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मापन से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by measurement? )
सामान्यतः किसी वस्तु के भार, लम्बाई और आयतन को निश्चित इकाई अंकों में मापने और प्रकट करने की क्रिया को मापन कहते हैं; जैसे—भार को किग्रा में, लम्बाई को मीटर में और आयतन को लीटर में मापते हैं। मापन का क्षेत्र अति व्यापक होता है । इसके क्षेत्र में किसी भी वस्तु, प्राणी अथवा क्रिया की किसी भी विशेषता को शब्दों, चिह्नों अथवा इकाई अंकों में प्रकट करना होता है।
ब्रेडफील्ड के शब्दों में, “मापन किसी वस्तु अथवा क्रिया के भिन्न-भिन्न गुणों को चिह्न विशेषों में प्रकट करने की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा यथा वस्तु अथवा क्रिया के यथा गुणों को संक्षिप्त से संक्षिप्त रूप में प्रकट किया जाता है।”
मापन की इस परिभाषा में केवल वस्तुओं और क्रियाओं के गुणों के मापन को ही शामिल किया गया है, प्राणियों के गुणों के मापन को नहीं। यूँ प्राणी भी जगत की वस्तुओं में ही आते हैं परन्तु सामान्य प्रयोग में वस्तुओं से तात्पर्य जड़ पदार्थों से लिया जाता है इसलिए प्राणियों के गुणों के मापन को अलग से दर्शाना आवश्यक है। ब्रेडफील्ड द्वारा प्रस्तुत मापन की इस परिभाषा में मापन के आधार की ओर भी कोई संकेत नहीं है। उसे भी परिभाषा में शामिल करना आवश्यक है। हमारी दृष्टि से मापन को निम्नलिखित रूप में परिभाषित करना चाहिए-
मापन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी वस्तु, प्राणी अथवा क्रिया की किसी विशेषता को निश्चित मानदण्डों के आधार पर देखा-परखा और मापा जाता है और उसे मानक शब्दों, चिह्नों अथवा निश्चित इकाई अंकों में प्रकट किया जाता है।
मापन चर एवं उनके प्रकार (Measuring Variables and Their Types)
मापन की दृष्टि से चरों से तात्पर्य वस्तुओं, प्राणियों अथवा क्रियाओं के उन गुणों से होता है जिनमें किसी समूह की वस्तुएँ, प्राणी तथा क्रियाएँ समान नहीं होते; जैसे—मनुष्यों का भार, बुद्धि एवं व्यक्तित्व यह तो हो सकता है कि मनुष्यों के किसी समूह के दो-चार सदस्यों का भार समान हो परन्तु समूह के सभी व्यक्तियों का भार समान नहीं हो सकता और यदि जानबूझ कर ऐसे व्यक्तियों के समूह का निर्माण किया जाता है जिसके सभी सदस्यों का भार समान हो तो फिर उस समूह के लिए भार चर न होकर अचर अथवा स्थिर राशि हो जाता है। स्पष्ट है कि एक गुण एक समूह के लिए चर हो सकता है और दूसरे समूह के लिए अचर हो सकता एक अन्य उदाहरण द्वारा हम इसे और स्पष्ट किए देते हैं- लड़के और लड़कियों के समूहों के लिए लिंग चर होता है, वे इस चर (लिंग) के आधार पर लड़के और लड़कियों को दो वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं, परन्तु लड़के या लड़कियों के अलग-अलग समूहों के लिए लिंग चर नहीं होता।
चर दो प्रकार के होते हैं – गुणात्मक चर और मात्रात्मक चर।
गुणात्मक चर – वस्तुओं अथवा प्राणियों के कुछ गुण ऐसे होते हैं जिन्हें केवल जा सकता है, उन्हें निश्चित इकाई अंकों में मापा नहीं जा सकता, जैसे- मनुष्यों का रंग, रूप, जाति, धर्म और लिंग। मनुष्य के इन गुणों को गुणात्मक चर कहते हैं। छात्रों का कक्षा स्तर गुणात्मक चर का एक अन्य उदाहरण है। इस चर के आधार पर उन्हें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च कक्षा स्तर के छात्रों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है । उच्च कक्षा के छात्रों को तो विषयों के आधार पर कला, वाणिज्य, विज्ञान, इंजीनियरिंग और मेडिकल आदि रूप में भी वर्गीकृत किया जाता है। इस स्तर पर पाठ्य विषय भी गुणात्मक चर का कार्य करते हैं।
मात्रात्मक चर वस्तुओं अथवा प्राणियों के कुछ गुण ऐसे होते हैं जिन्हें मात्रा (निश्चित इकाई अंकों) में मापा जा सकता; जैसे- मनुष्यों की लम्बाई, भार एवं बुद्धि लब्धि। मनुष्यों के इन गुणों को मात्रात्मक चर कहते हैं। छात्रों की किसी विषय विशेष में योग्यता भी मात्रात्मक चर की श्रेणी में आती है क्योंकि इसे भी परीक्षणों द्वारा निश्चित इकाई अंकों में मापा जा सकता है। मात्रात्मक चर दो प्रकार के होते हैं- सतत् चर और असतत् चर।
