Gk/GS

गयासुद्दीन तुगलक (तुगलक वंश का संस्थापक) | Gayasuddin Tuglaq History in Hindi

ग्यासुद्दीन तुगलक
ग्यासुद्दीन तुगलक

गयासुद्दीन तुगलक (तुगलक वंश का संस्थापक) | Gayasuddin Tuglaq History in Hindi

गयासुद्दीन तुगलक (तुगलक वंश का संस्थापक) | Gayasuddin Tuglaq History in Hindi- Hello Students Currentshub.com पर आपका एक बार फिर से स्वागत है मुझे आशा है आप सभी अच्छे होंगे. दोस्तो जैसा की आप सभी जानते हैं की हम यहाँ रोजाना Study Material अपलोड करते हैं. ठीक उसी तरह आज हम History Notes से सम्बन्धित बहुत ही महत्वपूर्ण “गयासुद्दीन तुगलक (तुगलक वंश का संस्थापक) | Gayasuddin Tuglaq History in Hindi ग्यासुद्दीन तुगलक: 1320-1325 ई. Ghyasuddin Tughlaq 1320-1325 AD  शेयर कर रहे है.आप इस History Notes in Hindi ग्यासुद्दीन तुगलक: 1320-1325 ई. Ghyasuddin Tughlaq 1320-1325 AD को नीचे दिए हुए Download link के माध्यम PDF Download कर सकते है. You can easily download this PDF from the download button given below.

इसी भी पढ़ें…

गयासुद्दीन तुगलक (तुगलक वंश का संस्थापक) | Gayasuddin Tuglaq History in Hindi

ग्यासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.)

गाजी मलिक का वंश स्वदेशीय समझा जा सकता है। उसका पिता बलबन के समय में हिन्दुस्तान आया था तथा उसने पंजाब की एक जाट कन्या से शादी की थी। गाजी मलिक अपनी योग्यता के कारण निम्न स्थिति धीरे साम्राज्य के सर्वोच्च पद तक पहुँच गया। हम पहले लिख चुके प्रकार योग्यता पूर्वक उसने मंगोल आक्रमणों से दिल्ली साम्राज्य की सीमाओं रक्षा की थी। अंत में दैव ने वृद्धावस्था में उसे राज सिंहासन पर दिया मुल्तान के एक मस्जिद में एक अभिलेख पाया गया है जिसमें गाजी यह दावा किया है कि मैंने 29 लड़ाईयों में तत्तारों को पराजित किया है, मेरा नाम मलिक-उल-गाजी है

गाजी के बारे में अमीर खुसरो कहता है कि वह अपने राजमुकुट के नीचे सैकड़ों पंडितों का शिरस्तान (पगड़ी) छिपाये हुए था अर्थात् वह बहुत ही बुद्धिमान था

सरदारों द्वारा दिल्ली के शासक के रूप में गाजी मलिक का चुनाव पूर्णतः न्यायोचित सिद्ध हुआ। उसके सिंहासन पर बैठने के समय परिस्थिति गम्भीर थी। सीमावर्ती प्रान्तों में दिल्ली सल्तनत का प्रभाव समाप्त हो चुका था। अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद जो गड़बड़ी का युग आया, उसमें उसकी शासन-पद्धति भी विच्छिन्न हो गयी थी। परन्तु उसने अपने को परिस्थिति के उपर्युक्त सिद्ध कर दिखाया। अपने पूर्वगामियों से भिन्न, मुख्यतया विपरीत परिस्थितियों में अपने प्रारम्भिक प्रशिक्षण के कारण उसमें चरित्रबल था। वह पुण्यात्मा था तथा ईश्वर से डरता था। वह दयालु एवं उदार प्रकृति का था। उसने अपने दरबार को, शायद बलबन के समय को छोड, पहले से अधिक गंभीर बना दिया। वह संयम एवं चतुराई से काम करता था।

