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मूल्यांकन के प्रकार (Types of Evaluation)
मूल्यांकन एक निरन्तर एवं विस्तृत प्रक्रिया है जो पूरे सत्र भर चलती रहती है मूल्यांकन का अभिप्राय सत्र के अन्त में केवल एक परीक्षा सम्पन्न करने से नहीं होता बल्कि विद्यार्थी के विकास के लिये सत्र में कई बार मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है। अतः मूल्यांकन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है-
(1) अल्पकालीन या क्रमानुसार मूल्यांकन (Short term or Formative Evaluation)
अल्पकालीन मूल्यांकन का अभिप्राय उस मूल्यांकन से है जो सत्र के बीच में अनेक बार विद्यार्थियों शैक्षिक एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी उन्नति एवं विकास को मालूम करने हेतु किया जाता है। इस मूल्यांकन द्वारा केवल विद्यार्थी के विकास का ही पता नहीं चलता बल्कि पाठ्यक्रम के विकास का भी पता चलता है। इस मूल्यांकन से शिक्षण और अधिगम की प्रक्रियाओं को पुनर्बलन मिलता है। अतः इस मूल्यांकन के अन्तर्गत कक्षा में दिन-प्रतिदिन किया जाने वाला मूल्यांकन (गृहकार्य, कक्षाकार्य), साप्ताहिक तथा मासिक मूल्यांकन, प्रयोगशाला में मूल्यांकन, अनेक कार्यक्रमों में मूल्यांकन आता है। कुछ विद्यालयों में इसे आन्तरिक मूल्यांकन भी कहते हैं।
अल्पकालीन मूल्यांकन से लाभ (Merits)
इस मूल्यांकन में निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं-
(i) इस प्रकार का मूल्यांकन विद्यार्थी को व्यक्तिगत सहायता देने में सहायक होता है।
(ii) इससे विद्यार्थी अपनी उन्नति को जानकर अपनी शैक्षिक उपलब्धि में सुधार कर सकता है।
(iii) अल्पकालीन मूल्यांकन हेतु विषय-वस्तु को छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटा जाता है जिससे इनको सम्पूर्ण विषय को समझना सरल हो जाता है। शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों ही व्यवस्थित ढंग से शिक्षण और अधिगम का कार्य कर सकते हैं।
(iv) इस विधि से विद्यार्थी विषय का अध्ययन अधिक गहनता से करता है अतः उसे परीक्षा के समय गेस पेपर या गाइड जैसी पुस्तकों का सहारा नहीं लेना पड़ता है।
अल्पकालीन मूल्यांकन के दोष (Demerits)
अल्पकालीन मूल्यांकन के कुछ दोष भी हैं। ये इस प्रकार हैं-
(i) इसमें शिक्षक को अधिक कार्य करना पड़ता है। शिक्षण के कार्यों के अतिरिक्त शिक्षक को अनेक प्रतिलेखों एवं पंजिकाओं का रख-रखाव करना पड़ता है।
(ii) समय एवं अर्थ के दृष्टिकोण से ये अधिक खर्चीली होती हैं।
(iii) कभी-कभी शिक्षक का पक्षपातपूर्ण व्यवहार बार-बार मूल्यांकन को प्रभावित करने लगता है।
2. दीर्घकालीन या योगात्मक मूल्यांकन (Long term or Summative Evaluation)
योगात्मक मूल्यांकन का अभिप्राय उस मूल्यांकन से है जो सत्र के अन्त में वार्षिक परीक्षाओं के रूप में किया जाता है। अतः इसके अन्तर्गत वे संचयी मूल्यांकन आते हैं जिनके आधार पर कक्षोन्नति, चयन, पदोन्नति, भविष्यवाणी इत्यादि की जाती है। अतः इस प्रकार के मूल्यांकन में पूरे सत्र का कुल मूल्यांकन आता है।
योगात्मक मूल्यांकन के लाभ (Merits)
इसके निम्न लाभ हैं-
(i) समय एवं अर्थ के दृष्टिकोण से ये कम खर्चीली होती हैं।
(ii) प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी ये आसान होती हैं क्योंकि इनकी तैयारी, व्यवस्था, प्रतिलेखन भी एक ही बार तैयार करना पड़ता है।
(iii) शिक्षक के लिये भी अधिक कार्य नहीं बढ़ता है।
(iv) पूरे पाठ्यक्रम को इकाइयों में विभाजित नहीं करना पड़ता और एक ही बार में पूरे विषय की परीक्षा ले ली जाती है।
योगात्मक मूल्यांकन के दोष (Demerits)
इस प्रकार के मूल्यांकन में निम्नांकित दोष होते हैं-
(i) दीर्घकालीन या योगात्मक परीक्षाओं की वैधता एवं विश्वसनीयता कम होती है क्योंकि पूरे पाठ्यक्रम के कुछ ही अंशों का प्रतिनिधित्व प्रश्नपत्र में होता है।
(ii) इससे गेस पेपर, गाइड, चयनित अध्ययन, कोचिंग को बढ़ावा मिलता है। विद्यार्थी विषय का गहनता से अध्ययन नहीं करता।
(iii) इस प्रकार के मूल्यांकन में उत्तर पुस्तिकाओं की जांच वस्तुनिष्ठ तरीकों से नहीं हो पाती है।
(iv) विद्यार्थी को अपने में सुधार लाने का अवसर नहीं दिया जाता है।
(v) शिक्षक भी अपनी प्रभावशीलता को नहीं जान पाता है।
उपरोक्त दोनों प्रकार के मूल्यांकन से कुछ न कुछ लाभ हैं। अतः एक विद्यालय में दोनों ही प्रकार की मूल्यांकन प्रणाली को अपनाना चाहिए। ये दोनों प्रकार एक दूसरे के पूरक भी हैं। अतः विद्यालय में वार्षिक मूल्यांकन के अलावा साप्ताहिक, मासिक मूल्यांकन भी अवश्य होना चाहिए तभी विद्यालय के शिक्षण एवं अधिगम में सुधार किया जा सकता है।
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