1. सतत् चर (Continuous Variables)- सतत् चरों की श्रेणी में वे मात्रात्मक चर आते हैं जो किन्हीं भी दो लगातार मात्रात्मक पूर्णांकों के बीच किसी भी मात्रात्मक मान के हो सकते हैं; जैसे—व्यक्ति की लम्बाई। किसी व्यक्ति की लम्बाई के लिए यह आवश्यक नहीं कि वह पूर्णांक ही हो अर्थात् 170 सेमी के बाद 171 सेमी ही हो। वह 170.1 सेमी 170.2 सेमी 170.3 सेमी, 170.4 सेमी, 170.5 सेमी और 170.6 सेमी आदि भी हो सकती । इन्हें हिन्दी में निरन्तर चर भी कहते हैं। सतत् अथवा निरन्तर चरों के मापन में प्रयुक्त इकाई संख्याएँ कभी भी अपने में पूर्ण संख्याएँ नहीं होतीं, वे निकटस्त संख्याएँ होती हैं, उनके बीच कुछ न कुछ अंश रहता है।
2. असतत् चर (Discrete Variables) – असतत् चरों की श्रेणी में वे मात्रात्मक चर आते हैं जो सदैव पूर्णांक में ही मापे जाते हैं; जैसे—किसी कक्षा के छात्रों की संख्या । यह संख्या पूर्णांक (40, 41, 50 आदि) ही हो सकती है, इसका कोई भाग (40.5, 41.51, 45.52 आदि) नहीं हो सकती। इन्हें हिन्दी में खण्डित चर भी कहते हैं। असतत् अथवा खण्डित चर सदैव पूर्णांक में ही होते हैं इसलिए इनके मापन में प्रयुक्त इकाई संख्याएँ होती हैं।
गुणात्मक एवं मात्रात्मक मापन (Qualitative and Quantitative Measurement)
गुणात्मक मापन – किसी वस्तु, प्राणी अथवा क्रिया की विशेषताओं को गुणों के रूप में देखने-समझने को गुणात्मक मापन कहते हैं; जैसे- किसी छात्र को अति बुद्धिमान या कम बुद्धिमान कहना ।
मात्रात्मक मापन- किसी वस्तु, प्राणी अथवा क्रिया की विशेषताओं को मात्रा के रूप में मापन को मात्रात्मक मापन कहते हैं; जैसे- किसी छात्र की बुद्धि लब्धि को 140,120 या 110 बुद्धि लब्धि के रूप में मापना।
मापन के स्तर, पैमाने और प्रकार- स्टीवेन्स ने मापन प्रक्रिया को उसकी यथार्थता के आधार पर चार स्तरों में विभाजित किया है— नामित स्तर, क्रमित स्तर, अन्तरित स्तर और आनुपातिक स्तर। कुछ विद्वान इन्हें स्तर न कहकर पैमाने कहते हैं, नामित पैमाना, क्रमित पैमाना, अन्तरित पैमाना और आनुपातिक पैमाना। मापन के इन स्तरों अथवा पैमानों के आधार पर मापन के चार प्रकार होते हैं- नामित मापन, क्रमित मापन, आन्तरित मापन और आनुपातिक मापन।
1. नामित मापन (Nomianl Measurement)- इस स्तर अथवा पैमाने के मापन में किसी वस्तु अथवा प्राणी के केवल गुण विशेष को देखा जाता है और उसके आधार पर उसे उस वर्ग का नाम, संकेत अथवा प्रतीक दे दिया जाता है; जैसे—लिंग (गुण अथवा चर) के आधार पर छात्रों को लड़के अथवा लड़की का नाम देना, स्थान के आधार पर छात्रों को शहरी अथवा ग्रामीण नाम देना और शिक्षा स्तर के आधार पर छात्रों को प्राथमिक शिक्षा छात्र, उच्च शिक्षा छात्र, मेडीकल छात्र अथवा इंजीनियरिंग छात्र आदि नाम देना।
स्पष्ट है कि नामित मापन एक गुणात्मक मापन है और एक मोटे तौर का मापन है। यह सबसे कम परिमार्जित स्तर का मापन है।
2. क्रमित मापन (Ordinal Measurement)- इस स्तर अथवा पैमाने के मापन में किसी वस्तु अथवा प्राणी के किसी गुण की मात्रा का मापन किया जाता है और मात्रा के अनुसार उसे वर्ग विशेष का नाम, संकेत अथवा प्रतीक दे दिया जाता है; जैसे—छात्रों को उनकी बुद्धि की मात्रा के आधार पर उच्च बुद्धि, मध्यम बुद्धि और निम्न बुद्धि छात्र कहना, किसी विषय विशेष में योग्यता के आधार पर श्रेष्ठ, मध्यम और कमजोर छात्र कहना और परीक्षा प्राप्तांकों के आधार पर प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी और तृतीय श्रेणी छात्र कहना।
