अनुक्रम (Contents)
प्रश्न – दूरस्थ शिक्षा से आप क्या समझते हैं? विभिन्न विद्वानों द्वारा की गई दूरस्थ शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
अथवा
कीगन ने दूरस्थ शिक्षा की परिभाषा व्यक्त करते हुए किसकी परिभाषा को सर्वाधिक उपयुक्त बताया है? वर्णन करें।
उत्तर-
दूरस्थ शिक्षा का अर्थ–दूरस्थ शिक्षा, शिक्षा का वह स्वरूप है जिसमें शिक्षार्थी को दूर से शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की जाती है। यह शिक्षा विविध शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले तथा विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में बिखरे शिक्षार्थियों को उनकी रुचि और सुविधा के अनुकूल ज्ञान, कौशल एवं अभिवृत्ति प्रदान करने का एक तरीका है। दूरस्थ शिक्षा औपचारिक शिक्षा के विपरीत वह व्यवस्था है जिसमें विद्यार्थी को किसी भी तरह से विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने नहीं आना पड़ता है बल्कि वे अपने-अपने स्थान पर रहते आकाशवाणी, दूरदर्शन, टेपरिकार्डर आडियो एवं वीडियो कैसेट द्वारा ज्ञान प्राप्त करते रहते हैं।
दूरस्थ शिक्षा की परिभाषाएं-विभिन्न विद्वानों ने अपने ज्ञान, बोध और दृष्टिकोण से अलग-अलग ढंग से दूरस्थ शिक्षा को परिभाषित किया है। इसलिए ऐसी कोई परिभाषा नहीं बताई जा सकती है जिसमें सभी अर्थ और स्वगुणार्थ शामिल हों। यद्यपि यह कठिन है कि ऐसी परिभाषा हो जो सभी को मान्य हो फिर भी विभिन्न व्यक्तियों ने दूरस्थ शिक्षा की कुछ परिभाषाएं दी हैं। ये परिभाषाएं दूरस्थ शिक्षा के अर्थ व अवधारणा का व्यापक चित्रण करती हैं।
पीटर्स के अनुसार–“दूरस्थ शिक्षा अप्रत्यक्ष निर्देश देने का साधन है जो जहाँ पर शिक्षक और शिष्य हैं उनमें भौगोलिक और भावनात्मक जुदाई को प्रकट करती है, जबकि कक्षा रूपी शिक्षा, विद्यार्थी और अध्यापक के कक्षा के कमरे के सम्बन्ध में सामाजिक रूप में निर्भर है जबकि दूरस्थ शिक्षा में यह तकनीकी नियमों पर आधारित है।”
मालक्रोम एडीसेशिया-“दूरस्थ शिक्षा का अभिप्राय है सीखने-सिखाने की वह प्रक्रिया, जिसमें स्थान व समय के आयाम सीखने और सिखाने के मध्य हस्तक्षेप करते हैं।”
जैक्स ओक्स के अनुसार-“दूरस्थ शिक्षा कुछ निश्चित विशेषताओं के साथ सीखने का साधन है जो इसे किसी संस्था में सीखने के साधन से अलग करती है।”
फिलिप कौम्बस तथा मंजूर अहमद के अनुसार—“पहले से स्थापित (चल रही परम्परागत) औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र से बाहर चलने वाली सुसंगठित शैक्षिक प्रणाली को दूरस्थ शिक्षा कहा जाता है। यह एक स्वतंत्र प्रणाली के रूप में अथवा किसी बड़ी प्रणाली के अंग के रूप में सीखने वालों के एक निश्चित समूह को निश्चित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये मदद देती है।”
दोहमैन के अनुसार (1967) “दूरस्थ शिक्षा उचित रूप में आत्म् अध्ययन के रूप में संगठित है जिसमें विद्यार्थियों की काउंसलिंग, अधिगम सामग्री का प्रस्तुतीकरण तथा विद्यार्थियों का पर्यवेक्षण व शिक्षकों के उत्तरदायित्व सम्मिलित हैं।’
होल्मबर्ग (1981) ने दूरस्थ शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा है कि “दूरस्थ शिक्षा अध्ययन के अनेक प्रकारों में से एक है जो कक्षा में अपने छात्रों के साथ उपस्थित अध्यापकों के निरंतर तात्कालिक निरीक्षण से रहित है तथा जिनमें वे सभी शिक्षण विधियां समाहित रहती हैं जिनमें मुद्रण, यांत्रिक अथवा इलेक्ट्रानिक तकनीकों के द्वारा शिक्षण किया जाता है।”
मूरे (1972 और 1973) दूरस्थ शिक्षा के विशिष्ट लक्ष्यों के प्रति अधिक स्पष्ट है। उसके अनुसार दूरस्थ शिक्षा को शैक्षिक विधियों के एक कुल के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें शिक्षण व्यवहार अधिगम व्यवहार से पृथक संपादित होते हैं। उन व्यवहारों समेत उन जो मुखाभिमुख स्थिति में अध्येता की उपस्थिति में संपादित होते हैं तथा जिसमें अध्यापक और अध्येता के बीच छपी हुई सामग्री, इलैक्ट्रानिक्स यांत्रिक और अन्य साधनों से संप्रेषण होता रहता है। उन्होंने दूरस्थ शिक्षा के तीन लक्षण बताये।
1. शिक्षण व्यवहार अधिगम व्यवहार से पृथक रहता है (उदाहरणार्थ, पत्राचार पाठ्यक्रम)
2. मुखभिमुख शिक्षण और अधिगम प्रणाली का अंग है (उदाहरणार्थ, सम्पर्क कार्यक्रम),
3. अधिगम और शिक्षण को प्रभावित करने के लिए इलैक्ट्रानिक्स और अन्य साधन प्रयोग में लाए जाते हैं (उदाहरणार्थ, श्रव्य और वीडियो कैसेट प्रयोग किए जाते हैं)
कीगन (1986) ने दूरस्थ शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा है कि यह शिक्षा का वह रूप है जिसकी निम्नलिखित विशेषताएं है:
1. अधिगम प्रक्रिया में पूरे समय अध्यापक और अध्येता का अर्द्ध स्थाई पृथक्करण होता है। इस प्रकार यह परम्परागत प्रत्यक्ष (आमने-सामने) शिक्षा से भिन्नता दिखलाता है।
2. योजना और अधिगम सामग्री के तैयार करने और छात्रों की सहायता सेवा पर शैक्षिक संगठन का प्रभाव होता है और यह ही निजी अध्ययन और (टीच योरसैल्फ कार्यक्रम) स्व अध्ययन में अंतर करता है।
3. तकनीकी माध्यमों, छपी हुई सामग्री, श्रव्य वीडियो या कम्प्यूटर अध्यापक और अध्येता में सम्पर्क बनाते हैं और पाठ्यक्रम की विषय वस्तु को आगे बढ़ाते हैं।
4. द्विमार्गी सम्प्रेषण की व्यवस्था होती है ताकि छात्र लाभ उठा सकें या संवाद आरंभ कर सकें। यह ही शिक्षा के अन्य तरीकों से भिन्नता प्रदान करता है।
5. अर्द्धस्थाई रूप से अधिगामि; समूह अधिगम प्रक्रिया से पूरे समय अलग रहता है। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें व्यक्तिगत रूप में पढ़ाया जाता है, समूह में नहीं। कीगन ने दूरस्थ शिक्षा की अनेक परिभाषाओं का विश्लेषण करने के बाद होल्मबर्ग के द्वारा प्रस्तुत की गई परिभाषा को सर्वाधिक उपयुक्त स्वीकार किया।
जी. रामा रेड्डी (1988) ने दूरस्थ शिक्षा को “एक प्रवर्तनकारी अपारम्परिक तथा आरूढ़ प्रणाली के रूप में शिक्षा परिसरों में तथा शिक्षा परिसरों से बाहर अध्ययनरत दोनों प्रकार के छात्रों की आवश्यकता पूरी करने वाला बताया है। वे आगे कहते हैं कि बुनियादी तौर पर दूरस्थ शिक्षा प्रणाली का जोर छात्र तथा शिक्षक के अलगाव पर है जिससे छात्रों को स्वायत्त रूप से सीखने का अवसर मिलता है। दोनों के मध्य जो भी माध्यम हो उसके द्वारा परस्पर संचार स्थापित किया जाता है, जैसे-डाक या इलैक्ट्रॉनिक प्रेषण, टेलीफोन, टेलीफैक्स व टेली आदि।”
डा. कुलश्रेष्ठ के शब्दों में “दूरस्थ शिक्षा व्यापक तथा अनौपचारिक शिक्षा की एक विधि है जिसमें दूर-दूर स्थानों पर बैठे छात्र, शैक्षिक तकनीकी द्वारा प्रायोजित विकल्पों में से किन्हीं निश्चित विकल्पों का प्रयोग करते हुये शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति कर लेते हैं। ये विकल्प निम्न प्रकार के हो सकते हैं- (1) भली भांति संचित स्व-अनुदेशन सामग्री, (2) पुस्तकों, सन्दर्भो तथा शोध पत्रिकाओं (जर्नल्स) के सैट, (3) चार्ट, माडल, पोस्टर तथा अन्य दृश् सामग्री, (4) टेलीविजन/रेडियो प्रसारण, (5) टेलीकॉनफ्रेंसिंग आदि।”
दूरस्थ शिक्षा में छात्रों को शिक्षकों के आमने-सामने बैठकर व्याख्यान सुनने का अवसर नहीं मिलता है अन्यथा इसमें खुले अधिगम को सम्प्रेषण माध्यमों या शिक्षा तकनीकी के द्वारा सीखने वालों तक पहुंचाया जाता है। दूरदर्शन की सहायता से भी शिक्षक छात्रों तक पहुंचकर शिक्षा प्रदान कर सकता है।
उपरोक्त परिभाषाओं और दूसरी अन्य धारणाओं को ध्यान में रखते हुए दूरस्थ शिक्षा को भारतीय परिवेश के अन्तर्गत इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-“दूरस्थ शिक्षा अनौपचारिक शिक्षा का आधुनिक कार्यक्रम है। इसे पत्राचार शिक्षा, खुली शिक्षा, खुला सीखना इत्यादि के रूप में व्यक्त किया जा सकता है और इसकी विशेषता यह है कि यह किसी प्रवेश योग्यता के बिना एक व्यक्ति अपनी सुविधानुसार अपने ही स्थान पर सीख सकता है, जिसमें कोर्स को चुनने की सुविधा और उचित संचार तकनीक का प्रयोग करने की स्वतंत्रता है|
इसी भी पढ़ें…