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प्रतिभाशाली बालक और उनकी शिक्षा (Gifted children and their education)
प्रतिभाशाली बालक (Gifted Child)- कक्षा में अलग-अलग व्यक्तित्व के बालक पढ़ते हैं। जिनमें कुछ प्रतिभावान बालक भी होते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मानना है कि 140 के ऊपर बुद्धिलब्धि बाला बालक प्रतिभावान बालक होता है। समाज का भविष्य उसके प्रतिभावान बालकों के उचित या अनुचित विकास पर निर्भर करता है। प्रारम्भ से ही प्रतिभावान बालकों का चुनाव करके उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
प्रतिभावान बालकों के चुनाव के लिए हमें प्रतिभावान का अर्थ जान लेना अति आवश्यक हो जाता है।
यदि किसी बालक की मानसिक आयु, वास्तविक आयु से अधिक होती है तो वह प्रतिभावान बालक कहलाता है। अर्थात् जिस बच्चे की मानसिक आयु अपने आयु वर्ग के अनुपात में औसत से बहुत अधिक हो या फिर ऐसा बालक जो साधारण या विशेष योग्यताओं में श्रेष्ठ हो उसे प्रतिभावान बालक कहा जाता है।
परिभाषाएँ- मनोवैज्ञानिकों ने प्रतिभावान बालकों की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं-
विट्टी (Witty) के अनुसर, “प्रतिभावान बच्चे वे बच्चे होते हैं, जिनका मानवीय कोशिश में कार्य शानदार होता है और जो पढ़ाई में उत्तम होते हैं।” (Giffed children are those children whose performance in a worthwhile human endeavour is consitently remarkable and those who are academically superior.)
डॉ. अब्दुल फ के ‘अनुसार, “प्रायः उच्च बुद्धि लब्धि (High I.Q.) को प्रतिभाशाली होने का संकेत माना जाता है। अतः प्रतिभावान बालक शब्द का अभिप्राय बालक की उच्च बुद्धिलब्धि से लिया जाता है।”
कालस्निक (Kolesnik) के अनुसार, “वह हर बच्चा जो अपने आयु स्तर के बच्चों में किसी योग्यता में अधिक हो और जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्वपूर्ण नई देन दे, प्रतिभावान कहलाता है।”
प्रेम पसरीचा (Prem Pasricha) के अनुसार, “जो सामान्य बुद्धि की दृष्टि से श्रेष्ठ प्रतीत हो या वह उन क्षेत्रों में जिनका अधिक बुद्धिलब्धि से सम्बन्धित होना जरूरी नहीं, अति विशिष्ट योग्यतायें रखता हो।”
हैविग्हर्सट (Havighurst) के अनुसार, “प्रतिभावान बालक वह है जो किसी भी कार्य क्षेत्र में अपनी कार्यकुशलता का परिचय देता है।”
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिभावान बालक केवल बुद्धि में उत्तम नहीं होते बल्कि शारीरिक, संवेगात्मक, सामाजिक शिक्षा तथा अपनी आयु के बालकों से विशेष रूप से उत्तम हो।
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएं प्रतिभावान बालकों की विशेषताओं को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. शारीरिक विशेषतायें- प्रतिभावान बालकों में शारीरिक दोष कम पाये जाते हैं। इनके दांत सामान्य बालकों से दो महीने पहले निकल जाते हैं तथा सामान्य बालकों से पहले चलना फिरना भी शुरू कर देते हैं। प्रतिभावान बालकों में किशोरावस्था के लक्षण शीघ्र दिखाई देते हैं।
ऐसे बालक सामान्य बालकों से अधिक स्वस्थ होते हैं तथा सामान्य बालकों से भारी भी होते हैं। इस प्रकार प्रतिभावान बालक सामान्य बालकों से शारीरिक रूप से काफी अलग होते हैं।
2. सामाजिक विशेषतायें- समाज को सामान्य बालकों से अधिक प्रतिभावान बालक प्रभावित करते हैं। ये बालक सामाजिक रूप से अधिक परिपक्व तथा प्रिय होते हैं क्योंकि ये बालक हँसमुख व प्रसन्नचित्त रहते हैं। वे बराबर आयुवाले बालकों के साथ रहते हैं पर इनकी मित्रता अपने से अधिक उम्र के बच्चों से भी रहती है। ऐसे बालक अधिक ईमानदार व विश्वसनीय होते हैं। समायोजन करने में सफल होते हैं।
3. सांवेगिक व बौद्धिक विशेषतायें- ऐसे बच्चों की सांवेगिक क्षमतायें (कल्पना करने, सोचने, विश्लेषण करने, निर्णय करने की) दूसरों से अधिक होती है। ये बच्चे श्रेष्ठ चरित्र के होते हैं । इनका शब्द भण्डार विशाल होता है, तर्क करने की योग्यता अधिक होती है। इनकी स्मृति अन्य बालकों से श्रेष्ठ होती है तथा ध्यान अधिक केन्द्रित कर सकते हैं। इनका अधिगम अधिक तीव्रगति तथा आसानी से होता है। स्पष्टवादी, फुर्तीले, श्रेष्ठ आत्म अभिव्यक्ति वाले होते हैं।
