B.Ed./M.Ed.

NCF 2005 द्वारा प्रस्तावित शिक्षक शिक्षा की रूपरेखा (प्रतिमान)

NCF 2005 द्वारा प्रस्तावित शिक्षक शिक्षा की रूपरेखा (प्रतिमान)
NCF 2005 द्वारा प्रस्तावित शिक्षक शिक्षा की रूपरेखा (प्रतिमान)

NCF 2005 द्वारा प्रस्तावित शिक्षक शिक्षा की रूपरेखा (प्रतिमान) [Outline (Model) of Teacher Education Recommended by NCF-2005]

वर्तमान शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम केवल शिक्षकों को एक ऐसी व्यवस्था में समायोजित करने के लिए प्रशिक्षण देते हैं जिसमें शिक्षा के बारे में यह समझा जाता है कि उसमें केवल सूचनाओं का प्रसार होता है। पाठ्यचर्या सुधारों के प्रयासों को शिक्षक प्रशिक्षण का पर्याप्त समर्थन नहीं मिला। बड़े पैमाने पर पैरा-शिक्षकों की नियुक्ति से भी शिक्षकों को पेशेवर पहचान प्रभावित हुई और उनका पेशेवर विकास नहीं हो पाया। शिक्षक प्रशिक्षण के अनुभवों से भी पता चलता है कि उसमें ज्ञान को प्रदत्त की तरह बिना सवाल उठाये पाठ्यचर्या में बाँध दिया जाता है। पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकों का न तो शिक्षक-विद्यार्थियों द्वारा परीक्षण किया जाता है, न ही वहाँ के अन्य शिक्षकों द्वारा यहाँ तक कि इसमें भाषा की केन्द्रीयता के महत्त्व को भी नहीं समझा जाता है एवं यह मान लिया जाता है कि किसी विषय को पढ़ाने की क्षमता कार्यक्रम के दौरान अपने आप आ जायेगी। अधिकतर शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम विद्यार्थी शिक्षकों को अपने अनुभवों की अभिव्यक्ति के अवसर नहीं देते और इस प्रकार वह शिक्षकों को बदलाव कर्मियों के रूप में सक्षम नहीं बना पाते।

शिक्षक शिक्षा सम्बन्धी दृष्टिकोण (Perspective Related to Teacher Education)

NCF 2005 के अनुसार शिक्षक की शिक्षा को स्कूली व्यवस्था की उभरती माँगों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए। उसे शिक्षकों को इसके लिए तैयार करना चाहिए कि वे निम्नलिखित रूप में अपनी भूमिका निभायें-

(1) शिक्षकों को उत्साहवर्धक, सहयोगी और मानवीय होना चाहिए जिससे विद्यार्थी अपनी सम्भावनाओं का पूर्ण विकास कर जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी भूमिका निभायें।

(2) ऐसे व्यक्तियों के समूह का सक्रिय सदस्य बनें, जो लगातार सामाजिक और विद्यार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर सजगता से पाठ्यचर्या सुधार में रत हों।

इस दृष्टि को साकार करने के लिए यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि शिक्षक प्रशिक्षण में ऐसे तत्त्व समाहित हों जो विद्यार्थी शिक्षक को निम्न दशाओं में सक्षम बनायें-

(1) ज्ञान को व्यक्तिगत अनुभव के रूप में समझें जो सीखने सिखाने के साझे अनुभव के रूप में प्राप्त किया जाता है, न कि पाठ्य पुस्तकों के बाह्य यथार्थ के रूप में।

(2) सीखना किस प्रकार होता है, इसकी समझ उसमें हो और वह उसके अनुकूल माहौल बनाये।

(3) इस प्रकार की उपयुक्त क्षमताओं का विकास वह कर सके, जिससे वास्तविक स्थितियों में उसकी न केवल उपयुक्त समझ हो, बल्कि वह उनकी रचना भी कर सके।

(4) अपनी आकांक्षाओं, स्व-समझ, क्षमताओं और रुझानों को पहचाने।

(5) भाषा की गहरी समझ और दक्षता हासिल करे।

(6) उन सामाजिक, पेशेवर और प्रशासनिक सन्दर्भों के प्रति उसमें संवेदनशीलता हो जिनमें उसे काम करना पड़ता

(7) वह शिक्षक के रूप में पेशेवर उन्मुखीकरण का प्रयास करे।

(8) कार्य के द्वारा विभिन्न विषयों का ज्ञान विविध मूल्यों और विविध कौशलों के विकास के साथ किस प्रकार प्राप्त होता है, इसकी शिक्षा देना सीखे।

(9) परामर्श के कौशल और क्षमताओं का विकास कर सके ताकि बच्चों के शैक्षणिक, व्यक्तिगत और सामाजिक स्थितियों का समाधान सुझाने में उसे सुविधा हो। 

(10) दृष्टिकोण में बदलाव के सन्दर्भ में यह आवश्यक है कि शिक्षकों में व्यावसायिकता के विकास के लिए शिक्षक प्रशिक्षण के एक अन्तर्भूत मॉडल के विकास को बढ़ावा दिया जाये।

(11) वंचित बच्चों और विभिन्न असमर्थताओं वाले बच्चों की आवश्यकताओं सहित सभी बच्चों की सीखने की आवश्यकताओं को समझ सके।

(12) कला शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों में कला और सौन्दर्यबोध समझ का विकास कर सके।

(13) मूल्यांकन को सतत शैक्षिक प्रक्रिया माने।

(14) शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं की समझ को प्राथमिकता देने की जरूरत है। शिक्षार्थी को शिक्षण प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार के रूप में देखना चाहिए न कि निष्क्रिय ग्रहणकर्ता के रूप में तथा ज्ञान को पूर्व निर्धारित न मानकर प्रत्यक्ष स्व-अनुभवों से निर्मित माना जाना चाहिए। पाठ्यचर्या इस प्रकार निर्मित की जाए कि शिक्षक को विद्यार्थियों को खेलते व काम करते हुए प्रत्यक्ष अवलोकन के अवसर मिलें, शिक्षार्थियों के प्रश्नों को समझने तथा प्राकृतिक एवं सामाजिक घटनाओं के अवलोकन में मदद करने वाले कार्य मिल सकें, बच्चों में चिन्तन और अधिगम सम्बन्धी अन्तर्दृष्टि विकसित हो और बच्चों की बातें ध्यान से, हास्य और समानुभूति के साथ सुनने के अवसर मिलें।

(15) शिक्षक शिक्षा में ज्ञान शिक्षा के सन्दर्भ में बहु-अनुशासनिक होता है। दूसरे शब्दों में, शिक्षक प्रशिक्षण में अवधारणात्मक निवेशों को इस प्रकार प्रस्तुत करना चाहिए कि वे शैक्षिक घटनाओं, जैसे क्रिया, प्रयास, प्रक्रिया, अवधारणा और घटनाओं का वर्णन विश्लेषण करें।

(16) शिक्षक की भूमिका में एक बड़ी तब्दीली आयी है। उसे अब तक ज्ञान के स्रोत के रूप में केन्द्रीय स्थान मिलता रहा है, वह सीखने-सिखाने की समूची प्रक्रिया का संरक्षक और प्रबन्धक रहा है और पाठ्यचर्या या अन्य विभागीय आदेशों के जरिये सुपुर्द शैक्षणिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों को पूरा करने वाला रहा है। अब उसकी भूमिका ज्ञान के स्रोत के बदले एक सहायक की होगी जो सूचना को ज्ञान / बोध में बदलने की प्रक्रिया में विविध उपायों से शिक्षार्थियों उनके शैक्षणिक लक्ष्यों की पूर्ति में मदद करे।

(17) दूसरी महत्त्वपूर्ण तब्दीली ज्ञान की अवधारणा में आयी है। ज्ञान को एक सतत प्रक्रिया माना जाने लगा है जो वास्तविक अनुभवों के अवलोकन पुष्टीकरण आदि से उत्पन्न होता है। शिक्षक प्रशिक्षण में ज्ञान का घटक वस्तुतः शिक्षा के व्यापक क्षेत्रों से लिया जाता है और इसे इसी तरह प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। शिक्षक प्रशिक्षण के अवयवों का आध गर विस्तृत होना चाहिए। इसका तात्पर्य है कि शिक्षा की दृष्टि से सजग प्रयास किये जायें न कि सम्बन्धित अनुशासनों के सैद्धान्तिक विचारों का ‘शिक्षा आशय’ के साथ उल्लेख मात्र किया जाये।

(18) अधिगम को, सहभागिता की उस प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए जो सहपाठियों और वृहत् सामाजिक समुदाय या पूरे राष्ट्र के साझे सामाजिक सन्दर्भों के बीच होती है। प्रायः गांधी, टैगोर, श्री अरविन्द, गिजुभाई, जे. कृष्णमूर्ति, ड्युई तथा अन्य महान शिक्षाविदों के विचारों को बिना आवश्यक सन्दर्भ के और बिना इस सरोकार के कि ये विचार कहाँ से उत्पन्न हुए। हैं, थोड़ा-थोड़ा पढ़ाया जाता है। जाहिर है कि जो शिक्षक प्रशिक्षक इन विचारों को शिक्षक-विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत करते हैं, उन्होंने इन विचारों को पढ़ा और रटा तो होता है, परन्तु शायद ही कभी प्रयोग में लाया होता है। सहभागिता की प्रक्रिया स्व-अनुभव आधारित क्रिया है जिसमें शिक्षार्थी अपने ज्ञान का निर्माण अपने तरीके से आत्मसात् कर, अन्तःक्रिया, अवलोकन तथा मनन-चिन्तन द्वारा करते हैं।

(19) इस प्रकार के शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम से सिद्धान्त और व्यवहार को समन्वित रूप में देखने का मौका मिलेगा न कि उनको दो अलग-अलग पहलुओं के रूप में देखने का। वह विद्यार्थी-शिक्षक को और कक्षा में शिक्षक को हर रूप में सक्षम बनाता है ताकि उसमें क्षेत्र-आधारित पद्धतियों के प्रति आलोचनात्मक संवेदना आ सके। इस तरह एक बार स्वयं और दूसरों के द्वारा आजमाये जाने से सीखने के आदर्शों की अपनी समझ बनती है। ऐसे शिक्षक सीखने का अनुकूल वातावरण बनाने के लिए अधिक अच्छी तरह तैयार होंगे। वे मौजूदा हालात से तालमेल बैठाने की जगह जरूरी तकनीकी जानकारी और आत्मविश्वास से युक्त होकर उन्हें बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे।

इसी भी पढ़ें…

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment