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बाल्यावस्था को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affacting Childhood in Hindi

बाल्यावस्था को प्रभावित करने वाले कारक
बाल्यावस्था को प्रभावित करने वाले कारक

बाल्यावस्था को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affacting Childhood)

बाल्यावस्था को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Childhood)- बालक का विकास कई अभिकरणों से प्रभावित होता है। सांसारिक अनुभवों से दूर जन्म के समय बालक केवल एक मांस का पिण्ड होता है। बचपन में बालक सामाजिक ताने-बाने से अनभिज्ञ रहता है इसलिए परिवार एवं विद्यालय में रहकर ही उसका सामाजिक प्राणी के रूप में विकास होता है। इसके पश्चात् पास-पड़ोस, समुदाय एवं समाज, बालक को प्रभावित करते हैं। बाल्यावस्था बालक का निर्माणकाल होता है अतः जैसा वातावरण उसे बचपन में मिलेगा वही उसके जीवन पर्यन्त व्यवहार में परिलक्षित होगा। स्किनर और हैरीमन के अनुसार, “वातावरण एवं संगठित सामाजिक संस्थाओं के कुछ विशेष कारक बालक के विकास की दशा व दिशा निश्चित करते हैं।” बालक पर विभिन्न संस्थाओं के प्रभाव का निम्न बिन्दुओं के तहत अध्ययन किया गया है-

परिवार का प्रभाव (Effect of Familly)- बाल्यावस्था में बालक का जीवन एक कोरे कागज के समान होता है। परिवार बालक की पहली सामाजिक संस्था है। गर्भावस्था से ही बालक के विकास में उसकी माता के रहन-सहन और खान-पान का असर पड़ने लग जाता है । बाल्यावस्था में बालक का उसकी माता के प्रति एक विशेष प्रेम एवं स्नेह का रिश्ता रहता है। नवजात बालक में सामाजिकता नाम की कोई चीज नहीं होती है। उसे अपने दैनिक कार्यों के लिए परिवार के सदस्यों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। भाषा का विकास होते ही दूसरों से सम्पर्क स्थापित करने से सामाजिक योग्यता में अभिवृद्धि होती है। परिवार में बालक सहयोग, सहनशीलता आदि गुणों को सीखता है। परिवार के बड़े-बुजुर्ग सदस्यों से बालकों में सामाजिक भावना का विकास होता हैं। उनके अनुकरण से बालक समाज से आदर्श व्यवहार करना सीखता है।

इस अवस्था में बालक अपने भाई-बहनों के साथ सामूहिक खेलों में रुचि लेना प्रारम्भ कर देता है इससे उनमें सामूहिकता की भावना का विकास होता है। छोटे बालक अपने बड़े भाई-बहनों की अपेक्षा शीघ्र सीखते है। परिवार के सदस्य बालक का प्यार-दुलार से लालन-पालन करते है इससे उनमें अनुशासन का संचार होता है जो आदर्श व्यक्तित्व के लिए एक प्रमुख तत्व है। यदि किसी बालक को अच्छा पारिवारिक वातावरण नहीं मिला तो उसे भविष्य में सामाजिक रूप द्वारा समायोजन करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बाल्यकाल की समस्त घटनाओं का प्रभाव व्यक्ति के भावी जीवन पर पड़ता है।

बाल्यावस्था में जिज्ञासा की प्रबलता के कारण बालक नवीन वातावरण को जानने का प्रयास स्वयं करता हैं। ऐसे में पारिवारिक सदस्य ही उसकी जिज्ञासा व ज्ञान पिपासा को शांत करते हैं। परिवार बालक को विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं से बचाता है और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है । परिवार में रहकर ही बालकों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्ति हो सकती है। परिवार उसमें संग्रह करने की प्रवृत्ति का विकास करता है।

थोर्प एवं शमलर के अनुसार, “परिवार बालक को ऐसे अनुभव प्रदान करता उसके व्यक्तित्व विकास की दिशा तय करते है।” परिवार बालक पर सामाजिक नियंत्रण जो स्थापित करता है। भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं का परिचालन सर्वप्रथम परिवार के माध्यम से ही होता है। बच्चे में सभी अच्छी आदतों का विकास बचपन में परिवार में रहकर ही होता है। परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का भी बालक पर प्रभाव देखा जा सकता है। गरीब परिवार के सदस्य जल्दी स्वावलम्बी बनते हैं।

साथी समूह का प्रभाव (Effect of Peer Group) – साथी समूह को खेल समूह भी कहते हैं । समाजीकरण की दृष्टि से व्यक्ति या बालक के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिक समूह है। साथी समूह उसे (बालक) अपनी प्रस्थिति तथा वर्ग के मूल्यों से परिचित कराते हैं। खेल समूह में बालक खेल के नियमों का पालन करना सीखता है। वह दूसरों के नियन्त्रण में रहना तथा अनुशासन का पालन करना सीखता है। रिजमैन कहते हैं कि खेल समूह वर्तमान समय में समाजीकरण करने वाला एक महत्त्वपूर्ण समूह है क्योंकि – आजकल व्यक्ति मार्गदर्शन तथा दिशा-निर्देश के लिए अपने हम उम्र के लोगों पर अधिक निर्भर करता है। इसलिए व्यक्ति अपने निर्णयों के लिए चित्रों की सलाह को अधिक महत्त्व देता है।

