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बालक के जीवन में परिवार के महत्व | Importance of family in life of child in Hindi

बालक के जीवन में परिवार के महत्व
बालक के जीवन में परिवार के महत्व

बालक के जीवन में परिवार के महत्व (Importance of family in life of child)

परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है, जो रक्त के आधार पर एक-दूसरे से सम्बन्धित रहते हैं। परिवार बच्चों के पालन-पोषण की व्यवस्था करता है। बालक के जीवन में परिवार के महत्व को निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है-

1. वात्सल्य और संरक्षण (Love and Security)- मातृ-वात्सल्य और पैतृक संरक्षण बालक को परिवार में ही प्राप्त होता है।

2. नैतिक विकास (Moral Development)- परिवार किसी भी बालक की प्रथम पाठशाला होती है। माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों की क्रियाओं और व्यवहार का अनुकरण बालक करता है। बालक अपने परिवार के सदस्यों को अपना आदर्श मानता है। परिवार के सदस्यों के साथ उसके सम्बन्ध और अनुक्रिया उसके नैतिक विकास को प्रभावित करते हैं। परिवार के सदस्यों में यदि सौहार्द्र और प्रेम है तो बालक का नैतिक विकास उन्नत होता है। परिवार के सामाजिक और शैक्षिक स्तर का भी प्रभाव बालक के नैतिक विकास पर पड़ता है।

3. सांस्कृतिक हस्तान्तरण (Cultural Transmission)- बालक अपने परिवार के सदस्यों से सांस्कृतिक विशेषतायें और सामाजिक मूल्यों को सीखता है। परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी सांस्कृतिक मूल्यों का हस्तान्तरण करता है।

4. शारीरिक विकास (Physical Development)- परिवार यदि बालक के पालन-पोषण की व्यवस्था ऐसे स्थान पर करता है जहाँ शुद्ध वायु, पर्याप्त धूप, प्रकाश तथा स्वच्छता की समस्या न हो, तो बालक शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है। पौष्टिक और सन्तुलित आहार उपलब्ध कराकर, नियमित दिनचर्या बिताने की आदत डालकर, थकान दूर करने के लिए विश्राम और निद्रा की व्यवस्था करके, खेल और व्यायाम की सुविधा उपलब्ध कराकर स्नेहपूर्ण व्यवहार से परिवार बालक के शारीरिक विकास और स्वास्थ्य को प्रोन्नत करता है।

5. गामक विकास (Motor Development)- बालक के गामक विकास में माता-पिता और परिवार के सदस्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बालक के खान-पान तथा आहार उसके गामक विकास को प्रभावित करते हैं। व्यायाम, खेलकूद और मॉलिश का भी गामक विकास पर प्रभाव पड़ता है। ये सभी व्यवस्थायें परिवार के सदस्य ही उपलब्ध कराते हैं। माता-पिता समय से बालकों का टीकाकरण कराकर बालक के गामक विकास को सुनिश्चित करते है।

6. मानसिक विकास (Mental Development)- परिवार के वातावरण का बालक के मानसिक विकास से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। कुप्पूस्वामी के अनुसार – “एक अच्छा परिवार, जिसमें माता-पिता में अच्छे सम्बन्ध होते हैं, जिसमें वे अपने बच्चों की रुचियों व आवश्यकताओं को समझते हैं एवं जिसमें आनन्द और स्वतंत्रता का वातावरण होता है, प्रत्येक सदस्य के मानसिक विकास में अत्यधिक योगदान देता है।” माता-पिता की शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का बच्चे की मानसिक योग्यता से निश्चित रूप से सम्बन्ध होता है।

7. संवेगात्मक विकास (Emotional Development) – पारिवारिक वातावरण बालक के संवेगात्मक विकास पर अत्यधिक प्रभाव डालता है। जिन परिवारों में आपसी कलह, लड़ाई-झगड़ा, ईर्ष्या, द्वेष आदि पाया जाता है, वहाँ वालकों का सकारात्मक संवेगात्मक विकास नहीं हो पाता। जिन परिवारों में बालकों को सुरक्षा, शान्ति तथा आनन्द मिलता है, वहाँ संवेगात्मक विकास अच्छा होता है। माता-पिता की मनोवृत्तियाँ तथा पालन-पोषण करने का तरीका बालकों के संवेगों की मात्रा तथा स्वरूप को निर्धारित करता है। जो माता-पिता अपने बालकों का तिरस्कार या उपेक्षा करते हैं उनके बालक झगड़ालू, क्रोधी और आक्रामक व्यवहार करने वाले हो जाते हैं। माता-पिता के कठोर नियंत्रण से बालक अन्तर्मुखी व दब्बू बन जाता है। पक्षपाती माता-पिता के बालक ईर्ष्यालु होते हैं।

