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किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है।
किशोरावस्था वह समय है जिसमें विचारशील व्यक्ति बाल्यवस्था से परिपक्वता की ओर संक्रमण करता है। किशोरावस्था में बालक अपने आप को वयस्क समझने लगता है और बुराइयों में पड़ जाता है।
“किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है” इस कथन को स्पष्ट करने के लिए कई तर्क दिए गये हैं –
1. इस अवस्था में अपराधी प्रवृत्ति अपनी चरम सीमा तक पहुँच जाती है जिससे नशीले पदार्थों का प्रयोग प्रारम्भ हो जाता हैं।
2. इस अवस्था में किशोर का अपना जीवन कष्टमय होता है क्योंकि व्यक्ति स्वतन्त्रता का इच्छुक होता है लेकिन उसे स्वतन्त्रता नहीं मिलती है। ऊपर से उससे आशा की जाती है कि वह बड़ो की आज्ञा माने।
3. किशोरावस्था में समायोजन न कर सकने के कारण मृत्यु दर और मानसिक रोगों की – संख्या अन्य अवस्थाओं की तुलना में बहुत अधिक होती है।
4. इस अवस्था में किशोर की भावनाओं और दृष्टिकोणों में परिवर्तन होता रहता है। जितना पहले कभी नहीं था।
5. इस अवस्था में किशोर के आवेगों तथा संवेगों में इतना परिवर्तन होता रहता है जितना पहले कभी नहीं था।
6. किशोरावस्था में व्यक्ति को न तो बालक समझा जाता है और न ही प्रौढ़ क्योंकि इस अवस्था में किशोर बाल्यावस्था एवं प्रौढ़ावस्था दोनों ही अवस्थाओं में रहता है।
7. इस अवस्था में किशोर का शारीरिक एवं मानसिक विकास इतनी तेजी से होता है कि व्यक्ति घृणा, क्रोध, चिडचिडेपन तथा उदासीनता आदि का शिकार हो जाता है।
उपर्युक्त कथनों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि “किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है” क्योंकि इस अवस्था में कठिन तथ्यों का अध्ययन किया जाता हैं।
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