक ही विषय-वस्तु को आधार बनाकर पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।
सह-सम्बन्धित पाठ्यक्रम (Correlated Curriculum) – सहसम्बन्धित पाठ्यक्रम का तात्पर्य उस पाठ्यक्रम से होता है जो कि एक पाठ्यक्रम दूसरे से सम्बन्धित हो जैसे कि- B.Ed. करने के पश्चात् यदि M.Ed. किया जाए तो B.Ed का भी मूल्य बढ़ जाता है।
परिधीय (गौण) अथवा कम महत्त्वपूर्ण पाठ्यक्रम (Peripheral Curriculum) – परिधीय (गौण) अथवा कम महत्त्वपूर्ण पाठ्यक्रम सम्बन्ध उस पाठ्यक्रम से होता है जो कि अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं होता।
शुद्ध पाठ्यक्रम (Pure Curriculum) – शुद्ध पाठ्यक्रम का तात्पर्य है जो कि छात्रों को प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर प्रदान किये जाते हैं। यह पाठ्यक्रम मुख्य रूप से नींव पाठ्यक्रम कहलाते है।
माध्यमिक पाठ्यक्रम (Inter Curriculum) — यह पाठ्यक्रम माध्यमिक स्तर का पाठ्यक्रम कहलाता है। इसमें छात्रों को माध्यमिक स्तरीय ज्ञान प्रदान किया जाता है यह ज्ञान कक्षा 8 से कक्षा 12 तक होता है।
बहु पाठ्यक्रम (Multi Curriculum) — बहु पाठ्यक्रम का सम्बन्ध मुख्यतः ऐसे पाठ्यक्रम से होता है जो बहुरूप से शिक्षण प्रदान करने से होते हैं। इसमें एक साथ कई शिक्षण कार्य जैसे कि B. Ed. के साथ कम्प्यूटर कोर्स आदि कराये जाते हैं।
अत: उपयुक्त प्रकार के पाठ्यक्रमों के द्वारा विद्यालय में शिक्षा प्रदान की जाती है।
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