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परामर्श के प्रमुख प्रकार (MAJOR TYPES OF COUNSELLING)
जिस प्रकार मनुष्य की समस्याओं का स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है उसी प्रकार परामर्श का स्वरूप भी अलग-अलग होता है। परामर्श के स्वरूप को मनुष्य की प्रकृति, आवश्यकता तथा समस्या के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। आज व्यक्ति के विकास के लिए शिक्षा, निर्देशन एवं परामर्श की प्रक्रिया अति आवश्यक हो गई है। इन सबको ध्यान में रखते हुए परामर्श को निम्न प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) मनोवैज्ञानिक परामर्श (Psychological Counselling)
मनोवैज्ञानिक परामर्श एक ऐसा परामर्श है जिसमें परामर्शदाता की भूमिका एक चिकित्सक की भाँति होती हैं और वह सामान्य वार्तालाप के द्वारा परामर्श प्राप्तकर्ता / प्रार्थी / सेवार्थी को उसके संवेगों एवं दमित भावनाओं को अभिव्यक्त करने में सहायता करता है। इसमें परामर्श का स्वरूप चिकित्सा की भाँति होता है। प्रार्थी (Consulting Recipient) को इस कार्य हेतु परामर्शदाता (Counsellor) आवश्यक सूचना एवं सुझाव प्रदान करता है। तथा उसे यह विश्वास दिलाता है एवं आश्वस्त करता है कि वह उसके समक्ष निश्चित होकर अबाध रूप से अपने भावों एवं समस्याओं को अभिव्यक्त कर सकता है। सूचनाएँ प्राप्त करने के बाद परामर्शदाता प्रार्थी को समस्या हेतु समाधान सुझाता है। व्हाइट महोदय (R.W. White) ने तो परामर्श और चिकित्सा शब्दों को एकार्थी स्वीकार किया है। इससे प्रभावित होकर कुछ अन्य मनोवैज्ञानिकों जिनमें स्नाइडर का नाम प्रमुख हैं, ने एक नया शब्द मनोचिकित्सा सम्बन्धी परामर्श प्रचलित किया।
आर.डब्ल्यू. व्हाइट ने मनोवैज्ञानिक परामर्श शब्द का प्रयोग करते हुए कहा है- मनोवैज्ञानिक परामर्श का सन्दर्भ अपेक्षाकृत एक ही प्रकार के क्रिया-कलापों की बहुरूपता/विभिन्नता से है। इनको सकारात्मक ढंग की अपेक्षा नकारात्मक ढंग से लक्षित करना सरल है। अपनी विशिष्ट प्रक्रियाओं के समूह मुक्त साहचर्य, व्याख्या, अन्यारोपण एवं स्वप्न विश्लेषण के साथ ये परामर्श मनोविश्लेषण नहीं है। वे विशेष साधनों, जैसे- सम्मोहन, स्वापी संश्लेषण, मनोनाटक आदि का प्रयोग नही करते। वे केवल परामर्शदाता / चिकित्सक एवं सेवार्थी के मध्य होने वाली बातचीत पर निर्भर करते हैं। यह वार्तालाप प्रश्न एवं उत्तर के रूप में या इतिहास पुनर्निमाण अथवा वर्तमान कठिनाइयों पर हो सकता है। यह सेवार्थी द्वारा भाव-विभोर होकर किया गया स्वयं कथन हो सकता है या इसके विपरीत परामर्शदाता / चिकित्सक द्वारा सेवार्थी से सब कुछ स्वयं कहलाने हेतु पहल की जाती है। परामर्शदाता / चिकित्सक उत्साहित कर सकता है, सूचना दे सकता है एवं सलाह दे सकता है। ये अपेक्षाकृत ऐसे सकारात्मक कार्य हैं जो चिकित्सक / परामर्शदाता द्वारा किए जाते हैं एवं मनोवैज्ञानिक परामर्श के बड़े सामान्य अर्थ के अन्तर्गत आते हैं।”
According to R.W. White, “The psychological Counselling refers to variety of rather than similar activities. It is easier to characterise them negatively than positively. They are not psycho analysis with its group of specialised procedure: free association, interpretation, transference and the analysis of dreams. They do not use special aids such as hypnosis, narcosynthesis or psychodrama. They rely simply on conversation between paitent and therapist. This may take the form of questions and answers, reconstruction of past history or discussion of current difficulties. It may consist of an emotion-ladden monologue by the patient or at the opposite extreme the therapist may offer encouragement, give information, give advice; these more positive actions on his part still be within the very general meaning of psychological Counselling.”
(2) नैदानिक परामर्श (Diagnostic Counselling)
नैदानिक परामर्श, परामर्श का वह प्रकार है जिसका सम्बन्ध दैनिक जीवन के क्रिया-कलापों के बीच होने वाला कुसमायोजन है। एच.बी. पेपिंस्की महोदय ने नैदानिक परामर्श शब्द का प्रयोग करते हुए सुझाव दिया कि परामर्श का एक स्वरूप नैदानिक परामर्श भी होता है।
उनके अनुसार, नैदानिक परामर्श का आशय है-
(i) पूरी तरह से अदमित तथा अक्षम न बना देने वाले असाधारण कार्य सम्बन्धी (ऐन्द्रिय / आंगिक के अतिरिक्त) कुसमायोजनों का निदान एवं उपचार।
(ii) परामर्शदाता एवं सेवार्थी के मध्य व्यैक्तिक एवं आमने-सामने का सम्बन्ध।
According to H.B. Pepinsky-
(i) The diagnosis and treatment of minor (non-embedded, non-incapicitating), functional (non-organic) maladjustments, and
(ii) A relationship primarily individual and face-to-face between counsellor and client.
इस प्रकार के परामर्श में समस्या का विश्लेषण करने के पश्चात् उसका उपचार/समाधान बताने का प्रयास किया जाता है। पेपिंस्की महोदय के कथन से स्पष्ट है कि इस परामर्श का सम्बन्ध व्यक्ति के सामान्य क्रिया-कलाप सम्बन्धी कुसमायोजनों से होता है परामर्शदाता एवं सेवार्थी के मध्य आमने-सामने का सम्बन्ध होता है। नैदानिक परामर्श की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(i) इस परामर्श के अन्तर्गत सेवार्थी की समस्या का अध्ययन / विश्लेषण कर उसका समाधान/उपचार सुझाया जाता है।
(ii) नैदानिक परामर्श, नैदानिक मनोविज्ञान (Clinical Psychology) का महत्त्वपूर्ण भाग है।
(iii) नैदानिक परामर्श का नैदानिक मनोविज्ञान से गहरा सम्बन्ध है।
(iv) नैदानिक परामर्श के अन्तर्गत निदान ( Diagnosis), उपचार (Treatment) एवं प्रतिरोधन (Prevention) तीनों सम्मिलित होते हैं।
(3) मनोचिकित्सकीय परामर्श (Psychotherapeutic Counselling)
स्नाइडर महोदय ने मनोचिकित्सकीय परामर्श को परिभाषित करते हुए लिखा है, “मनोचिकित्सकीय परामर्श आमने-सामने का वह सम्बन्ध है जिसमें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रशिक्षित व्यक्ति एक-दूसरे व्यक्ति या व्यक्तियों को मौखिक रूप से उनकी संवेगात्मक मनोवृत्ति जो कि सामाजिक रूप से कुसमाजिक हो गई है, के परिष्कार हेतु सचेतन प्रयास करता रहता है तथा विषयी (सेवार्थी) सापेक्षतः अपने के पुनर्गठन से अवगत रहता है जिसमें से वह गुजर रहा है।”
According to W.U. Snyder, “Psychotherapeutic Counselling is the face-to- face relationship in which a psychologically trained individual is consciously attempting by verbal means to assist another person or persons to modify emotional attitude that are socially maladjusted and in which the subject is relatively aware of the personality reorganisation through which he is going.”