8. सामाजिक विकास (Social Development)- माता-पिता द्वारा बालक के पालन-पोषण की विधि उनके सामाजिक विकास पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। अत्यधिक लाड़-प्यार पाला जाने वाला बालक दूसरे बालकों से दूर रहना पसंद करता है। परिवार के बड़े लोगों का जैसा आचरण और व्यवहार होता है, बालक वैसा ही आचरण और व्यवहार करने का प्रयास करता है।

9. भाषा विकास (Language Development)- यदि परिवार के सदस्य शिष्टाचार के शब्दों का प्रयोग करते हैं, उच्चारण दोषरहित भाषा का प्रयोग करते हैं, तो बालक भी उत्तम कोटि की भाषा सीखते हैं। बालक के भाषा विकास पर पारिवारिक सम्बन्धों का गहन प्रभाव पड़ता है।

10. आदतों का विकास (Development of Habits)- माता-पिता बच्चों में अच्छी आदतों का विकास करने का प्रयास करते हैं। माता-पिता बालकों में उठने-बैठने, चलने-फिरने, भोजन करने, बातचीत करने, व्यवहार करने, स्नान करने तथा स्वच्छता सम्बन्धी जिन आदतों का विकास कर देते हैं, वे जीवनपर्यन्त उसके व्यवहार का अंग बनी रहती हैं।

11. खेल का विकास (Development of Play)- बालकों के खेल के विकास में माता-पिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बालकों को जिस प्रकार की खेल सामग्री परिवार द्वारा उपलब्ध करायी जाती है, इस पर उनके खेल निर्धारित होते हैं। जिन बालकों को प्रारम्भ से ही खेल के अच्छे साधन उपलब्ध होते हैं, उनका खेल विकास उतना ही अधिक होता है। इसके विपरीत जिनके पास खेल के साधनों का अभाव रहता है, उनका खेल विकास देर से होता है । कुछ परिवार बच्चों के खेलने के लिए घर तथा बाहर उपयुक्त स्थान उपलब्ध कराने में सफल और इच्छुक होते हैं, उनके बालकों का खेलों के प्रति आकर्षण बना रहता है।

12. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) – परिवार बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुमुखी प्रभाव डालता है। परिवार के सदस्यों में अलगाव की भावना होती है, तो बालक में भी अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है, जिससे वह असमायोजन की ओर अग्रसर होता है। यदि परिवार में बालक पर कठोर अनुशासन रखा जाता है और उसे छोटी-छोटी बातों पर डाँटा-फटकारा जाता है, तो उसमें आत्महीनता की भावना घर कर लेती है। ऐसी स्थिति में उसका मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाना स्वाभाविक-सा है। परिवार की निर्धनता के कारण बालक का व्यक्तित्व उग्र और कठोर हो जाता है, उसमें हीनता की भावना विकसित हो जाती है एवं उसमें आत्मविश्वास का स्थायी अभाव हो जाता है। परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से बालक के माता-पिता के पारस्परिक संघर्ष बालक को मानसिक रूप से अस्वस्थ कर देते हैं।

13. सृजनात्मकता का विकास ( Development of Creativity) – परिवार द्वारा यदि बालक में स्वस्थ सामाजिक अभिवृत्तियों का संचार किया जाता है तो बालक की सृजनात्मक शक्ति का विकास होता है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि बालक के विकास में परिवार की सबसे अहम् भूमिका होती है। परिवार से सम्बन्धित निम्नलिखित कारक ही बालकों के विकास की दिशा तय करते हैं-

(i) परिवार का निवास स्थान।

(ii) परिवार के सदस्यों का व्यवहार, आचरण और भाषा।

(iii) परिवार के सदस्यों की शैक्षिक पृष्ठभूमि।

(iv) परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति।

(v) परिवार का आकार।

(vi) परिवार के नैतिक आदर्श और मूल्य।

(vii) माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों का बालक के साथ व्यवहार व अनुक्रिया ।

(viii) परिवार का आन्तरिक वातावरण।

(ix) परिवार में बालकों के पालन-पोषण का तरीका।

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