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मूल्य क्या है? प्रकृति, विकास, मूल्य और विद्यालय, सिखाने योग्य मूल्य

मूल्य क्या है
मूल्य क्या है

मूल्य क्या है?

मूल्य क्या है (Value)- समाज, संस्कृति तथा मूल्य प्रणाली को संरक्षित तथा स्थानान्तरित करने के लिए विद्यालयों की स्थापना करता है अर्थात् विद्यालय की भूमिका समाज के द्वारा स्थापित मानकों के अनुसार मानव संसाधनों को विकसित करने में होती है। उदाहरणार्थ, विद्यार्थी समाज के विभिन्न मूल्यों के बारे में विद्यार्थियों के अवबोध भिन्न-भिन्न होती हैं।

मूल्यों की प्रकृति और विकास

मूल्य किसी व्यक्ति के जीवन में महत्त्वपूर्ण समझे जाने वाले समस्त लक्ष्य समूह के प्रति रुझान हैं। मूल्य जीवन में प्राप्त किए जाने वाले विशिष्ट उद्देश्यों से जुड़े होते हैं प्रत्येक व्यक्ति के कुछ स्थायी निर्धारक मूल्य होते हैं। प्रायः मूलभूत मूल्य बाल्यकाल में सीख जाते हैं। ये मूल्य जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित करते हैं तथा इनमें ऐसी अभिवृत्तियाँ जैसे- सफलता, प्रतियोगिता, समस्या समाधान, आत्माभिव्यक्ति आदि के प्रति दृष्टिकोण सम्मिलित होते हैं। इन मूल्यों में सत्य, समयबद्धता सदाचार, सहयोग जैसे सदगुण सम्मिलित हो सकते हैं। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि सामाजिक संस्थाओं में किस प्रकार के व्यवहारों को प्रबलन मिला है।

मूल्यों का विकास

कुछ मूल्यों की व्युत्पत्ति विकास की प्रक्रिया के द्वारा होती है और जीवन में घटित विशिष्ट घटना अथवा तत्त्वों के आधार पर मालूम नहीं की जा सकती।

सन्तुष्टिकारक और क्लेशात्मक अनुभूतियाँ दूसरे के कार्यों के प्रभावों के विषय में सीखना, मानव जीवन का ज्ञान, जीवनधारी और निर्जीव परिवेश तथा दूसरे व्यक्तियों द्वारा लाभदायक समझे जाने वाली संकल्पनाओं का स्वीकरण सभी मूल्यों के विकास में योगदान देते हैं। व्यक्तियों और व्यक्तियों के मध्य सम्बन्धों का ज्ञान तथा उनका परिवेश तर्कण प्रक्रिया के लिए सामग्री का कार्य करते हैं और हम सब जानते हैं कि तर्कणा का मूल्य निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। तर्क के आधार पर बच्चा किसी कार्य विशेष या व्यवहार विशेष के विषय में कुछ निष्कर्ष निकालता है तथा अनुमान लगाता है। स्व-निरीक्षण द्वारा उन चीजों का आन्तरीकरण हो जाता है जो बच्चे को प्रिय हैं और जिनके साथ वह अपना तादत्मीकरण स्थापित करता। इस तादात्मीकरण के द्वारा बच्चा उस प्रतिष्ठता को प्राप्त करने की चेष्टता करता है जो उसके आदर्श व्यक्ति का है। जो प्रेरक इन मूल्यों का विकास करते हैं वे स्नेहयुक्त व मैत्रीपूर्ण व्यवहार हैं। जिन नियमों आदि को व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवन का अंग बनाना चाहते हैं उनका आन्तरीकरण हो जाता है।

मूल्य और विद्यालय

जब भी शिक्षक पढ़ता है या विद्यार्थियों के सम्पर्क में आता है तो प्रत्येक बच्चे पर या बच्चों के समूहों पर एक विशेष प्रभाव पड़ता है। विद्यालय सदैव ही अपने अध्ययन के लक्ष्यों तथा कार्यक्रमों को मूल्यों के महत्त्व को प्रदर्शित करते हैं और बहुत ही गहन रूप से अपने विद्यार्थियों में इन मूल्यों का विकास करने की अपेक्षा रखते हैं। प्रौढ़ों के मूल्यों हमेशा अधिकतर युवा पीढ़ी पर प्रभाव नहीं पड़ता है।

विभिन्न प्रकार के शैक्षिक अनुभव निःसन्देह कुछ विशेष मूल्यों को प्रोन्नत करते हैं तथा दूसरे मूल्यों को दूर करते हैं। विद्यालय के पाठ्यक्रम में बहुत मूल्य निर्णय होते हैं जो पाठ्यचर्या निर्धारकों द्वारा निर्मित तथा विकसित किए जाते हैं।

मूल्यों के शिक्षण में वर्तमान भारतीय दर्शनों का सर्वेक्षण एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है। दार्शनिक विचारों के पढ़ने से उस समाज के बारे में जागरूकता विकसित होती है जिसमें कि हम रहते हैं। उन मूल्यों के कक्षा में संकेत दिए जा सकते हैं जिनकी प्रस्तुति फिल्मों में सृजनात्मक तथा सामाजिक परिस्थितियों में होती है।

विद्यालय का अभिकरण है जहाँ छोटे बच्चों को अपना अधिक समय व्यतीत करना होता है। अतः विद्यालय वह स्थान है जहाँ पर बच्चे के स्वस्थ विकास को प्रोन्नत करने के लिए प्रयास किया जाता है। विद्यालय के अनुभव बच्चे में समझ और कर्त्तव्य, ईमानदारी, नैतिक साहस तथा मित्रता के विकास को प्रभावित करते हैं।

मूल्यों के विकास में बच्चों की अपनी आपसी अन्तःक्रिया की मात्रा तथा गुणवत्ता मुख्य कारकों में से एक है बच्चे न्यायपरकता एवं ईमानदारी के बारे में अपने विचारों, भावनाओं या अनुभवों को आपस में साझा करके सीखते हैं। यद्यपि यह प्रक्रिया बहुत ही धीमी होती है।

सिखाने योग्य मूल्य

विद्यालय में मानव जीवन को संश्रखण करने से सम्बन्धित मूल्यों को सिखाया जाना चाहिए। विद्यार्थियों को आवेगशील क्रियाओं, लापरवाही, कामचोरी तथा अन्य ऐसे व्यवहार जो कि मानव जीवन को नष्ट करते हैं के खतरों से जागरूक करना चाहिए। सामाजिक मानक जो व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक सम्पत्ति के प्रति उत्तरदायित्व महसूस करने से सम्बन्धित होते हैं वे भी विद्यालय से सम्बन्धित होते हैं।

व्यक्तियों की सुरक्षा हेतु बनाए गए नियमों का पालन करने सम्बन्धी मूल्यों को किसी मूल्य प्रणाली में प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए। यद्यपि कुछ युवा समाज द्वारा उनकी भी व्यक्तिगत इच्छाओं को नियन्त्रित करने के अधिकार को चुनौती देते हैं। एक सकारात्मक मूल्य को एक नियम का स्वरूप दिया जाना चाहिए क्योंकि यह सार्वजनिक नियमावलियों की प्रक्रिया का एक अंग होता है।

शोध प्रमाणों से यह प्रतीत होता है कि विशेष कक्षा शिक्षण विधियाँ विद्यार्थियों की नैतिक परिपक्वता स्तर को प्रभावित करती हैं। उदाहरणार्थ, तार्किक उपागम सभी आयु के विद्यार्थियोंमें उस समाज से सम्बन्धित मूल्यों एवं सदगुणों के बारे में जागरूकता विकसित करने में बहुत ही प्रभावी होता है क्योंकि मूल्य विकास की प्रक्रिया आयु से संज्ञानात्मक विकास के स्तर से अनुभव स्तर से तथा विभिन्न दृष्टिकोणों से विमर्षक चिन्तन की योग्यता से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होती है, अतः ऐसे मूल्य का विकास करना तुरन्त सम्भव नहीं है अत: अपने विद्यार्थी में मूल्य के विकास की धीमी गति को देखकर निराश नहीं होना चाहिए।

सामाजिक वातावरण के साथ अच्छे समायोजन के लिए बच्चे को सामाजिक संस्थाओं जैसे-परिवार चर्च (पूजा स्थल), विद्यालय इत्यादि के सांस्कृतिक महत्त्व के बारे में बताना चाहिए।

मूल्य और व्यक्तिगत भिन्नताएँ

विद्यालय जीवन के सन्तोषप्रद अनुभव मूल्य निर्माण महत्त्वपूर्ण होते हैं तथापि सभी बच्चे लक्ष्यों की सम्प्राप्ति के सन्दर्भ में शिक्षा के औचित्य व उपलब्धि से सन्तोषप्रद अनुभव एक ही भ्रान्ति और एक ही स्तर पर अनुभव नहीं करते हैं। वे अपने मूल्यों के निर्धारण में भी भिन्नता दर्शाते हैं।

ऐसे भी हो सकता है कि सभी बच्चे शिक्षक के द्वारा दिए गए मूल्यों को स्वीकार ही न करें कक्षा में मूल्यों को पहचानने तथा अन्तर्निरीक्षण की प्रक्रिया सभी विद्यार्थियों की एक समान होती है विद्यार्थियों में तर्क, सत्यता ईमानदारी समय की पाबन्दी नियम पालन तथा अमूर्त के सन्दर्भ में व्यक्तिगत निर्णय लेने की क्षमता भी अलग-अलग होती है, इसलिए ये अपने में भी भिन्नता दर्शाते हैं।

पश्चिमी जीवन शैली तथा समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं रेडियो, टेलीविजन, केबल टेलीविजन, नेटवर्किंग इत्यादि का प्रदर्शन किशोरों में अलग-अलग प्रकार की भ्रान्तियों को उत्पन्न करता है। उनकी पारिवारिक तथा जातीय पृष्ठभूमि उनकी बदलती हुई सामाजिक राजनैतिक तथा आर्थिक मूल्य प्राणी से टकराती है। कुछ किशोर बच्चों को मूल्य के हास का सामना करना पड़ सकता है। ये हिंसा, हड़ताल आज्ञाकारिता कर्त्तव्य का पालन न करना नशे की गोलियाँ तथा नशे की आदत में पड़े हो सकते हैं। अतः ये अपने मूल्यों को बिना कुछ नये मूल्यों के आत्मसात् किए छोड़ देते हैं। इस प्रकार से भी चीजें मूल्यों में व्यक्तिगत भिन्नताओं का कारण बनती हैं।

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shubham yadav

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