राज्याभिषेक के शीघ्र बाद ग्यासुद्दीन तुगलक अपने पूर्वगामी शासन के दोषों को दूर कर शासन-पद्धति को पुन: सुव्यवस्थित करने के काम में लग गया। मुबारक एवं खुसरो के अपव्यय के कारण राज्य की आर्थिक दशा शोचनीय हो। गयी थी। अत: ग्यासुद्दीन ने सभी विशेषाधिकारों एवं जागीरों की दृढ़ जाँच की जाने की आज्ञा दी। अवैध जागीरें राज्य की ओर से जब्त कर ली गयीं। इस कार्य से उसकी जो थोड़ी बदनामी हुई, वह उसकी विवेकपूर्ण उदारता एवं अपनी प्रजा की भलाई के परोपकारी कायों से शीघ्र मिट गयी। उसने प्रान्तों में कर्मनिष्ठ शासक नियुक्त किये। उसने राज्य के कर को घटा कर समूची उपज का दसवाँ या ग्यारहवाँ भाग निश्चित कर दिया और सरकारी लूट तथा उत्पीड़न के विरुद्ध भी व्यवस्था की। इस प्रकार उसने राजस्व का बोझा काफी हल्का कर दिया। खेती को, जो इस देश के लोगों का प्रमुख धंधा है, विशेष प्रोत्साहन मिला।

खिल्जी के समय के भूमि माप की व्यवस्था मसाहत की पद्धति को त्याग दिया। उसने खुर-मुकद्दम और चौधरी को कुछ रियायतें दिन लेकिन हुकूक-ए-खुती को वापस नहीं किया। खेतों को सींचने के लिए नहरें खोदी गयीं। सुल्तान था जिसने नहरें बनवाई। बगीचे लगाये गये। कृषकों को लुटेरों के विरुद्ध शरण देने के लिए दुर्ग बनाये गये। परन्तु सुल्तान के कुछ नियमों में भलाई की वह प्रवृत्ति नहीं थी।

न्याय एवं पुलिस जैसे शासन की दूसरी शाखाओं में सुधार किये गये, जिससे देश में व्यवस्था एवं सुरक्षा फैल गयी। सुल्तान ने दरिद्रों की सहायता के लिए एक व्यवस्था निकाली तथा धार्मिक संस्थाओं एवं साहित्यकों की सहायता की। उसके राजकवि अमीर खुसरो को राज्य से एक हजार टका प्रतिमास की पेंशन मिलती थी। पत्र-व्यवहार की सुविधा के लिए देश की डाक-व्यवस्था का पुनः संगठन किया गया। सैनिक विभाग को कार्यक्षम एवं सुव्यवस्थित बनाया गया।

विभिन्न प्रान्तों पर सल्तनत का प्रभुत्व स्थापित करने के विषय में ग्यासुद्दीन असावधान नहीं था। उसने सैनिक प्रभुत्व एवं साम्राज्यवाद की खल्जी नीति का अनुसरण किया, जिसके विरुद्ध प्रतिक्रिया उसके उत्तराधिकारी मुहम्मद बिन तुगलक की असफलता के साथ आरम्भ हो गयी। इसका दृष्टांत विशेषरूप से हम उनके कामों में पाते हैं, जो उसने दक्कन तथा बंगाल में किए।

दक्कन में वारंगल के काकतीय राजा प्रतापरुद्रदेव द्वितीय ने, जिसने अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद की अव्यवस्था के समय में अपनी शक्ति बढ़ा ली थी, दिल्ली सरकार को निश्चित कर देना बन्द कर दिया। अत: ग्यासुद्दीन ने अपने शासनकाल के द्वितीय वर्ष में अपने ज्येष्ठ पुत्र तथा भावी उत्तराधिकारी फख़रुद्दीन जौना खाँ के अधीन वारंगल के विरुद्ध एक सेना भेजी। आक्रमणकारियों ने वारंगल के मिट्टी के दुर्ग पर घेरा डाल दिया। हिन्दुओं ने इसकी रक्षा दृढ़ निश्चय एवं वीरता के साथ की। षड्यंत्रों तथा सेना में महामारी फैल जाने के कारण शाहजादा जौना को बिना कुछ किये ही दिल्ली लौट आना पड़ा। परन्तु जौना के दिल्ली लौटने के चार महीने बाद ही सुल्तान ने पुन: उसी शहजादे के अधीन एक दूसरी सेना वारंगल के विरुद्ध भेजी। यह दूसरा प्रयत्न सफल रहा। भीषण युद्ध के पश्चात् काकतीय राजा ने परिवार एवं सरदारों के सहित शत्रु के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया। शहज़ादा जौना ने उसे दिल्ली भेजकर काकतीयों के सम्पूर्ण देश को अधीन कर लिया तथा वारंगल का नाम बदलकर सुल्तानपुर कर दिया। यद्यपि दिल्ली के सुल्तान ने काकतीय राज्य को विधिवत् अपने साम्राज्य में नहीं मिलाया, परन्तु शीघ्र ही इसकी प्राचीन शक्ति एवं गौरव का अन्त हो गया।