4. शैक्षणिक व सहगामी उपलब्धि- ऐसे बालक अध्ययन विषयों में अध्यापकों द्वारा श्रेष्ठ घोषित किये जाते हैं। ऐसे बालकों की रुचियां व्यापक होती हैं। मानसिक पत्रिकाओं, सामाचार पत्रों, चित्रकारी, संगीत, फोटोग्राफी इत्यादि उनकी रुचियों का क्षेत्र है।
ऐसे बालकों की मानसिक खेलों में अधिक रूचि होती है। पढ़ाई के साथ-साथ सहगामी क्रियाओं में भी ये बालक बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। किसी चीज को विस्तार से जानने की इच्छा रखते हैं।
उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिभावान बालक हर प्रकार से सामान्य बालकों से अलग होते हैं। परन्तु इनकी पहचान कैसे करें? यह समझने के लिए हमें निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान से समझना होगा।
1. प्रतिभावान बालकों के लिए अध्यापक द्वारा विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है। ये बालक इन परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं।
2. प्रतिभावान बालकों की पहचान के लिए अभिरुचि परीक्षण तथा उनकी प्रतिभाओं का अध्ययन करके पहचाना जा सकता है।
3. माता-पिता, अध्यापक, पास-पड़ोस तथा मित्रों से सूचनाएँ एकत्रित करके पहचान की जा सकती है।
4. प्रतिभावान बालकों की विशेषताओं की सूची तैयार करके पहचान की जा सकती हैं।
5. परिणामों का अध्ययन करके बेहद शीघ्रता से सामान्य तथा प्रतिभावान को अलग-अलग किया जा सकता है।
प्रतिभावान बालकों की शिक्षा-प्रतिभावान बालकों की शिक्षा पर निम्नलिखित रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है-
1. योग्य अध्यापक- इनके लिए योग्य एवं विशेष योग्यता वाले अध्यापकों की आवश्यकता है। योग्य अध्यापक ही प्रतिभावान बालक को सही दिशा निर्देश दे सकता है।
2. विस्तृत पाठ्यक्रम- ऐसे बच्चों के पाठ्यक्रम में नागरिकता की शिक्षा, जीवन गाथाओं का अध्ययन, आधुनिक भाषाओं का अध्ययन, योग्यताओं का प्रशिक्षण जैसी विषय वस्तु शामिल करनी चाहिए।
3. पुस्तकालय- ऐसे बच्चों की जिज्ञासा सदैव बढ़ती रहती है। इनकी आवश्यकता की पूर्ति हेतु स्कूल में पुस्तकालय होना अनिवार्य है।
4. नेतृत्व का पूर्ण प्रशिक्षण- क्रो एवं क्रो के अनुसार क्योंकि हम प्रतिभाशाली बालक से नेतृत्व की आशा करते हैं, इसलिए उसको विशिष्ट परिस्थितियों में नेतृत्व का अवसर और प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
5. पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन- प्रतिभाशाली बालक में रूचियों की अधिकता होती है। समय-समय पर विद्यालय में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन करते रहना चाहिए। इनसे उनकी रूचियों की तुष्टि होती है तथा विकास होता है।
6. सांस्कृतिक शिक्षा- प्रतिभाशाली बालकों को अपनी संस्कृति की शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वे समाज में वे अपना स्थान बना सके।
7. शिक्षक का व्यक्तिगत ध्यान- प्रतिभावान बालक को नियमित व्यक्तिगत परामर्श देने चाहिए। अध्यापक को इन बच्चों पर व्यक्तिगत ध्यान देना होगा।
8. व्यक्तित्व के विकास का अवसर – प्रतिभावान बालकों की शिक्षा के समय यह ध्यान देना आवश्यक है कि किशोरावस्था तक उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास हो सके। इसके लिए परिवार, विद्यालय तथा समाज को एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए।
9. सामान्य बालकों के साथ शिक्षा- प्रतिभावान बालकों की शिक्षा सामान्य बालकों के साथ एक विद्यालय में एक कक्षा में एक साथ सम्पन्न कराई जानी चाहिए। इससे उनमें समायोजन की क्षमता विकसित होती है तथा सहयोग की भावना का विकास होता है।
10. सामाजिक अनुभवों का अवसर-क्रो तथा क्रो के अनुसार, “प्रतिभाशाली बालक को सामाजिक अनुभव प्राप्त करने के अवसर दिये जाने चाहिए ताकि वह सामाजिक असमायोजन से अपनी रक्षा कर सकें।”
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि अध्यापक अपने निर्देशन व परामर्श की मदद से ‘प्रतिभावान बालक के सर्वांगीण विकास में अपना योगदान देकर राष्ट्र निर्माण कार्य में भागीदार बन सकता है। प्रतिभावान बच्चों के विकास में समाज तथा सरकार को भी इनकी मदद करनी चाहिए। माता-पिता व अध्यापक मिलकर इस देश के भावी कर्णधार के विकास में योगदान दे सकते हैं।
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