B.Ed./M.Ed.

पाठ्यचर्या के निरन्तर मूल्यांकन प्रतिमान की आवश्यकता

पाठ्यचर्या के निरन्तर मूल्यांकन प्रतिमान की आवश्यकता
पाठ्यचर्या के निरन्तर मूल्यांकन प्रतिमान की आवश्यकता

पाठ्यचर्या के निरन्तर मूल्यांकन प्रतिमान की आवश्यकता (Need for a Model of Continual Evaluation of Curriculum)

सामाजिक अपेक्षाओं और विभिन्न व्यापक अनुशासनों के अध्ययन में आए बड़े बदलावों के बावजूद, पाठ्यचर्या योजना के लिए प्रासंगिक प्रमुख क्षेत्र बहुत लम्बे समय तक स्थिर ही रहे हैं यह आवश्यक है कि पाठ्यचर्या के प्रत्येक क्षेत्र पर गहन पुनर्विचार किया जाए ताकि उभरती सामाजिक जरूरतों के सन्दर्भ में प्रवेश के विशेष बिन्दु पहचाने जा सकें। इस सन्दर्भ में पाठ्यचर्या का निरन्तर मूल्यांकन जरूरी है। पाठ्यचर्या ऐसी हो जो शिक्षार्थियों को ऐसे अनुभव उपलब्ध कराये जो उसमें क्रमशः विवेक की क्षमता बढ़ाते हुए उसके ज्ञान के आधार को पुष्ट करे और दूसरों के प्रति संवेदनशील बनाये, उन्हें काम करने और आर्थिक प्रक्रियाओं में भागीदारी करने दें । इसका तात्पर्य है पाठ्यचर्या में ज्ञान व समझ के विकास हेतु विषय-वस्तु का समावेश हो। यहाँ ज्ञान से तात्पर्य पुस्तकीय ज्ञान से न होकर ज्ञान की उस व्यापक कल्पना से है जिससे ज्ञान का परीक्षण केवल परिणाम के अर्थों में न करके सृजन की प्रक्रिया, व्यवस्थापन व उपयोग के कार्यों में किया जाय अर्थात् पाठ्यचर्या में जितना ध्यान सीखने की विषय-वस्तु पर दिया जाय उतना ही इस पर भी दिया जाए कि शिक्षार्थी पुनः सृजित ज्ञान से कैसे जुड़ते हैं। पाठ्यचर्या को उन क्षमताओं के विकास का पैमाना बनाया जाये जिसके माध्यम से चयनित शैक्षणिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। इस सन्दर्भ में हम यहाँ पाठ्यचर्या मूल्यांकन हेतु प्रयुक्त कुछ मुख्य पद्धतियों/प्रवृत्तियों की व्याख्या करेंगे जो मूल्यांकन प्रक्रिया को व्यापक क्रियाकलाप बना देते हैं-

1. पूर्व परीक्षण / पश्व परीक्षण (Pre / Post Test) – यह पाठ्यचर्या के मूल्यांकन का साधारण तथा बहुत अधिक प्रयोग में लाये गए स्वरूपों में से है। ग्रहण की गई पद्धति प्रयोग से पूर्व और प्रयोग के बाद की नीति के समान है।

इस विधि में परीक्षा का आयोजन विद्यार्थियों द्वारा पाठ्यचर्या समाप्त करने के बाद उनके सत्रांत व्यवहार को आँकने के लिए किया जाता है। कभी-कभी परीक्षा के लिए दो समान्तर फार्म, जैसे—टी-1 व टी-2 तैयार किए जाते हैं। इन परीक्षाओं में से एक परीक्षा विद्यार्थियों के विशिष्ट पाठ्यक्रम आरम्भ होने से पहले उनके ज्ञान अथवा क्षमता के स्तर का मूल्यांकन करने के लिए ली जाती है। पूर्व परीक्षा द्वारा प्राप्त किए गए अंक निर्धारित कसौटी पर अथवा अपेक्षित सत्रांत व्यवहार की तुलना में विद्यार्थी के स्तर को दर्शाते हैं तत्पश्चात् विद्यार्थियों को योजनानुसार पाठ्यचर्या अनुभव से अवगत कराया जाता है और अन्त में उनकी दूसरी परीक्षा ली जाती है। पूर्व परीक्षा और पश्च परीक्षा में प्राप्त अंकों में अन्तर का कारण पाठ्यचर्या की प्रभावशीलता बताई जाती है और इस प्रकार यह पाठ्यचर्या के मूल्यांकन का तरीका है। यदि सुझाव ठोस है जैसा कि पाठ्यचर्या निर्माता ने अपेक्षा की थी तो यह पाठ्यचर्या की सशक्तता को सिद्ध करता है। यदि सत्रांत व्यवहार अधिकांश विद्यार्थियों द्वारा अथवा विद्यार्थियों के एक समूह द्वारा प्राप्त नहीं किए गए हैं तो इससे यह संकेत मिलता है कि पाठ्यचर्या को संशोधित नहीं किया गया है। यह पूर्व तथा पश्च परीक्षा पद्धति नीचे चित्र द्वारा स्पष्ट की गई है-

