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प्रस्तावना कौशल क्या है ? – what is introduction Skill in Hindi ?

प्रस्तावना कौशल क्या है ?
प्रस्तावना कौशल क्या है ?

प्रस्तावना कौशल क्या है ? | Prastavna Kaushal Kya Hai

प्रस्तावना कौशल– हरबर्ट के अनुसार नया ज्ञान या अनुभव प्रदान करने के लिए हमें सबसे पहले छात्र के उस पूर्व ज्ञान या अनुभव को चेतना के केन्द्र में चाहिए जो उसे नए ज्ञान की ओर आकर्षित कर सकता है। इसी को हरबर्ट ने पूर्वानुवर्ती पिण्ड (Apperceptive mass) की संज्ञा दी है पाठ की प्रस्तावना का यही मुख्य उद्देश्य है। दूसरे शब्दों में प्रस्तावना का उद्देश्य-छात्रों को पूर्व ज्ञान के आधार पर नए ज्ञान को ग्रहण करने के लिए तैयार करना। इसके लिए छात्रों से प्रश्न पूछना सबसे अधिक अच्छा माना गया हैं। बरनार्ड के अनुसार – “इस पद का उद्देश्य छात्रों को पूर्व ज्ञान क आधार पर नए ज्ञान को ग्रहण करने के लिए तैयार करना है।” स्टर्ट व ओकडन के अनुसार -यह पद इस मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त पर आधारित है कि हम नए अनुभवों की व्याख्या पुराने अनुभवों के आधार पर करते हैं। अत: पाठ को उन बातों से प्रारम्भ किया जाना चाहिए जिनको छात्र पहले से जानते हैं।

प्रस्तावना को प्रस्तुत करने के निम्नलिखित तरीके हो सकते है-

1. पूर्व ज्ञान पर आधरित प्रश्न पूछना

2. श्याम पट पर आकर्षक तरीके से शीर्षक लिखना

3. पिछले पाठ का संक्षिप्त उल्लेख करना

4. डिस्प्ले फ्लैशकार्ड दिखाकर

5. नए पाठ से जोड़ने सम्बन्धी कोई लघु कहानी/उदाहरण/प्रसंग सुनाकर प्रस्तावना में प्रश्नों की संख्या समय की अवधि अधिक नहीं होनी चाहिए 2-3 प्रश्न व 2-3 मिनट में ही प्रस्तावना प्रस्तुत हो जानी चाहिए।

पाठ प्रस्तावना कौशल को विन्यास प्रेरणा कौशल भी कहते हैं। यदि शिक्षक अपने पाठ का प्रारम्भ प्रभावशाली तरीके से करता है तो उसका पाठ सफलता भी पूर्वक सम्पन्न होता है। इस पद से विशेष सावधानी की जानी चाहिए क्योंकि प्रस्तावना पाठ की नींव होती है जिस पर कक्षा शिक्षण अधारित है।

प्रस्तावना कौशल के उद्देश्य –

यह निम्न प्रकार है-

1. छात्राध्यापक में विद्यार्थियों को नए ज्ञान को ग्रहण करने हेतु तैयार करने की कुशलता का विकास करना।

2. छात्राध्यापक में विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ने की कुशलता का विकास करना।

3. छात्राध्यापक में प्रश्नों एवं कथनों को श्रृंखलाबद्ध करने की दक्षता का विकास करना

4. छात्राध्यापक में उचित प्रश्नों के द्वारा नए पाठ के प्रकरण को निकलवाने की कला का विकास करना।

5. छात्राध्यापक में विद्यार्थियों की पाठ के प्रति रुचि उत्पन्न करने की कला का विकास करना।

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shubham yadav

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