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वाइगोटस्की के अनुसार ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया | Process of Construction of knowledge according to Vygotsky in Hindi

वाइगोटस्की के अनुसार ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया
वाइगोटस्की के अनुसार ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया

वाइगोटस्की के अनुसार ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया (Process of Construction of knowledge according to Vygotsky)

वाइगोटस्की एक विचारक थे जिन्होंने पूर्व सोवियत संघ के पहले दशकों के दौरान काम किया था। ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया के सन्दर्भ में उनका विचार था कि बच्चे व्यावहारिक अनुभव के माध्यम से सीखते हैं जैसा कि पियाजे ने सुझाव दिया था। परन्तु पियाजे ने जहाँ अपने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त में बच्चों द्वारा वातावरण को स्वतन्त्र रूप से खोजबीन करके संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया पर बल डाला है तथा परिपक्वता को भी महत्त्वपूर्ण माना था, वहीं, वाइगोट्स्की ने सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भ पर जोर दिया. है। उन्होंने बच्चों के संज्ञानात्मक विकास सामाजिक कारकों एवं भाषा को महत्त्वपूर्ण बताया है। इसी कारण प्रायः उनके संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त को सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धान्त भी कहा जाता है।

पियाजे ने यह स्पष्ट किया था कि बच्चों के संज्ञानात्मक विकास में संस्कृति तथा शिक्षा की भूमिका महत्त्वपूर्ण नहीं होती है। वाइगोट्स्की ने इसे अस्वीकृत करते हुए कहा है कि हकीकत में ऐसा नहीं है और बच्चे जिस उम्र में भी किसी संज्ञानात्मक कौशल को सीखते हैं, उन पर इस बात का अधिक प्रभाव पड़ता है। कि क्या संस्कृति से उन्हें संगत सूचना तथा निर्देश प्राप्त हो रहा है या नहीं। वाइगोट्स्की ने यह बताया है कि सचमुच में संज्ञानात्मक विकास या ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया एक अन्तर्वैयक्तिक सामाजिक परिस्थिति में सम्पन्न होती है जिसमें बच्चों को अपने वास्तविक विकास के स्तर अर्थात् जहाँ तक वे बिना किसी मदद के अपने ही कोई कार्य कर सकते हैं, से अलग तथा उनके संभाव्य विकास के स्तर अर्थात् जिसे वे सार्थक एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सहायता से प्राप्त करने में सक्षम हैं की तरफ ले जाने की कोशिश की जाती है। इन दोनों स्तरों के बीच के अन्तर को वाइगोट्स्की ने समीपस्थ विकास का क्षेत्र कहा है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि समीपस्थ विकास का क्षेत्र से तात्पर्य बच्चों के लिए एक ऐसे कठिन कार्यों के प्रयास से होता है जिसे वह अकेले नहीं कर सकता है लेकिन अन्य वयस्कों तथा कुशल सहयोगियों की मदद से उसे करना सम्भव हो सकता है।

वाइगोट्स्की ने इस प्रश्न पर भी विचार किया है कि वयस्कों के साथ की गई सामाजिक अन्तःक्रिया किस तरह से बच्चों में संज्ञानात्मक विकास में मदद करती है। अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि प्राय: यह पारस्परिक शिक्षण के प्रारूप में होता है जिसमें शिक्षक (या अन्य वयस्क) तथा बालक बारी-बारी से किसी क्रिया को इस ढंग से करते हैं जिसमें शिक्षक (या अन्य वयस्क) बच्चे के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त इन विभिन्न अंतःक्रियाओं के दौरान वयस्क किस प्रकार से Scaffolding की प्रक्रिया द्वारा ज्ञान सृजन तक पहुँच जाते हैं इसका भी वर्णन किया है। Scaffolding से तात्पर्य एक ऐसी मानसिक संरचना से होता है जिसे बच्चे नए कार्यों को करते समय या नए प्रकार का चिन्तन करते समय उनका उपयोग कर सकते हैं। सचमुच में यह एक ऐसी सामाजिक अंतः क्रिया है जिसमें शिक्षण सत्र के दौरान दिए गए समर्थन को छात्रों के निष्पादन के वर्तमान स्तर के साथ फिट करने की कोशिश की जाती है ताकि बच्चे धीरे-धीरे बिना समर्थन के ही निष्पादन को उत्तम बनाकर रख सकें।

वाइगोट्स्की का मानना था कि बच्चे व्यावहारिक अनुभव के माध्यम से सीखते हैं जैसा कि पियाजे ने सुझाव दिया था। हालांकि पियाजे के विपरीत उन्होंने दावा किया कि जब कोई बच्चा कोई नया काम सीखने की कगार पर होता है तब वयस्कों द्वारा समय पर और संवेदनशील हस्तक्षेप से बच्चों को नए कार्यों (जिन्हें ZPD, Zone of Proximal Development का नाम दिया जा सकता है) को सीखने में मदद मिल सकती है। इस तकनीक को ही स्कैफोल्डिंग या ‘मचान बनाना’ कहा जाता है। क्योंकि यह नये ज्ञान के साथ बच्चों के पास पहले से मौजूद ज्ञान पर निर्मित होता है जिससे वयस्क बच्चों को सीखने में मदद मिलती है। इसका एक उदाहरण यह भी दिया जा सकता है कि जब कोई माता या पिता किसी बच्ची को ताली बजाने के लिए अपने हाथों को गोल-गोल घुमाने में तब तक मदद करते हैं जब तक वह खुद अपने हाथों को थपथपाना या ताली बजाना और गोल-गोल घुमाना सीख नहीं लेती है।

वाइगोट्स्की का ध्यान पूरी तरह से बच्चों के विकास की पद्धति का निर्धारण करने में संस्कृति की भूमिका केन्द्रित था उन्होंने तर्क दिया कि बच्चे के सांस्कृतिक विकास में हर कार्य दो बार प्रकट होता है। पहली बार सामाजिक स्तर पर और बाद में व्यक्तिगत स्तर पर। पहली बार लोगों के बीच (अन्तर मनोवैज्ञानिक) और उसके बाद बच्चे के भीतर (अंतरमनोवैज्ञानिक या Intrapsychological)। यह स्वैच्छिक ध्यान, तार्किक स्मृति और अवधारणा निर्माण में समान रूप से लागू होता है सभी उच्च कार्यों की उत्पत्ति व्यक्तियों के बीच के वास्तविक सम्बन्धों के रूप में होती है

वाइगोट्स्की ने यह महसूस किया कि विकास एक प्रक्रिया थी और उन्होंने बच्चों के विकास में संकट की अवधियों को देखा, जिस दौरान बच्चे की मानसिक क्रियाशीलता में एक गुणात्मक परिवर्तन हुआ था।

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shubham yadav

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