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पाठ्यचर्या प्रकल्प निर्माण की प्रक्रिया | Process of Curriculum Design Construction in Hindi

पाठ्यचर्या प्रकल्प निर्माण की प्रक्रिया
पाठ्यचर्या प्रकल्प निर्माण की प्रक्रिया

पाठ्यचर्या प्रकल्प निर्माण की प्रक्रिया (Process of Curriculum Design Construction)

पाठ्यचर्या का निर्माण एक सहयोगी प्रयास है। इसमें राष्ट्रीय समितियों, क्षेत्रीय समितियों तथा स्थानीय समितियों, प्रधानाचार्य, शिक्षक वर्ग एवं समुदाय को सम्मिलित होना चाहिए। हमारे देश में जो माध्यमिक स्तर पर पाठ्यचर्या निर्माण में केन्द्रीय एजेन्सी मुख्य रूप से भाग लेती है वह नेशनल कौंसिल ऑफ एजूकेशन ट्रेनिंग एण्ड रिसर्च (National Council of Education, Training and Research, NCERT) है। यह पाठ्यचर्या निर्माण करके राज्यों के शिक्षा विभागों, परीक्षा बोर्डों इत्यादि को उसको अपनाने के लिए भेजती है। यह पाठ्यचर्या का निर्माण विशेषज्ञों, विषय शिक्षकों एवं प्रधानाचार्यों के परामर्श से करती है। इसका कार्य ऐसे पाठ्यचर्या का निर्माण करना है जो शिक्षा की राष्ट्रीय नीति के अनुकूल हो। जो पाठ्यचर्या की रूपरेखा यह परिषद बनाती है वह केवल सुझाव के रूप में होता है। यह राज्य सरकारों एवं परीक्षा मण्डलों पर निर्भर होता है कि वह इसे अपनायें या न अपनायें।

प्रत्येक राज्य सरकार एक परीक्षा मण्डल माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक परीक्षाओं के लिए नियुक्त करती है। यह बोर्ड या मण्डल पाठ्यचर्या निर्धारित करता है जो उन सब विद्यालयों द्वारा अनुसरण किया जाता है जो कि अपने विद्यार्थियों को बोर्ड परीक्षा में प्रवेश देने के लिए मान्यता प्राप्त है। प्रत्येक बोर्ड की प्रत्येक विषय के लिए एक विषय समिति होती है जो कि उस विषय सम्बन्धी पाठ्य-वस्तु का निर्धारण करती है।

हमारे देश में माध्यमिक स्तर पर पाठ्यचर्या निर्माण का कार्य बहुत कुछ केन्द्रीय स्तर पर ही होता है । कुछ शिक्षक इस कार्य में भाग अवश्य लेते हैं किन्तु विभिन्न विद्यालयों के शिक्षकों को यह स्वतन्त्रता नहीं है कि वह अपने विषय का पाठ्यचर्या स्वयं बनायें। शिक्षण देते समय शिक्षक कुछ स्वतन्त्रता अनुभव कर सकते हैं किन्तु विषयों के चुनाव में और पाठ्य वस्तु के सम्बन्ध में निर्णय लेने में उनकी कोई विशेष भूमिका नहीं होती ।

पाठ्यचर्या निर्माण प्रक्रिया की आदर्शमय स्थिति वह है जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी मिलकर पाठ्यचर्या का चुनाव करें। शिक्षक विद्यार्थियों की रुचियों, क्षमताओं को तथा वातावरणीय दशाओं को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या निर्माण के मुख्य सिद्धान्तों के आधार पर पाठ्यचर्या बनाये तो यह अति उत्तम विधि होती है। किन्तु ऐसा हमारे देश में नहीं होता है जबकि अनेकों अग्रणी देशों में यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।

1985 में NCERT ने एक राष्ट्रीय पाठ्यचर्या प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा का बनाया। इसमें चार मुख्य क्षेत्रों को शामिल किया गया-

(i) उभरती हुई रुचियाँ तथा आदेश (Emerging concepts and imperatives),

(ii) पाठ्यक्रम संगठन (Curriculum organization),

(iii) मूल्यांकन (Evaluation ) एवं

(iv) कार्यान्वित (Implementation)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के निर्देशों के पालन हेतु जो कि शिक्षा की विषय-सूची एवं प्रक्रिया के सम्बन्ध में थे। NCERT ने इस पाठ्यक्रम का 1988 में संशोधन किया। पाठ्यचर्या के संशोधन के लिए NCERT ने बहुत-सी गोष्ठियाँ राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तरों पर संगठित कीं; जिनमें अनेकों विशेषज्ञों, शिक्षकों, क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं एवं प्रशासकों से परामर्श किया गया। जो संशोधित पाठ्यक्रम बना उसमें सम्मिलित यह क्षेत्र निम्नलिखित थे-

(i) उभरती हुई रुचियाँ तथा आदेश (Emerging concerns and imperatives),

(ii) पाठ्यचर्या रुचियाँ (Curriculum concerns),

(iii) राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के आधार (Basis for the national system of education),

(iv) पाठ्यचर्या संगठन से सम्बन्धित तत्त्व (Factors related to the organisation of curriculum),

(v) विभिन्न क्षेत्रों को समय का आबंटन (Allocation of time to different areas),

(vi) मूल्यांकन एवं परीक्षण (Evaluation and examination) तथा

(vii) कार्यान्वित सम्बन्धी युक्ति (Strategy of implementation)।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ‘कार्य सम्बन्धी कार्यक्रम’ (The Programme of Action) ने सुझाव दिया कि शिक्षा की विषय-सूची एवं प्रक्रिया के पुनर्निर्माण सम्बन्धी सम्पूर्ण क्रियाकलाप की योजना NCERT तथा राज्यों के शिक्षा विभाग, SCERT/SIE एवं परीक्षा परिषदों के सहयोग से बनानी चाहिए NCERT ने इस सम्बन्ध में पहल की और विद्यालय शिक्षा के लिए पाठ्यचर्या की रूपरेखा तैयार की जिसका वर्णन हमने ऊपर किया है। इस रूपरेखा के अन्तर्गत राज्य सरकारों एवं परीक्षा परिषदों को यह स्वतन्त्रता भी दी गई कि वह अपने क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों के लिए अपनी निजी पाठ्यचर्या और विषय-सूची बना लें। इस सबसे यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि हमारे देश में पाठ्यक्रम निर्माण का कार्य केन्द्रीय स्तर पर ही अधिकतर होता है। शिक्षक अपनी स्वयं की क्रियाओं की योजना बना सकते हैं और यह निर्धारित कर सकते हैं कि विषयों को कैसे पढ़ायें किन्तु वह पाठ्यक्रम की मूल रूपरेखा में परिवर्तन नहीं ला सकते।

पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया पाठ्यचर्या के क्रियात्मक पक्ष से सम्बन्धित है। फिलिप एच. टेलर की दृष्टि में पाठ्यक्रम के क्रियात्मक पक्ष के अन्तर्गत उद्देश्य, अन्तर्वस्तु तथा शिक्षण विधियों को शामिल किया जा सकता है। इन तीनों ही अन्तर्क्रिया के परिणामस्वरूप ही विद्यार्थियों की शैक्षिक गतिविधियाँ प्रकाश में आती हैं चूँकि पाठ्यचर्या की सहायता से ही शिक्षा के उद्देश्यों व लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। अतः पाठ्यचर्या इस प्रकार की होनी चाहिए कि विषय-वस्तु पाठ्यचर्या में सभी छात्रों के विकास में सहायता प्रदान करे।

प्रसिद्ध विद्वान डी. के. व्हीलर ने अपनी पुस्तक ‘Curriculum Process’ में पाठ्यक्रम-प्रक्रिया की विस्तृत विवेचना की है। व्हीलर के अनुसार पाठ्यचर्या संरचना के प्रमुख पाँच सोपान या पद हैं, जो निम्न प्रकार हैं-

(1) शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण of Educational Objectives),

(2) निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उपयुक्त अधिगम अनुभवों का चयन (Selection of Appropriate Learning Experience to Achieve the Objectives),

(3) अधिगम-अनुभवों को प्रस्तुत करने के लिए उपयुक्त अन्तर्वस्तु का चयन (Selection of Suitable Content to Present the Learning experiences),

(4) अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया की दृष्टि से चयनित अधिगम अनुभवों एवं अन्तर्वस्तु का संगठन (Organisation of Selected Learning Experiences and Con tent in view of Teaching Process),

(5) सम्पूर्ण प्रक्रिया का उद्देश्यों की प्राप्ति की दृष्टि से मूल्यांकन (Evaluation of Curriculum or Total Process in view of Achievement of objectives)

पाठ्यचर्या-संरचना के प्रमुख सोपानों को विवेचन की सुविधा की दृष्टि से ही क्रमबद्ध किया गया है, जबकि ये परस्पर अत्यधिक गुम्फित, अन्योन्याश्रित एवं सहगामी हैं। ये एक-दूसरे को इस प्रकार प्रभावित करते हुए चलते हैं कि एक की परिधि दूसरे का प्रारम्भ सिद्ध होती है। इनके एक-दूसरे से गुम्फित सम्बन्धत के कारण इन पर पृथक-पृथक् कार्य करना सम्भव नहीं है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए व्हीलर महोदय ने पाठ्यचर्या की संरचना प्रक्रिया को वृत्ताकार माना है तथा इन्हें नीचे दिये हुए चित्र के रूप में प्रदर्शित किया है।

चित्र- पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया (Process of Curriculum Construction)

चित्र- पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया (Process of Curriculum Construction)

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shubham yadav

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