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नेहरू रिपोर्ट क्या है
नेहरू रिपोर्ट (1928)- भारतीयों के प्रबल विरोध के कारण सरकार ने भारतीय नेताओं को स्वयं अपने लिये एक संविधान का निर्माण करने की चुनौती दी। कांग्रेस ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और उसने 28 फरवरी, 1928 को दिल्ली में एक ‘सर्वदलीय सम्मेलन’ बुलाया। इस सम्मेलन में 29 संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में प्रारम्भिक विचार-विमर्श के बाद मुम्बई में 19 को पुनः सम्मेलन हुआ। इसमें भारतीय संविधान का मसविदा तैयार करने के लिए पं. मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक आठ सदस्यीय समिति की नियुक्ति की गयी। इस समिति ने तीन माह के भीतर 19 बैठकों में संविधान का मसंविता तैयार किया। यही संविधान का मसविदा इतिहास में ‘नेहरू रिपोर्ट‘ के नाम से प्रसिद्ध है। सब दलों के प्रतिनिधियों ने इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया। इसे डॉ. जकारिया ने ‘एक परिपक्व तथा राजमर्मज्ञ (A masterly and stateman like report.”) कहा है।
नेहरू रिपोर्ट की मुख्य बातें
नेहरू रिपोर्ट की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-
1. केंद्र और प्रान्तों में पूर्ण उत्तरदायी शासन- नेहरू रिपोर्ट में सर्वप्रथम इस बात पर जोर दिया गया कि केन्द्र और प्रान्तों में पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाय और कार्यकारिणी को विधान मण्डलों के प्रति पूर्णतया उत्तरदायी बनाया जाय।
2. प्रान्तों में स्वराज्य- नेहरू रिपोर्ट में सिफारिश की गयी कि प्रान्तों को स्वराज्य प्रदान किया जाय और प्रान्तों में कानून बनाने के लिए एक सदन की स्थापना की जाय तथा प्रान्तों की कार्यकारिणी कौंसिलें भी प्रान्तीय विधान सभाओं के प्रति उत्तरदायी हों।
3. प्रान्तों में केन्द्रों में शक्ति-विभाजन- नेहरू रिपोर्ट ने इस बात की सिफारिश की कि केन्द्र और प्रान्तों की सरकार के बीच संघीय व्यवस्था के आधार पर शक्तियों का विभाजन किया जाय और अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र के पास रक्खी जायें ताकि वह शक्तिशाली रहे।
4. साम्प्रदायिक चुनाव पद्धति का अन्त- नेहरू रिपोर्ट में सिफारिश की गयी कि साम्प्रदायिक चुनाव-पद्धति का अन्त किया जाय और इसके स्थान पर संयुक्त चुनाव पद्धति को अपनाया जाय। साथ-ही-साथ इस बात की भी सिफारिश की गई कि अल्पसंख्यकों को लिए स्थान सुरक्षित किये जायें। और उनकी अतिरिक्त सीटों पर चुनाव लड़ने की स्वतन्त्रता प्रदान की जाय।
5. नये प्रान्तों का निर्माण- भारतीय मुसलमानों की माँग थी कि सिन्ध को मुम्बई से पृथक् कर दिया जाय और उत्तरी-पश्चिमी प्रान्त को अन्य प्रान्तों की भाँति अधिकार प्रदान किये जायँ। नेहरू-रिपोर्ट में मुसलमानों की इन दोनों माँगों को स्वीकार कर लेने की सिफारिश की गयी।
6. भारतीय रियासतें- नेहरू रिपोर्ट में भारतीय रियासतों के सम्बन्ध में विचार किया गया और सिफारिश की गयी कि भारत में औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना के बाद केन्द्रीय सरकार का नियन्त्रण भारतीय रियासतों पर रहेगा; साथ ही भारतीय रियासतों के झगड़ों का फैसला सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जायेगा।
7. केन्द्रीय कार्यकारिणी- नेहरू रिपोर्ट में कहा गया कि गवर्नर जनरल की एक कार्यकारिणी परिषद होगी जिसमें एक प्रधानमंत्री और 6 अन्य मंत्री होंगे। प्रधानमंत्री की नियुक्ति गवर्नर जनरल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति गवर्नर जनरल प्रधानमंत्री के परामर्श पर करेगा। यह मन्त्रिमण्डल संसद के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगा।
8. प्रतिरक्षा- प्रतिरक्षा के सम्बन्ध में रिपोर्ट में कहा गया है कि एक सुरक्षा समिति बनायी जाय जिसमें दो सैनिक विशेषज्ञों के अतिरिक्त प्रधानमंत्री, प्रतिरक्षा मंत्री, प्रधान सेनापति, वायु सेना के सेनापति सम्मिलित होंगे साथ ही यह भी कहा गया है कि भारतीय सेनाओं के सम्बन्ध में सभी नियम इस समिति के सुझावों के आधार रपर बनाये जायँ।
9. सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना- नेहरू रिपोर्ट में भारत के लिए सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना पर जोर दिया गया जिससे कि इंग्लैण्ड की प्रिवी कौंसिल में अपील भेजने की समस्या समाप्त हो जाय। यह भी सुझाव दिया गया कि भारत का यह सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करेगा और प्रान्तों के झगड़ों का निर्णय करेगा।
10. मौलिक अधिकार- नेहरू रिपोर्ट में नागरिकों के कुछ मौलिक अधिकारों की आवश्यकता पर जोर दिया गया, जैसे-
(क) प्रभुसत्ता जनता के पास रहनी चाहिए।
(ख) राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और लोगों के साथ धर्म पर कोई भेद-भाव नहीं किया जायगा।
(ग) स्त्री-पुरुषों को समान अधिकार प्रदान किये जायँ।
(घ) अल्पसंख्यकों को धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक स्वतन्त्रता दी जाय।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि नेहरू रिपोर्ट पूर्णरूप से बुद्धिमत्तापूर्ण थी और उसने सरकार की चुनौती का समुचित उत्तर दिया था। इस रिपोर्ट की महत्ता तो इसी बात से स्पष्ट है कि इस रिपोर्ट के अधिकांश उपबन्ध आज के भारतीय गणतन्त्र के संविधान में मौजूद हैं।
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