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अभिप्रेरणा की विधियाँ | Methods of Motivating in Hindi

अभिप्रेरणा की विधियाँ | Methods of Motivating in Hindi
अभिप्रेरणा की विधियाँ | Methods of Motivating in Hindi

अभिप्रेरणा की विधियाँ (Methods of Motivating)

अभिप्रेरणा की विधियाँ- अभिप्रेरणा के माध्यम से सीखने की इच्छा को बलवती बनाया जा सकता है। इसके प्रयोग से छात्रों में एक ऐसी आन्तरिक शक्ति उत्पन्न हो जाती है कि वे स्वत: ही सीखने के लिए अभिप्रेरित होने लगते हैं तथा रुचि, ध्यान एवं उत्साहपूर्वक सम्बन्धित पाठ्यवस्तु को ग्रहण कर लेते हैं। अतः शिक्षा में अभिप्रेरणा के इस महत्त्व को स्वीकार करते हुए, अभिप्रेरणा की प्रविधियों के व्यापक प्रयोग कर ध्यान दिया जाना चाहिये। बालकों को अभिप्रेरित करने के लिये निम्नलिखित प्रविधियों का प्रयोग पर जा सकता है-

1. अवधान एवं रुचि-

यह अभिप्रेरणा प्रदान करने की एक प्रमुख प्रविधि है। बालकों को अभिप्रेरित करने के लिये यह नितान्त आवश्यक है कि सीखने की दिशा में उनके ध्यान को केन्द्रित करके उसमें रुचि पैदा की जाये। यह कार्य छात्रों की मनोवृत्तियों में परिवर्तन करके किया जा सकता है। इसी प्रकार सीखने के अन्तर आने वाली विभिन्न समस्याओं का निराकरण करके, छात्रों के ध्यान को पाठ्य-वस्तु में केन्द्रित करने में सहायता की जा सकती है, इसीलिये मनोवैज्ञानिक ने रुचि को छात्रों के ध्यान को आकर्षित करने का प्रमुख उपाय बताया है।

2. कक्षा का वातावरण-

अभिप्रेरणा प्रदान करने की एक अन्य प्रविधि है-कक्षा का वातावरण जीवन्त एवं रुचिकर बनाना। इस प्रकार का वातावरण सहायक-सामग्री को प्रयुक्त कर तथा नयी शिक्षा पद्धतियों द्वारा बनाया जा सकता है।

फ्रैंडसन के अनुसार, “एक उत्तम अध्यापक प्रभावी अभिप्रेरणा हेतु, शिक्षण सामग्री से मुक्त, अर्थमुक्त तथा सतत् रूप से परिवर्तनशील कक्षा-कक्ष के वातावरण पर निर्भर रहता है।”

3. नवीनता-

कक्षा के वातावरण को रसपूर्ण, रुचिकर तथा जिज्ञासामुक्त बनाने से छात्र उत्साहित दिखाई देते हैं। छात्रों को सतत् रूप से तत्पर एवं उत्साहित बनाये रखने के लिए जरूरी है कि शिक्षक विभिन्न शिक्षण पद्धतियों तथा विषय-वस्तु के प्रस्तुतीकरण को परिवर्तित करके नवीन वातावरण बनाये रखे। इससे छात्रों की उत्सुकता में वृद्धि होगी।

4. अधिगम की इच्छा एवं आकांक्षा-

अधिगम हेतु सीखने की इच्छा एवं आकांक्षा के स्तर का अत्यन्त महत्त्व होता है। सीखने की इच्छा एवं आकांक्षा के स्तर के अभाव में शिक्षार्थी सही दिशा की ओर नहीं बढ़ सकता। शिक्षक द्वारा किये गये समस्त शैक्षणिक प्रयास इसके अभाव में विफल हो जाते हैं। इसलिए ये जरूरी है कि शिक्षार्थियों की मनोवृत्तियों में परिवर्तन करके, उन्हें उच्च स्तरीय अधिगम हेतु भी अभिप्रेरित किया जाये।

5. पुरस्कार एवं प्रशंसा-

बालकों को सिखाने की दिशा में तत्पर करने के लिए पुरस्कार एवं प्रशंसा का विशेष महत्त्व है। प्रगति की दिशा में बढ़ते हुए शिक्षार्थियों को यदि पुरस्कार एवं प्रशंसा प्राप्त होती है तो इससे उन्हें प्रोत्साहन प्राप्त होता है और उनका मनोबल बढ़ता है। छात्र को यदि वांछित व्यवहार की दिशा में पुरस्कार एवं प्रशंसा मिल जाती है तो वह वांछनीय कार्य को बारम्बार करता है तथा इससे उसमें उस कार्य के प्रति अधिक रुचि विकसित होती है।

6. दण्ड-

बालकों द्वारा सही व्यवहार करने के लिए दण्ड एक महत्त्वपूर्ण प्रविधि मानी जाती है। दण्ड के द्वारा छात्रों को भय दिया जाता है तथा अनुकूल व्यवहार करने के लिए अभिप्रेरित किया जाता है। पीड़ा से बचने हेतु छात्र शीघ्र ही अपने व्यवहार को परिवर्तन करने हेतु प्रयास करने लगता

7. प्रतियोगिता एवं सहयोग-

छात्रों को अभिप्रेरित करने के लिये यह आवश्यक है कि उनमें स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना विकसित की जाये। व्यक्ति अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु सामाजिक सम्मान व आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु समाज से प्रतियोगिता करता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति में संघर्ष एवं उत्साह की भावना का विकास होता है। प्रतियोगिता के समान सहयोग लेने व देने की भावना व्यक्ति को सामाजिक तनावों एवं बाधाओं से मुक्त करती है।

8. सफलता का व्यवहार-

जब बालक किसी कार्य में सफलता प्राप्त कर लेता है तो उसे सन्तोष की अनुभूति होती है तथा उसमें उत्साह का संचार होता है तथा मनोबल में वृद्धि होती है। इसके विपरीत यदि बालक अनेक बार किसी कार्य में असफल हो जाता है तो हतोत्साहित हो जाता है। अत: शिक्षक को ऐसा प्रयत्न करना चाहिए जिससे कि छात्र अपने कार्य में सफल हो।

9. प्रगति से अवगत कराना-

शिक्षार्थी को उसकी प्रगति से अवगत कराकर, उसे अधिगम की दिशा में प्रेरित किया जा सकता है। इससे बालक उत्साहपूर्वक अधिगम दिशा में अग्रसरित होने लगते हैं।

10. आवश्यकता का ज्ञान-

अभिप्रेरणा प्रदान करने की एक अन्य प्रविधि है-शिक्षार्थियों को कार्य की आवश्यकता का ज्ञान कराना। इसमें अध्यापक को किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले छात्रों को यह बता देना चाहिये कि वह कार्य उनकी किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकेगा, क्योंकि उनकी आवश्यकतायें उन्हीं के अधिगम में उद्दीपन के रूप में कार्य करती है।

इनके अतिरिक्त, खेल विधि, सामूहिक कार्य, सामाजिक कार्यों में भाग लेना इत्यादि भी प्रविधियाँ हैं, जिनका प्रयोग बालकों को अभिप्रेरित करेन के लिये किया जा सकता है।

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shubham yadav

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