स्नाइडर के उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि-
(i) यह परामर्श दृष्टिकोणों के परिष्करण से सम्बन्धित है। विशेष रूप से वे दृष्टिकोण जो सामाजिक कुसमायोजन हेतु जिम्मेदार होते हैं।
(ii) इस परामर्श के दौरान सेवार्थी / प्रार्थी / परामर्श प्राप्तकर्ता में जो परिवर्तन लक्षित होते हैं उनसे वह अवगत रहता है।
चिकित्सात्मक शब्द चिकित्सा एवं औषधि के क्षेत्र से है लेकिन जब परामर्श के सन्दर्भ में इसका उपयोग किया जाता है तब इसका चिकित्सा सम्बन्धी अर्थ लुप्त हो जाता है। और यह केवल उन क्रिया-कलापों का प्रतीक बन जाता है जो सेवार्थी की समस्याओं के समाधान में सहायता करते हैं। रुथ स्ट्रेंग ने मनोचिकित्सा एवं परामर्श के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए माना कि परामर्श एवं मनोचिकित्सा में काफी समानता है एवं दोनों में अन्तर करने का प्रयत्न करना कठिन एवं अनुपयोगी है। इनके अनुसार परामर्श एवं मनोचिकित्सा दोनों एक-दूसरे से मिले हुए हैं। अब यह स्वीकार किया जाने लगा है। कि परामर्श में ऐसे तत्त्व विद्यमान हैं जिनकी प्रकृति चिकित्सात्मक है। सामाजिक कुसमायोजनों को दूर करने की दृष्टि से इस परामर्श की उपयोगिता निर्विवाद है।
(4) छात्र परामर्श (Student Counselling)
छात्र परामर्श वह परामर्श है जिसका सम्बन्ध छात्रों की समस्याओं से होता है। छात्रों की समस्याएँ शैक्षिक संस्थाओं, पाठ्यक्रमों, व्यावसायिक संस्थानों, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों आदि को चयनित करने, नए विद्यालय में समायोजन स्थापित करने आदि से सम्बन्धित हो सकती हैं। नैदानिक परामर्श की भाँति ही छात्र परामर्श का सम्बन्ध भी विद्यार्थियों के सम्पूर्ण शैक्षिक वातावरण की समस्याओं से होता है। इस प्रकार इस परामर्श के अन्तर्गत छात्रों के समक्ष आने वाली समस्याओं का समाधान सुझाया जाता है। छात्र परामर्श के अन्तर्गत प्रायः निम्न कार्य समाहित हैं-
(i) छात्रों को शिक्षण संस्थाएँ चयनित करने में सहायता देना।
(ii) उत्तम अध्ययन विधियों द्वारा उच्च उपलब्धि प्राप्त करने के उपाय सुझाना।
(iii) छात्र-जीवन में समायोजन हेतु उपाय बताना।
iv) पाठ्यक्रम एवं पाठ्यविषयों के चयन में सहायता प्रदान करना।
(v) शैक्षिक वातावरण निर्मित करने में सहायता देना।
इस परामर्श की प्रकृति शैक्षिक होती है इसलिए इसके अन्तर्गत सेवार्थी को शैक्षिक विकास सम्बन्धी परामर्श दिए जाते हैं जो बाद में उसके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का निर्माण करते हैं।
(5) व्यावसायिक परामर्श (Vocational Counselling)
व्यावसायिक परामर्श वह परामर्श है जिसमें व्यक्ति द्वारा चयनित व्यवसाय में आने वाली समस्याओं, व्यवसाय चयन में आने वाली समस्याओं एवं व्यवसाय के लिए तैयारी में आने वाली समस्याओं आदि के समाधान हेतु परामर्श प्रदान किया जाता हैं। इंगलिश और इंगलिश (English and English) का मत है कि इस प्रकार के परामर्श का सम्बन्ध उन प्रक्रियाओं से होता है जो व्यक्ति के द्वारा किसी व्यवसाय के चयन एवं उसकी तैयारी की समस्याओं पर केन्द्रित होती है।
(6) स्थानापन्न परामर्श (Placement Counselling)
स्थानापन्न परामर्श वह परामर्श है जिसमें परामर्श प्राप्तकर्ता/ सेवार्थी को उसकी शैक्षिक अर्हता, योग्यता, क्षमता एवं रुचि के अनुसार व्यवसाय / रोजगार चयन में सहायता दी जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो परामर्श प्राप्तकर्ता/सेवार्थी जिस प्रकार के व्यवसाय / रोजगार / पद के अनुरूप योग्यता रखता है एवं जिससे उसे वृत्तिक सन्तोष (Job Satisfaction) प्राप्त हो सके। उस प्रकार के व्यवसाय / रोजगार/पद में नियोजित करने के लिए उसे नियोजन/ स्थानापन्न परामर्श सहायता प्रदान करता है। इस परामर्श के द्वारा व्यक्ति अपने वृत्तिक विकास के लिए परामर्श प्राप्त करता है तत्पश्चात् उसके अनुसार कार्य करता है। यह परामर्श इस को अपनाए जिससे व्यक्ति की शक्ति एवं समय दोनों की बचत हो सके और अच्छे बात पर बल देता है कि व्यक्ति अपनी योग्यता, क्षमता व रुचि के अनुरूप ही सही वृत्त परिणाम प्राप्त हों। नियोजन/ स्थानापन्न परामर्श नियोक्ताओं (Employers) को भी अपने संस्थान हेतु योग्य एवं सक्षम कर्मचारियों को चयन करने में सहायता प्रदान करता है।
(7) वैवाहिक परामर्श (Marital Counselling)
वैवाहिक परामर्श वह परामर्श है जिसके अन्तर्गत उपयुक्त जीवन साथी का चयन करने में सलाह या सहायता प्रदान की जाती है, विवाहित स्त्री-पुरुषों को अपना वैवाहिक जीवन सफल बनाने हेतु सुझाव दिए जाते हैं साथ ही जीवन में उत्पन्न अनेक समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव प्रस्तुत किए जाते हैं। आजकल बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के फलस्वरूप व्यक्ति की जीवन शैली में बहुत परिवर्तन हो गया है। उसकी आवश्यकताएँ अत्यधिक बढ़ गई हैं। दिनचर्या काफी व्यस्त हो गई है। परिवार में एक-दूसरे के लिए समय का अभाव हो गया है। आपसी रिश्तों में मधुरता का लोप होता जा रहा है एवं परिवार विघटन के शिकार हो रहे हैं। महानगरों में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। वैवाहिक सम्बन्ध टूट रहे हैं इसलिए ऐसी स्थिति में वैवाहिक परामर्श की आवश्यकता को गम्भीरता से महसूस किया जा रहा है। आधुनिकीकरण और नगरीकरण की प्रक्रिया जितनी तीव्र हो रही है पारिवारिक विघटन भी उसी अनुपात में बढ़ रहा है। इस सामाजिक गतिशीलता में सम्बन्धों के मध्य समायोजन स्थापित करना कठिन हो रहा है। इस प्रकार की समस्याओं के समाधान हेतु वैवाहिक परामर्श प्रदान किया जाता है।
उपरोक्त वर्णित परामर्श के सभी प्रकार, परामर्श के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बद्ध हैं। स्वरूपगत आधार पर परामर्श के वस्तुतः दो ही प्रकार माने जाते हैं जो निम्नलिखित हैं-
(1) निदेशात्मक परामर्श (Directive Counselling) एवं
(2) अनिदेशात्मक परामर्श (Non-Directive Counselling) जो परामर्शदाता इन दोनों प्रकार के परामर्श से सहमत नहीं है उनके लिए परामर्श के एक अन्य प्रकार को विकसित किया जिसमें दोनों प्रकार के परामर्श की अच्छी बातों को ग्रहण किया गया है अर्थात् दोनों का मध्य मार्गीय प्रारूप है। वह परामर्श है- संग्रही या समाहारक परामर्श (Eclectic Counselling)|
परामर्श के उपरोक्त प्रकारों का वर्णन आगे किया जा रहा है।
- निदेशात्मक परामर्श का अर्थ, विशेषताएँ, उद्देश्य, मूलभूत अवधारणाएँ, लाभ, सीमाएँ
- अनिदेशात्मक परामर्श का अर्थ, विशेषताएँ, मूलभूत अवधारणाएँ, उद्देश्य, सोपान / चरण / पद, लाभ, सीमाएँ
- समाहारक परामर्श का अर्थ, विशेषताएँ, उद्देश्य, सोपान, शैक्षिक निहितार्थ, गुण/लाभ, कमियाँ/सीमाएँ
- निदेशात्मक परामर्श तथा अनिदेशात्मक परामर्श में अंतर
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