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पाउलो फ्रेरा का जीवन परिचय (PAULO FREIRE)
पाउलो फ्रेरा का जीवन परिचय- पाउलो फ्रेरा का जन्म सन् 1921 में उत्तर-पूर्वी ब्राजील के एक छोटे से नगर रेसिफ में हुआ था। पालो फ्रेरा की प्रारम्भिक शिक्षा रेफिल के स्कूल में हुई किन्तु सन् 1921 में शेयर बाजार में भारी गिरावट ने ब्राजील में आर्थिक संकट को जन्म दे दिया। फ्रेरा के परिवार पर भी इस संकट का गहरा प्रभाव पड़ा जिस कारण वह अपनी स्कूली पढ़ाई नियमित नहीं कर पा रहे थे। आर्थिक मंदी के समय में फ्रेश के परिवार को दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं हो पा रहा था। उसी वक्त उन्होंने कसम खाई कि वे समाज से गरीबी व भूख को समाप्त करने का प्रत्येक प्रयास करेंगे।
सन् 1959 में फ्रेश ने रैफिल विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की तथा उसी विश्वविद्यालय में शिक्षा दर्शन के प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् 1964 से जीवन के पन्द्रह वर्ष फ्रेरा ने देश निकाला में बिताए। उनके जनजागरण आन्दोलन के कारण उन्हें कारावास में डाल दिया गया। सन् 1979 में ब्राजील में जब उन्होंने इसके लिए माफी माँगी तब वह अपने देश वापस आए।
फ्रेरा ने जेनेवा में वर्ल्ड कौंसिल फार चर्चेज के शिक्षा विभाग के लिए कार्य किया, उन्होंने विश्व भ्रमण किया और सभी जगह साक्षरता कार्यक्रमों को व्यवस्थित करने में सहायता की।
2 मई, 1997 को पालो फ्रेरा का देहावसान हो गया।
फ्रेरा का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy of Freire)
फ्रेरा के अनुसार मनुष्य जो भी क्रियाएँ या व्यवहार करता हैं उसके पीछे उसकी आवश्यकता निहित होती है तथा उसका प्रत्येक कार्य किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है। उदाहरणार्थ- व्यक्ति की भोजन करने की इच्छा में भी भूख उसकी आन्तरिक आवश्यकता होती है और इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए वह जो क्रियाएँ करता है उससे उसे अनुभव प्राप्त होता है जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। दूसरे शब्दों में- आवश्यकता पूर्ति के लिए व्यक्ति में कुछ आन्तरिक प्रवृत्तियों के रूप में कुछ प्रेरक जैसे- प्रेरणा, रुचि, धैर्य, थकान, आदि होते है ये ही प्रेरक व्यक्तित्व आवश्यकता कहलाते है। आवश्यकता पूर्ति के लिए व्यक्ति वातावरण के साथ जो प्रतिक्रिया करता है। यही प्रतिक्रिया शिक्षा प्रतिक्रिया है तथा शिक्षा से व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
फ्रेरा का जीवन दर्शन ईसामसीह के जीवन दर्शन से प्रभावित था तथा वे शिक्षा द्वारा व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहते थे।
शैक्षिक आदर्श (Educational Ideals)
फ्रेरा ऐसी शिक्षा के पक्ष में है जिससे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सहयोग, प्रेम तथा सहानुभूति का संचार हो तथा जिससे सर्वत्र शन्ति और भ्रातृत्व का विकास हो क्योंकि आधुनिक काल में निरंकुश और आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग नहीं चाहते कि किसान, मजदूर और दलित शिक्षित हो क्योंकि वे स्वयं के स्वार्थ में इतने लीन हो चुके हैं कि दूसरों को कष्ट पहुँचाने में जरा भी संकोच नहीं करते है। व्यक्ति अनेक मानसिक यातनाओं से ग्रसित है वैज्ञानिक प्रगति के बाद भी मानव को मानसिक शान्ति नहीं मिल पा रही है। इसका कारण मानवतावादी शिक्षा का अभाव है। फ्रेश ने जिस मानवतावाद को अपनाया उसमें आज के किसान व दलितों के प्रति प्रेम व न्याय है।
शैक्षिक कार्यक्रम (Educational Programme)
फ्रेरा ने सर्वप्रथम शैक्षिक प्रसार हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन किया। साक्षरता के प्रसार हेतु सन् 1968 के समक्ष उन्होंने एक पुस्तक का विमोचन किया जिसका नाम ‘दलितों का शिक्षण विज्ञान (Pedagogy of the oppressed) है।
इस पुस्तक के माध्यम से फ्रेश ने विभिन्न साक्षरता कार्यक्रमों के द्वारा अपने शैक्षिक सिद्धान्तों को लिखित रूप दिया। उन्होंने दलितों को तीसरी दुनिया बताया तथा उनके विकास एवं उत्थान की बात कही। उन्होंने मानवीय शिक्षा के विचार द्वारा उन्हें शिक्षित एवं साक्षर बनाने का कार्य किया।
