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नेतृत्व
समाज की शक्ति संरचना में नेतृत्व का प्रमुख स्थान है। नेता ही राजनीतिक संगठनों और शक्ति संरचना को जीवन, दिशा और प्रवाह प्रदान करते हैं। नेतृत्व के अध्ययन के बिना हम राजनीतिक संगठनों और संरचनाओं की ‘प्रकार्य प्रणाली’ नहीं समझ सकते। अतः स्वभावतः समाज वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान नेता और अभिजात वर्ग के अध्ययन की ओर लगाया है। नेता की योग्यता व क्षमता पर शक्ति का सदुपयोग और दुरुपयोग निर्भर करता है । प्रत्येक समाज की शक्ति-संरचना में कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो लोगों को प्रोत्साहित करते हैं; प्रेरणा देते हैं, मार्ग-दर्शन करते हैं अथवा लोगों को क्रिया करने के लिए प्रभावित करते हैं। ऐसी क्रिया को हम नेतृत्व और ऐसे व्यक्तियों को हम नेता. शक्ति धारण करने वाले, शक्ति मानव, शक्ति केन्द्र और शक्ति अभिजात कह सकते हैं। ऐसे व्यक्ति समूह इ के अन्य लोगों से अपनी भूमिका, प्रभाव और सामाजिक शक्ति के कारण ही भिन्न होते हैं। भाव नेतृत्व एक सार्वभौमिक एवं विश्वव्यापी घटना है। जहां भी जीवन है, वहां समाज है और जहां भी समाज है, वहां नेतृत्व है। व्यक्ति की प्रतिभा और सामाजिक परिस्थितियां मानव में नेतृत्व के जाग्रत करती हैं। प्रभाव और प्रभुत्व ने भी नेतृत्व को जन्म दिया है।
नेतृत्व की अवधारणा
वेब्स्टर नेता को एक मार्ग-दर्शक, एक चालक, एक मुखिया, एक आज्ञा देने वाला, एक दल अथवा सम्प्रदाय का मुखिया, व्यवहार, मत तथा कार्य में आगे रहने वाला तथा दूसरों द्वारा अनुगमन किया जाने वाला, आदि रूपों में परिभाषित करते हैं।
जर्मन राजनीतिशास्त्री रिचार्ड श्मिट नेतृत्व को परिभाषित करते हुए लिखते हैं, “कुछ सामान्य हितों के लिए व्यक्ति एवं समूह के बीच बनने वाले सम्बन्ध तथा इस प्रकार से व्यवहार किया जाना जो उसके द्वारा निर्धारित हो।”
लेपियर तथा फॉर्न्सबर्ग के अनुसार, “नेतृत्व वह व्यवहार है जो दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार को उससे कहीं अधिक प्रभावित करता है जितना कि उन दूसरे लोगों का व्यवहार नेता को प्रभावित करता है।”
टीड (Tead) के अनुसार, “नेतृत्व किसी लक्ष्य के लिए जिसको वे वांछनीय मानते हैं, सहयोग करने के लिए जनता को प्रभावित करने की क्रिया है ।” उपर्युक्त परिभाषाओं से नेतृत्व की चार विशेषताएं स्पष्ट होती हैं, वे हैं-नेता, अनुगामी, परिस्थिति एवं कार्य (Leader, Followers, Situation and Task)।
नेता- प्रत्येक समूह का एक नेता होता है जो समूह के लोगों के साथ विभिन्न समयों में अन्तःक्रिया करता है और उनसे सम्बन्ध स्थापित करता है। वह समूह के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य करता है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि जिस प्रकार के कार्य नेता करता है, समूह के दूसरे व्यक्ति नहीं कर सकते। नेतृत्व का कार्य समूह के सदस्यों में विभाजित किया जा सकता है, किन्तु विशिष्ट रूप से उन्हें पूरा करने का भार नेता पर ही होता है। किसी भी समूह के नेता की पहचान करने की अनेक विधियां हैं जिनमें से समाजमिति (Sociometry) भी एक है। नेता अधिक कुशल, योग्य, अनुभवी एवं बुद्धिमान होता है, इसलिए वह समूह में अन्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक प्रभावी होता है।
