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साइबर व्योम में पहचान की समस्या। Problem of Identity in Cyber Space

साइबर व्योम में पहचान की समस्या (The Problem of Identity in Cyber Space)

साइबर व्योम में पहचान की समस्या- लोक की संकल्पना के साथ कुछ निश्चित लक्षण जुड़े रहते हैं, जिनके चलते इस पद, यानी, लोक में प्राण एवं अर्थ का संचार होता है। मिसाल के तौर पर, जब हम प्राणि लोक की बात करते हैं तो इसमें हम प्राणियों के पारस्परिक व्यवहार और प्रकृति के साथ उनकी प्रतिक्रिया या शैली, जीने की कला, और उनके समक्ष उपस्थित खतरों का अध्ययन करते हैं।

ऐसी अनेक मिलालें दी जा सकती है। ध्यातव्य बिन्दु यह है कि जब हम किसी लोक की बात करते हैं तो हमारी सर्वाधिक नैसर्गिक जिज्ञासा उन व्यक्तियों, वस्तुओं, प्राणियों, आदि के बारे में होती है जो प्रश्नगत लोक का निर्माण करते हैं। ऐसे व्यक्तियों, वस्तुओं, प्राणियों, आदि के पर्यावरण, उनकी पारिस्थितिकी, उनका जीवन चक्र, और ऐसे ही अन्यान्य तत्व हमारी जिज्ञासा की परिधि में रहते हैं।

इसी तरह, साइवर व्योम (Cyber Space) मुख्य रूप से संगणकों (Computers) एवं अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों से निर्मित लोक है, जहाँ ये परस्पर व्यवहार करते एवं एक दूसरे की मदद करते हैं। इसी प्रकार इनके सम्मुख खतरे भी आते हैं, जिनसे निपटने के लिये ये अन्यान्य औजारों का निर्माण भी करते हैं।

साइबर लोक में दो पक्षकारों के बीच संव्यवहार होते हैं, संविदाएं अस्तित्व में आती हैं, और नाना प्रकार की दूसरी सेवाएं प्रदान एवं प्राप्त की जाती हैं। यह साइवर लोक उक्त व्यापारों, संविदाओं, आदि के दोनों सिरों पर स्थित मानव माध्यमों के मध्य फैला रहता है।

एक सिरे से चलने वाली हर चीज को दूसरे सिरे पर बिना किसी परिवर्तन के प्राप्त किया जाना है, ताकि अन्तःश्रेणी (Intervening) माध्यम साइबर लोक में विनिमय की जा रही चीजों की गुणवत्ता को प्रभावित न करें, और कुल नतीजा ठीक वैसा ही हो जैसा तब होता जबकि दोनों पक्षकार एक मेज पर बैठकर उक्त संविदाओं, संव्यवहारों, आदि को अंजाम दे रहे होते।

साइबर लोक में व्यक्ति की पहचान उसके द्वारा प्रयुक्त उपकरण के जरिये की जाती है। जैसे हमारी दुनिया में हर व्यक्ति की एक अद्वितीय पहचान रहती है जिसके आधार पर हम जानते हैं कि कौन “कौन” है; साइवर लोक में भी प्रत्येक संगणक प्रक्रम, आदि जिसके माध्यम से हम साइबर लोक के सारे संव्यवहार करते हैं, की एक अद्वितीय पहचान रहती है। इस में हर चीज की अभिव्यक्ति अंकीय रूप में होती है, और इसलिए प्रत्येक संगणक या संगणक लोक प्रक्रम की पहचान हेतु एक अद्वितीय संख्या नियत की जाती है। साइबर लोक में किसी संगणक

या संगणक प्रक्रम, की दूसरे संगणकों या संगणक प्रक्रमों द्वारा इसी अद्वितीय अंक के माध्यम से पहचान की जाती है। इसी अद्वितीय पहचान के माध्यम से पता चलता है कि सूचना अपने गन्तव्य तक पहुँच गयी है, और दूसरी तरफ, इसी संख्या के माध्यम से दूसरे संगणकों आदि को यह पता चल पाता है कि अमुक सूचना का उद्भव कहाँ से हुआ है।

जिस तरह, किसी भ्रम की स्थिति में या किसी व्यक्ति द्वारा अपने को दूसरे व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करने की दशा में, सही व्यक्ति की पहचान उसके पहचान पत्र की अद्वितीयता के कारण हो पाती है, साइवर लोक में भी एक संगणक, इन्हीं अंकीय पहचान संख्याओं के चलते यह जान पाता है कि वह वास्तव में किस संगणक, आदि से बात कर रहा है।

इस दुनिया में किसी अजनबी से बात करने के लिए जो हमारी प्रथम जिज्ञासा होती है। उसे हम “आप कौन हैं?” के रूप में व्यक्त करते हैं। तदन्तर, हम जब भी उस व्यक्ति को देखते हैं, उसे तक्षण पहचान लेते हैं, और उससे संवाद आरम्भ कर देते हैं। साइबर लोक (Cyber World) में भी जब कोई तन्त्रीय उपकरण (network device), अंकों के एक अद्वितीय समुच्चय की मदद से, दूसरे उपकरण के एक बार पहचान लेता है तो दुबारा सम्पर्क में आने पर; अंकों के उसी अद्वितीय समुच्चय के जरिये, तत्काल ही उस उपकरण को पहचान लेता है।

साइबर लोक (Cyber World) में प्रत्येक संगणक या अन्य तन्त्रीय उपकरण (network device) की पहचान अंकों के एक अद्वितीय समुच्चय से की जाती है जिसे हम संगणक या तन्त्रीय उपकरण का अन्तरजाल नयाचार (internet protocol) कहते हैं।

जिस तरह ‘अमेरिका के श्रीमान ‘अ’ या ‘ब्रिटेन की श्रीमती आ’ जैसे व्यंजक बड़ी खूबसूरती से न सिर्फ किसी व्यक्ति के बारे में बल्कि उसके अधिवास की स्थिति भी बता देते हैं; उसी तरह अन्तरजाल न्याचार, जो अंकों का एक अद्वितीय समुच्चय होता है, किसी संगणक या तन्त्रीय उपकरण की न सिर्फ पहचान बताता है बल्कि साइबर लोक में उसकी अवस्थिति (location) के बारे में भी बताता है। यही करण है कि इसे अन्तरजाल नयाचार संख्या (अनस) भी कहते हैं। ऑग्ल भाषा में इन पदों के लिए क्रमशः आई पी नम्बर (IP Number) और आई पी एड्रेस (IP Address) पदों का व्यवहार किया जाता है।

जिस प्रकार इस विश्व में किसी व्यक्ति विशेष का नाम व पता अद्वितीय रहता है और दूसरे व्यक्तियों के नामों व पतों से भिन्न रहता है, उसी प्रकार साइबर लोक में भी किसी संगणक विशेष का अन्तरजाल नयाचार (Internet Protocol) पता (अनप) अद्वितीय होता है।

कभी कभी इस अद्वितीयता को भूमण्डलीय स्तर पर अनुरक्षित किया जाता है, यद्यपि अधिकांश मामलों में किसी अन्तरजाल (Internet) विशेष के अन्दर ही उक्त अद्वितीयता का अनुरक्षण करना पर्याप्त रहता है। प्रथम अवस्था में, इसे सार्वजनिक अन्तरजाल नयाचार पता (सार्वजनिक अनप); और, द्वितीय अवस्था में निजी अन्तरजाल नयाचार पता (निजी अनप) कहते हैं।

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shubham yadav

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