3. अन्तरित मापन (Interval Measurement)- इस स्तर अथवा पैमाने के मापन में किसी वस्तु अथवा प्राणी को किसी गुण का मापन इकाई संख्याओं में किया जाता है, ऐसी इकाई संख्याओं में जिनमें किन्हीं भी दो लगातार इकाई संख्याओं में समान अन्तर होता है; जैसे—छात्रों को उनकी किसी विषय की परीक्षा में 40,38,52,64 आदि अंक प्रदान करना । इन इकाई संख्याओं में 40-41 लगातार संख्याओं में भी एक (1) का अन्तर है और 38-39 लगातार संख्याओं में भी एक (1) का अन्तर है। परन्तु इस स्तर के मापन में गुण विहीनता को व्यक्त करने वाला शून्य (0, Zero) जैसा कोई बिन्दु नहीं होता । उदाहरणार्थ यदि किसी छात्र के किसी विषय के उपलब्धि परीक्षण में शून्य (0, Zero) अंक आता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि उस विषय में छात्र की उपलब्धि शून्य है अर्थात् योग्यता शून्य इस शून्य का केवल यह अर्थ होता है कि छात्र तथा उपलब्धि परीक्षण के किसी भी प्रश्न को हल करने में सफल नहीं हुआ है। चूँकि उसके द्वारा उस विषय के अन्य प्रश्नों को हल करने की सम्भावना होती है, इसलिए उस विषय में उसके ज्ञान को शून्य नहीं कहा जा सकता।
4. अनुपातिक मापन (Ratio Measurement) – इस स्तर के मापन में अन्तरित मापन के समस्त गुणों के साथ-साथ वास्तविक शून्य की संकल्पना होती है। वास्तविक शून्य वह बिन्दु होता है जिस पर यथा गुण पूर्ण रूप से अनुपस्थिति होता है। इस शून्य की संकल्पना से मापन द्वारा प्राप्त परिणामों की तुलना की जा सकती है, उन्हें आनुपातिक रूप दिया जा रहा है इसलिए इसे आनुपातिक मापन कहते हैं। उदाहरणार्थ- यदि राम का भार 60 किग्रा और श्याम का भार 20 किग्रा हो तो यह कहा जा सकता है कि उनके भारों में 3: 1 का अनुपात है।
इस स्तर का मापन केवल भौतिक गुणों का ही किया जा सकता है, अभौतिक गुणों का नहीं। उदाहरणार्थ यदि बुद्धि परीक्षा में राम की बुद्धि लब्धि 150 और श्याम की 100 आती है तो यह नहीं कहा जा सकता कि राम और श्याम की बुद्धि में 3:2 का अनुपात है, राम की बुद्धि श्याम की बुद्धि से 3/2 गुना से कम अथवा अधिक हो सकती है।
निरपेक्ष, सामान्यीकृत और इप्सेटिव मापन (Absolute, Normative and Ipsative Measurement) – मापन उपकरण अथवा विधि एवं उनसे प्राप्त परिणामों के आधार पर मापन के तीन भेद अथवा प्रकार होते हैं— निरपेक्ष मापन, सामान्यीकृत मापन और इप्सेटिव मापन।
निरपेक्ष मापन- निरपेक्ष मापन वह मापन है जिसमें परम शून्य की स्थिति सम्भव होती है और जिसका पैमाना शून्य से शुरू होता है, शून्य से अधिक होने पर धनात्मक (+ve) और शून्य से कम होने पर ऋणात्मक (-ve) मापें देता है। उदाहरण के लिए किसी स्थान के टेम्प्रेचर को लीजिए, यह शून्य (0, Zero) भी हो सकता है, शून्य से अधिक भी हो सकता है और शून्य से कम भी हो सकता है। इस प्रकार का मापन भौतिक चरों में ही सम्भव होता है, शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक चरों में नहीं, क्योंकि शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक चरों में परम शून्य की सम्भावना नहीं होती। उदाहरणार्थ यदि किसी उपलब्धि परीक्षण में किसी छात्र को शून्य (0, Zero) अंक प्राप्त होता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि उस विषय में छात्र की योग्यता शून्य है। इसका केवल इतना अर्थ होता है कि छात्र तथा उपलब्धि परीक्षण के किसी भी प्रश्न को हल करने में असमर्थ रहा है।
सामान्यीकृत मापन – सामान्यीकृत मापन वह मापन है जिसमें प्राप्तांक एक-दूसरे से प्रभावित नहीं होते, वे स्वतन्त्र रूप में प्राप्त होते हैं। इसकी दूसरी पहचान यह है कि इसमें परम शून्य की सम्भावना नहीं होती। उदाहरणार्थ यदि किसी विषय के उपलब्धि परीक्षण में कोई छात्र शून्य (0) अंक प्राप्त करता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि उस विषय में उस छात्र की योग्यता शून्य है। इसका केवल यह अर्थ होता है कि यथा उपलब्धि परीक्षण के किसी भी प्रश्न को हल करने में यह छात्र असफल रहा है। हो सकता है वह उस विषय से सम्बन्धित अन्य प्रश्नों का हल कर सके। समाजशास्त्रीय अध्ययन, मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग किए जाने वाले परीक्षणों से प्राप्त प्राप्तांक प्रायः सामान्यीकृत माप ही होते हैं।
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