अनुगामी – समूह में नेता के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति होते हैं जो नेता का अनुगमन करते हैं, उन्हें हम अनुगामी कहते हैं। बिना अनुगामी के कोई नेता नहीं हो सकता (We can not think of Leader without Followers ) । अतः जब तक ऐसे कुछ व्यक्ति नहीं होंगे जो एक व्यक्ति की आज्ञा मानें अथवा उसका अनुगमन करें तब तक नेतृत्व उत्पन्न नहीं होगा। सामान्य, उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि नेता एवं अनुगामियों में सक्रिय अन्तः क्रिया हो । उद्देश्य की प्राप्ति एवं आन्दोलन के लिए यह भी आवश्यक है कि अनुगामी नेता का नेतृत्व स्वीकार करें और नेता अनुगामियों की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करे। अनुगामी अपने नेता के व्यवहार से अधिक प्रभावित होते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि अनुगामियों का नेता के व्यवहार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, किन्तु प्रभाव सापेक्ष रूप से देखा जा सकता है। नेतृत्व उभयपक्षीय या एक दो-तरफा मामला, है, किन्तु पारस्परिक प्रभाव की मात्रा में अन्तर होता है।
परिस्थिति- नेता और अनुगामी किसी परिस्थिति में अन्तःक्रिया करते हैं। परिस्थिति में हम मूल्यों एवं अभिवृत्तियों (Values and attitudes) को सम्मिलित करते हैं। नेता एवं उसके अनुगामियों को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सामाजिक मूल्यों एवं अभिवृत्तियों को ध्यान में रखकर ही योजना बनानी होती है। हम परिस्थिति में निम्नलिखित पक्षों को सम्मिलित कर सकते हैं, जैसे :
(i) समूह के लोगों के पारस्परिक सम्बन्ध,
(ii) समूह की एक इकाई होने के नाते विशेषताएं,
(iii) समूह के सदस्यों की संस्कृति की विशेषताएं,
(iv) भौतिक परिस्थितियां जिनमें समूह को क्रियाशील होना है,
(v) सदस्यों के मूल्य, अभिवृत्तियां एवं विश्वास, आदि परिस्थिति का समूह के नेतृत्व- निर्धारण में महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।
कार्य- कार्य से तात्पर्य उन क्रियाओं से है जो एक समूह द्वारा अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सामूहिक रूप से की जाती हैं। कार्य को पूरा करने के लिए नेता से विभिन्न प्रकार की क्षमताओं की अपेक्षा की जाती है। कार्य की प्रकृति नेता को कार्य करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि नेतृत्व में नेता, अनुगामी, परिस्थिति और कार्य चार महत्वपूर्ण पक्ष हैं। नेतृत्व किसी एक अथवा कुछ व्यक्तियों का विशेषाधिकार नहीं कहा जा सकता है। जैसा कि लूथर कहते हैं, “कोई भी व्यक्ति जो साधारण लोगों की तुलना में दूसरों को सामाजिक- मनोवैज्ञानिक प्रेरणा प्रदान करने में दक्ष हो और सामूहिक प्रत्युत्तर को प्रभावी बना देता हो, तो वह नेता कहा जा सकता है। “
नेतृत्व या नेता के गुण
एक व्यक्ति के सफल नेता बनने के लिए उसमें अनेक शारीरिक एवं मानसिक विशेषताएं होनी चाहिए। ये विशेषताएं क्या हों, इस बात पर मनोवैज्ञानिकों में मतभेद है। टीड ने 10 सामान्य गुणों को एक नेता के लिए आवश्यक माना है। ऑलपोर्ट अच्छे नेता में 21 और बर्नार्ड 31 गुणों को वांछनीय मानते हैं। बाइण्ड ने 20 मनोवैज्ञानिकों द्वारा बताये गये नेता के 70 गुणों का उल्लेख किया है। एम. एन. बसु ने एक नेता में निम्नांकित 10 गुणों को आवश्यक माना है:
