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अनुरूपण का अर्थ (Meaning of Simulation)
अनुरूपण का शाब्दिक अर्थ है वास्तविकता की तरह प्रतीत होना अथवा यथार्थ जैसी स्थिति बनाना। अनुरूपित शब्द का प्रयोग प्राचीन काल से ही किसी न किसी रूप में होता चला आ रहा है। प्राचीन समय में गुरुकुलों में शिक्षा प्रदान की जाती थी तब अध्यापक कक्षा से किसी एक छात्र को कुछ समय के लिए अध्यापक के रूप में कक्षा का नियंत्रण करने को देते थे। यह कार्य उस छात्र को दिया जाता था जो कक्षा का मॉनीटर नियुक्त होता था। इस प्रविधि का विकास कोलम्बिया विश्वविद्यालय के क्रुक शैन्क ने किया था। इस प्रविधि को अनुकरणीय सामाजिक कौशल प्रशिक्षण (Simulated Social Skill Training) भी कहा जाता है। अनुरूपण शिक्षण को एक भूमिका निर्वाह करने के उस रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें शिक्षण की प्रक्रिया को कृत्रिम रूप से कार्यान्वित किया जाता है। किसी भी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रशिक्षु को उस प्रशिक्षण के कौशलों में निपुण बनाना है। शिक्षक प्रशिक्षण में छात्राध्यापक को इस प्रकार तैयार करना है कि वह कक्षा-कक्ष में उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों का भली-भाँति ढंग से सामना कर सके।
अनुरूपण की परिभाषाएँ (Definitions of Simulation)
स्टोन के अनुसार, “अनुरूपण प्रविधि कृत्रिम अवस्था में विद्यार्थियों को एक ही कमरे में सीखने, स्वयं शिक्षण का अभ्यास करने और उन्हें कक्षा शिक्षण में व्याख्यान देने के लिए एकत्र करती है। अनरूपित शिक्षण बनावटी परिस्थितियों में शिक्षक द्वारा शिक्षक के लिए प्रशिक्षण है, शिक्षकों के पहले सोपानों को आसान बनाकर उन्हें वास्तविक परिस्थितियों पर बल दिए बिना ही जटिल कौशलों को सीखने के योग्य बनाता है। विद्यार्थी को यह बताना उचित समझा जाता है कि कक्षा का शिक्षण या नियंत्रण कैसे किया जाए ठीक उसी तरह जैसे एक विमान चालक को नकली नियंत्रण का अभ्यास कराया जाता है न कि जब वह हवा में उड़ रहा होता है तब उसे बताया जाए कि उसे कैसे, क्या करना चाहिए।”
इस प्रविधि में छात्राध्यापक शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही कार्य करते हैं कक्षा में एक छात्राध्यापक शिक्षक की भूमिका का निर्वाह करता है तथा अन्य साथी विद्यार्थी की भूमिका का निर्वहन करते हैं। इसमें भी सूक्ष्म प्रविधि की भाँति छोटे-छोटे प्रकरण का अभ्यास कराया जाता है। इसमें सामान्यतः पाँच या छः छात्रों का समूह होता है। छोटा समूह होने से शिक्षण कौशल का बार-बार अभ्यास करने का अवसर मिल जाता है। यही क्रम चलता रहता है फिर वह छात्राध्यापक जो शिक्षक की भूमिका में रहता है, विद्यार्थी की भूमिका निर्वहन के लिए बैठ जाता है फिर कोई अन्य छात्राध्यापक शिक्षक की भूमिका में कक्षा को पढ़ाता है। शिक्षण अवधि 10 से 15 मिनट होती है। 10-15 मिनट के शिक्षण के बाद वाद-विवाद छात्रों के लिए पृष्ठपोषण का कार्य करता है। पर्यवेक्षक छात्राध्यापक के व्यवहार का पर्यवेक्षण भी करते हैं जिनका मूल्यांकन करके छात्राध्यापक को पृष्ठपोषण दिया जाता है समूह के सभी छात्रों को किसी एक शिक्षण व्यवहार का अभ्यास करने का थोड़े समय के लिए अवसर मिलता है जिसे सामाजिक कौशल कहा जाता है। इसी प्रकार समूह का प्रत्येक सदस्य अपने व्यवहार में नियंत्रण व सुधार लाने का प्रयास करता है।
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