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पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा
‘Environment’ (पर्यावरण) शब्द फ्रेंच भाषा के शब्द ‘environner’ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है घिरा हुआ या घेरना। ‘पर्यावरण’ शब्द का शब्दकोशीय अर्थ होता है आस-पास या पास-पड़ोस (Surrounding); जन्तुओं या पौधों की वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाली बाह्य दशायें, कार्य प्रणाली (Working) तथा जीवन-यापन की दशायें आदि। सविन्द्र सिंह एवं दुबे के अनुसार, “पर्यावरण एक अविभाज्य समष्टि है तथा भौतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक तत्वों वाले पारस्परिक क्रियाशील (Interacting) तन्त्रों से इसकी रचना होती है। ये तन्त्र अलग-अलग तथा सामूहिक रूप से विभिन्न रूपों में परस्पर सम्बद्ध होते हैं भौतिक तत्व (स्थान, स्थल रूप, जलीय भाग, जलवायु, मृदा, शैल तथा खनिज) मानव के निवास्य क्षेत्र (Human Habitat) की परिवर्तनशील विशेषताओं, उसके सुअवसरों तथा प्रतिबन्धक अवस्थितियों (limitations) को निश्चित करते हैं। जैविक तत्व (पौधे, जन्तु, सूक्ष्म जीव तथा मानव) जीवमण्डल की रचना करते हैं। सांस्कृतिक तत्व (आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक) मुख्य रूप से मानव निर्मित होते हैं तथा सांस्कृतिक पर्यावरण की रचना करते हैं। पर्यावरण को विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है –
हर्स कोविट्स के अनुसार, “पर्यावरण सम्पूर्ण बाह्य परिस्थितियों और उनका जीवधारियों पर पड़ने वाला प्रभाव है, जो जैव जगत के जीवन विकास चक्र का नियामक है।”
फिटिंग के अनुसार, “जीवों के परिस्थितिकी (Ecological) कारकों का योग पर्यावरण है।’
ई. जे. रॉस के अनुसार “पर्यावरण एक बाह्य शक्ति है जो हमें प्रभावित करती हैं।”
डी. एच. डेविस के अनुसार, “पर्यावरण का अभिप्राय भूमि या मानव को चारों ओर से घेरे उन सभी भौतिक स्वरूपों से है जिनमें न केवल वह रहता है बल्कि जिनका प्रभाव उसकी आदतों एवं क्रियाओं पर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। इस प्रकार के स्वरूपों में धरातल, भौतिक एवं प्राकृतिक संसाधन, मिट्टी की प्रकृति, उसकी स्थिति, जलवायु वनस्पति, खनिज सम्पदा, जल-थल का वितरण, उसकी स्थिति, जलवायु वनस्पति, खनिज सम्पदा, जल थल का वितरण, पर्वत, मैदान, सूर्य ताप आदि जो भू- भू मण्डल पर उपस्थित होती हैं एवं जो मानव को प्रभावित करती हैं।
पर्यावरण की आवश्यकता एवं महत्व
पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता का प्रमुख कारण पारिवारिक तथा सामाजिक परिस्थितियों में परिवर्तन है। भारत में भी कुछ प्राकृतिक क्षेत्रों तथा वन्य क्षेत्रों को “जीव मण्डल आगार” “राष्ट्रीय उद्यानों” या ‘वन्य जीव अभयारण्यों के रूप में सुरक्षित करने के अनेक प्रयास किये गये हैं। इस सन्दर्भ में नेशनल वाइल्ड लाइफ ऐक्शन प्लान’ की शुरुआत 1983 में की गयी।
पर्यावरण शिक्षा के कार्य क्षेत्र
पर्यावरण शिक्षा के कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत मानविकी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, साहित्य एवं कला और संगीत के क्षेत्र आते हैं।
पर्यावरण के लक्षण
यह निम्न प्रकार हैं-
- जीवों के चारों ओर वस्तुएँ पर्यावरण बनाती है।
- पर्यावरण एक खुला तन्त्र है।
- भौतिक व अजैविक घटक पर्यावरण के महत्वपूर्ण भाग हैं।
- पर्यावरण की अपेक्षा आवास स्थान विशिष्टततम होता है।
- जीव पर्यावरण के प्रति अनुकूलता उत्पन्न करते हैं।
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