समाजशास्‍त्र / Sociology

प्राथमिक समूह एवं द्वितीयक समूह में अन्तर

प्राथमिक समूह एवं द्वितीयक समूह में अन्तर
प्राथमिक समूह एवं द्वितीयक समूह में अन्तर

प्राथमिक समूह एवं द्वितीयक समूह में अन्तर

प्राथमिक समूह –चार्ल्स हॉर्टन कूले प्राथमिक समूह की परिभाषा करते हुए लिखते हैं, “प्राथमिक समूहों से अर्थ मैं उन समूहों को समझता हूँ, जिनकी विशेषता आमने- सामने के घनिष्ठ सम्बन्ध और सहयोग की भावना है। ये समूह अनेक अर्थों में प्राथमिक हैं, किन्तु मुख्यतः इस अर्थ में कि वे व्यक्ति की सामाजिक प्रकृति और आदर्शों का निर्माण करने में मौलिक हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से घनिष्ठ सम्बन्धों का परिणाम अनेक व्यक्तियों की पूर्ति के लिए एक ही व्यक्ति के विचार और उद्देश्य सम्पूर्ण समूह का सामान्य जीवन एवं उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता की व्याख्या करने का सबसे सरल तरीका यह है कि इसे हम कहा जाय। इस सम्पूर्णता में इस प्रकार की सहानुभूति एवं पारस्परिक एकरूपता की भावना पाई जाती है, जिसके लिए हम एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। व्यक्ति सभी व्यक्तियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर रहता है और उन्हीं भावनाओं में अपनी इच्छाओं और उद्देश्यों को पाता है।”

द्वैतीयक समूह का अर्थ – द्वैतीयक समूह प्राथमिक समूहों से एकदम अलग होते हैं। इनका क्षेत्र बहुत ही विस्तृत होता है। इसके सदस्यों में से प्रत्यक्ष या व्यक्तिगत सम्बन्धों की स्थापना असम्भव रहती है। भले ही इनके सदस्यों के सम्बन्ध काफी समय तक बने रहें परन्तु उनमें घनिष्ठता नहीं हो सकती। इनमें प्राथमिक समूहों की दो बाह्य विशेषताएँ भले ही हों, पर इनकी आन्तरिक विशेषताएँ पूर्ण रूप से भिन्न होती हैं। इन आन्तरिक विशेषताओं में हम सदस्यों के सम्बन्धों को ले सकते हैं।

प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह में अन्तर

प्राथमिक समूह द्वैतीयक समूह
आकार छोटा होता है। आकार बड़ा होता है।
सदस्यों में संख्या कम होती है। सदस्यों की संख्या अधिक होती है।
सदस्यों की शारीरिक समीपता पायी जाती है। सदस्यों में शारीरिक समीपता हो भी सकती है और नहीं भी।
सदस्यों में स्थायी सम्बन्ध पाये जाते हैं। सदस्यों में अस्थायी सम्बन्ध होते हैं।
सम्बन्धों में निरन्तरता पायी जाती है। निरन्तरता नहीं पायी जाती है।
सम्बन्ध अनौपचारिक होते हैं। सम्बन्ध औपचारिक होते हैं।
सम्बन्ध स्वतः निर्मित होते हैं। सम्बन्ध जान-बूझकर बनाये जाते हैं।
सम्बन्ध सर्वांगीण (Inclusive) होते हैं। सम्बन्ध विशिष्ट उद्देश्यों को लेकर बनाये जाते हैं।
सम्बन्ध वैयक्तिक होते हैं। सम्बन्ध अवैयक्तिक होते हैं।
ऐसे समूहों में नियन्त्रण प्राथमिक एवं अनौपचारिक साधनों द्वारा होता है। ऐसे समूहों में नियन्त्रण के द्वितीयक एवं औपचारिक साधन काम में लिये जाते हैं।
सभी लोगों के उद्देश्य एक ही होते हैं। सभी अपने-अपने हितों में रुचि रखते हैं।
सम्बन्ध स्वयं-साध्य होते हैं। सम्बन्ध स्वयं साध्य नहीं होते।
सम्बन्धों में घनिष्ठता एवं आत्मीयता पायी जाती है। इनमें घनिष्ठता एवं आत्मीयता का अभाव पाया जाता है।
ये सरल, ग्रामीण एवं आदिम समाजों में अधिक पाये जाते हैं। ये जटिल, नगरीय एवं आधुनिक समाजों की विशेषता है।
इनकी सदस्यता अनिवार्य है। इनकी सदस्यता अनिवार्य नहीं है।
इसमें हम की भावना पायी जाती है। इनमें हम की भावना का अभाव होता है।
इनमें सम्बन्ध आन्तरिक होते हैं, इनमें सम्बन्ध बाह्य एवं दिखावे के होते हैं।
इनका मानव के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। व्यक्तित्व निर्माण में इनकी भूमिका अपेक्षातया कम महत्वपूर्ण है।
ये व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करते हैं। ये व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन की अपेक्षा एक पक्ष विशेष को ही प्रभावित करते हैं।
इनमें आमने-सामने के सम्बन्ध में पाये जाते हैं। इनमें अप्रत्यक्ष सम्बन्ध पाये जाते हैं।
सदस्यों के बीच समानता के आधार पर सम्बन्ध पाये जाते हैं। सम्बन्ध असमान होते हैं, क्योंकि सदस्यों के पद व भूमिका में अन्तर पाया जाता है।
ये सामूहिकता को जन्म देते हैं। ये व्यक्तिवाद को जन्म देते हैं।
प्राथमिक समूह अति प्राचीन है। ये आधुनिक औद्योगिक युग की देन है।
इनमें व्यक्ति अपना व्यक्तित्व समूह के साथ घुल-मिला देता है। इनमें व्यक्तित्व पृथक बना रहता है।
इनका कार्यक्षेत्र सीमित होता है। इनका कार्यक्षेत्र असीमित होता है।

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shubham yadav

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