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निर्माणात्मक एवं संकलनात्मक शैक्षिक मूल्यांकन की प्रक्रिया (Process of Formative and Summative Evaluation)
निर्माणात्मक एवं संकलनात्मक शैक्षिक मूल्यांकन की प्रक्रिया लक्ष्य, शिक्षण सम्बन्धी अध्ययन और मूल्यांकन के स्रोतों पर निर्भर करती है। इसमें किसी एक की अनुपस्थिति मूल्यांकन प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न कर सकती है। इसलिये मूल्यांकन पूर्ण नहीं हो पाता है। इसलिये संकलनात्मक एवं निर्माणात्मक शैक्षिक मूल्यांकन को तीन भागों में बाँटा गया है-
(1) लक्ष्यों का निर्धारण (Formulation of Objectives) — शैक्षणिक मूल्यांकन के प्रथम पद में सामाजिक विज्ञान-शिक्षण का नियोजन किया जाता है। सामाजिक विज्ञान-शिक्षण के नियोजन में सर्वप्रथम प्रस्तुत प्रकरण से सम्बन्धित शिक्षण लक्ष्यों-ज्ञान, बोध, अनुप्रयोग, कौशक, रुचि एवं अभिवृद्धि आदि का निर्धारण किया जाता है। इन्हीं शिक्षण लक्ष्यों के आधार पर ही बालक के व्यवहार में होने वाले अपेक्षित व्यवहार परिवर्तनों से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त हो जाती है कि उसकी शैक्षिक प्रक्रिया सही या गलत है। इस सोपान में शिक्षण लक्ष्यों का परिभाषीकरण करना भी आवश्यक होता है।
(2) अधिगम अनुभव प्रदान करना (Providing Learning Experiences) – बालक में अपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन लाने हेतु सामाजिक विज्ञान-शिक्षण की प्रक्रिया से सम्बन्धित विविध क्रिया-कलापों के आधार पर अधिगम अनुभवों को प्रदान किया जा सकता है। अधिगम अनुभव के सम्प्रेषण से पूर्व अधिगम अनुभवों की व्यवस्था, अधिगम सम्बन्धी परिस्थितियों का सृजन अत्यन्त आवश्यक होता है। क्योंकि अधिगम अनुभव ही शैक्षिक मूल्यांकन प्रक्रिया का प्रमुख स्तम्भ है।
(3) व्यावहारिक परिवर्तन के आधार पर मूल्यांकन (Evaluation Based on behavioural Changes) – सामाजिक विज्ञान-शिक्षण की प्रक्रिया में प्रदत्त अधिगम-अनुभवों द्वारा ही छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाना सम्भव है। छात्रों के व्यवहार में क्या अपेक्षित परिवर्तन हुए, यह शैक्षिक मूल्यांकन द्वारा ज्ञात किया जाता है। इसके लिए सामाजिक विज्ञान-शिक्षण निबन्धात्मक, वस्तुनिष्ठ, मौखिक परीक्षण एवं अन्य प्रकार की मूल्यांकन प्रक्रियाओं द्वारा जाँच करता है।
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