अनुक्रम (Contents)
पढ़ने और लिखने की सम्बद्धता का वर्णन कीजिए। (Describe the linkages between reading and writing)
पढ़ना और लिखना यद्यपि दो भिन्न कौशल हैं परन्तु एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं। अधिकांश मनोवैज्ञानिकों का मत है कि पढ़ने से पूर्व छात्रों को लिखने का अभ्यास कराया जाए। लिखना आने से छात्रों को पढ़ना स्वतः ही आ जाएगा । लिखना सीखने का सबसे अच्छा साधन होता है कि बालक को अक्षर विन्यास का बार-बार अभ्यास कराया जाए। जब बालक शब्दों को बार-बार लिखते हैं तो उनको पहचानने लगते हैं और उन्हें पढ़ना भी आ जाता है।
पठन दक्षता के लिए क्रियाकलाप
पठन दक्षता के विकास के लिए निम्नलिखित गतिविधियों का प्रयोग किया जा सकता है-
1. आदर्श पठन- छात्रों में पठन दक्षता के लिए आदर्श पठन का विशेष महत्त्व है निबन्ध पाठ तथा कविता पाठ करते समय शिक्षक स्वयं शुद्ध उच्चारण, प्रभावपूर्ण उचित हाव-भाव के साथ विषय-सामग्री का पठन करे। यही आदर्श पठन कहलाता है।
2. अनुकरण पाठ- आदर्श पठन के पश्चात् छात्रों के सस्वर वाचन के समय होने वाली अशुद्धियों पर शिक्षक ध्यान दे और फिर बाद में उनमें संशोधन कर दे। सामान्य रूप से पायी जाने वाली अशुद्धियों का वर्गीकरण करके उनकी अभ्यास सूचियाँ बनाई जायें तथा छात्रों से सामान्य रूप से सामूहिक रूप से उच्चारण कराया जाए।
3. लिखना- किसी भी भाषा के सभी वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। जिस रूप में वर्णों को लिखा जाता है, उसे लिपि कहा जाता है। शुद्ध वर्तनी लिखना कौशल का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
लेखन में दक्षता के लिए जिन शिक्षण-अधिगम सामग्रियों तथा गतिविधियों का शिक्षक प्रयोग करता है, वे निम्नलिखित हैं :-
(i) प्रारम्भिक स्थिति में छात्रों को सीधी, आड़ी, तिरछी तथा गोलाकार रेखाएँ खींचने का अभ्यास कराना चाहिए। वर्ण, संयुक्ताक्षर तथा मात्रा लेखन का भी अभ्यास कराना चाहिए।
(ii) छात्रों से पहले मात्रा रहित शुद्ध शब्द श्यामपट्ट पर लिखवाना चाहिए तत्पश्चात् उन्हें देखकर लिखने का अभ्यास कराएँ। फिर मात्रा वाले शब्दों को श्यामपट्ट पर मोटे आकार में लिखवाएँ। अन्त में वाक्यों को देखकर लिखने को कहें।
(iii) छात्रों के वर्णों, मात्राओं और संयुक्ताक्षरों को सीख लेने के बाद उनसे सुलेख तथा श्रुतलेख का अभ्यास बार-बार कराएँ। सुलेख कराते समय वर्णों एवं शब्दों की आकृति की सुडौलता पर छात्रों से पाँच-पाँच बार लिखवाएँ। अतः अन्त में उन्हीं शब्दों की सहायता से छोटे-छोट वाक्य भी बनवाएँ।
(iv) शिक्षक छात्रों से वर्तनी सुधार के लिए भी कुछ अभ्यास करा सकते हैं।
पठन एवं लेखन कौशल की सम्बद्धता (Linkage of Reading and Writing Skill)
पठन एवं लेखन कौशल दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। कक्षा में जो कुछ भी विषय-सामग्री पढ़ाई जाती है, उसका पूरी तरह से छात्रों को अधिगम हो गया है या नहीं, इसकी जाँच कैसे हो ? कक्षा में जितना भी कार्य कराया जाता है, वह प्रायः मौखिक पठन ( सस्वर वाचन, मौन वाचन) के रूप में होता है। यदि यह मान लिया जाए कि हम अपने विचारों का प्रकाशन मौखिक रूप से अधिक करते हैं तब भी जीवन में कई अवसर आते हैं जब हमें लिखित रूप से अपने विचारों को अभिव्यक्त करना पड़ता । पठन भाव- प्रकाशन के लिए आवश्यक होता है इसीलिए कक्षा में पठन पर बल दिया जाता है। पठन के माध्यम से हम नवीन सूचनाओं, सिद्धान्तों और नियमों तथा सूत्रों से परिचित होते हैं। पठन के माध्यम से हम यह परिकल्पना कर लेते हैं कि छात्र अपने ज्ञान का विस्तार कर चुका है और वह छात्र अपने सम्बन्धी विचारों तथा भावों को सरलता एवं शुद्धता से दूसरों के सामने व्यक्त भी कर सकता है तथा लिख भी सकता है । इस परिकल्पना में सत्य का अंश अवश्य है किन्तु जिस समय छात्र लिखने बैठता है, उसे शब्द ढूँढ़ने पड़ते हैं । उसे अपने भावों को संयत भाषा में लिखित रूप में व्यक्त करना पड़ता है तथा वर्तनी की शुद्धता का भी ध्यान रखना पड़ता है। लिखित कार्य करते समय छात्र के समक्ष यह अड़चनें आती हैं परन्तु यदि उसने विषय-वस्तु को ठीक प्रकार से पढ़ा होता है और उस विषय – सामग्री को बोधगम्य किया जाता है, तो उसके मन में विचार भी उत्पन्न होते हैं और जब तक छात्र ने पठन-सामग्री का ठीक से अध्ययन नहीं किया है, से अक्षरों की पहचान ठीक प्रकार से नहीं होती है, अशुद्धियों पर वह ठीक से ध्यान नहीं देता है तब तक वह शुद्ध रूप में लिख भी नहीं पाता है। पढ़ने के बाद पढ़ने की जाँच लिखने के द्वारा ही की जाती है और लिखकर ही वह भावों को बोधगम्य करता है जिससे पठन में गम्भीरता आती है। शुद्ध लेखन व्यक्ति के भाषा ज्ञान को दर्शाता है और भाषा ज्ञान पठन के माध्यम से ही विकसित होता है। लिखित भाषा में भावों और विचारों को समझने के लिए भी पठन एवं लेखन कौशल में संयोजन होना आवश्यक है। पठन एवं लेखन दोनों में ही अक्षर ज्ञान छात्रों को होना आवश्यक है। इसके साथ-साथ दोनों में ही मात्राओं का ज्ञान भी होना आवश्यक है। पठन एवं लेखन में सम्बद्धता के लिए व्याकरण का ज्ञान होना भी आवश्यक है।