(1) नेता का व्यक्तित्व सुदृढ़ हो ।
(2) नेता दूसरों के प्रति सहानुभूति रखने वाला हो।
(3) नेता एक अच्छा वक्ता होना चाहिए क्योंकि वह अपने भाषण से भीड़ को अपने प्रभाव में लाता है।
(4) नेता की अभिव्यक्ति स्पष्ट होनी चाहिए। उसकी मौखिक अभिव्यक्ति से लोग सरलता से आकर्षित हो जाते हैं।
(5) नेता को समूह मनोविज्ञान का अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
(6) नेता ईमानदार होना चाहिए।
(7) नेता में नैतिकता एवं दयालुता होनी चाहिए।
(8) नेता में अपने आपको परिस्थितियों के अनुकूल ढालने की क्षमता होनी चाहिए।
(9) नेता को सभी प्रकार की सूचनाओं से अवगत होना चाहिए।
(10) नेता अनेक हितों को लेकर चलने वाला होना चाहिए।
उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त भी नेतृत्व या नेता में कुछ और गुणों की अपेक्षा की जाती है जो इस प्रकार हैं :
(1) शारीरिक गुण – नेता शारीरिक दृष्टि से हृष्ट-पुष्ट होना चाहिए। स्टागडिल तथा गोविन की मान्यता है कि लम्बाई नेतृत्व का विशेष गुण है। बेलिंग्रेथ, गोविन, पेट्रीज, आदि ने अपने अध्ययन में पाया कि नेता भारी-भरकम शरीर वाले थे। शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ, सुन्दर एंव आकर्षक व्यक्तित्व वाला नेता के रूप में अधिक पसन्द किया जाता है।
(2) बुद्धिमान (Intelligent)- एक नेता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सामान्य लोगों की तुलना में अधिक बुद्धिमान हो क्योंकि कई बार विकट परिस्थितियों में उसे निर्णय लेना होता है। वह लोगों का मार्ग-दर्शन और नियन्त्रण करता है।
(3) आत्म-विश्वास (Self-Confidence) – नेता में दृढ़ आत्म-विश्वास होना चाहिए।
कई बार उसे संघर्षमय परिस्थितियों से जूझना होता है। अपने साहस और आत्म-विश्वास के आधार पर ही वह लोगों को अपने भाषण से आकर्षित करता है। कॉक्स, ड्रेक, गिव, आदि विद्वानों ने अपने अध्ययनों में पाया कि नेता अपूर्व आत्म-विश्वास से भरपूर थे।
(4) सामाजिकता (Sociability)- नेता व्यवहार कुशल एवं सभी के साथ सम्बन्ध बनाये रखने वाला होना चाहिए। गुडएनफ कैटेल, स्टाइस, मूर तथा न्यूकॉम्ब, आदि सभी विद्वान सफल नेतृत्व के लिए व्यक्ति में सामाजिकता को आवश्यक मानते हैं।
(5) संकल्प-शक्ति (Will-power) – नेता में दृढ़ संकल्प शक्ति होनी चाहिए। अनेक विद्वानों ने अपने अध्ययनों में यह पाया कि नेता की संकल्प शक्ति सामान्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक होती है। संकल्प शक्ति के आधार पर ही व्यक्ति निर्णय लेने, उत्तरदायित्व निभाने और आत्म-संयम बनाये रखने के योग्य होता है।
(6) परिश्रमी (Deligent) – नेता बनने के लिए यह आवश्यक है कि वह परिश्रमी हो। कठोर परिश्रम एवं लगन के कारण ही नेता समूह के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल होते हैं। नेता को परिश्रम करते देख अन्य लोग भी उसका अनुसरण करते हैं। ऐसे व्यक्ति की प्रतिष्ठा अधिक होती है जो कठोर परिश्रम करता है।
(7) कल्पना शक्ति (Imagination-power) – नेता में कल्पना शक्ति का होना आवश्यक है। उसी आधार पर वह योजना बनाता है, उन्हें क्रियान्वित करता है और भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का अनुमान लगाकर उनके समाधान ढूँढ़ता है।
(8) अन्तर्दृष्टि (Foresightedeness) – एक नेता में अन्तर्दृष्टि का होना आवश्यक है। इस गुण के आधार पर वह अपने अनुयायियों की मानसिक स्थिति का पता लगा लेता है। और उसके अनुरूप अपने आचरण को बदलता है। भविष्य की परिस्थितियों का वह पहले से ही मूल्यांकन कर उनके अनुसार कदम उठाता है।
(9) लचीलापन (Flexibility) – अच्छा नेता वही माना जाता है जो समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप अपने को ढाल लेता है। नवीन परिस्थितियों के अनुसार आचरण में परिवर्तन लाना सफल नेतृत्व के लिए आवश्यक है अन्यथा वह रूढ़िवादी और परिवर्तन-विरोधी माना जाता है।
(10) उद्दीपकता (Surgency) – एक नेता को कुशल, प्रफुल्ल, कार्य के लिए, तत्पर, स्पष्टवादी, मौलिक, प्रसन्नचित, उत्साही एवं स्फूर्ति वाला होना चाहिए।
उपर्युक्त सभी सामान्य गुणों की उपस्थिति एक सफल नेता के लिए आवश्यक है। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि नेता में इनके अतिरिक्त और कोई गुण नहीं होना चाहिए अथवा जिनमें ये सभी गुण होंगे, वह आवश्यक रूप से नेता बनेगा ही। यदि समय एवं परिस्थितियों से उपर्युक्त विशेषताएं रखने वाले व्यक्ति का मेल हो जाता है तो उसके नेता बनने की पूरी-पूरी सम्भावना रहती है।
नेतृत्व के प्रकार
नेतृत्व की उत्पत्ति, नेता के व्यवहार, नेता तथा अनुयायियों के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों के आधार पर नेताओं के अनेक प्रकार देखने को मिले हैं। नेताओं के विविध प्रकार निम्न हैं-
नेता व अनुयायियों के पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर नेतृत्व मुख्यतः चार प्रकार का माना गया है-
(1) हृदयग्राही नेतृत्व (Persuasive Leadership)- इसमें दो वे नेता आते हैं जो अपने अनुयायियों का दिल जीतकर नेतृत्व करते हैं, जैसे, महात्मा गांधी।
(2) प्रभुत्वशाली नेतृत्व (Dominant Leadership)- इसमें राजकीय पद पर आसीन नेता अपने अनुयायियों को प्रभावित करता है, जैसे, इन्दिरा गाँधी।
(3) संस्थागत नेतृत्व (Institutional Leadership) – इसके अन्तर्गत किसी संस्था से सम्बन्धित अधिकारी अपने अनुयायियों से औपचारिक सम्बन्ध रखते हैं, जैसे, बैंक मैनेजर, महाविद्यालय का प्राचार्य, आदि।
(4) विशेषज्ञों का नेतृत्व (Leadership of the Experts) – अपने क्षेत्र में प्रवीणता के आधार पर नेतृत्व किया जाता है, जैसे, डॉक्टर, इन्जीनियर, वकील, आदि। नेतृत्व की मान्यता के आधार पर भी नेतृत्व के तीन प्रमुख प्रकारों का उल्लेख किया जा सकता है:
(1) स्वतः नियुक्त (Self-appointed) – ऐसे नेता जो अपनी कार्यक्षमता, योग्यता, विश्वास प्रदर्शन तथा वाक् चातुर्य के आधार पर स्वतः ही नेता बन बैठते हैं चाहे वे किसी उच्च पद पर आसीन नहीं भी हों। उदाहरणतः संजय गांधी इसी प्रकार के नेता थे।
(2) समूह नियुक्त (Group-appointed) – जो समूह के द्वारा उनके गुणों के आधार पर नियुक्त किये जाते हैं, जैसे, यूनियन नेता व चुनाव जीतकर आये नेता ।
(3) कार्यकारिणी द्वारा नियुक्त (Executive Appointed)- जिन्हें कार्यकारिणी (उच्च अधिकारी) समूह पर नियन्त्रण हेतु नियुक्त करती है।