कुछ समय पूर्व ये साओ पालों नगर के शिक्षा सचिव के रूप में नियुक्त हुए इस पद पर आसीन रहकर उन्होंने विद्यालयी व्यवस्था को सुधारा एवं विभिन्न साक्षरता कार्यक्रमों की प्रगति हेतु अनेक प्रयास एवं कार्यक्रमों की प्रगति की। फ्रेश की पुस्तक ‘Pedagogy of the oppressed’ पर पूर्वी जर्मनी में रोक लगा दी गई थी परन्तु आज सम्पूर्ण विश्व में इस पुस्तक को ख्याति मिली एवं सभी इस पुस्तक से लाभान्वित हो रहे है।
पाठ्यचर्या (Curriculum)
फ्रेरा पाठ्यचर्या में कुछ परिवर्तन करके उसे पुनर्गठित करने के पक्ष में थे इसके लिए उन्होंने दार्शनिकों, भौतिक विज्ञानियों, गणितज्ञों, कला शिक्षकों, समाजशास्त्रियों की
सहायता ली तथा पाठ्यचर्या को अधिक उपयोगी व विस्तीर्ण बनाया। उन्होंने पाठ्यचर्या के लिए शिक्षा, कला, नीतिशास्त्र, खेल, भाषा, सामाजिक वर्ग, मानव अधिकार दार्शनिक विचारधारा जैसे विषयों पर विचार-विमर्श को प्रोत्साहन दिया। पाठ्यचर्या में अल्पसंख्यकों के मूल्यों को भी शामिल करना चाहिए। फ्रेरा ने सार्त्र, एरिक फ्रॉम, माओ, मार्तिन लूथर किंग के विचारों को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया, इसके साथ इनका मत था गणित, इतिहास, भूगोल को सरल करके पढ़ाया जाना चाहिए।
पाठ्यचर्या में समाजवाद व साम्यवाद के विचारों को भी स्थान दिया गया है। फ्रेश लोकतन्त्र के अनुसार पाठ्यक्रम को संगठित करने के पक्ष में थे ।
शिक्षण विधि (Teaching method)
फ्रेश ने ऐसी शिक्षण विधि का सर्मथन किया जिससे सीखने वाला अपने जीवन के अनुभवों से जुड़ा रहे। उसे ऐसा नहीं लगना चाहिए कि शिक्षा के द्वारा वह अपनी भाषा, संस्कृति व परम्परा से दूर हो रहा है। साक्षर करने की जो विधि फ्रेरा ने अपनाई वो इस प्रकार से है। उनके अनुसार कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिन्हें उत्पादक या प्रजनक शब्द कहा जाता है। जैसे – झोपड़-पट्टी, वर्षा, जमीन, साइकिल आदि ये शब्द सीखने वाले की माँग, कुण्ठा, चिन्ता, इच्छा, आकांक्षा स्वप्न को व्यक्त करते है। फ्रेश की शिक्षण विधि का एक उदाहरण देखिए मछुआरों के समुदाय मान्तो माजों के सामने एक – उत्पादक शब्द बोनिता (सुन्दर) को रखते हैं, जो एक मछली का भी नाम है, फिर उन लोगों को एक शहर का चित्र दिखाया जिसमें मकान में एक आदमी बोनिता (मछली) पकडे हुए, तथा मछली का शिकार करने की नावें थी। उन लोगों ने उसे ध्यान से देखा और पास जाकर कहा – “यह मान्तो माजों है और हमें इसकी जानकारी नहीं थी।” इस प्रकार मछुआरों को शिक्षित करने की इस विधि का सम्पूर्ण विश्व में प्रशंसा होती है।
मूल्यांकन (Evaluation)
फ्रेश मानववादी विचारधारा के प्रेरक थे जिससे प्रभावित होकर उन्होंने दलितों की शिक्षा एवं उनके प्रति प्रेमपूर्वक दृष्टिकोण रखने की प्रेरणा दी है।
फ्रेरा प्रायः अन्य अनेक विचारकों से प्रभावित थे तथा उनको अपनी शिक्षा का एक अंग बनाना चाहते थे। उन्होंने सरल तरीके से साक्षरता का प्रसार कार्यक्रम द्वारा दलितों का उत्थान करने का विचार दिया। इन सभी तथ्यों द्वारा उन्होंने समाज को त्रिलोक में विभाजित करके तीसरी दुनिया (दलित वर्ग) के उत्थान एवं विकास का विचार दिया।
यद्यपि फ्रेरा ने समाज के हितों को ध्यान में रखकर अपनी पुस्तक में शिक्षा एवं साक्षरता कार्यक्रमों का प्रतिपादन किया। पुस्तक के कुछ तथ्य जैसे उन्होंने समाज के केवल एक पक्ष पर ध्यान दिया जिससे समाज के अन्य पक्षों का हास हो गया तथा उन्होंने कोई भी लिखित शैक्षिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन नहीं किया।
फ्रेरा की शिक्षा को देन (Contribution to Education)
फ्रेस ने रूप से समाज के दलित वर्ग के लिए साक्षरता कार्यक्रमों का प्रतिपादन किया तथा एक पुस्तक की ‘पेडागॉगी ऑफ द ऑप्रेस्ड’ की रचना की तथा उन्होंने इसके साथ-साथ शिक्षा सचिव के रूप में भी शिक्षा जगत में विशेष योगदान दिया तथा विद्यालय व्यवस्था को सुधारने हेतु साक्षरता कार्यक्रमों की प्रगति हेतु अनेक प्रयास किए।
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