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राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां: Emergency powers of President of India in Hindi
Dear Readers,आज मैं Indian Polity भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां(Emergency powers of President of India) का Theory Part Hindi में share करने जा रहा हूं, जो आपके आने वाले SSC CGL, CHSL, CPO, MTS Exams के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे| इससे पहले मैं, भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां(Legislative powers of President of India) के बारे में important point share कर चुका हूं| यदि आपलोगों ने अभी तक नहीं पढ़ा है तो इसे पढ़ने के लिए निचे दिए गए Link को Click करे|
प्रश्न- भारतीय राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का वर्णन एवं आलोचना कीजिये-
भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां
उत्तर- भारत का राष्ट्रपति तीन परिस्थितियों में संकट काल की उद्घोषणा कर सकता है-
(1) युद्ध, विदेशी आक्रमण व आन्तरिक अशांति या इनकी आशंका के कारण देश में संकटकालीन स्थिति की उद्घोषणा की जा सकती है।
(2) आर्थिक कारणों से भी देश में संकट उपस्थित हो सकता है।
(3) संविधान के कार्य न करने पर ।
संकटकालीन उद्घोषणा की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-
- संकटकाल की घोषणा को संसद के दोनों सदनों के सामने प्रस्तुत किया जाता है।
- दोनों सदनों के समर्थन के बिना की गई संकट काल की उद्घोषणा की अवधि केवल दो माह रह जाती है।
- यदि लोकसभा का अधिवेशन न हो रहा हो या दो मास की अवधि समाप्त होने से पूर्व ही लोकसभा बर्खास्त हो जाये तो संकट काल की घोषणा राज्य सभा के सम्मुख प्रस्तुत की जाती है।
(4) राज्य सभा द्वारा समर्थित संकटकालीन उद्घोषणा की अवधि उस समय तक जारी रहेगी जब तक कि नई लोकसभा को कायम हुए व उसकी पहली बैठक को शुरू हुए तीस दिन न बी. जायें । इन तीस दिनों में संकट काल की घोषणा को लोकसभा का समर्थन समाप्त हो जाना चाहिए
(5) यदि लोकसभा का समर्थन संकट काल की उद्घोषणा को प्राप्त हो जाय तो वह तीर दिन के बाद भी जारी रह सकेगी अन्यथा तीस दिन की समाप्ति पर वह समाप्त हो जायेगी।
संकटकालीन अधिकार
(1) युद्ध आदि के संकट के समय
यदि युद्ध अथवा युद्ध की सम्भावना अथवा आन्तरिक अशांति के कारण संकट उत्पन्न हआ है तो राष्ट्रपति के निम्नलिखित अधिकार हैं-
(i) राष्ट्रपति भारत के लिए या उसके किसी भाग के लिये राज्य सूची से सम्बन्धित विषयों पर कानून बना सकता है।
(ii)संघ की कार्यपालिका, राज्य की कार्यपालिका को किसी भी सम्बन्ध में आदेश जारी कर सकती है।
(iii)इस प्रकार के संकट काल में नागरिकों के कुछ मौलिक अधिकार स्थगित कर दिये जाते हैं।
(iv) वे वित्त सम्बन्धी उपबन्ध स्थगित कर दिये जाते हैं जो संविधान में प्रदान किये जाते हैं।
(v) किसी भी पदाधिकारी को राष्ट्रपति किसी भी प्रकार का अधिकार सौंप सकता है।
(2) वैधानिक शासन की असफलता का संकट
यदि भारत के राष्ट्रपति को विश्वास हो जाय कि किसी राज्य की सरकार अपने अधिकार के अनुसार कार्य नहीं कर रही है तो वह आपातकालीन उद्घोषणा कर सकता है और निम्नलिखित अधिकारो का प्रयोग कर सकता है-
(i) उस राज्य के विधान मण्डल और उच्च न्यायालयों के अधिकारों के अतिरिक्त राज्य के समस्त कार्य और अधिकार अपने अधिकार में रख सकती है।
(ii) वह आदेश दे सकता है कि राज्य के विधानमण्डल का समस्त कार्य भारतीय संसद के द्वारा सम्पादित किया जाएगा।
(iii) संसद की सलाह से वह संकटग्रस्त राज्य के लिए विधि बनाने का अधिकार उस राज्य के राज्यपाल को प्रदान कर सकता है।
(3) आर्थिक कारण से उत्पन्न संकट
यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाय कि संघ या किसी राज्य में आर्थिक समस्याओं के कारण संकट उपस्थित हुआ है तो वह संकटकालीन घोषणा कर सकता है और ऐसी स्थिति में निम्नलिखित अधिकारों का प्रयोग किया जा सकता है-
(i) संघ की सरकार राज्यों के वित्त सम्बन्धी विषयों में हस्तक्षेप कर सकता है।
(ii) संघ की सरकार राज्यों की सरकारों को वित्त सम्बन्धी मामलों पर विचार करने के लिए निश्चित आदेश दे सकता है।
(iii) राज्य की सरकारों में कार्य करने वाले अधिकारियों के वेतन को कम कर सकता है।
(iv) राष्ट्रपति संघ के समस्त कर्मचारियों, उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन को कम कर सकता है।
(v) राज्यों के धन सम्बन्धी विधेयक राष्ट्रपति के बिना मान्य नहीं होते।
संकटकालीन अधिकारों की आलोचना-
राष्ट्रपति के आपातकालीन अधिकारों के विरुद्ध आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों के कारण भारतीय सघ राज्य एकात्मक शासन प्रणाली में बदला जा सकता है। संविधान विशेषज्ञों ने राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों की आलोचना करते हुए कहा है कि ये अधिकार इतने व्यापक है कि राष्ट्रपति इनका प्रयोग करके किसी भी समय तानाशाह बन सकता है । एच०वी० कॉमथ ने संविधान सभा में राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों की आलोचना करते हुए कहा था-” मुझे भय है हम संविधान सभा | इस अध्याय द्वारा (जिसमें राष्ट्रपति के अधिकारों का वर्णन है)। सर्वाधिकारवादी राज्य की नींव रख रहे हैं… जहाँ कि करोड़ों स्त्री-पुरुषों के अधिकार खतरे में होंगे।’ किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि वास्तव में जो अधिकार राष्ट्रपति को प्रदान किये गये।हैं उनका प्रयोग राष्ट्रपति स्वेच्छा से नहीं कर सकता। उसके इन अधिकारों पर भारत का का विशेष प्रतिबन्ध है और यह भी समझ लेना चाहिए कि वास्तव में जो अधिकार राष्ट्रपात प्रदान किये गये हैं उनका उपभोग वह नहीं करता बल्कि उसके सब काम मन्त्रिपरिषद की सलाह पे होते हैं।
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