आस-पड़ोस का प्रभाव (Effect of Neighbourhood)- घर से बाहर कदम रखते ही अड़ोस-पड़ोस शुरू हो जाता है। अड़ोस-पड़ोस से बालक में सहानुभूति, प्रेम, निष्ठा, सहकारिता और कर्तव्यपरायणता जैसे गुणों का विकास होता है। अड़ोस-पड़ोस में अन्य बालकों के साथ खेलने से बालकों की मित्र मंडली बन जाती है। इससे छोटे-छोटे दलों का निर्माण होता है और उनमें दलों का नेतृत्व करने की क्षमता का विकास होता है। अड़ोस-पड़ोस के बच्चे आपस में मिलकर खेल खेलते हैं जिसका मुख्य उद्देश्य मनोरंजन है लेकिन खेल-खेल में बालक उत्तरदायित्व की भावना सीख लेता है। खेलों से बालकों का शारीरिक विकास होता है। इससे बालकों की नकारात्मक उर्जा बाहर निकलती है। कई बार अड़ोस-पड़ोस से बालक गंदी आदतों का शिकार भी हो जाता है। जिनका समय पर समाधान आवश्यक है।

विद्यालय का प्रभाव (Effect of School) – बालक के समाजीकरण में अगली कड़ी विद्यालय की होती है। बालक को विद्यालय में घर के बाद बड़ा परिवार मिलता है। यह ज्ञानार्जन की एक औपचारिक संस्था है। विद्यालय में अलग-अलग आयु स्तर के छात्र भिन्न-भिन्न सामाजिक व आर्थिक समूह से आते हैं। विद्यालय की विशेषताएँ अनेक होती हैं किन्तु सभी विद्यार्थी एक समान उद्देश्य के लिए यहां एकत्रित होते हैं। विद्यालय के नवीन वातावरण में बालक कई बार सही तरीके से समायोजित नहीं हो पाता है और वह सांवेगिक संतुलन खो बैठता है ऐसे में अध्यापक बालकों को संवेग पर नियंत्रण करना सिखाते हैं। विद्यालय में सामाजिक भावना का विकास होता है और बालक लोकतांत्रिक व्यवहार सीखता है। विद्यालय के स्वस्थ वातावरण, व्यवस्था, पर्यवेक्षण एवं साधन-सुविधाओं से अधिगम प्रभावी होता है।

विद्यालय में बालक ज्ञान व कौशलों का अर्जन करते हैं इससे उनकी बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। विद्यालय बालक के तानाशाही व्यवहार पर रोक लगाकर उसे देश हित की भावना से प्रेरित करते हैं। साहस, शौर्य, त्याग और देशभक्ति की भावना विद्यालय में ही सीखी जा सकती है। विद्यालय में अध्यापक बालक के सामने विभिन्न प्रकार के आदर्श प्रस्तुत करते हैं जिससे उसका समुचित विकास संभव हो पाता है। अध्यापक बालक में सामूहिक चेतना का विकास करते हैं। विद्यालय में बालक की सहगामी क्रियाओं से सहयोग, प्रतिस्पर्धा आदि गुणों में विस्तार होता है। निरन्तर खेलों का आयोजन होने से बालक शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं। विद्यालय में छात्र का विकास अध्यापक की कुशलता पर निर्भर करता है । विद्यालय में बालक के संवेगों की जानकारी प्राप्त कर स्वानुशासन स्थापित करने पर जोर दिया जाता है। उनकी विभिन्न जिज्ञासाओं को शांत कर समय-समय पर प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है ऐसे में बालक स्वयं के बारे जागरुक रहता है।

समुदाय का प्रभाव (Effect of Community) – मानव एक सामाजिक प्राणी है। बालक का सर्वांगीण विकास समुदाय में रहकर ही हो सकता है। समुदाय समाज की एक छोटी इकाई है जो समूह के रूप में बालक के विकास को निरन्तर प्रभावित करता है। समूह में रहकर ही बालक नैतिक आचरण करना सीखता है। इससे बालक में कल्पना शक्ति, निर्णय लेने की क्षमता और बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। मुजाफेर शेरिफ ने बताया कि समुदाय एक सामाजिक इकाई है जिसमें सदस्य परस्पर सम्बन्धित रहकर निश्चित कार्यों को सम्पन्न करते हैं । समुदाय अपने मानक स्वयं तय करता है और सभी सदस्यों को उनका अनुकरण करना आवश्यक होता है। समुदाय के सभी सदस्यों में परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया होती है जिससे बालक के अधिगम में सकारात्मक असर पड़ता है। समुदाय से बालक में सम्बद्धता और आत्मीयता की भावना विकसित होती है। समुदाय में रहकर बालक सद्भाव का गुण सीखता है। समुदाय बालक के लिए धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा की व्यवस्था भी करता है। समुदाय संस्कारों एवं परम्पराओं का वाहक है जो बालक के लिए भारतीय दर्शन प्रस्तुत करता है। यहाँ सभी धर्मों के पर्व मनाये जाते हैं जिससे बालक में धार्मिक सहिष्णुता का भाव जागृत होता है। हरलॉक के अनुसार जन्म के समय कोई भी बालक सामाजिक नहीं होता है। दूसरों के साथ होते हुए भी वह अकेला होता है। इस दौरान वह समाज के लोगों के सम्पर्क में आकर ही समायोजन की प्रक्रिया सीखता है। समुदाय में विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों से लोग एक दूसरे से मिलते हैं इससे बालक में सामुदायिक एवं जन कल्याण की भावना का विकास होता है।

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shubham yadav

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