1322 ई. में बंगाल में शम्सुद्दीन फ़िरोज शाह की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों के बीच गृहयुद्ध के कारण ग्यासुद्दीन तुगलक ने उस प्रान्त के मामले में हस्तक्षेप किया। शम्सुद्दीन फ़िरोजू शाह के पाँच पुत्रों में ग्यासुद्दीन बहादुर, जो सोनारगाँव को अपनी राजधानी बनाकर पूर्वी बंगाल में 1310 ई. से स्वतंत्र रूप से शासन कर रहा था, शहाबुद्दीन बोगार शाह, जो बंगाल के राजसिंहासन पर अपने पिता के बाद बैठा और जिसकी राजधानी लखनौती थी तथा नासिरुद्दीन बंगाल में अपनी-अपनी प्रभुता स्थापित करने के लिए संघर्ष करने लगे। ग्यासुद्दीन बहादुर ने शहाबुद्दीन बोगरा शाह को पराजित कर बंगाल के राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। इस पर नसिरुद्दीन की भी लोलुप दृष्टि लगी थी। अत: नसिरुद्दीन ने सहायता के लिए दिल्ली के सुल्तान से अपील की, कि बंगाल के इस सुदूरवर्ती प्रान्त को, जिसकी दिल्ली के सुल्तान के प्रति भक्ति सदैव डाँवाँडोल रहती थी, पूर्णरूप से अपने अधिकार में लाने के इस अवसर का सुल्तान ने लाभ उठाया। 1324 ई. में वह लखनौती की ओर बढ़ा, ग्यासुद्दीन बहादुर को पकड़कर उसे बंदी के रूप में दिल्ली भेजा और नसिरुद्दीन को अधीन शासक के रूप में पश्चिमी बंगाल के राजसिंहासन पर बैठा दिया। पूर्वी बंगाल को भी दिल्ली सल्तनत का एक प्रान्त बना दिया गया। दिल्ली लौटते समय ग्यासुद्दीन ने तिरहुत के राजा हरसिंह देव पर आक्रमण कर दिया। पराजित राजा अब से दिल्ली सल्तनत का जागीरदार बन गया। बंगाल के अभियान से लौटने पर जौना खाँ ने उसके लिए एक लकड़ी का महल तैयार किया। उस महल के गिर जाने से ग्यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गई

Download

इस पत्रिका को Download करने के लिए आप ऊपर दिए गए PDF Download के Button पर Click करें और आपकी Screen पर Google Drive का एक Page खुल जाता है जिस पर आप ऊपर की तरफ देखें तो आपको Print और Download के दो Symbols मिल जाते हैं।

अब अगर आप इस पत्रिका को Print करना चाहते हैं तो आप Print के चिन्ह (Symbol) पर Click करें और Free में Download करने के लिए Download के चिन्ह (Symbol) पर Click करें और यह पत्रिका आपके System (Computer, Laptop, Mobile या Tablet)  इत्यादि में Download होना Start हो जाती है।

Note: इसके साथ ही अगर आपको हमारी Website पर किसी भी पत्रिका को Download करने या Read करने या किसी अन्य प्रकार की समस्या आती है तो आप हमें Comment Box में जरूर बताएं हम जल्द से जल्द उस समस्या का समाधान करके आपको बेहतर Result Provide करने का प्रयत्न करेंगे धन्यवाद।

You May Also Like This

अगर आप इसको शेयर करना चाहते हैं |आप इसे Facebook, WhatsApp पर शेयर कर सकते हैं | दोस्तों आपको हम 100 % सिलेक्शन की जानकारी प्रतिदिन देते रहेंगे | और नौकरी से जुड़ी विभिन्न परीक्षाओं की नोट्स प्रोवाइड कराते रहेंगे |

Disclaimer:currentshub.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है ,तथा इस पर Books/Notes/PDF/and All Material का मालिक नही है, न ही बनाया न ही स्कैन किया है |हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- currentshub@gmail.com

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment