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मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा | मूल्यांकन की विशेषताएं | मापन एवं मूल्यांकन में सम्बन्ध

मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा
मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा

मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा

मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of Evaluation)

वस्तुतः जैसा कि राइटस्टोन (J. W. Wrightstone) ने लिखा है, “मूल्यांकन एक नवीन प्राविधिक पद (New Technical Term) है जिसका प्रयोग मापन (Measurement) की धारणा को परम्परागत परीक्षणों एवं समीक्षाओं (Conventional Tests and Examinations) की अपेक्षा व्यापक रूप में व्यक्त करने के लिये किया गया है।” मूल्यांकन की प्रक्रिया शिक्षा प्रक्रिया का ही अविछिन्न अंग (Integral Part) है और यह शिक्षण के साथ ही चलती रहती है। जैसा कि हम जानते हैं, शिक्षा के अनेक उद्देश्य होते हैं। शिक्षा के इन समस्त उद्देश्यों का मुख्य उद्देश्य बालकों या छात्रों के व्यक्तित्व (Personality) के विभिन्न पहलुओं; यथा शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक, नैतिक आदि का वांछित विकास करना या सम्पूर्ण व्यवहार (Total (Behaviour) में ऐसा परिवर्तन लाना है जो व्यक्ति एवं समाज दोनों की दृष्टि से उचित तथा लाभदायक हो। इस बहुमुखी उद्देश्य की पूर्ति के लिए अर्थात् छात्रों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास व सम्पूर्ण व्यवहार में वांछित परिवर्तन (Desirable Changes) लाने के लिए शिक्षा के अन्य पहलुओं यथा पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, विद्यालय, शिक्षक, शिक्षार्थी, अनुशासन आदि का निर्धारण करना पड़ता है। इन पहलुओं में शिक्षण विधि वह पहलू है जो शिक्षा के उद्देश्य सहित अन्य समस्त पहलुओं को साकार रूप प्रदान करता है। शिक्षण प्रक्रिया कहाँ तक शिक्षा के विभिन्न पहलुओं को साकार रूप प्रदान करने में सफल हुई है अर्थात् कहाँ तक छात्रों के व्यक्तित्व के विकास व सम्पूर्ण व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने में सफल हो रही है, इसकी विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक मानदण्डों (Standards) के आधार पर विभिन्न पदों द्वारा निरन्तर विधि (Techniques) से जाँच-पड़ताल व व्याख्या करते रहने की प्रक्रिया को मूल्यांकन (Evaluation) कहते हैं। इस प्रकार मूल्यांकन केवल छात्रों द्वारा अर्जित ज्ञान की परीक्षा व मापन नहीं है बल्कि शिक्षा के समस्त पहलुओं और शिक्षण द्वारा इन पहलुओं को कार्यान्वित रूप देने से छात्रों के व्यवहार में जो परिवर्तन आता है उस सबकी निरन्तर जाँच-पड़ताल व व्याख्या आदि करना मूल्यांकन है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मूल्यांकन का तात्पर्य शिक्षण के साथ-साथ निरन्तर चलने वाली उस व्यापक प्रक्रिया से है जिसमें शिक्षा के मुख्य उद्देश्य छात्रों के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं; यथा- शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक आदि के सर्वांगीण विकास का सम्पूर्ण व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने के लिए शिक्षण के साथ-साथ शिक्षा के अन्य सभी पहलुओं तथा उन्हें क्रियान्वित रूप देने में छात्रों के ज्ञान व व्यवहार में जो परिवर्तन उत्पन्न होता है, उस सबकी विभिन्न मानदण्डों के आधार पर विभिन्न प्रविधियों द्वारा निरन्तर जाँच-पड़ताल, मापन, व्याख्या आदि की जाती है।

मूल्यांकन की परिभाषा ( Definition of Evaluation )

(1) ब्रेडफील्ड- “मूल्यांकन का कार्य तत्त्वों के लिए प्रतीक निर्धारण करना है जो विभिन्न तत्त्वों की उपयोगिता या महत्त्व को लाक्षणिक रूप प्रदान करता है। साधारणतया यह कार्य कुछ विशिष्ट सामाजिक, सांस्कृतिक या वैज्ञानिक स्तरों को नापने के लिए किया जाता है।”

(2) क्विलन एवं हैना- “बालकों द्वारा विद्यालय में प्रगति पर जो उनमें व्यावहारिक परिवर्तन होते हैं उनके विषय में सूचना एकत्रित करने एवं उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया ही मूल्यांकन है।”

(3) कोठारी आयोग- मूल्यांकन एक क्रमिक प्रक्रिया है जो कि सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण अंग है और जो शिक्षा के उद्देश्यों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।”

मूल्यांकन की विशेषताएँ (Characteristics of Evaluation)

यदि हम मूल्यांकन प्रक्रिया के अर्थ एवं परिभाषा पर पुनः एक विहंगम दृष्टि डालें तो हमें उसकी निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है-

(1) मूल्यांकन वस्तुतः एक व्यापक प्रक्रिया (Wider Provess) है जिसमें मापन एवं जाँच दोनों सम्मिलित रहते हैं।

(2) मूल्यांकन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया (Continuous Process) है जिसके द्वारा छात्रों के दिन-प्रतिदिन के व्यावहारिक परिवर्तनों की जाँच होती है।

(3) मूल्यांकन का क्षेत्र (Scope) अत्यधिक विस्तृत होता है। यह छात्रों के व्यक्तित्व के समस्त पहलुओं (All Aspects of Personality) यथा- शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक, चारित्रिक आदि का मूल्यांकन करता है। इस सन्दर्भ में यह प्रक्रिया इस बात पर भी ध्यान देती है कि समाज के आदर्शों एवं मापदण्डों के अनुकूल शिक्षण हो रहा है या नहीं।

(4) मूल्यांकन सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अंग (Integral Part) है और इसका शिक्षा के विभिन्न पाठ्यक्रम अंगों यथा शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, परीक्षा आदि सभी अंगों से घनिष्टतम सम्बन्ध होता है। मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा यह पता चलता है कि किस सीमा तक शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति हो रहीं है ।

(5) यह प्रक्रिया न केवल शैक्षिक निष्पत्ति (Educational Achievement) का मापन करती है बल्कि सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली में सुधार (Reform) भी करती है।

(6) मूल्यांकन एक निर्णयात्मक प्रक्रिया (Deterministic Process) है। यह प्रक्रिया सीखने की क्रियाओं से उत्पन्न अनुभवों की उपयोगिता के सम्बन्ध में निर्णय देती है।

मापन एवं मूल्यांकन में सम्बन्ध (Relation between Measurement and Evaluation)

मापन एवं मूल्यांकन में सम्बन्ध की विवेचना निम्न प्रकार की जा सकती है-

(1) कार्य व भूमिका (Role) की दृष्टि से- मापन की अपेक्षा मूल्यांकन का कार्य या भूमिका अत्यधिक विस्तृत होती है। उदाहरणार्थ मापन का कार्य वहाँ समाप्त हो जाता है जब किसी परीक्षा में छात्रों को अंक (Marks) प्रदान कर दिये जाते हैं। मूल्यांकन में मापन से पूर शिक्षा के उद्देश्यों की व्याख्या की जाती है तथा मापने के उपरान्त मापन के परिणामों की निश्चित मानदण्डों के आधार पर व्याख्या की जाती है।

(2) उद्देश्य (Objective) की दृष्टि से- मापन का प्रमुख उद्देश्य किसी विषय या क्रिया में छात्रों की योग्यता या दक्षता का पता लगाना है जबकि मूल्यांकन का उद्देश्य छात्रों के व्यक्तित्व (Whole Personality) की जानकारी या व्याख्या करना होता है।”

(3) क्षेत्र (Scope) की दृष्टि से- मापन का क्षेत्र विषय विशेष या क्रिया विशेष में छात्रों की योग्यता या दक्षता को ज्ञात करना होता है जबकि मूल्यांकन का क्षेत्र समस्त विषयों के शिक्षण एवं समस्त क्रियाओं में प्रशिक्षण प्राप्त करने के फलस्वरूप व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों की। व्याख्या करना होता है।

(4) शिक्षा के पहलुओं (Aspects of Education)- से सम्बन्ध रखने की दृष्टि से मापन में छात्रों की शैक्षिक उपलब्धियों की माप मात्र होती है, जबकि मूल्यांकन में शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों आदि विभिन्न पहलुओं की भी माप एवं व्याख्या की जाती है।

(5) अवधि (Duration) की दृष्टि से- मापन एक ऐसी क्रिया है जो परीक्षा की समाप्ति पर ही समाप्त हो जाती है जबकि मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया (Process) है जो छात्रों के सम्पूर्ण विद्यालयीय जीवन में चलती रहती है।

(6) कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण अन्तर- मापन के परिणाम वस्तुनिष्ठ होते हैं जबकि मूल्यांकन के परिणाम विषयगत होते हैं।

(7) मापन का सम्बन्ध संख्या से है जबकि मूल्यांकन का सम्बन्ध सुधारों से है।

(8) मापन में मूल्यांकन की तुलना में धन का व्यय कम होता है।

(9) मापन का सम्बन्ध विज्ञान से है जबकि मूल्यांकन का दर्शन से ।

(10) मापन के अन्तर्गत मनुष्य की योग्यताओं के अलग-अलग भागों में बाँटकर अध्ययन किया जाता है जबकि मूल्यांकन के अन्तर्गत मनुष्य की योग्यताओं एवं व्यवहार का समग्र रूप से अध्ययन किया जाता है।

(11) स्टेनली एवं हापकिन्स (Stanely and Hopkins) के अनुसार मापन एवं मूल्यांकन में अन्तर होता है। इसके विषय में उन्होंने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये हैं

(i) “परीक्षणों के निर्माण, प्रशासन तथा फलांकन को मापन की प्रक्रिया के रूप में सोचते हैं। इन फलांकों का जैसे ये किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिये अच्छे हैं या बुरे हैं।”

(ii) मापन शैक्षिक उपज (Educational Product) की मात्रा निश्चित करता है जबकि मूल्यांकन में इसकी उपयुक्तता को निश्चित किया जाता है।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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