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पावलॉव का अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त | पावलॉव का सिद्धान्त | Principle of Pavlav in Hindi

पावलॉव का अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त
पावलॉव का अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त

पावलॉव का अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त | पावलॉव का सिद्धान्त | Principle of Pavlav in Hindi

पावलॉव का अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त | Principle of Pavlav in Hindi – इस सिद्धान्त के प्रतिपादक रूसी वैज्ञानिक पावलॉव को माना जाता है। इसे सहज सम्बन्ध के नाम से भी जाना जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार, “जब कोई प्राणी अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक क्रिया करना सीख जाता है, तब इस प्रकार सीखने की प्रक्रिया को सम्बन्ध प्रत्यावर्तन द्वारा सीखना कहते हैं। उदाहरण – एक बालक 3, 4 बिल्ली के बच्चों को पकड़ता ह और बार-बार बिल्ली का बच्चा गुर्राता एवं डराता है। इसके परिणामस्वरूप बालक बिल्ली के बच्चों को देखते ही डरने लगता है। इस उदाहरण में बिल्ली के बच्चे के आने मात्र से डर जाना एक अस्वाभाविक उत्तेजना की दशा है, किन्तु बालक का डरना एक स्वाभाविक क्रिया है। अतएव ऐसी दशा में दोनों के मध्य सम्बन्ध प्रत्यावर्तन के अनुसार सहज सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।

सम्बन्ध प्रत्यावर्तन का अर्थ –

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार सम्बन्ध प्रत्यावर्तन को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा रहा है

गिलफोर्ड के अनुसार, “जब दो उत्तेजनाएँ बार-बार एक साथ दी जाती हैं, पहले नई तथा बाद में मौलिक जो प्रभावशाली है, तो नई उत्तेजना भी प्रभावशाली बन जाती है।”

लैंडल के अनुसार, “सम्बन्ध प्रत्यावर्तन में कार्य के प्रति स्वाभाविक उत्तेजना के स्थान पर प्रभावहीन उत्तेजना होती है, जो स्वाभाविक उत्तेजना से सम्बन्धित किये जाने के कारण प्रभावपूर्ण हो जाती है।

वरनार्ड के अनुसार, “सम्बन्ध प्रत्यावर्तन उत्तेजना की पुनरावृत्ति द्वारा व्यवहार का स्वचालन है, जिसमें उत्तेजना प्रथम किसी प्रतिक्रिया के साथ होती है, परन्तु अन्त में वह स्वयं उत्तेजना बन जाती है।

पावलॉव का कुत्ते पर प्रयोग –

पावलॉव ने अपने सिद्धान्त को सही बताने के लिए कुत्ते पर अनेक प्रयोग किये। उसने भूखे कुत्ते को एक ऐसे कमरे में बन्द कर दिया जिसमें घंटी के द्वारा भोजन दिया जाता था और देखने के लिए स्क्रिन की व्यवस्था की गई थी। कुत्ते को एक पिंजड़े में बाँध कर घण्टी बजाई गई तथा तुरन्त भोजन रख दिया गया। यह प्रयोग कुछ सप्ताह तक बार-बार किया गया, जिससे कुत्ते ने घण्टी के बजने पर भोजन मिलने की क्रिया को सीख लिया इसके परिणामस्वरूप घण्टी बजने पर कुत्ते के मुँह में लार आने लगती थी। कुछ समय बाद कुत्ते के पिंजड़े में घण्टी बजाई गई लेकिन भोजन नहीं दिया गया। लेकिन पूर्व में सीखी क्रिया के कारण लार आने लगती थी। अतः मुँह से निकलने वाली लार तथा घण्टी के मध्य सम्बन्ध प्रत्यावर्तन के अनुसार घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गया। इस सम्बन्ध को कुत्ते ने भली-भाँति सीख लिया। इस प्रयोग में मुँह में लार बहना एक ऐसी स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जो अस्वाभाविक उत्तेजना घण्टी से सम्बन्धित हो जाती है।

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shubham yadav

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