समूह की रूचियों के आधार पर नेतृत्व के तीन मुख्य प्रकार हो सकते हैं :
(क) बौद्धिक (Inetllectual) – जो व्यक्ति पेन बुद्धिमतापूर्ण सुझावों के कारण नेतृत्व प्राप्त कर लेता है।
(ख) कलात्मक (Artistic) – जो अपनी कलात्मक अभिव्यक्तियों के कारण नेतृत्व कर पाते हैं।
(ग) प्रबन्धकारी (Executive) – व्यवस्था हेतु जिन्हें नेतृत्व प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त, अनुयायियों को प्रभावित करने की विधि के आधार पर नेतृत्व के दो प्रकार हैं :
(अ) प्रजातन्त्रातम्क (Democratic) – प्रजातान्त्रिक नेता वही होता है जिसमें समूह के अधिकांश सदस्य अपना विश्वास व्यक्ति करें।
(ब) निरंकुश (Authoritarian) – जिसमें समूह के सभी अधिकार नेता के हाथ में होते हैं तथा जनसाधारण की इच्छा का कोई महत्व नहीं होता है।
इसी प्रकार विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से नेतृत्व के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है। यहां हम बोगार्डस द्वारा वर्णित वर्गीकरण की विवेचना करेंगे।
बोगार्डस का वर्गीकरण
बोगार्डस ने नेतृत्व का वर्गीकरण इस प्रकार किया है :
(1) प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नेतृत्व (Direct and Indirect Leadership)
प्रत्यक्ष नेतृत्व के अन्तर्गत नेता का अपने समूह से प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है अर्थात् समूह अपने नेता को देख और सुन सकते हैं तथा अपनी बात को उससे कह सकते हैं। इधर नेता अपने बुद्धि, कौशल तथा वाक् चातुर्य द्वारा समूह के लोगों को अपनी बात मनवाता है और उन्हें यह विश्वास दिलाता है कि वह भी उन्हीं में से एक है।
अप्रत्यक्ष नेतृत्व में नेता का अपने अनुयायियों से अप्रत्यक्ष सम्पर्क ही होता है तथा वह अपनी खोजों विचारों व कार्यों द्वारा विशाल जनसमुदाय तथा अपने से दूर-दूर स्थित व्यक्तियों में भी अपनी ख्याति प्राप्ती कर लेता है। बोगार्डस के कथनानुसार ऐसे नेताओं को साधारणतया मृत्यु के बाद ही यश व सम्मान प्राप्त होता है।
(2) सपक्षीय और वैज्ञानिक नेतृत्व (Partial and Scientific Leadership)- सपक्षीय नेतृत्व में नेता एकपक्षीय होता है, अर्थात् वह अपने समूह के अवगुणों पर परदा डालकर दूसरे समूहों की तुलना में अपने समूह के गुणों का बढ़ा-चढ़ाकर बखान करता है तथा अपने समूह के हित के बारे में ही सोचता है। राजनीतिक नेता इसी श्रेणी में आते हैं।
वैज्ञानिक नेतृत्व सापक्षीय नेतृत्व के एकदम विपरीत होता है। इस प्रकार के नेतृत्व में नेता सत्य और असत्य तथा अच्छाई और बुराई दोनों का समान रूप से मूल्यांकन करता है त सत्य की खोज में लगा रहता है। वह किसी विशेष हित से जुड़ा हुआ न होकर सबके प्रति समान दृष्टिकोण रखने वाला होता है।
(3) सामाजिक अधिशासी व मानसिक नेतृत्व (Social Executive and Mental Leadership)- सामाजिक नेतृत्व में नेता अपने त्यागमयी जीवन द्वारा सामाजिक कार्यों के सम्पन्न कर समस्याओं का निराकरण करता है और समूह में लोकप्रियता प्राप्त करता है। मानसिक नेतृत्व में नेता में बौद्धिकता अधिक होती है। इस प्रकार के नेता अपनी बुद्धि द्वारा अपने विचारों का प्रभाव अन्य व्यक्तियों के मस्तिष्क पर डालकर उनके विचारों को परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं, परन्तु ऐसे नेताओं के लिए शान्ति या जीवनयापन की सुविधाओं का होना आवश्यक है। प्रबन्ध या अधिशासी नेतृत्व में नेता में समाज सेवा, बौद्धिक उपलब्धि व प्रबन्ध-योग्यता, आदि सभी गुण होते हैं। ऐसे नेता अपने विचारों से व्यक्तियों को प्रभावित कर समाज-सेवी कार्य करने हेतु उन्हें प्रेरित करते हैं तथा स्वयं भी समाज सेवा में लगे रहते हैं। ये प्रबन्ध-क्षमता के कारण अन्य व्यक्तियों पर शासन भी करते हैं।
(4) पैगम्बर, सन्त, विशेषज्ञ व मालिक (Prophet, Saints, Experts and Boss) – पैगम्बर ऐसा नेता होता है जो ईश्वर का दूत समझा जाता है तथा उसके कथनों को ईश्वरीय प्रेरक माना जाता है। इसी कारण लोग उसके आध्यात्मिक विचारों को ग्रहण कर उसके अनुयायी बन जाते हैं। ऐसे नेता में अविश्वास उस स्थिति में उत्पन्न होता है जब लोगों के अलौकिक शक्ति में विश्वास में कमी आती है।
सन्त सात्विक, सादा व पवित्र जीवन व्यतीत करने वाले ईश्वर के भक्त होते हैं। ये अपने उपदेशों के माध्यम से लोगों को प्रभावित कर उन्हें सात्विक जवीन जीने हेतु प्रेरित करते हैं। विशेषज्ञ वह है जो किसी क्षेत्र में विशेष योग्यता अथवा दक्षता रखता हो तथा प्रतिस्पर्द्धा में सबसे आगे हो तथा जिसने अपने क्षेत्र में सर्वोच्च स्थिति प्राप्त की हो तब अन्य व्यक्ति भी उसकी कुशलता के कारण उसका अनुसरण करने को प्रेरित होते हैं। मालिक नेता अपने चातुर्य व सम्पन्नता के आधार पर दूसरों को अपने अधीन रखता है, यद्यपि ऐसे नेताओं का क्षेत्र विस्तृत नहीं होता है। फैक्टरी, कारखानों या दफ्तरों के अफसर या मालिक अथवा सत्ता प्राप्त राजनीतिज्ञ इस श्रेणी में आते हैं।
(5) स्वेच्छाचारी, करिश्माई, पैतृक तथा प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व (Autocratic, Charismatic, paternal and Democratic Leadership) – स्वेच्छाचारी नेता बहुतमुखी प्रतिभा सम्पन्न होता है जिसके हाथ में सत्ता सम्बन्धी सभी अधिकार होते हैं। समूह की इच्छा, अनिच्छा व लाभ-हानि की उसे कोई चिन्ता नहीं होती है वरन् उसकी इच्छा ही सर्वोपरि होती है।
करिश्माई नेता किसी विधि-विधान एवं परम्परा की अपेक्षा अपनी विलक्षण बुद्धि, चातुर्य, करामात या चमत्कारों के बल पर नेतृत्व प्राप्त करते हैं। अपने चमत्कारों से प्रभावित करने हेतु इन्हें साधना, प्रयत्न एवं प्रचार-प्रसार की आवश्यकता होती है। ऐसे नेताओं में दैवीय शक्ति का अंश माना जाता है। इस श्रेणी में जादूगर, पीर, धार्मिक नेता, सैनिक, योद्धा, आदि आते हैं, परन्तु इनका नेतृत्व अस्थायी होता है क्योंकि इस प्रकार के नेता जैसे ही अपने चमत्कारों के प्रभावपूर्ण प्रदर्शन में असफल होते हैं, वैसे ही उनका पतन भी प्रारम्भ हो जाता है।
पैतृक नेतृत्व में नेता का अपने अनुयायियों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, वे पिता सादृश्य होते हैं तथा लोगों के दिल में उनके प्रति अपार श्रद्धा व आदर की भावना होती है। वे जन- कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होते हैं।
प्रजातन्त्रात्मक नेता अपने समूह के हित, सुख-सुविधाओं व विचारों के प्रति हमेशा सजग रहते हैं। वे समूह-कल्याण हेतु अपना सर्वस्व तक अर्पित कर देते हैं।
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