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अधिगम एक प्रक्रिया है। | Learning is a process in Hindi

अधिगम एक प्रक्रिया है
अधिगम एक प्रक्रिया है

अधिगम एक प्रक्रिया है। (Learning is a process)

अधिगम का सर्वोच्च लक्ष्य मानव में सर्वांगीण विकास करना है। अधिगम की अवधारणा यह कहती है कि अधिगम के द्वारा मानव अपने व्यवहार में परिवर्तन लाता है और यह एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है।

अधिगम की प्रक्रिया को गेने ने चित्र द्वारा स्पष्ट किया है। गेने शैक्षिक उद्देश्यों की स्पष्ट एवं प्रकट शब्दावली में परिभाषित करने पर बल देता है गेने का वर्गीकरण अधिगम के प्रकारों से सम्बन्धित है, जबकि ब्लूम और क्राथवोल्ट का वर्गीकरण अधिगम के प्रतिफलों पर आधारित है गेने के अनुसार, “दी कंडिशन्स ऑफ लर्निंग” में सीखने के आठ प्रकार बताये गये हैं वे सभी शृंखलाबद्ध क्रम में होते हैं।

वर्णित आठ अधिगम प्रकारों को एक-दूसरे की परम आवश्यकता है अर्थात् यदि अधिगम के दूसरे प्रकार की जानकारी प्राप्त करनी है तो अधिगम के पहले प्रकार का ज्ञान अपेक्षित है।

1. संकेत अधिगम (Signal Learning) — इस स्तर पर व्यक्ति बहुत ही मोटे तौर पर किसी सामान्य संकेत के प्रति अनुक्रिया करता है। संकेत अधिगम के विशिष्ट उद्दीपकों के लिए विशिष्ट अनुक्रिया की जाती है, जिसे उद्दीपक-अनुक्रिया अधिम (S-R-Learning) कहते हैं। इसके लिये पूर्व स्थितियाँ अज्ञात हैं। इसमें छात्र उद्दीपन तथा अनुक्रिया को किसी एक व्यवस्था एवं परिस्थिति में बार-बार दोहराते हैं, जिससे उस उद्दीपन तथा अनुक्रिया में स्थापित सम्बन्ध सुदृढ़ हो जायें। जैसे—सड़क पर लाल बत्ती देखकर रुक जाना।

Learning

इस अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक सर्वप्रथम छात्रों के सामने उद्दीपन प्रस्तुत करता है और उन्हें अनुक्रिया करने के लिये बाध्य करता है। यदि छात्र की अनुक्रिया गलत होती है तो शिक्षक उस अनुक्रिया की अवहेलना करता है। सही अनुक्रिया करने पर शिक्षक छात्र को पुनर्बलन प्रदान करता है । यह ध्यान रखने योग्य है कि तत्काल प्रतिपुष्टि पुनर्बलन के लिये उत्तम स्रोत (माध्यम/सहारा) होती है। शिक्षक पुनर्बलन के सहारे नहीं अनुक्रिया का अभ्यास करते हुये छात्र को दक्षता और नैपुण्य की ओर ले जाते हैं। अतः इस अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक को निम्नांकित शिक्षण युक्तियों का प्रयोग करना चाहिए-

(i) उद्दीपन-अनुक्रिया में सामीप्य की स्थापना।

(ii) सही अनुक्रिया पर पुनर्बलन प्रदान करना।

(iii) निरन्तर अभ्यास और समुचित पुनर्बलन का प्रयोग करना।

2. उद्दीपक अनुक्रिया अधिगम (Stimulus Response Learning)- गेने के अनुसार अधिगम दूसरे प्रकार का सीखना है। इसका सम्बन्ध बी. एफ. स्किनर द्वारा प्रदत्त उद्दीपक-अनुक्रिया अनुबंध से है जिसमें अनुक्रिया सतत या संभावित होती है। उस समय सक्रियता की शक्ति बढ़ जाती है, जब उसे पुनर्बलन मिलता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि किसी उद्दीपक की उपस्थिति से जब किसी अनुक्रिया का होना संभव हो जाये, तो वहाँ हम उद्दीपक अनुक्रिया अधिगम की परिस्थिति कहेंगे। स्किनर के सक्रिय अनुबंध के सिद्धान्त में अनुक्रिया की पुष्टि पुनर्बलन का काम करती है। इसमें पॉवलव के अनुसार — उद्दीपक तथा अनुक्रिया में पूर्व निर्धारित सम्बन्ध नहीं रहता, बल्कि अनुक्रिया का सम्बन्ध परिवेश एवं जीव की सक्रियता से होता है तथा इससे प्राणी सही अनुक्रिया से नवीन सीखता है तथा साथ ही उसे अग्रिम क्रिया के लिये भी पुनर्बलन मिलता है।

3. श्रृंखला अधिगम (Chain Learning) – व्यक्ति जब प्रथम स्तर के अधिगम एवं द्वितीय स्तर के अधिगम अर्थात् संकेत अधिगम एवं उद्दीपक-अनुक्रिया अधिगम से परिचित हो जाता है। तभी श्रृंखला अधिगम की प्रक्रिया प्रारम्भ कर सकता है। स्किनर ने भी इस प्रकार के अधिगम की व्याख्या की है। इसमें उद्दीपक अनुक्रिया को लगातार एक क्रम से उपस्थित किया जाता है जिससे श्रृंखला अधिगम की स्थिति उत्पन्न होती है।

“Chaining is the connection of a set of individual motivation in sequence.” –R. M. Gagne

श्रृंखला अधिगम में बालक दो या दो से अधिक उत्तेजक अनुक्रिया के सम्बन्धों से सीखता है तथा वह एक क्रमबद्ध तरीके से विचार (ज्ञान) पिरोना सीख लेता है। अनुक्रिया को व्यक्ति के सीखने के क्रम में एक साथ जोड़ना या सम्बंधित करना शृंखला अधिगम होता है।

गेने ने दो प्रकार के श्रृंखला अधिगम की व्याख्या की है—

(अ) शाब्दिक श्रृंखला अधिगम (Verbal Chain Learning)

(आ) अशाब्दिक श्रृंखला अधिगम (Non-Verbal Chain Learning)

शिक्षा के क्षेत्र में बहुत से शिक्षण प्रतिमानों में शाब्दिक श्रृंखला अधिगम की ही परिस्थिति उत्पन्न की जाती है।

4. शाब्दिक साहचर्य अधिगम (Verbal Association Learning) – सरल श्रृंखलाबद्ध सीखने के पश्चात् ज्ञान को शाब्दिक रूप प्रदान कर किसी भी वस्तु से सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य शाब्दिक साहचर्य सीखने के अन्तर्गत आता है जिससे सीखी हुई वस्तु को स्थायित्व मिले। शृंखला अधिगम के शाब्दिक अधिगम द्वारा विचारों को क्रम में पिरोना तो सीख लेता है व अशाब्दिक अधिगम भी कौशल अधिगम द्वारा सीख लेता है, लेकिन जब तक ज्ञान को शाब्दिक साहचर्य से सम्बन्धित न करवाया जाये तब तक बालक का अधिगम अपूर्ण रहता है। जैसे—कविता पाठ, अक्षरों व शब्दों को क्रमानुसार सीखना । श्रृंखला अधिगम होने के कारण इसके अंतर्गत शाब्दिक तथा शारीरिक (पेशीय) अनुक्रियाओं का निश्चित क्रम सम्मिलित होता है। इसके लिये संकेत अधिगम अथवा स्वरूप आवश्यक होता है।

5. विभेदात्मक अधिगम (Discrimination Learning) – अधिगमकर्त्ता एक ही प्रकार के अथवा समान दो पदों से अधिक उद्दीपनों को सही-सही पहचानकर उनमें भेद कर सकता है। शिक्षण के विभेदात्मक अधिगम में संकेत तथा श्रृंखला (शाब्दिक या कौशल अधिगम) की परिस्थितियाँ सम्मिलित हैं। इस अधिगम में एक तथ्य को दूसरे से अंतर, पूर्व में सीखा हुआ ज्ञान करने पर बल दिया जाता है। इसके अंतर्गत उद्दीपक तथा अनुक्रिया का सम्बन्ध भ्रांतिपूर्ण होता है। उदाहरणार्थ घनत्व व भार में अंतर समझना, हिन्दी के व और व में, भ और म में तथा ध और घ में भेद समझ लेना। इसके लिये आवश्यक है कि शिक्षक प्रत्येक उद्दीपक तथा अनुक्रिया को स्पष्ट करे और जिन-जिन वस्तुओं व तथ्यों में भेद करना है, उन्हें एक साथ प्रस्तुत करे इसमें विभिन्न वर्गों के तथ्यों या घटनाओं को अलग कर पहचानने का कार्य किया जाता है।

6. संप्रत्यय अधिगम (Concept Learning) — इस अधिगम परिस्थिति के लिये विभेदात्मक अधिगम का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है। केण्डलर 1964 ने सर्वप्रथम सम्प्रत्यय अधिगम का उल्लेख किया है। गेने ने इसको आगे बढ़ाया। गेने ने संप्रत्यय अधिगम को परिभाषित करते हुये कहा है- “जो अधिगम व्यक्ति में किसी वस्तु या घटना को एक वर्ग के रूप में अनुक्रिया करना संभव बनाते हैं उन्हें हम संप्रत्यय अधिगम कहते हैं ।” बालक किसी संप्रत्यय का अनुभव तथा अधिगम क्रिया-प्रक्रिया से करता है। इस प्रकार के संप्रत्यय विकास की यह प्रक्रिया चार स्तरों से गुजरती है या दूसरे शब्दों में संप्रत्यय अधिगम या विकास के चार स्तर कह सकते हैं। ये स्तर निम्नलिखित हैं-

(क) मूर्त स्तर (Concrete Level)- जब बालक प्रत्यक्ष देखे गये पदार्थों या वस्तुओं की उपस्थिति होने पर उन्हें पहचानने में सक्षम हो जाता है, तो इसे संप्रत्यय अधिगम का मूर्त स्तर कहते हैं।

(ख) परिचयात्मक स्तर (Identity Level)—जब बालक भिन्न परिवर्तित दशाओं में पदार्थों के विभिन्न गुणों का सामान्यीकरण करने की योग्यता को प्राप्त कर ले, तो यह कहा जा सकता है कि उसने संप्रत्यय अधिगम के परिचयात्मक स्तर को प्राप्त कर लिया है।

(ग) वर्गीकरण स्तर (Classification Level) — जब बालक के कम से कम एक ही वर्ग में जो दृष्टांतों या उदाहरणों का एक तरह की समझने की क्षमता विकसित कर ले तब संप्रत्यय अधिगम के इस स्तर की उपलब्धि मानी जा सकती है।

(घ) औपचारिक स्तर ( Formal Level) – जब बालक संप्रत्यय की विशेषताओं के आधार पर विशिष्ट वर्ग में होना व उसका आधार स्पष्ट कर सके तब यह कहा जा सकता है कि उसने संप्रत्यय अधिगम के औपचारिक स्तर को प्राप्त कर लिया है। 

इसमें संपूर्ण तथ्य से सम्बन्धित सामान्यीकरण की क्रियायें सम्मिलित होती हैं अर्थात् एक ही वर्ग के दो या दो से अधिक विभिन्न उद्दीपनों के प्रति कोई एक सामान्य व्यवहार अन्तर्निहित होता है। इसके लिये बहु-विभेदात्मक अधिगम; पूर्ण परिस्थिति मानी जाती है। तथ्यों के समूह एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। परन्तु उसमें सम्मिलित घटकों/तत्त्वों के लिये छात्र सामान्यीकरण कर सकते हैं। जैसे-पौधों एवं पशुओं का वर्गीकरण करना।

7. नियम अधिगम (Rule or Principal Learning) – इस स्तर पर अधिगमकर्त्ता किसी नियम को सीखता है और उनको नई परिस्थितियों में प्रयोग कर सकता है। नियम या सिद्धान्त अधिगम में दो या दो से अधिक प्रत्ययों की श्रृंखला सम्मिलित होती है। जिस प्रकार एक संप्रत्यय में अनेक तथ्यों एवं विशेषताओं की श्रृंखला होती है उसी प्रकार एक नियम / सिद्धान्त में कई संप्रत्ययों की श्रृंखला होती है। उदाहरणार्थ- बर्फ का गर्मी पाकर पिघलना । इस सिद्धान्त में तीन संप्रत्ययों, ‘बर्फ’, ‘गर्मी’ व ‘पिघलना’ का शृंखलन किया गया है और इसमें एक ही सिद्धान्त का बोध होता है। सिद्धान्त अधिगम में छात्र को प्रत्ययों का प्रत्यास्मरण करना होता है, जिससे सिद्धान्त का बोध होता है।

8. समस्या समाधान अधिगम (Problem Solving Learning)- अधिगमकर्ता इस स्तर पर सीखे हुये दो या दो से अधिक नियमों का समन्वय कर किसी नई समस्या के समाधान की योग्यता प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार उच्च स्तरीय सिद्धान्त के रूप में सम्बद्ध करना ही समस्या समाधान अधिगम है। अधिगम की प्रक्रिया में तीन प्रमुख चर कार्यरत होते हैं अधिगमकर्त्ता, उद्दीपन-परिस्थिति तथा अनुक्रिया। समस्या समाधान एक जटिल अधिगम है। इसमें संप्रत्यय अधिगम और सिद्धान्त अधिगम दोनों ही सम्मिलित हो जाते हैं। सफल समस्या-समाधान का वर्णन अधिगम के धनात्मक स्थानान्तरण / संक्रमण के रूप में किया जा सकता है। इसलिये इसे जटिल तथा व्यक्तिगत अधिगम की संज्ञा दी गई है। जैसे— रेखागणित के किसी प्रमेय को सिद्ध करना ।

अधिगम एक द्विपक्षीय प्रक्रिया के रूप में (Learning As Bipolar Process)

एडम्स ने शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया बताया है। एडम्स के अनुसार शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को ज्ञान प्रदान करके उसके व्यवहार को विकसित और परिवर्तित करता है।

द्विमुखी प्रक्रिया में दो व्यक्ति होते हैं। एक ध्रुव पर शिक्षक होता है और दूसरे पर शिष्य। दोनों के कार्यों का समान महत्त्व होता है। एक बोलता है, दूसरा कार्यों का एक-दूसरे से सम्बन्ध होता है। सहयोग के बिना वे अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उनके व्यक्तित्व एक-दूसरे पर क्रिया और प्रतिक्रिया करते हैं। इसका परिणाम होता है— शिक्षा।

इस प्रक्रिया को चलाने के लिए शिक्षक और शिष्य को एक-दूसरे का ज्ञान स्पष्ट होना चाहिए । शिक्षक को शिष्य के स्तर पर और शिष्य को शिक्षक के स्तर पर पहुँचना आवश्यक है। ऐसा किये बिना शिक्षा देने और शिक्षा लेने का कार्य नहीं चल सकता है। इस प्रकार, शिक्षा एक चेतन और विचारपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में ‘कर्त्ता और कर्म का सम्बन्ध’ होता है।

अधिगम एक द्विपक्षीय प्रक्रिया के रूप में

छात्र (Learner)- अधिगम की प्रक्रिया में छात्र का महत्त्व सर्वोपरि है। अतः अधिगम की प्रक्रिया में छात्र का शारीरिक, मानसिक, स्वास्थ्य, संवेगात्मक स्थिरता, सामाजिक समायोजन की क्षमता, छात्रोपयोगी प्रेरणा व प्रोत्साहन, जन्मजात प्रवृत्तियों, वातावरण व प्रशिक्षण द्वारा अर्जित होने वाली योग्यताओं का ध्यान रखा जाता है। बालक का व्यक्तित्व, उसके व्यक्तित्व विकास के साधन व विधियाँ, उसकी स्मरण करने की योग्यता, विस्मरण के कारण तथा सीखने के पठार आदि अधिगम प्रक्रिया में छात्र के सफल अधिगम को प्रभावित करते हैं। इसलिये एक शिक्षक को इन सबका ज्ञान होना आवश्यक है।

शिक्षक (Teacher)- अधिगम प्रक्रिया का स्थान महत्त्वपूर्ण है। शिक्षक ही वह महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है जो बालक का सम्पूर्ण विकास व सफल अधिगम में सहायक है। इसलिये अधिगम प्रक्रिया के अन्तर्गत शिक्षक की योग्यता, उसका व्यक्तित्व, उसका प्रशिक्षण, उसका भाषा पर अधिकार तथा शिक्षण के प्रति उसकी रुचि, अभियोग्यता व अभिवृत्तियों तथा आत्मविश्वास शिक्षण प्रक्रिया के सुचारु व निरन्तर उत्तरोत्तर विकास में सहायक है।

पाठ्यक्रम (Curriculum)- पाठ्यक्रम वह रेस का मैदान है जिस पर शिक्षक व शिक्षार्थी निश्चित समयावधि में दौड़ लगाकर, पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। अधिगम प्रक्रिया में पाठ्यक्रम, बालकों के स्तर के अनुसार, क्रमानुसार एकीकृत तथा सहसम्बन्धित आवश्यक है ।

अधिगम एक बहुमुखी प्रक्रिया के रूप में (Learning As Multipolar Process)

आधुनिक युग में अधिगम की अवधारणा को बड़े ही व्यापक रूप अनुभूत किया गया है। आज अधिगम प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं तथा सुविधा के अनुसार, मनुष्य की समस्त आयुओं के अनुकूल बनाने पर बल दिया जा रहा है। इसलिए उसे समस्त अधिगम के वास्तविक प्रयोजन—वैयक्तिक अधिगम, स्व-अध्यापन तथा स्व-प्रशिक्षण को ध्यान में रखते हुए, आरम्भ से और एक प्रावस्था से दूसरी प्रावस्था तक अभिविन्यस्त किया जा रहा है। शिक्षा को शाला भवन की दीवारों में सीमित नहीं किया जा रहा है। सभी प्रकार की विद्यमान संस्थाओं, चाहे वे अध्ययन के लिए अभिकल्पित हों या न हों, और सामाजिक तथा आर्थिक क्रियाकलाप के सभी रूपों का शैक्षिक प्रयोजन के प्रयुक्त करने पर बल दिया जा रहा है।

शिक्षा की उपर्युक्त अवधारणा ने विद्यालय तथा शिक्षक के एकाधिकार को समाप्त करने पर बल दिया है। इसने विद्यालय के अतिरिक्त अन्य अनौपचारिक तथा निरौपचारिक या अनौपचारिकेतर साधनों को अधिगम प्रदान करने के लिए स्वीकार किया है। आधुनिक समाज में शिक्षा को बहुविध साधनों के माध्यम से प्रदान तथा प्राप्त करने पर बल दिया जा रहा है। शिक्षार्थी को साधनों तथा प्रणालियों के बारे में चयन की स्वतन्त्रता प्रदान की जा रही है। इनमें पूर्णकालिक अधिगम, अंशकालिक अधिगम, पत्राचार द्वारा अधिगम एवं सूचना के स्रोतों को प्रत्यक्ष उपयोग करने वाले स्वअधिगम के अनेक रूप भी शामिल हैं। एक बहुमुखी प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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