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मार्गेन्थाऊ के यथार्थवादी विचार
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ‘राजनीतिक यथार्थवाद’ के मुख्य समर्थक हंस जे. मार्गेन्थो रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के एक यथार्थवादी प्रतिमान का निर्माण करने का श्रेय उन्हीं को प्राप्त है। यह प्रतिमान अथवा सिद्धांत राष्ट्रों के मध्य शक्ति के लिए संघर्ष के सभी पहलुओं का वर्णन करता है। 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में लोग राजनीतिक यथार्थवाद से परिचित थे परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में व्यवस्थित तथा विस्तृत सिद्धान्त के रूप में इसकी उत्पत्ति तथा लोकप्रियता 1945 के बाद के समय में हुई। इस सब का श्रेय मार्गेन्थो को जाता है। ‘राजनीतिक यथार्थवाद’ पर उनके भाषण तथा उनकी कृति ‘Politics among Nationas’ के प्रकाशन ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के अध्ययन को काफी प्रभावित किया। एक समय ऐसा भी आया जब बहुत से राजनीति विज्ञानी, जैसे कैन्नथ वी. थॉम्प्सन यह महसूस करने लगे कि, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का बहुत सा साहित्य मार्गेन्थो तथा उसके आलोचकों के मध्य स्पष्ट तथा अस्पष्ट संवाद मात्र ही है।” बहुत से राजनीतिक विज्ञानियों जैसे, गाजी ऐ. आर. अल्गोसैवी के लिए, “यथार्थवाद तथा मार्गेन्योवाद पर्यायवाची है।”
1. मार्गेन्थो के राजनीति के प्रति विचार- मार्गेन्थो अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का आदर्शवादी विचारधारा का ‘शान्ति की ओर संचालन’ के रूप में खंडन करता है तथा इसका वर्णन ‘राष्ट्रों के मध्य संघर्ष’ के रूप में करता है। वह कहता है “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अन्य सभी राजनीतियों की तरह शक्ति के लिए संघर्ष है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अन्तिम उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, इसका तात्कालिक उद्देश्य शक्ति प्राप्त करना होता है। “
प्रत्येक राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को शक्ति द्वारा प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता है। इससे राष्ट्रों मध्य शक्ति लिए संघर्ष जन्म होता तथा यही अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र बिन्दु, अच्छी वास्तविकता तथा पूर्ण ताना-बाना है। इस अर्थ से तो हम यह कह सकते हैं। कि मार्गेन्थो अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति के दृष्टिकोण को अपनाते हैं तथा अपना सारा अध्ययन राष्ट्रीय शक्ति के मूल्यांकन पर लगाते हैं।
2. मार्गेन्थो के सिद्धांत को यथार्थवादी सिद्धान्त क्यों कहा जाता है— मार्गेन्थो के सिद्धांत को इसलिए यथार्थवाद कहा जाता है क्योंकि यह मानव के स्वभाव, जो यह वास्तव में है, तथा वास्तव में घटी ऐतिहासिक प्रक्रियाओं से सम्बन्धित है। एक राष्ट्र हमेशा अपने हितों को बनाए तथा सुरक्षित रखना चाहता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय शक्ति एक साधन है। इस तरह प्रत्येक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के साथ शक्ति संघर्ष में लिप्त रहता है। मार्गेन्थो लिखते हैं कि शक्ति संघर्ष राष्ट्रों के मध्य सम्बन्धों की स्वाभाविक तथा अपरिवर्तनीय वास्तविकता है तथा इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को समझाने के लिए बहुत आवश्यक है। यह अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का वास्तविक तथा सच्चा स्वरूप है तथा इसलिए मार्गेन्थो जैसे इसके समर्थक अपने आपको यथार्थवादी कहते हैं।
3. मार्गेन्थो के यथार्थवादी सिद्धान्त का दार्शनिक आधार- मार्गेन्थो का यथार्थवाद एक पुरातन परम्परा से सम्बन्ध रखता है तथा इस बात में विश्वास रखता है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की पूर्ण वास्तविकता तथा इससे सम्बद्ध घटना चक्र का वर्णन करने के योग्य एक अकेला पूर्ण सिद्धांत हो सकता है। वे दो मापदण्ड हमारे सामने रखते हैं जिस पर हर सिद्धान्त को पूर्ण सर्वमान्य सिद्धान्त स्वीकार होने से पहले पूरा उतरना होता है। यह है : आनुभविक तथा तर्कसंगत होना । मार्गेन्थो के शब्दों में, “सिद्धान्त का अर्थ है तथ्यों का पता लगाना तथा फिर तर्क द्वारा उन्हें अर्थ देना।” (Theory consists of ascertaining facts and giving them meaning through reason”– Morgenthan) इसका उद्देश्य विषय के अध्ययन में एक क्रम-बद्धता पैदा करना है। वास्तविक तथ्यों द्वारा परीक्षित एक तर्कसंगत परिकल्पना ही ठीक सिद्धान्त का रूप ले सकती है।