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ब्रूनर के अनुसार ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया (Process of Construction of knowledge according to Bruner)
ब्रूनर के सिद्धान्त के अनुसार, सीखना – सक्रिय रूप से सूचना का प्रक्रियाबद्ध करना है और इसका संगठन और संरचना प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने अनोखे ढंग से किया जाता है। संसार के सम्बन्ध में ज्ञान, न कि व्यक्ति में उँडेल दिया जाता है वरन् व्यक्ति चयनित रूप से वातावरण की प्रक्रिया की ओर ध्यान केन्द्रित करता है, और जो सूचना प्राप्त करता है उसे संगठित करता है, और इसे सूचना का संकलन अपने अनूठे ढंग से वातावरण के प्रतिमानों में करता है। तथ्य अर्जित किये जाते हैं तथा संचित किये जाते हैं सक्रिय प्रत्याशाओं के रूप में, न कि निष्क्रिय सम्बन्धों में और बहुत कुछ सीखना खोज के द्वारा होता है जो इस छानबीन के दौरान कौतूहल द्वारा अनुप्रेरित होता है।
प्रत्यक्षीकरण संगठित होते हैं और सक्रिय रूप से अनुमानात्मक होते हैं। नये ज्ञान का रेखाचित्र विभिन्न वर्गों में खींचा जाता है ताकि यह तर्कपूर्ण रूप से नये ज्ञान के साथ सम्बन्धित हो जाए। अन्तिम रूप से जब ज्ञान का चित्रण एक बड़ी संरचना में किया जाता है जो व्यक्ति का अपना निजी यथार्थता का मॉडल बन जाता है। इसमें बाहरी वातावरण का ज्ञान और साथ-साथ आत्म-सम्बन्धी ज्ञान तथा व्यक्तिगत अनुभव सम्मिलित होते हैं जिससे सबका संगठन एक गेस्टाल्ट या पूर्ण इकाई में हो जाता है।
ब्रूनर ज्ञान के प्रस्तुतीकरण के सम्बन्ध में तीन पक्षों का वर्णन करता है। यह विचार पियाजे के विकासात्मक स्तरों से मिलता-जुलता है।
ब्रूनर के अनुसार, बुद्धि स्तर अथवा आयु स्तर की ओर बिना ध्यान दिये हुए भी यह कहा जा सकता है कि सीखने वाले अपने ज्ञान में विस्तार परिकल्पनाओं को बनाकर और उनका परीक्षण करके कर सकते हैं। यह सबसे अधिक स्पष्ट खोज अथवा अन्वेषण सीखने में होता है। किन्तु ब्रूनर का विश्वास है कि शिक्षकों द्वारा सीधे सिखाये जाने वाले कार्यों में भी विद्यार्थियों की सक्रियता को अवबोधना प्राप्त करने में प्रोत्साहन देना चाहिए। ऐसा करने का मार्ग यह है कि विद्यार्थियों के समक्ष विभिन्न विचार पर्याप्त मात्रा में प्रस्तुत किये जाएँ। विभिन्न प्रकार से तथा विभिन्न संप्रत्यय सम्बन्धी उदाहरण प्रस्तुत किये जाने चाहिए।
ब्रूनर इस बात पर भी बल देता है कि शिक्षकों को अवबोधन को बढ़ाने की भी चेष्टा करनी चाहिए। इससे तात्पर्य है कि अलग-अलग ज्ञान के टुकड़ों को समन्वित अवधारणाओं में बाँधना, सिद्धान्तों को संगठित करना, कारण और प्रभाव की व्याख्या करना और सीखने वाले को अन्य सहायक सामग्री जुटाना ताकि उनको यह समझने में सहायता मिल सके कि किस प्रकार से वस्तुएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।
ब्रूनर सीखने को उद्देश्य केन्द्रित मानता है जो सीखने वाले की जिज्ञासा को सन्तुष्ट करता है। वह सीखने वाले को सक्रिय प्राणी मानता है जो अपनी सक्रियता द्वारा सूचना या ज्ञान का चयन करता है, रूप देता है, धारणा करता है और इस प्रकार से परिवर्तित करता है कि कुछ निश्चित उद्देश्य प्राप्त हो जाएँ। ब्रूनर शिक्षा का उद्देश्य ज्ञानात्मक विकास मानता है और वह इस बात पर बल देता है कि शिक्षा की अन्तर्वस्तु को समस्या हल की क्षमता खोज और अन्वेषण द्वारा बढ़ानी चाहिए।
ब्रूनर के विचार में ज्ञानात्मक प्रक्रिया लगभग एक साथ होने वाली तीन प्रक्रियाओं को प्रकट करती है-
(i) नवीन ज्ञान अथवा सूचना का ग्रहण करना,
(ii) अर्जित ज्ञान का रूपान्तरण, एवं
(iii) ज्ञान की पर्याप्तता की जाँच।
ब्रूनर सीखने में स्वायत्तता पर बल देता है। वह सुझाव देता है कि जब विद्यार्थी को अन्वेषण की क्रिया द्वारा सिखाने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा तो वह सीखने के लिए अधिक प्रयास करेगा। स्वायत्तता में उसे आनन्द आयेगा और सीखने की स्वतन्त्रता स्वयं में ही उसका पुरस्कार बन जायेगी। दूसरे शब्दों में विद्यार्थी स्वयं अपने आप ही अपने को अनुप्रेरणा प्रदान करेगा । ब्रूनर शिक्षक की भूमिका यह मानता है कि वह ऐसा वातावरण विद्यार्थियों के लिए निर्मित करे कि जिसमें विद्यार्थी अपने प्रयास से ही बिना किसी पूर्व निर्धारित सूचना की सहायता लिए हुए सीखें। ब्रूनर शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य यह मानता है कि विद्यार्थी यह सीख लें कि सीखना कैसे होता है, सीखने में क्या मूल्य निहित हैं और जिस ज्ञान की उसे आवश्यकता है वह वे अपने ही प्रयास से प्राप्त कर सकें।