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मोहन राकेश का जीवन परिचय
मोहन राकेश का जीवन परिचय (Mohan Rakesh ka Jivan Parichay)- लेखक की जन्मजात प्रतिभा के विस्फोट ने कई व्यक्तियों को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान किया है। मोहन राकेश को भी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है, लेकिन दुर्भाग्य से मोहन राकेश की वैसी ‘ब्रांडिंग’ नहीं हो पाई थी, जैसी की आजकल के दौर में देखने को प्राप्त होती है। मोहन राकेश बहुआयामी लेखकीय प्रतिभा से संपन्न थे। अंतर्मुखी स्वभाव के मोहन राकेश का जीवन महज 47 वर्ष का ही रहा, लेकिन इनका सृजन इन्हें साहित्य के माध्यम से सदैव जीवित रखेगा।
मोहन राकेश की जीवनी (Mohan Rakesh Biography In Hindi)
नाम | मोहन राकेश |
बचपन का नाम | मदनमोहन गुगलानी |
जन्म तिथि | 8 जनवरी, 1925 |
जन्म स्थान | अमृतसर, पंजाब (भारत) |
मृत्यु तिथि | 3 दिसंबर, 1971 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली (भारत) |
आयु (मृत्यु के समय) | 47 वर्ष |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
व्यवसाय | साहित्यकार |
भाषा | हिन्दी एवं अंग्रेज़ी |
शिक्षा | एम.ए. |
पिता का नाम | श्री करमचन्द गुगलानी |
हिंदी के विख्यात नाटककार, कथाकार एवं निबंध लेखक मोहन राकेश का जन्म 8 फरवरी, 1925 को अमृतसर पंजाब में हुआ था। इनके पिता वकालत करते थे और साथ ही साहित्य एवं संगीत में भी रुचि रखते थे। पिता के साहित्यिक रुझान का असर मोहन राकेश पर भी पड़ा। इन्होंने पहले लाहौर के ओरियंटल महाविद्यालय से शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की, फिर हिंदी और संस्कृत विषयों में स्नात्तकोत्तर परीक्षा भी उत्तीर्ण की। उसके पश्चात् कई वर्षों तक दिल्ली, जालंधर, शिमला और मुंबई में शिक्षणकार्य किया, लेकिन साहित्यिक अभिरुचि के चलते शिक्षण कार्य में हृदय नहीं लगा और एक वर्ष तक इन्होंने ‘सारिका’ पत्रिका का संपादन भी किया। इस कार्य को भी निज लेखन में बाधक मानकर त्याग दिया और जीवन के अंतिम समय तक स्वतंत्रत लेखन ही इनकी आजीविका का माध्यम रहा। इनके जीवन का यह पक्ष निश्चय ही विचारणीय है। यह सर्वविदित है कि भारतीय लेखक को लेखन के द्वारा इतना पारिश्रमिक प्राप्त नहीं होता है कि वह बेहतर जिंदगी गुजार सके, लेकिन मोहन राकेश के भीतर का लेखक ही इन्हें उत्साहित किए हुए था, अन्यथा ये शिक्षणकार्य को सदैव जारी रखते। कदाचित इनकी नियति ही इनसे ऐसा करवा रही थी, ताकि सीमित जिंदगी में ये अधिकाधिक सृजन कर सकें। मोहन राकेश ने नाटक, उपन्यास, कहानी, यात्रावृतांत और निबंध इत्यादि विधाओं में श्रेष्ठ साहित्य की रचना की। इनकी मुख्य उपन्यास रचनाएं ‘अंतराल’, ‘अंधेरे बंद कमरे’, ‘न आने वाला कल’ रही है। जबकि ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘लहरों के राजहंस’, ‘आधे-अधूरे’ इनके नाटक रहे हैं । नृत्य नाटिका ‘आषाढ़ का एक दिन’ पर इन्हें अकादमी का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था । कहानी संग्रह में ‘क्वार्टर’, ‘पहचान’ व ‘वारिस’ रहे हैं। निबंध-संग्रह-‘परिवेश’, ‘बकलम, खुद’, ‘आखिरी चट्टान तक’ रहे हैं और ‘डायरी’ इनका यात्रा वृतांत है, इसके अलावा इन्होंने कुछ संस्कृत नाटकों और विदेशी उपन्यासों के अनुवाद का कार्य भी बेहद खूबी के साथ किया।
मोहन राकेश प्रथमतः कहानी विधा के माध्यम से हिंदी में आए। इनकी ‘मिसपाल’, ‘आद्रा’, ‘ग्लासटैंक’, ‘जानवर और जानवरी’ और ‘मलबे का मालिक’ इत्यादि कहानियों ने हिंदी कहानी का परिदृश्य ही परिवर्तित कर दिया। नई कहानी आंदोलन के शीर्ष कथाकार के रूप में ये सामने आए। वहीं करिश्मा ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक के प्रकाशन के पश्चात् हिंदी नाटक और रंगमंच पर भी राकेश ने किया। इन्हें हिंदी में नए रंग नाटकों का पुरोधा भी कहा जाता है। मोहन राकेश को नाटक की भाषा विषय पर कार्य करने के लिए नेहरू फेलोशिप भी प्राप्त हुई, लेकिन 1972 में आकस्मिक मृत्यु के कारण साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति हुई । ये कुछ वर्ष और जीवित रहते तो हमें इनका और भी श्रेष्ठ कार्य प्राप्त होता।
FAQ : मोहन राकेश के प्रश्न उत्तर
प्रश्न — मोहन राकेश कौन थे?
प्रश्न — मोहन राकेश का पूरा नाम क्या है?
प्रश्न — मोहन राकेश का जन्म कब हुआ था?
प्रश्न — मोहन राकेश का जन्म कहां हुआ था?
प्रश्न — मोहन राकेश के पिता का नाम?
प्रश्न — मोहन राकेश का प्रथम नाटक?
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