अनुक्रम (Contents)
उपधारणा की परिभाषा
उपधारणा का अर्थ है मानकर चलना परिभाषा- न्यायालय कुछ तथ्यों पर बिना सबूत की माँग किये विचार कर सकती है अर्थात् न्यायालय कुछ चीजों की उपधारणा कर सकती है। कुछ ज्ञात तथ्यों के आधार पर किसी अज्ञात तथ्य के बारे में लगाये जा रहे अनुमान को उपधारणा कहते हैं।
उपधारणा का आधार प्राकृतिक नियम तथा मानव अनुभवों के आधार पर निकाला जाने वाला तर्क है। किसी न्यायाधिकरण की संतुष्टि तक विधिक साक्ष्य द्वारा साबित या स्वीकृत या न्यायिक रूप में सूचित किसी तथ्य से सामान्य तर्क की प्रक्रिया द्वारा एक न्यायिक अधिकरण द्वारा किसी सकारात्मक या नकारात्मक तथ्य के अस्तित्व के एक अनुमान को प्रदर्शित करने हेतु साक्ष्य विधि में उपधारणा शब्द का प्रयोग किया जाता है।
अनुमान या उपधारणायें दो तथ्यों के मध्य स्थित संबंध के विस्तृत अनुभव पर आधारित होती हैं। उपधारणायें प्रकृति की घटनाओं पर आधारित होती हैं।
उदाहरण: दिन के बाद रात का होना, जाड़े (शीत ऋतु) के बाद ग्रीष्म ऋतु का आना, एक घातक घाव से मृत्यु होना आदि। वह मानवीय कार्यकलाप के आधार पर, समाज की प्रथाओं के आधार पर या व्यापार के संव्यवहार के आधार पर भी हो सकती है। उदाहरण: राम की एक घड़ी खो गई तथा उसके कुछ देर पश्चात् वह श्याम के पास से बरामद हुई। एक प्राकृतिक अनुमान (उपधारणा) होगा कि या तो श्याम ने घड़ी चुराई या किसी चोर से यह जानते हुए प्राप्त की है कि वह चोरी की है।
सोधी ट्रांसपोर्ट कंपनी तथा अन्य बनाम स्टेट ऑफ यूपी, 1986 एससी के वाद में कहा गया कि उपधारणा के नियम मानवीय ज्ञान तथा अनुभव से निगमित होते हैं तथा तथ्यों और परिस्थितियों के संबंध, संयोजन तथा संयोग से आहूत किये जाते हैं।
उपधारणा के प्रकार
उपधारणा तीन प्रकार की होती है-
1. तथ्य की उपधारणायें,
2. विधिक अवधारणायें,
3. मिश्रित उपधारणा।
(1) तथ्य की उपधारणाएँ (Presumption of fact)
तथ्य की उपधारणाएँ ऐसे अनुमान हैं जो प्राकृतिक रूप से प्रकृति के क्रम के निरीक्षण और मानवीय मस्तिष्क की रचना से निकाले जाते हैं।” दूसरे शब्दों में किसी तथ्य के अस्तित्व के तार्किक एवं स्वाभाविक अनुमान हैं जो बिना किसी कानूनी मदद के निकाले जाते हैं। तथ्य की उपधारणाओं को लैटिन में ‘प्रिजस्टियो होमिनिस’ कहते हैं। ये उपधारणाएँ केवल तार्किक निष्कर्ष हैं जो किन्हीं अन्य तथ्यों के साबित होने पर निकाले जाते हैं।
“तथ्य की उपधारणा” “उपधारणा कर सकेगा” के बराबर है तथा प्रायः यह खंडनीय होती है। तथ्य की उपधारणा से भारतीय साक्ष्य अधिनियम की निम्न धाराएँ सम्बन्धित हैं- 86, 87, 88, 90, 114 |
1. विदेशी न्यायिक अभिलेखों की प्रमाणित प्रतियों के बारे में उपधारणा (धारा 86)
2. पुस्तकों मानचित्रों और चाटों के बारे में उपधारणा (धारा 87)
3. तार संदेशों के बारे में उपधारणा (धारा 88) आदि।
(2) विधि की उपधारणाएँ (Presumption of Law)
विधि की उपधारणाएँ कृत्रिम अनुमान हैं जिनको विधि के अनुसार निश्चित किया जाता है तथ्य की उपधारणाओं में भिन्न वे बन्धनकारी होते हैं, क्योंकि कानून की उपधारणा कानून के आज्ञात्मक नियम के रूप में अभिव्यक्त की जाती है इसलिए न्यायाधीश उस नियम के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य होता है और वह उपधारणा निकालने से इनकार नहीं कर सकता है।
विधि की उपधारणाओं के मामले में न्यायालय का विवेक नहीं होता और न्यायालय तथ्य को साबित करने के तौर पर उपधारित करने के लिए बाध्य है जब तक कि हितबद्ध पक्षकार
द्वारा उसे नासाबित या खण्डन करने के लिए साक्ष्य नहीं दिया जाता है। विधि की उपधारणायें दो प्रकार की होती हैं
(अ) खंडनीय उपधारणा (Rebuttable Presumption)
खण्डनीय उपधारणा का तात्पर्य ऐसी उपधारणा है जिन्हें न्यायालय निकालने हेतु विवश है जब तक कि विपरीत साक्ष्य द्वारा इसे नासाबित नहीं कर दिया जाता।
उपधारणाओं का प्रभाव यह होता है कि जिस पक्षकार के पक्ष में किसी तथ्य को साबित करने के द्वारा निष्कर्ष निकाले जाते हैं वह प्रमाण भार से बरी हो जाता है और प्रमाण भार उसके विपक्षी पर चला जाता है।
“खण्डनीय उपधारणाएँ” धारा 4 में प्रयुक्त शब्द “उपधारणा करेगा” के अन्तर्गत आती है। इनका वर्णन भारतीय साक्ष्य अधिनिमय की धारा 79 से 85 तक धारा 105 में किया गया है। खण्डनीय उपधारणा का प्रभाव, प्रमाण भार उस व्यक्ति पर डालना है जिसके विरुद्ध उपधारणा होती है।
(ब) अखंडनीय उपधारणा (irrebuttable Presumption)
अखंडनीय उपधारणा का तात्पर्य निश्चायक साक्ष्य से है। ये विधि के वे निर्विवाद नियम होते हैं जो किसी भी विपरीत साक्ष्य द्वारा अन्यथा सिद्ध नहीं किए जा सकते। अखण्डनीय विधि-उपधारणायें निश्चायक विधि उपधारणा भी कहलाती है जो कि धारा 4 के अन्तर्गत निश्चायक सबूत कहकर निर्दिष्ट की गई है। अखंडनीय उपधारणाओं का विस्तृत वर्णन इस अधिनियम की धारा 41, 112, 113, 115, 116 और 117 में किया गया है। विबन्ध निश्चायक सबूत के तुल्य है।
(3) मिश्रित उपधारणायें (Mixed Presumption)
ये ऐसी उपधारणाएँ हैं जिनकी स्थिति तथ्य की उपधारणा तथा विधि की उपधारणा के मध्य की होती है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में मिश्रित उपधारणाओं को स्थान नहीं दिया गया है। विधि की तथा तथ्य की मिश्रित / मिली-जुली उपधारणा मुख्यतः अंग्रेजी विधि तक सीमित है। इसका वर्णन साक्ष्य अधिनियम में नहीं किया गया है।
इसे भी पढ़ें…
- साइबर अपराध क्या है?
- साइबर कैफे किसे कहते हैं?
- बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर टिप्पणी
- वित्तीय अपराध पर संक्षिप्त लेख
- बाल अश्लीलता क्या है?
- साइबर अश्लीलता क्या है
- हैकिंग कैसे करते हैं?
- हैकिंग क्या है?
- अन्तर्राष्ट्रीय साइबर अपराध की विधि
- साइबर अपराध क्या है?