अर्थशास्त्र (Economics)

कराघात और करापात Impact and Incidence of Tax in Hindi

कराघात और करापात Impact and Incidence of Tax in Hindi
कराघात और करापात Impact and Incidence of Tax in Hindi

कराघात और करापात Impact and Incidence of Tax in Hindi

प्रश्न-कराधात और करापात का अर्थ स्पष्ट कीजिए। यह भी बताइये कि कराधान के अध्ययन का क्या महत्व है?

कराघात और करापात-कराघात का अर्थ-कराघात का अर्थ करके तात्कालिक प्रत्यक्ष मौद्रिक भार से होता है इसलिए कर के तात्कालिक या प्रारम्भिक मौद्रिक भार को वहन करने वाले व्यक्ति पर कराघात होता है। अत: कराघात उस व्यक्ति पर होता है जो सरकार द्वारा लगाये जाने वाले कर का सर्वप्रथम भुगतान सरकार को करता है । कराधात वहन करने वाला व्यक्ति सरकार द्वारा लगाये जाने वाले कर का सर्वप्रथम भुगतान करता है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि कराघात उस व्यक्ति पर होता है जिस पर सरकार द्वारा कर लगाया जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जिस पर कराघात होता है उसकी जिम्मेदारी यह होती है कि वह लगाये गये कर का सरकार को भुगतान करे। इस आधार पर जिस व्यक्ति पर कर लगाया जाता है वही उस कर को सरकारी खजाने में जमा करता है और उसी पर कर का प्राथमिक मौद्रिक (द्राव्यिक) भार होता है। इसी को कराघात कहा जाता है। सरल भाषा में इसे कर का प्रारम्भिक भार कहा जाता है।

करापात का अर्थ-करापात का अर्थ कर के अन्तिम मौद्रिक भार से होता है। इस प्रकार करापात उस व्यक्ति पर होता है जो अन्ततः कर के मौद्रिक भार का वहन करता है। अतः सरल भाषा में करापात को कर का भार कहा जाता है।

व्यवहार में यह देखा जाता है कि कर का भुगतान करना किसी भी व्यक्ति को पसन्द नहीं होता है। अत: प्रत्येक व्यक्ति कर के भार से बचने का प्रयास करता है। इस प्रयास में वह चाहता है कि वह कर का भुगतान अपनी आय से न करके किसी अन्य व्यक्ति से वसूल करके करे। यदि जिस व्यक्ति पर कर लगाया जाता है, वह अपने प्रयास में सफल हो जाता है तो वह कर राशि दूसरे व्यक्ति से वसूल लेता है और इस प्रकार कर के भार को दूसरे व्यक्ति पर स्थानान्तरित कर देता है। इस स्थिति में जो व्यक्ति कर का वास्तव में अपनी आय से भुगतान करता है, कर का भार उस पर ही हो सकता है। इस कर भार को करापात कहते हैं और यह अन्तिम कर भार होता. है क्योंकि इस स्थिति में कर अन्तिम रूप में चुका दिया जाता है।

करापात की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए प्लेहन ने विचार व्यक्त किया है कि “यह कर रूपी चिकेन को अन्तिम रूप से भूने जाने का बिन्दु होता है।”

पीगू के अनुसार-“करापात से यह ज्ञात होता है कि जो धन कर के रूप में राजकीय कोष में पहुँचता है वह किसकी जेब से निकलता है अथवा यदि राज्य उस धन को कर के रूप में न लेता तो वह किसकी जेब में सुरक्षित रहता।”

करापात के अध्ययन का महत्व

आधुनिक युग में करापात के अध्ययन का महत्व निम्वनलिखित कारणों से है-

1. कर भार ज्ञात करने के लिये-आधुनिक युग में करारोपण का उद्देश्य मात्र सरकार को आय उपलब्ध कराना ही नहीं है बल्कि देश में विद्यमान आय और सम्पत्ति की विषमताओं में कमी करना भी है। अत: इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए करापात का अध्ययन करना आवश्यक है।

2. करों के न्यायपूर्ण वितरण के लिए-अर्थव्यवस्था में सभी वर्गों पर कर का भार समान रूप से पड़े, इसको सुनिश्चित करने के लिए करापात का अध्ययन आवश्यक है।

3. कर देय क्षमता ज्ञात करने के लिए-देश में कर देय क्षमता का ज्ञान उपयुक्त करारोपण की नीति का निर्धारण करने के लिए आवश्यक है। कर देय क्षमता का ज्ञान प्राप्त करने के लिए करापात या कर के भार का ज्ञान होना आवश्यक है।

4. कर विवर्तन का ज्ञान प्राप्त करने के लिए- कर के भार को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति पर स्थानान्तरित करने की क्रिया को कर विवर्तन कहते हैं। सरकार को उपयुक्त कर नीति का निर्धारण करने के लिये कर विवर्तन का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक होता है। कर विवर्तन कहते हैं। सरकार को उपयुक्त कर नीति का निर्धारण करने के लिये कर विवर्तन का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक होता है। कर विवर्तन का ज्ञान करापात के अध्ययन से सुगमता से हो सकता है।

5. करों का प्रभाव ज्ञात करने के लिए सरकार द्वारा लगाये जाने वाले करों के प्रभावों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी करापात का अध्ययन करना आवश्यक होता है। डाल्टन के शब्दों में “प्रत्येक कर के अनेक आर्थिक प्रभाव होते हैं और यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या हम करापात की विशेष समस्या को कर प्रभावों के सामान्य समस्या से पृथक् कर सकते हैं या पृथक् करना चाहिए।”

करापात के अध्ययन में कठिनाइयां

करापात का अध्ययन करने में अनेक कठिनाइयां होती हैं जिनमें से प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं-

(i) कर के प्रभाव और करापात में अन्तर करना बहुत कठिन होता है।
(ii) अर्थव्यवस्था में निरन्तर होने वाले परिवर्तन करापात के अध्ययन को अत्यन्त कठिन बना देते हैं।
(iii) कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव के कारण भी करापात का अध्ययन कठिन हो जाता है।
(iv) करापात का अध्ययन करने में समय बहुत लगता है।
(v) करापात का अध्ययन एक सापेक्षिक अध्ययन होता है।

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shubham yadav

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