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ई-लर्निंग अर्थ एवं परिभाषाएँ, प्रकृति एवं विशेषताएँ, प्रारूप एवं शैलियाँ, लाभ, सीमाएँ

ई-लर्निंग अर्थ एवं परिभाषाएँ
ई-लर्निंग अर्थ एवं परिभाषाएँ

ई-लर्निंग अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of E-Learning)

ई-लर्निंग एक प्रकार का अधिगम है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों अथवा स्रोतों के द्वारा अधिगम प्रदान किया जाता है। ई-लर्निंग को इलेक्ट्रिॉनिक अधिगम, ऑन लाइन अधिगम एवं कम्प्यूटर प्रोत्साहित अधिगम भी कहा जाता है। इसका आरम्भ ब्रिटेन में हुआ था।

इसमें अधिगम को सुविधाजनक बनाने के लिए विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों, जैसे—माइक्रोफोन, दृश्य व श्रव्य टेप आदि का प्रयोग किया जाता है। ई-लर्निंग के अन्तर्गत वे सभी प्रकार के अधिगम आते हैं जिसमें सूचना एवं सम्प्रेषण की सहायता से अधिगम को आसान बनाया जाता है। अधिगम में सहायक सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के अन्तर्गत टेली कॉन्फ्रेसिंग, कम्प्यूटर कॉन्फ्रेंसिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-मेल, चैट, वेब, ऑनलाइन लाइब्रेरी, अनुरूपण, डी.वी.डी. एवं सी.डी. रोम आदि सम्मिलित हैं। अतः ई-लर्निंग, आधुनिक अधिगम तकनीकियों, जैसे- कम्प्यूटर, बहुमाध्यम नेटवर्किंग आदि की सहायता से युक्त इलेक्ट्रॉनिक अधिगम है। इसमें इण्टरनेट एवं वेब तकनीकी का प्रयोग अवश्य होता है।

दूसरे शब्दों में ई-लर्निंग एक नवाचारी सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का रूप है जिसमें कम्प्यूटर की इण्टरनेट सेवाओं एवं वेब तकनीकी का ऑनलाइन प्रयोग विशिष्ट एवं सामान्य छात्रों के शिक्षण अधिगम में करते हैं।

रोसनवर्ग कहते हैं कि “ई-अधिगम में इण्टरनेट प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इण्टरनेट तकनीकी द्वारा पाठ्यवस्तु का संचार किया जाता है जिससे ज्ञान में वृद्धि की जाती है और छात्रों की निष्पत्तियों में वृद्धि होती है।”

टॉम कैली व सिसको के अनुसार, “ई-अधिगम द्वारा अभिसूचना सम्प्रेषण की सहायता से शिक्षा तथा प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण की क्रियाएँ, छात्रों के अधिगम व प्रशिक्षण प्रक्रियाओं का उल्लेख नहीं किया जाता है। छात्रों की आवश्यकताओं के अनुकूल ज्ञान एवं कौशल उत्तम ढंग से प्रदान किया जाता है।”

वर्तमान समय में कई उच्च शिक्षा संस्थाओं में ऑन लाइन अधिगम की व्यवस्था की जा रही है। इस अधिगम की सुविधा व्यक्तिगत छात्रों को भी दी जाने लगी है। विभिन्न शोध अध्ययनों में यह पाया गया है कि सामान्यतः सभी छात्र ई-अधिगम प्रणाली से सन्तुष्ट हैं। परम्परागत अधिगम प्रणाली की अपेक्षा ई-लर्निंग अत्यन्त प्रभावशाली है। व्यक्तिगत संस्थानों में भी इस अधिगम प्रणाली का अधिकतम प्रयोग किया जाने लगा है, इसका कारण इस प्रणाली का मितव्ययी होना है।

ई-लर्निंग की प्रकृति एवं विशेषताएँ (Characteristics of E-Learning)

वर्तमान में ऑनलाइन शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार अधिक तीव्रता से हो रही है। ई-लर्निंग की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) ई-लर्निंग इण्टरनेट सेवाओं एवं वेब तकनीकी से युक्त ऑनलाइन अधिगम है।

(2) ई-लर्निंग कम्प्यूटर आधारित अधिगम एवं कम्प्यूटर सह अधिगम से अधिक व्यापक है।

(3) कम्प्यूटर आधारित अधिगम, जैसे- आभासी कक्षा, कृत्रिम बुद्धि, अधिगम आदि का प्रयोग शिक्षण अधिगम के लिए यदि इण्टरनेट के माध्यम से होता है तो इसे ई-अधिगम कहते हैं।

(4) इसमें इण्टरनेट आधारित सम्प्रेषण, जैसे- ई-मेल, वीडियो कान्फ्रेसिंग, चैट एवं वेब आधारित अनुदेशन अवश्य सम्मिलित होते हैं।

ई-लर्निंग के विभिन्न प्रारूप एवं शैलियाँ (Modes and Styles of E-Learning)

ई-लर्निंग को सुलभ करने के लिए निम्नलिखित प्रारूप उपयोग किए जा सकते हैं- 1) अवलम्ब अधिगम ( Support Learning) – इस प्रकार के ई-लर्निंग प्रारूप का उपयोग शिक्षक तथा छात्र दोनों अपने कार्यों को बेहतर बनाने के लिए करते हैं। इसके लिए वे इन्टरनेट, वेब टेक्नॉलाजी आदि का उपयोग करते हैं। ये प्रारूप शिक्षण अधिगम को सहारा देते हैं। इस प्रारूप में निम्नलिखित का उपयोग किया जाता है-

(i) वेब आधारित अधिगम (Web Based Learning)- यह प्रारूप वेब ब्राउजर या कार्पोरेट इन्टरनेट के माध्यम से सुलभ किया जाता है। इसमें अधिगमकर्ता अपनी सुविधा व समय के अनुसार अधिगम कर सकता है। अधिगमकर्ता को प्रशिक्षण केन्द्र तक जाने की आवश्यकता नहीं होती है। वेब ब्राउजर की वीडियो, ऑडियो, एनीमेशन तथा अन्य मीडिया तत्वों के साथ अनुरूपता इसे एक उपयोग अनुकूल माध्यम बनाती है।

(ii) कम्प्यूटर आधारित अधिगम (Computer Based Learning) – यह प्रारूप कम्प्यूटर के माध्यम से सुलभ किया जाता है। यह कक्षा में चल रही शिक्षण अधिगम गतिविधियों को सहारा देती है। इसमें प्रशिक्षक अधिगम की प्रगति को नियन्त्रित कर सकता है। प्रशिक्षक विभिन्न मल्टीमीडिया का उपयोग करके अधिगमकर्ता को व्यस्त कर सकता है।

(2) ब्लेंडेड अधिगम (Blended Learning) – इस प्रारूप में परम्परागत तथा सूचना सम्प्रेषण तकनीकी पर आधारित रूप का प्रयोग किया जाता है। इसमें गतिविधियों को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि पारम्परिक शिक्षण तथा अनुदेशन दोनों का लाभ उठाया जा सके। इस प्रारूप का उपयोग निम्नलिखित प्रकार करते है-

(i) वेबिनार (Webinar) – वेबिनार एक वर्कशॉप है जो कॉन्फ्रेन्सिंग साफ्टवेयर पर आधारित है। इस प्रारूप की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें एक बड़े समूह तथा अन्य प्रतिभागियों के साथ अन्तर्क्रिया, लेख तथा उपयोग साझा किया जा सकता है। सरल शब्दों में यह पारम्परिक कक्षा की नकल है, जहाँ प्रशिक्षक एवं शिक्षार्थी एक दूसरे से सम्पर्क अथवा सम्प्रेषण कर सकते हैं।

(ii) आभासी कक्षा (Virtual Classroom) – यह एक आनॅलाइन पोर्टल है जिसके माध्यम से शिक्षार्थियों को प्रशिक्षण में सम्मिलित किया जा सकता है। यह पारम्परिक कक्षा के समान है। यह विभिन्न तुल्यकालिक शैलियों जैसे- वेब, कॉन्फ्रेन्सिंग आदि का उपयोग करता है जिससे वैश्विक शिक्षार्थियों को प्रशिक्षण में भाग लेने, एक दूसरे के साथ संवाद करने और एक ही समय में अधिगम करने में सरलता व सुविधा हो सकें।

(3) पूर्ण ई-अधिगम (Complete E-Learning)- इस प्रारूप में पारम्परिक शिक्षण के स्थान पर अवास्तविक कक्षा-कक्ष का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार के अधिगम प्रारूप में अधिगम वातावरण का कोई अस्तित्व नहीं रहता है। विद्यार्थियों के समक्ष ई-लर्निंग कोर्स तथा अधिगम सामग्री होती है। जिसे वे स्वतन्त्र रूप से उपयोग करते है। इस प्रारूप का उपयोग निम्नलिखित प्रकार से करते है-

(i) कस्टम ई-लर्निंग (Custom E-Learning)- इस प्रारूप में सामग्री और व्यवसायिक आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम विकसित कर सकते हैं। छात्र जिस पाठ्यक्रम की अपेक्षा करते हैं यह उसी प्रकार का अधिगम प्रदान करता है। इस प्रारूप में किसी भी लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है, यह सीमित सिस्टम में सम्भव हो सकता है।

(ii) ऑफ-शेल्फ ई-लर्निंग ( Off-Shelf E-Learning) – इसमें वह प्रशिक्षण सामग्री सम्मिलित करते हैं जो उपयोगकर्ताओं द्वारा पहले से विकसित और तैयार की जाती है। यह प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करती है। इस माध्यम में कई भाषाओं में सामग्री प्रदान की जाती है।

अधिगम सामग्री का अनुदेशन जब किसी आधुनिक विकसित इलेक्ट्रॉनिक माध्यम या उपकरण जैसे- कम्प्यूटर, मल्टीमीडिया या मोबाइल के द्वारा अधिगम कराया जाए तो इसे ई-लर्निंग कहते हैं। ई-लर्निंग की निम्न शैलियाँ हैं-

(1) तुल्यकालिक (Synchronous) – तुल्यकालिक का अर्थ हैं, ‘एक ही समय में इस शैली में वेब के माध्यम से प्रतिभागियों सहित प्रशिक्षक की वास्तविक समय (Real time ) में परस्पर क्रिया होती है। उदाहरण के लिए वीसीआर या आभासी कक्षा में वास्तविक ऑनलाइन क्रियाएँ होती है। प्रतिभागियों को त्वरित मैसेजिंग, चैट, ऑडियो और वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग इत्यादि के माध्यम से एक दूसरे तथा प्रशिक्षकों के साथ अन्तर्क्रिया होती है।

(2) अतुल्यकालिक (Asynchronous) – अतुल्यकालिक का अर्थ है, ‘समान समय में नहीं।’ इस शैली में प्रतिभागी वास्तविक अन्तर्क्रिया के बिना वेब आधारित अधिगम के माध्यम से गतिविधि को पूरा करते हैं। वास्तव में यह वह सूचना या जानकारी है जो स्वयं सहायता पर आधारित है। इस शैली में अधिगमकर्ता को जब भी आवश्यकता होती है वह जानकारी प्राप्त कर सकता है। इस शैली में प्रतिभागी एक दूसरे से सन्देश बोर्ड, बुलेटिन बोर्ड तथा चर्चा मंच के माध्यम से अन्तर्क्रिया करते हैं। इसमें सीडी-रोम के कम्प्यूटर आधारित प्रशिक्षण मॉडयूल सम्मिलित हैं। यह शैली किसी भी समय कहीं भी सुलभ है। यह एक साथ कई शिक्षार्थियों के लिए उपलब्ध हो सकती है।

ई-लर्निंग के लाभ (Advantages of E-Learning)

ई-लर्निंग विशिष्ट एवं सामान्य छात्रों को अधिगम अनुभव प्रदान करने की एक नवाचारी तकनीक का नाम है। अतः ई-लर्निंग के लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) ई-लर्निंग के माध्यम से विशिष्ट एवं सामान्य छात्र विभिन्न प्रकार की अधिगम विधियाँ के द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं एवं विभिन्न संस्कृति, धर्म, प्रदेश एवं राष्ट्र के छात्रों के मध्य सहयोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

(2) इसमें विशिष्ट एवं सामान्य छात्र अपने मानसिक स्तर, रुचि, कौशल, स्थानीय आवश्यकताओं एवं संसाधनों के अनुसार अधिगम प्राप्त कर सकते हैं।

(3) ई-अधिगम के अन्तर्गत अधिगम सामग्री के प्रस्तुतीकरण के माध्यमों, जैसे- सी.डी., लैपटॉप, डी.वी.डी. आदि में लचीलापन होने के कारण भी यह बहुत प्रभावी है।

(4) अधिगमकर्त्ता, ई-लर्निंग के माध्यम से किसी भी समय एवं किसी भी स्थान पर सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है।

(5) वे अधिगमकर्त्ता जिनके पास परम्परागत कक्षा शिक्षण के लिए पर्याप्त समय एवं संसाधन नहीं हैं ई-लर्निंग के द्वारा अपनी सुविधानुसार अधिगम प्राप्त कर सकते हैं।

(6) ई-लर्निंग के अन्तर्गत अधिगम अनुभव अनुकरणीय एवं खेल विधि द्वारा प्रदान की जाती है जिससे विशिष्ट एवं सामान्य छात्रों को करके सीखने का अनुभव प्राप्त होता है।

(7) यह प्रशिक्षित एवं योग्य एवं कुशल शिक्षकों, विद्यालयों में पर्याप्त भौतिक संसाधनों की कमी से शिक्षा की कम गुणवत्ता की चुनौती का सामना करते हुए अधिगम के लिए प्रभावी माध्यम प्रदान करता है।

(8) इसमें विशिष्ट एवं सामान्य छात्रों के अधिगम का मूल्यांकन स्व-अनुदेशन माध्यमों के साथ-साथ शिक्षकों एवं साथी छात्रों के द्वारा भी होता है। इससे उन्हें उचित पृष्ठपोषण मिलता है एवं उपचारात्मक परीक्षण एवं निदानात्मक शिक्षण में सहायता मिलती है।

ई-लर्निंग की सीमाएँ (Limitations of E-Learning)

ई-लर्निंग की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-

(1) ई-लर्निंग से सम्बन्धित प्रशिक्षण शिक्षकों को उनके कार्य स्थल पर प्रदान नहीं किया जाता है जिसके कारण शिक्षक ई-लर्निंग के लिए छात्रों को प्रेरित नहीं कर पाते हैं।

(2) ई-लर्निंग के लिए विशिष्ट एवं सामान्य छात्रों को बहुसंचार माध्यमों, इण्टरनेट, वेब तकनीकी आदि का ज्ञान एवं कौशल होना चाहिए। इसके अभाव में ई-लर्निंग के लाभों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

(3) ई-लर्निंग से शिक्षा का मशीनीकरण होता है तथा विशिष्ट एवं सामान्य छात्रों का सामाजिक विकास नहीं होता है।

(4) सभी विद्यालय ई-लर्निंग प्रदान करने के लिए संसाधनों से युक्त नहीं है जिससे विशिष्ट एवं सामान्य छात्रों को ई-लर्निंग का लाभ नहीं मिल पाता है।

(5) ई-लर्निंग प्राप्त करने के लिए छात्रों के पास आवश्यक संसाधनों जैसे- कम्प्यूटर, लैपटॉप, बहुसंचार माध्यम की सुविधाएँ इण्टरनेट, वेब सेवाएँ आदि की उपलब्धता होनी चाहिए जो सम्भव नहीं है।

(6) ई-लर्निंग के सम्बन्ध में विशिष्ट एवं सामान्य छात्रों, शिक्षकों तथा अभिभावकों आदि में नकारात्मक भाव होते हैं।

(7) परम्परागत शिक्षण में शिक्षक – छात्र अन्तःक्रिया से मानवीय सम्बन्ध विकसित होता है जो ई-लर्निंग में नहीं प्राप्त होता है।

(8) ई-लर्निंग में विशिष्ट एवं सामान्य छात्रों को एकाकीपन अनुभव होता है जो ई-लर्निंग की एक कमी है।

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shubham yadav

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