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निष्पादन का अर्थ (Meaning of Execution)
निष्पादन का अर्थ – निष्पादन का तात्पर्य उस पूरी प्रक्रिया से है जिससे न्यायालय द्वारा पारित डिक्री या आदेश का प्रवर्तन होता है; पर ऐसा प्रवर्तन न्यायालय की प्रक्रिया के माध्यम से होता है। दूसरे शब्दों में, “न्यायालय की प्रक्रिया द्वारा डिक्री और आदेश का प्रवर्तन ही निष्पादन है।
निष्पादन वह माध्यम है जिसका सहारा लेकर डिक्रीदार डिक्री की शर्तों का निर्णीत ऋणी से पालन कराता है या पूरा कराता है। यही वह प्रक्रिया है जो निर्णयों पर लागू होती है या उन्हें कार्यान्वित करती है।
उदाहरणस्वरूप न्यायालय ‘क’ के पक्ष में 10,000 रुपये की डिक्री पारित करता है और यह डिक्री ‘ख’ के विरुद्ध है। यहाँ ‘क’ डिक्रीदार हुआ और ‘ख’ निर्णीत ऋणी और 10,000 रुपये की धनराशि निर्णीत ऋण।
यहाँ अगर ‘ख’ 10,000 रुपये की धनराशि की अदायगी ‘क’ को नहीं करता है तो ‘क’ डिक्री के प्रवर्तन के लिए निष्पादन की कार्यवाही करेगा और 10,000 रुपये की वसूली करेगा। अतः वह पूरी प्रक्रिया (न्यायालय के माध्यम से) जिसका सहारा लेकर ‘क’ 10,000 रुपये की वसूली ‘ख’ से करेगा, निष्पादन कहलायेगा।
निष्पादन के प्रकार (Types of Execution)
निष्पादन की कार्यवाही सामान्यतया दो प्रकार से की जा सकती –
(1) निर्णीत ऋणी के विरुद्ध व्यक्तिगत कार्यवाही- तात्पर्य यह है कि निर्णीत ऋणी को बन्दी बनाया जायेगा और सिविल जेल में रखा जायगा। इस प्रकार निर्णीत ऋणी को जेल में डालकर उसके ऊपर दबाव डाला जायेगा कि वह डिक्री की शर्तों का पालन करे।
(2) निर्णीत ऋणी की सम्पत्ति के विरुद्ध कार्यवाही – इसका तात्पर्य निर्णीत-ऋणों की सम्पत्ति को कुर्क करके बेचा जायगा और जो विक्रय मूल्य प्राप्त होगा उससे डिक्री के पैसे (निर्णीत-ऋण) का भुगतान किया जायेगा।
निष्पादन की डिक्री
यहाँ निष्पादन की डिक्री से तात्पर्य उस डिक्री से है जिसका निष्पादन किया जायेगा। यहाँ पर यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि कौन-सी डिक्री का निष्पादन किया जा सकता है? अगर डिक्री के विरुद्ध अपील की गई तो अपील में पारित अंतिम न्यायालय की डिक्री अगर डिक्री के विरुद्ध अपील नहीं की गई तो प्रथम अधिकारिता वाले न्यायालय की डिक्री का निष्पादन किया जायेगा।
निष्पादन कौन करा सकता है (Who can make Execution)
डिक्री का निष्पादन कराने के लिए आवेदन डिक्रीदार दे सकता है। परन्तु जहाँ डिक्रीदार द्वारा डिक्री का अन्तरण कर दिया गया है, वहाँ डिक्री के निष्पादन के लिये डिक्री का अन्तरिती आवेदन दे सकता है। अगर डिक्री एक से अधिक लोगों के पक्ष में संयुक्त रूप से पारित की गई है तो उनमें से कोई एक व्यक्ति डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन कर सकता है।
जहाँ डिक्रीदार की मृत्यु हो गई है वहाँ डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन उसका विधिक प्रतिनिधि दे सकता है।
किसके विरुद्ध निष्पादन के लिए आवेदन दिया जा सकता है- अगर निर्णीत ऋणी जीवित है तो निष्पादन का आवेदन उसके विरुद्ध दिया जायेगा और अगर उसकी मृत्यु हो गई है तो निष्पादन का आवेदन उसके विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध दिया जायेगा। पर यह ध्यान रहे जव डिक्री का निष्पादन मृतक निर्णीत ऋणी के विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध किया जायेगा तो उसके विरुद्ध कोई व्यक्तिगत कार्यवाही नहीं की जा सकेगी।
दूसरे शब्दों में विधिक प्रतिनिधि के सम्पत्ति के विरुद्ध ही कार्यवाही की जा सकती है। इस सम्बन्ध में उपबन्ध धारा 50 में दिये गये हैं। इस धारा के अनुसार जहाँ डिक्री ऐसे विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध निष्पादित की जाती है वहाँ वह मृतक के की सम्पत्ति के उस परिणाम तक ही दायी होगा जितने परिणाम तक वह सम्पत्ति उसके हाथ में आयी है और सम्यक रूप से व्ययनित नहीं कर दी गई है।
निष्पादन की सूचना
सामान्यतया कोई प्रावधान नहीं है कि उस पक्षकार को, जिसके विरुद्ध निष्पादन का आवेदन दिया गया है, कोई सूचना दी जाय। परन्तु निम्नलिखित परिस्थितियों में सूचना देना आवश्यक होगा |
(1) जहाँ निष्पादन का प्रार्थना पत्र डिक्री की तारीख से दो वर्ष के बाद दिया गया है। या निष्पादन के पूर्वतन आवेदन पर किये गये अन्तिम आदेश की तारीख से दो वर्ष के पश्चात् किया गया है।
(2) जहाँ निष्पादन का आवेदन मृतक निर्णीत-ऋणी के विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध दिया गया है।
(3) जहाँ यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) या किसी अन्य व्यतिकारी राज्य क्षेत्र के न्यायालय द्वारा पारित डिक्री के सम्बन्ध में निष्पादन के लिये आवेदन दिया गया है।
(4) जहाँ डिक्री धन के भुगतान के लिए और निष्पादन निर्णीत ऋणी के विरुद्ध व्यक्तिगत कार्यवाही से सम्बन्धित है वहाँ अगर आदेश 21 नियम 37 का परन्तुक लागू नहीं होता है, तो
(5) जहाँ डिक्रीदार का हित अन्तरित कर दिया गया है।
निष्पादन के स्थगन (postponement of execution)
निष्पादन का स्थगन – किसी डिक्री या आदेश के विरुद्ध अपील किये जाने का तात्पर्य यह नहीं है कि उसके अधीन की जाने वाली कार्यवाही अपने आप रुक जायेगी। परन्तु न्यायालय को इस नियम के अधीन यह अधिकार होगा कि वह निष्पादन की कार्यवाही को पर्याप्त कारण होने पर स्थगित कर सकेगा।
ऐसा अपील न्यायालय कर सकता है और वह न्यायालय भी कर सकता है जिसने डिक्री पारित किया है। परन्तु न्यायालय निष्पादन की कार्यवाही को तब तक नहीं स्थगित करेगा जब तक उसे यह समाधान न हो जाय कि ऐसा आदेश न पारित करने का परिणाम होगा आवेदनकर्ता को सारवान् क्षति। जहाँ आवेदनकर्ता को सारवान् क्षति होने की पूरी सम्भावना है, वहाँ न्यायालय निष्पादन की कार्यवाही रोक सकेगा परन्तु शर्त यह है कि –
(1) ऐसा आवेदन बहुत विलम्ब से न दिया गया हो, और
(2) आवेदनकर्ता ने डिक्री या आदेश के सम्यक् रूप से पालन के लिए, प्रतिभूति दे दी है।
जहाँ निष्पादन की कार्यवाही को स्थगित करने के लिए आवेदन किया गया है, वहाँ न्यायालय आवेदन की सुनवाई लम्बित रहने तक निष्पादन के रोके जाने के लिए एकपक्षीय आदेश पारित कर सकेगा। परन्तु स्थगन का अन्तिम आदेश पारित करने के लिए पहले न्यायालय डिक्रीदार को सूचना देगा।
इस नियम के अधीन न्यायालय को निष्पादन का स्थगन करने का अधिकार है भले की मामले में निष्पादन का आदेश पारित किया गया है या नहीं।
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