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निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Guidance)
निर्देशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी सहायता से एक व्यक्ति अपनी अन्तर्निहित क्षमताओं, शक्तियों एवं योग्यताओं को पहचान कर निर्णय लेने में सक्षम बन सके, निष्कर्ष निकाल सके तथा अपने निर्धारित उद्देश्यों को पूरा कर सके। निर्देशन के द्वारा व्यक्ति अपनी क्षमता, योग्यता, मानसिक स्तर, व्यक्तित्व आदि के विषय में ज्ञान प्राप्त करता है। निर्देशन के द्वारा व्यक्ति समस्या का समाधान नहीं करता बल्कि वह इस योग्य बनता हैं कि समस्या का समाधान कर सके। निर्देशन के फलस्वरूप व्यक्ति अपनी क्षमताओं, योग्यताओं एवं कौशलों आदि की पहचान करता है और उनका समुचित उपयोग कर अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है तथा निर्धारित उद्देश्यों को सरलता एवं सफलतापूर्वक पूर्ण करता है। उदाहरण के तौर पर हम देखते हैं कि जब एक छोटा बच्चा घर से बाहर निकलता है तो उसके माता-पिता उसे अनेकों निर्देश देते हैं जैसे कि कैसे बात करनी है? क्या खाना है? क्या पीना है? कैसे सड़क पार करनी है? कैसे पार्क में खेलना है?, किसके साथ खेलना है? किसके साथ दोस्ती करनी चाहिए? बच्चा इन निर्देशों का कुछ हद तक अनुपालन करते हुए बहुत सारी बातें सीखता है तथा अपने आस-पास के वातावरण से सामंजस्य स्थापित करता है। जब यही बच्चा स्कूल जाता है तब स्कूल में उसे अनेकों निर्देश मिलते हैं यथा-कक्षा में कैसे बैठना है? कैसे व्यवहार करना है? अपने शिक्षकों का किस प्रकार आदर करना है? कैसे पढ़ाई करनी है? आदि। वह बालक इन निर्देशों का पालन करता है और विद्यालयी वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। इसी प्रकार जब वह बड़ा होता है तब जीवन के सभी पक्षों से सम्बन्धित अनेक निर्देशों का अनुपालन करते हुए वह परिवार, समाज, राष्ट्र में अपने अस्तित्व को स्थापित करता है एवं अपना जीवनयापन करता है।
निर्देशन के केन्द्र बिन्दु में व्यक्ति की समस्या नहीं अपितु व्यक्ति स्वयं होता है। निर्देशन प्रदाता व्यक्ति की समस्याओं से पहले व्यक्ति का अध्ययन करता है अर्थात् उसकी क्षमताओं, योग्यताओं, कौशलों आदि का अध्ययन करता है एवं उसका आंकलन कर व्यक्ति को इस योग्य बनाता है कि वह अपनी समस्याओं का समाधान कर सके। इस प्रकार निर्देशन का कार्य व्यक्ति की अन्तर्निहित शक्तियों का चतुर्दिश विकास करना है तथा अन्य अज्ञात शक्तियों का ज्ञान कराने में उसकी सहायता करना है। अतः निर्देशन का मुख्य उद्देश्य स्व-निर्देशन (Self-guidance) है।
शाब्दिक रूप में निर्देशन का अर्थ निर्देश देना है जो कि आदेश (Order) से भिन्न होता है। आदेश में अधिकार का बोध होता है एवं निर्देशन में सलाह का। इस प्रकार निर्देशन किसी मनुष्य को दी जाने वाली सलाह या सहायता है।
‘निर्देशन’ शब्द अंग्रेजी भाषा ‘Guidance’ का हिन्दी अनुवाद/रूपान्तरण है। Guidance का अर्थ है-किसी व्यक्ति को उसके लाभ या कल्याण के लिए आवश्यक सूचना प्रदान करना एवं उसका पालन कराना। इस प्रकार संक्षेप में कहा जा सकता है कि- “निर्देशन किसी व्यक्ति को उसके कल्याणार्थ सलाह/सूचना/सहायता प्रदान करने वाली वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी अन्तर्निहित शक्तियों, योग्यताओं, क्षमताओं एवं कौशलों की पहचान कर निर्णय लेने, समस्या हल करने, निष्कर्ष निकालने एवं अपने निर्धारित उद्देश्यों को पूरा करने के योग्य बनता है तथा जिसका मुख्य उद्देश्य स्वनिर्देशन है। निर्देशन में केन्द्र बिन्दु निर्देशन प्राप्त करने वाला स्वयं होता है ना कि उसकी समस्या।”
अपनी प्रारम्भिक अवस्था में निर्देशन मात्र व्यवसाय परक से सम्बन्धित था जिसका मूल उद्देश्य युवकों / बेरोजगारों के लिए नौकरियों / रोजगार के अवसरों की व्यवस्था करना था। कालान्तर में निर्देशन केवल व्यावसायिक क्षेत्रों तक सीमित न रहकर जीवन के सभी क्षेत्रों / पक्षों में इसकी आवश्यकता महसूस की जाने लगी एवं सभी क्षेत्रों/पक्षों में इसे समुचित स्थान भी मिला। इस प्रकार निर्देशन का क्षेत्र व्यापक हो गया।
इस प्रकार समय-समय पर अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग ढंग से निर्देशन को परिभाषित करने का प्रयास किया। कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गई निर्देशन की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
युनाइटेड स्टेट्स ऑफिस ऑफ एजुकेशन के अनुसार, “निर्देशन एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति का परिचय विभिन्न उपायों से, जिनमें विशेष प्रशिक्षण भी शामिल है एवं जिनके माध्यम से व्यक्ति को प्राकृतिक शक्तियों का बोध भी कराता है जिससे वह अपना व्यक्तिगत एवं समाज का अधिकतम हित कर सके।”
According to United States Office of Education, “The process of acquainting the individual with the various ways including special training in which he may discover his natural endowments, so that he makes a living to his own best advantages and that society.”
जोन्स के अनुसार, निर्देशन का अभिप्राय इंगित करना, सूचित करना और पथप्रदर्शन करना है। इसका अर्थ सहायता करने से अधिक है।”
According to Jones, “To guide means to indicate, to point out, and to show the way. It means more than to assist.”
जोन्स की यह परिभाषा संकुचित है क्योंकि निर्देशन का क्षेत्र कहीं अधिक व्यापक है।
निर्देशन को उस क्रिया के रूप में माना जा सकता है जिससे व्यक्ति को अपनी विशेषताएँ समझने, उपलब्ध अवसरों को पहचान सकने एवं सामाजिक हितों का ध्यान रखते हुए समाज में रहने के लिए सीखने में सहायता मिलती है। इसी बात को चाइसोम महोदय निम्न शब्दों में स्पष्ट करते हैं- रचनात्मक उपक्रम एवं जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान की व्यक्ति में अन्तर्दृष्टि / सूझ विकसित करना निर्देशन का उद्देश्य है ताकि वह जीवन भर अपनी समस्याओं का समाधान करने के योग्य बन सके।”
According to Chisom, “Guidance aims to develop in man insight into the solution of his problems of living as well as a creative initiative, whereby he will life be able to meet and solve his own problems adequately.”
गुड के शिक्षा शब्दकोश के अनुसार, “निर्देशन व्यक्ति के दृष्टिकोणों और उसके बाद के व्यवहार को प्रभावित करने के उद्देश्य से संस्थापित गतिशील अन्तर्वैयक्तिक / आपसी सम्बन्धों का एक प्रक्रम है।”
According to Good’s Dictionary of Education, “Guidance is a process of dynamic interpersonal relationships designed to influence the attitudes and subsequent behaviour of person.”
समस्याओं को हल करने में सक्षम बनता है एवं अपनी योग्यताओं एवं आकांक्षाओं के जे. एम. बेवर के अनुसार, ‘निर्देशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे एक व्यक्ति अपनी अनुरूप पथ का निर्धारण करता है।’ According to J. M. Brewer, “Guidance is a process through which an individual is able to solve his problem and pursue a path suited to his abilities and aspirations.”
एमरी स्टूप्स ने निर्देशन को परिभाषित करते हुए लिखा है, ‘व्यक्ति को स्वयं तथा समाज के उपयोग हेतु स्वयं की क्षमताओं के अधिकतम विकास करने के लिए दी जाने वाली सतत् सहायता ही निर्देशन है।”
According to Emery Stoops, “Guidance is process of helping the individual to develop to the maximum of his capacity in the direction most beneficial to himself and to society.”
जी. ई. स्मिथ महोदय ने निर्देशन (Guidance) शब्द पर आपत्ति उठाते हुए उसके स्थान पर निर्देशन सेवा (Guidance Services) शब्द को उचित बताया। उनके अनुसार “निर्देशन प्रक्रिया सेवाओं के उस समूह से सम्बद्ध है जो व्यक्तियों को विभिन्न क्षेत्रों में संतोषजनक समायोजन के लिए आवश्यक उपयुक्त चयन, योजना एवं प्रस्तुतीकरण के लिए अपेक्षित ज्ञान एवं कौशलों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती है।
According to G. E. Smith, “The guidance process consists a group of services to individual to assist him in securing the knowledges and skills needed in making adequate choices, plans and interpretation essential to satisfactory adjustment in a variety of areas.”
बरनार्ड एवं फुलमर ने निर्देशन को व्यापक सन्दर्भ में परिभाषित करते हुए कहा है। निर्देशन के अन्तर्गत ये सभी क्रियाएँ / क्रियाकलाप आ जाती हैं जो व्यक्ति की आत्मसिद्धि में सहायक होती हैं।”
According to Bernard and Fullmer, “Guidance is all those activities which promote individual self-realisation.”
अनेक विद्वानों ने निर्देशन को शैक्षिक सन्दर्भ में विशेष रूप से परिभाषित किया है। इस सन्दर्भ में आर. एच. मैथ्यूसन ने निर्देशन के व्यापक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, व्यावसायिक निर्देशन एक व्यवस्थित, सतत् चलने वाली व्यावसायिक प्रक्रिया है जो छात्र विशेष की विशिष्ट आवश्यकताओं, विद्यालय प्रगति सम्बन्धी समस्याओं के समाधान, उनके वैयक्तिक सामाजिक सम्बन्धों तथा शैक्षणिक व्यावसायिक रुझानों के विकास में सहायक होती है।”
According to R. H. Mathewson, “Professional guidance in an educational set- up that has been defined as a systematic, continuous, professional process of assisting individual pupils with particular needs and problems in the areas of school progress, personal-socio relations and educational vocational orientation.”
लेफेवर, टसेल एवं विजिल के अनुसार, निर्देशन एक शैक्षिक सेवा है जो विद्यालय में प्राप्त प्रशिक्षण का अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली उपयोग करने में विद्यार्थियों की सहायता प्रदान करने के लिए आयोजित की जाती है।”
According to Lefever, Tussel and Weitzil, “Guidance is an educational service designed to help students make more effective use of the school training programme.”
कैरोल एच. मिलर के अनुसार, “निर्देशन सेवाओं का सम्बन्ध विद्यालय के सम्पूर्ण कार्यक्रमों के अन्तर्गत आने वाले उन संगठित क्रियाकलापों/क्रियाओं से है जो विद्यार्थियों के वैयक्तिक विकास की आवश्यकताओं में सहयोग देने के उद्देश्य से आयोजित किए जाते हैं।
स्टीफेलरी, स्टीवार्ट एवं अन्य ने निर्देशन की विस्तृत व्याख्या करते हुए इसकी एक अतिव्यापक व्याख्या दी। उनके अनुसार, निर्देशन समस्या समाधान हेतु चयन एवं समायोजन के निर्धारण हेतु एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को दी गई सहायता है। निर्देशन का उद्देश्य प्राप्तकर्त्ता में अपनी स्वतंत्रता के अन्तर्गत विकसित होना तथा स्वयं के प्रति उत्तरदायी होने की अभियोग्यता का विकास करना है। यह एक ऐसी सेवा है जो सार्वभौमिक है एवं विद्यालय तथा परिवार तक ही सीमित नहीं है। यह जीवन के सभी पक्षों- घर व्यवसाय, उद्योग, सरकार/शासन, सामाजिक जीवन, अस्पताल, जेल आदि सभी में व्याप्त है, वास्तव में यह उन सभी स्थानों में मौजूद है जहाँ व्यक्ति हैं, जो सहायता चाहते हैं और जहाँ ऐसे व्यक्ति हैं जो सहायता कर सकते हैं।”
According to Steffer, Buford, Stewart, Normen R., “Guidance is the help given by one person to another in making choices and adjustments in solving problems. Guidance aims at aiding the recipients to grow in his independence and ability to be responsible for himself. It is a service that is universal not confined to the school or the family. It is found in all phases of life – in the home, in business and industry, in government, in social life, in the hospitals and in prisons, indeed it is present wherever there are people who need help and wherever there are people who can help.”
रूथ स्ट्रॉंग के अनुसार, “निर्देशन का उद्देश्य प्रत्येक बालक में विद्यमान सम्भावनाओं के रूप में अधिकतम विकास को बढ़ावा देना है।
According to Ruth Strong, “The purpose of guidance is to promote the maximum development of each child in terms of possibilities available to him.” स्किनर के अनुसार, निर्देशन वह प्रक्रिया है जो नवयुवकों को स्वयं के प्रति, अन्य / दूसरों के प्रति एवं परिस्थितियों के प्रति समायोजन सीखने में सहायता करती है।
According to Skinner, “Guidance is a process of helping young persons learning to adjust to self, to others and to circumstances.”
कोठारी आयोग ने निर्देशन को निम्न शब्दों में परिभाषित किया है, “निर्देशन छात्रों का परिस्थितियों के साथ एवं घरों में सर्वोत्तम सम्भव समायोजन करने के साथ ही उनके व्यक्तित्व के सभी पक्षों के विकास में सहायता देना है।”
According to Kothari Commission, “Guidance is a help of the students in making the best possible adjustment to the situations and in the home and at the same time facilitates the development of all aspects of the personality.”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि “निर्देशन एक सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक प्रक्रिया है जो व्यक्ति को उसके जीवन में आने वाली समस्याओं से निपटने में सक्षम बनाती है, दायित्वों एवं कर्त्तव्यों का बोध कराती है, समायोजन स्थापित करने में सहायता प्रदान करती है, जीवन पथ को सरल बनाती है, व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास करती है एवं उसकी शक्तियों एवं उसके अन्दर विद्यमान सम्भावनाओं/ अवसरों को पहचानने के योग्य बनाती है।
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