पूर्व परीक्षा टी-1   →    पाठ्यचर्या क्रियान्वयन    →    पश्च परीक्षा टी-2

चित्र – पाठ्यचर्या का पूर्व तथा पश्च परीक्षण

कई मानकीकृत पाठ्यचर्या सामग्री में हमें ऐसे प्रावधान मिलते हैं जिनके द्वारा हम विद्यार्थी के एक विशिष्ट क्षेत्र में वर्तमान ज्ञान और कुशलता का अनुमान लगा सकते हैं और पाठ्यचर्या आयोजन द्वारा उन पक्षों पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं जिनमें विद्यार्थी कमजोर हैं तथा पूर्व परीक्षा द्वारा मालूम किए गए उन विशिष्ट विषयों को छोड़ सकते हैं जिनमें वह समर्थ है। ऐसी संरचनात्मक पाठ्यचर्या को विशिष्ट वातावरण अथवा स्थिति के अनुकूलनीय बनाना सरल है और इसे आवश्यक निर्देशों के द्वारा संशोधित भी किया जा सकता है। भारतीय स्कूलों की अधिकतर पाठ्यचर्या उच्च संरचनात्मक नहीं है तथा इसे अलग-अलग व्यष्टि सापेक्ष अधिगम फिर भी विभिन्न स्कूल श्रेणियों के लिए उपलब्ध नहीं हैं। इन उपकरणों में पूर्व तथा पश्च परीक्षाएँ निहित हैं जिनका अध्यापकों द्वारा प्रयोग किया जा सकता है।

अतः पाठ्यचर्या मूल्यांकन की इस प्रविधि का प्रयोग करके एक शिक्षक ऐसे पाठ्यचर्या सामग्री विशेषतः उन क्षेत्रों में जहाँ बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को शिक्षण में समान कठिनाइयों का अनुभव होता है, तैयार करने की चेष्टा कर सकता है। ऐसे प्रयासों से विद्यार्थियों की बेहतर सेवा हो सकती है।

2. मानक संदर्भित परीक्षणनिष्कर्ष संदर्भित परीक्षण (Norm Referenced and Criterion Referenced Test)- मानक सन्दर्भित तथा निकष संदर्भित परीक्षणों में अन्तर उनके उद्देश्य के आधार पर किया जाता है। जब पाठ्यचर्या का परीक्षण एक निश्चित निकष जिसे निकष सन्दर्भ परीक्षण (Criterion referenced test) कहते हैं अथवा एक सामान्य स्कूल वितरण या मानक, जिसे मानक संदर्भित परीक्षण कहते हैं के आधार पर किया जाता है तो इस आधार पर हम पाठ्यचर्या के स्तर का निर्धारण कर सकते हैं। साधारणत: भारतीय पद्धति में हम मानक संदर्भित परीक्षण का प्रयोग करते है जहाँ परीक्षण के परिणामों का प्रयोग पाठ्यचर्या के दो सेटों का मिलान करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार के परीक्षण के आधार पर पाठ्यचर्या के स्तर को ऊँचा या नीचा कहा जा सकता है। निकष सन्दर्पि परीक्षण में पाठ्यचर्या के सभी उद्देश्यों को उनके व्यवहारगत रूप में सूचीबद्ध (listed) किया जाता है और उन परिस्थितियों का वर्णन किया जाता है जिनमें इन निकर्षो (criterias) का निरीक्षण करना है इन निकषों को किस सीमा तक सहिष्णुता प्रदान करते हुए स्वीकारा जाए। इसको भी सूचीबद्ध किया जाता है। पाठ्यचर्या के क्रियान्वयन से यदि उद्देश्य विनिर्दिष्ट स्तर तक प्राप्त कर लिए जाते हैं तो इससे यह संकेत मिलता है कि किस सीमा तक पाठ्यचर्या का उद्देश्य प्राप्त हो गया है। मानक अथवा मानदण्ड से तुलना करके भी पाठ्यचर्या का मूल्यांकन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु किया जा सकता है।

3. पाठ्यचर्या का निर्माणात्मक व योगात्मक मूल्यांकन (Formative and Summative Evaluation of Curriculum) – पाठ्यचर्या निर्माणात्मक मूल्यांकन से अभिप्राय है कि जब पाठ्यचर्या का निर्माण अपनी प्रारम्भिक अवस्था में हो तभी उसका मूल्यांकन कर उसमें सुधार किया जा सके। किसी भी पाठ्यचर्या का मूल्यांकन जब उसकी प्रभावशीलता, गुणवत्ता, वांछनीयता या उपयोगिता को बढ़ाने के लिए किया जाता है तो वह निर्माणात्मक मूल्यांकन कहलाता है । यह मूल्यांकन पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया के दौरान किया जाता है तथा इसके परिणाम पाठ्यचर्या का विकास करने वालों को प्रतिपुष्टि प्रदान करते हैं और पाठ्चर्या में मालूम किए गए दोषों को दूर करने में सहायक होते हैं। इस प्रकार निर्माणात्मक मूल्यांकन पाठ्यचर्या निर्माण में संशोधन के अवसर प्रदान करता है इसीलिए इसे निर्माणात्मक मूल्यांकन कहा जाता है निर्माणात्मक मूल्यांकन के परिणाम निम्नलिखित दो क्रियाओं में सहायक हो सकते हैं- पाठ्यचर्या के घटकों के चयन (Selection of Components of Curriculum) तथा पाठ्चर्या के अवयवों का संशोधन (Correction of Parts of Curriculum)। यह निर्माणात्मक मूल्यांकन दो स्तरों पर किया जाता है— पाठ्यचर्या विकास प्रक्रिया स्तर (प्रक्रिया मूल्यांकन) तथा पाठ्चर्या क्रियान्वयन स्तर (शिक्षार्थी का मूल्यांकन)।

प्रक्रिया मूल्यांकन- प्रक्रिया मूल्यांकन पाठ्चर्या क्रियान्वयन, जैसे—पद्धतियों की विभिन्नता तथा प्रस्तुत मीडिया तथा उसकी उपयुक्तता के मूल्यांकन का निर्देशन करता है। इसके समान दीर्घकालीन उद्देश्यों की प्राप्ति जिसे स्पष्ट रूप से मापा नहीं जा सकता, उसका अनुमान केवल पाठ्चर्या कार्यान्वयन के एक विशिष्ट तरीके से लगाया जा सकता है । यह प्रक्रिया मूल्यांकन द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ, एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना विज्ञान के विषयों का एक दीर्घकालीन उद्देश्य है। इसे किसी एक विशिष्ट क्रिया से प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि पाठ्चर्या को लम्बी अवधि में क्रियान्वित अथवा संचालित करके किया जाता है। ऐसे उद्देश्यों का मूल्यांकन केवल एक निरन्तर मूल्यांकन की प्रक्रियाओं द्वारा किया जा सकता है।

प्रतिफल मूल्यांकन– एक पाठ्यचर्या का प्रतिफल (product) विद्यार्थी है जिसका निर्गत अधिगम (output learning) उसके ज्ञान, कौशल अथवा अभिवृत्तियों के रूप में है। पाठ्यचर्या के कार्यान्वयन के दौरान उसका सतत् मूल्यांकन प्रतिफल का निर्माणकारी मूल्यांकन होगा। इस मूल्यांकन से प्राप्त सामग्री का सतत प्रयोग अधिगम अनुभवों के संशोधन हेतु किया जा सकता है ताकि पाठ्यक्रम के सभी उद्देश्यों को सभी विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किया जा सके। उद्देश्य की प्राप्ति के स्तर को निपुणता स्तर कहा जाता है। अतः प्रतिफल का निर्माणकारी मूल्यांकन सभी विद्यार्थियों द्वारा निपुणतापूर्वक अधिगम प्राप्त करने में सहायक हो सकता है। चूँकि मूल्यांकन निर्माणकारी है। अतः विकास के प्रत्येक स्तर पर सुधार और संशोधन की गुंजाइश है।

इसी प्रकार पाठ्यचर्या के योगात्मक मूल्यांकन से तात्पर्य किसी भी पाठ्यचर्या को अन्तिम रूप दे देना तथा उसे आगे करने के पश्चात् उसकी समय वांछनीयता को ज्ञात करना है। इस प्रकार के मूल्यांकन का उद्देश्य यह ज्ञात करना होता है कि उस पाठ्यचर्या को आगे लागू रखा जाये अथवा नहीं। स्पष्टतः पाठ्यचर्या के योगात्मक मूल्यांकन से अभिप्राय पहले से चल रही पाठ्चर्या को जारी रखने या न रखने का निर्णय लेने से होता है। इसके अतिरिक्त अनेक वैकल्पिक पाठ्चर्या के अनुभवों में से किसको जारी रखा जाए और किसको छोड़ दिया जाय यह निर्णय भी योगात्मक मूल्यांकन से किया जाता है।

इसी भी पढ़ें…

Disclaimer: currentshub.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है ,तथा इस पर Books/Notes/PDF/and All Material का मालिक नही है, न ही बनाया न ही स्कैन किया है। हम सिर्फ Internet और Book से पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- currentshub@gmail.com

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment