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परीक्षा का अर्थ
परीक्षा एक बहुत ही व्यापक शब्द है, जिसका व्यवहार जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के विविध स्तरों परं विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। शैक्षणिक, सामाजिक, राजनैतिक, स्वास्थ्य एवं नैतिक-सभी क्षेत्रों में इसका उपयोग करके हम अपने अभीष्ट की पूर्ति करते हैं। शिक्षक विद्यार्थियों के ज्ञानोपार्जन के मूल्यांकन में, राजनीतिज्ञ जनमत के मापन में, चिकित्सक रोगों के निदान में तथा नीतिशास्त्री जनविशिष्ट के नैतिक स्तर के परीक्षण में इसका उपयोग करते हैं। हमारा तात्पर्य केवल उस परीक्षा-प्रणाली से है, जिसका उपयोग शैक्षणिक संस्थाओं में विद्यार्थियों के ज्ञानोपार्जन के मापन में किया जाता है । पाठशाला या स्कूल का उद्देश्य बच्चों की योग्यताओं को समुचित ढंग से विकसित करना है ताकि वे भावी जीवन में सफल हो प्रमाणित हो सके। इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बच्चों को पाठशाला या स्कूल भेजा जाता है। बच्चे अपने उद्देश्य की प्राप्ति में कहाँ तक सफल हो सके हैं, इसकी जानकारी शिक्षक के लिए आवश्यक है। इससे शिक्षक को अपने अध्यापन की सफलता का ज्ञान होता है तथा बच्चों के भविष्य के संबंध में योजना बनाने का अवसर मिलता है इसके अतिरिक्त विभिन्न संस्थाओं के शैक्षणिक स्तर के मूल्यांकन तथा विद्यार्थियों के वर्गीकरण में भी मदद मिलती है। इसीलिए बच्चों के ज्ञानोपार्जन का परीक्षण आवश्यक है। जिस परीक्षण के द्वारा बच्चों के ज्ञान-उपार्जन का मापन किया जाता है उसे ही परीक्षा कहते हैं।
परीक्षा की परिभाषा
परीक्षा की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है “परीक्षा का तात्पर्य उन परीक्षणों से है जिनके द्वारा पाठ्यक्रम के विभिन्न महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों अथवा क्षेत्रों में विद्यार्थियों की उपलब्धि का मापन किया जाता है।” इस परिभाषा में निम्नलिखित बातें महत्त्वपूर्ण हैं-
(i) परीक्षा एक मापन प्रणाली है।
(ii) इसके द्वारा विद्यार्थियों के ज्ञानोपार्जन का मापन किया जाता है।
(iii) इससे विद्यार्थियों की पाठ्यक्रमिक उपलब्धियों का मापन होता है इस प्रकार शिक्षक ‘जान पाता है कि विद्यार्थी अपने पाठ्यक्रम के विषयवार उद्देश्यों से कहाँ तक
लाभान्वित हो सके हैं। इसी प्रकार स्लेवीन के अनुसार, “विद्यार्थी मूल्यांकन का तात्पर्य परीक्षणों, लिखित प्रतिवेदनों तथा श्रेणियों का उपयोग कर छात्र निष्पादन के औपचारिक मूल्यांकन से है।”
शिक्षा में परीक्षा की आवश्यकता
शिक्षा में परीक्षा की आवश्यकता कई कारणों से अनिवार्य है-
1. प्रबन्धकों के लिए- प्रबन्धकों के दृष्टिकोण से शिक्षा में परीक्षा का उपयोग बहुत ही आवश्यक है। इससे उन्हें अपनी संस्था की शैक्षणिक प्रगति का ज्ञान हो पाता है। विभिन्न वर्गों के विद्यार्थियों के परीक्षाफल को देखकर अधिकारियों को इस बात का ज्ञान हो पाता है कि उनकी संस्था उनकी योजना के अनुकूल प्रगति पर है अथवा नहीं। यदि प्रगति संतोषप्रद नहीं होती है तो वे इसके कारणों का विश्लेषण करके उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं। परीक्षाफल के आधार पर बच्चों की प्रगति की सूचना उनके माता-पिता या अभिभावक तक भेजने में भी प्रबन्धकों को सुविधा होती है। इसके अतिरिक्त परीक्षाफल के आधार पर बच्चों के संबंध में जो शैक्षणिक ज्ञान प्रमाण तैयार किए जाते हैं, उनका उस समय बहुत ही उपयोग होता है जबकि बच्चों का स्थानान्तरण एक संस्था से दूसरी संस्था में कर दिया जाता है नयी संस्था में प्रवेश करते समय बच्चों के प्रशिक्षण में इससे काफी सहायता मिलती है । इसी तरह आश्रयदाताओं को अपनी संस्था की प्रगति से अवगत कराने में अधिकारियों को सुविधा होती है। इससे अधिकारियों अथवा प्रबन्धकों द्वारा नियुक्त शिक्षकों की व्यावहारिक कार्य-कुशलता का उन्हें ज्ञान प्राप्त होता रहता है, जिसके आधार पर शिक्षकों को मर्यादित करने में उन्हें सहायता मिलती है।
2. आश्रयदाताओं के लिए- परीक्षा का महत्त्व किसी संस्था के आश्रयदाताओं के दृष्टिकोण से भी कम नहीं है। स्कूल या पाठशाला के परीक्षाफल के आधार पर वे जान पाते हैं कि उस संस्था में अध्यापन कार्य समुचित रूप से चल रहा है अथवा नहीं। संतोषप्रद प्रगति होने पर उन्हें संतोष प्राप्त होता है और अधिक सहायता देने की प्रेरणा मिलती है। इसके विपरीत असंतोषप्रद प्रगति होने पर वे उसमें सुधार लाने का सक्रिय प्रयास करते हैं।
3. निरीक्षक के लिए- किसी स्कूल या पाठशाला के निरीक्षक को भी परीक्षा से कई प्रकार के लाभ पहुँचते हैं। निरीक्षक का मुख्य कर्त्तव्य अध्यापन के विकास में शिक्षक की सहायता करना है। इसके लिए आवश्यक है कि वे विद्यार्थियों की पाठ्य क्रमिक उपलब्धि से अवगत हों। इसी तरह पाठ्यक्रम में परिवर्तन लाने में भी निरीक्षक को परीक्षाफल से बड़ी सहायता मिलती है। अध्यापन विधि के मूल्यांकन में भी परीक्षक को इससे मदद मिलती है।
4. शिक्षक के लिए- शिक्षकों के लिए भी परीक्षा का महत्त्व कम नहीं है। अपने स्कूल के परीक्षाफल के आधार पर शिक्षण-विधि तथा अन्य अनेक शैक्षणिक समस्याओं के संबंध में अधिकारियों एवं निरीक्षकों को सही सुझाव देने में शिक्षकों को काफी सुविधा होती है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों में विद्यार्थियों के स्थान के निर्णय, उनकी शैक्षणिक उपलब्धि तथा आयु के संबंध में मूल्यांकन, उनकी शैक्षणिक आवश्यकताओं के विश्लेषण, सामान्य एवं मन्द-बुद्धि के विद्यार्थियों के विभेद तथा उनकी शिक्षा-संबंधित कठिनाइयों के विश्लेषणों में शिक्षकों को परीक्षाफल से काफी सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त अपने आत्म-निरीक्षण तथा छात्रों के सर्वेक्षण में भी पर्याप्त सहायता मिलती है।
5. विद्यार्थियों के लिए- विद्यार्थियों के दृष्टिकोण से भी परीक्षा का उपयोग आवश्यक है। इससे उन्हें पढ़ने-लिखने की प्रेरणा मिलती है। परीक्षा के भय से विद्यार्थी अपने पाठ्य को पढ़ते हैं तथा उसके कठिन अंशों के केवल परीक्षा में सफल होने के लिए ही रट कर याद कर लेते हैं। हमारे दैनिक जीवन के निरीक्षण साक्षी हैं कि कुछ विद्यार्थी केवल परीक्षा के समय ही दिन-रात मेहनत करके पाठ्य को याद करते हैं। अतः कहना न होगा कि शिक्षा ग्रहण करने की और विद्यार्थियों को प्रेरित करने में परीक्षा एक प्रबल उद्दीपन का काम करती है। इसी तरह, परीक्षा के फलस्वरूप विद्यार्थियों में प्रतियोगिता की भावना उत्पन्न होती है, स्मरण तथा संगठन की क्षमता में वृद्धि होती है तथा आत्म-मूल्यांकन का अवसर मिलता है।
6. शैक्षणिक निर्देशन के लिए— शिक्षा में निर्देशन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सफल निर्देशन के लिए परीक्षा आवश्यक है। कारण यह है कि शिक्षा का उद्देश्य न केवल अध्यापन है बल्कि विद्यार्थियों के लिए प्रयोजन बनाना भी है। दूसरे शब्दों में विद्यार्थियों को निर्देशन देना कि भविष्य में उन्हें किस प्रकार की शिक्षा उनके लिए उचित हो सकेगी। इस निर्देशन के लिए विभिन्न विषयों में विद्यार्थियों के ज्ञानोपार्जन या उपलब्धि की जानकारी भी आवश्यक है । जिस विषय में अच्छा करने की अधिक संभावना होती है उसी विषय में विद्यार्थी विशेष को ज्ञान-उपार्जन के लिए निर्देशन दिया जाता है। इसी तरह परीक्षाफल के आधार पर विद्यार्थियों को निर्देशन देने में सुविधा होती है कि वे उच्च शिक्षा के योग्य हैं अथवा नहीं।
7. व्यावसायिक निर्देशन के लिए — व्यवसाय के चयन में भी परीक्षा का महत्त्व कम नहीं है। व्यावसायिक सफलता में बुद्धि परीक्षण, अभिरुचि परीक्षण एवं मनोवृत्ति परीक्षण के साथ-साथ उपलब्धि-परीक्षण का भी मुख्य स्थान है। जिस विषय में विद्यार्थी की उपलब्धि अधिक होती है, उसी विषय से संबंधित व्यवसाय के लिए उसे निर्देशन दिया जाता है। जैसे— एक माध्यमिक स्तर के विद्यार्थी की उपलब्धि गणित में अधिकतम हो तो उसे इंजीनियरिंग अथवा लेखा संबंधी व्यवसाय के लिए निर्देशन दिया जा सकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षा में परीक्षा तथा मूल्यांकन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उपर्युक्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ही अनेक त्रुटियों के बावजूद परीक्षा का उपयोग शैक्षणिक संस्थाओं में किया जाता है।
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