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प्रथम अपील एवं द्वितीय अपील से सम्बन्धित प्रावधान
“व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत द्वितीय अपील तब ही दायर की जा सकती है जब उसमें विधि का सारवान प्रश्न अन्तर्लिप्त हो।” व्याख्या कीजिये। “Second appeal under C.P.C. can be filed if it involves a substantial question of law.” Explain.
प्रथम अपील और द्वितीय अपील के प्रावधान – कोई भी आदेश अथवा निर्णय अन्तिम नहीं होता उसमें तथ्य, विधि या प्रक्रिया सम्बन्धी कोई न कोई गलती रह जाती है। यही कारण है कि तथ्य विधि एवं प्रक्रिया सम्बन्धी ऐसी त्रुटियों को दूर करने के लिये विधि में प्रथम अपील और द्वितीय अपील के प्रावधान किया गया है।
प्रथम अपील क्या है (What is First Appeal)
मूल डिक्री की अपील (धारा 96)
(1) वहाँ के सिवाय जहाँ इस संहिता के पाठ में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित है, ऐसी हर डिक्री की, जो आरंभिक अधिकारिता का प्रयोग करने वाले किसी न्यायालय द्वारा पारित की गई है, अपील उस न्यायालय में होगी जो ऐसे न्यायालय के विनिश्चयों की अपीलों को सुनने के लिए प्राधिकृत है।
(2) एक पक्षीय पारित मूल डिक्री की अपील हो सकेगी।
(3) पक्षकारों की सहमति से जो डिक्री न्यायालय ने पारित की है उसकी कोई अपील नहीं होगी।
(4) लघुवाद न्यायालयों द्वारा संज्ञेय वाद में किसी डिक्री से कोई अपील, यदि ऐसी डिक्री की रकम या उसका मूल्य दस हजार रुपये से अधिक नहीं है तो केवल विधि के प्रश्न के संबंध में ही होगी।
जहाँ प्रारम्भिक डिक्री की अपील नहीं की गई है वहाँ अन्तिम डिक्री की अपील (धारा 97 ) – जहाँ इस संहिता के प्रारम्भ के पश्चात पारित प्रारम्भिक डिक्री से व्यथित कोई पक्षकार ऐसी डिक्री की अपील नहीं करता है वहाँ वह उसकी शुद्धता के बारे में अन्तिम डिक्री के विरुद्ध की गई अपील में विवाद करने से प्रवारित रहेगा।
जहाँ कोई अपील दो या अधिक न्यायाधीशों द्वारा सुनी जाए वहाँ विनिश्चय (धारा 98) –
(1) जहाँ कोई अपील दो या अधिक न्यायाधीशों के न्यायपीठ द्वारा सुनी जाती है यहाँ अपील का विनिश्चय ऐसे न्यायाधीशों की या ऐसे न्यायाधीशों की बहुसंख्या की (यदि कोई हो) राय के अनुसार होगा।
(2) जहाँ ऐसी बहुसंख्या नहीं है जो अपीलीय डिक्री के फेरफार करने या उसे उलटने वाले निर्णय के बारे में सहमत है वहाँ ऐसी डिक्री पुष्ट कर दी जाएगी। परन्तु जहाँ अपील सुनने वाले न्यायपीठ में दो या किसी अन्य समसंख्या में न्यायाधीश है और वे न्यायाधीश ऐसे न्यायालय के हैं |
जिस न्यायालय में उस न्यायपीठ के न्यायाधीशों से अधिक संख्या में न्यायाधीश है और न्यायपीठ के न्यायाधीशों में किसी विधि के प्रश्न पर मतभेद है वहाँ वे उस विधि के प्रश्न का कथन करेंगे जिसके बारे में उनमें मतभेद है और तब अपील को अन्य न्यायाधीशों में से कोई एक या अधिक केवल उस प्रश्न के बारे में सुनेंगे और तब उस प्रश्न का विनिश्चय अपील सुनने वाले न्यायाधीशों की बहुसंख्या की (यदि कोई हो) जिनके अन्तर्गत वे न्यायाधीश भी हैं जिन्होंने वह अपील सर्वप्रथम सुनी थी, राय के अनुसार किया जाएगा।
(3) इस धारा की कोई भी बात किसी भी उच्च न्यायालय के लेटर्स पेटेन्ट के किसी भी उपबन्ध का परिवर्तन करने वाली या अन्यथा उस पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी।
कोई भी डिक्री ऐसी गलती या अनियमितता के कारण जिससे गुणागुण या अधिकारिता पर प्रभाव नहीं पड़ता है न तो उलटी जाएगी और न उपान्तरित की जाएगी (धारा 99 ) – पक्षकारों या वाद हेतुकों के ऐसे कुसंयोजनों या असंयोजना के या वाद की किन्हीं भी कार्यवाहियों में ऐसी गलती, त्रुटि या अनियमितता के कारण जिससे मामले के गुणागुण या न्यायालय की अधिकारिता पर प्रभाव नहीं पड़ता है कोई भी डिक्री अपील में न तो उलटी जाएगी और न उसमें सारभूत फेरफार किया जाएगा और न कोई मामला अपील में प्रतिप्रेषित किया जाएगा। परन्तु इस धारा की कोई भी बात किसी आवश्यक पक्षकार के असंयोजन को नहीं होगी।
द्वितीय अपील क्या है (What is Second Appeal)
द्वितीय अपील धारा 100 के अन्तर्गत की जाती तथा द्वितीय अपील के सम्बन्ध में प्रक्रिया आदेश 42 में दिया गया है। द्वितीय अपील तथ्य सम्बन्धी प्रश्न पर नहीं होता है। यह सदैव विधि सम्बन्धी प्रश्न पर होता है। धारा 100 के अनुसार –
(1) उसके सिवाय जैसा इस संहिता के पाठ में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्यविधि में अभिव्यक्त रूप से उपबन्धित है उच्च न्यायालय के अधीनस्थ किसी न्यायालय द्वारा अपील में पारित प्रत्येक डिक्री की उच्च न्यायालय में अपील हो सकेगी, यदि उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि उस मामले में विधि का कोई सारवान प्रश्न अन्तर्वलित है।
(2) एक पक्षी पारित अपीली डिक्री की अपील इस धारा के अधीन हो सकेगी।
(3) इस धारा के अधीन अपील में अन्तर्वलित विधि के उस सारवान प्रश्न का अपील ज्ञापन में प्रमिततः कथन किया जाएगा।
(4) जहाँ उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि किसी मामले में सारवान विधि का प्रश्न अन्तर्वलित है तो वह उस प्रश्न को बनायेगा।
(5) अपील इस प्रकार बनाए गए प्रश्न पर सुनी जाएगी और प्रतिवादी को अपील की सुनवाई में यह तर्क करने की अनुज्ञा दी जाएगी कि ऐसे मामले में ऐसा प्रश्न अन्तर्वलित नहीं है।
गोविन्द राजू बनाम मरियम्मान (2005 SC) के बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने द्वितीय अपील के लिये निम्न मानक निर्धारित किये हैं
(1) विधि का कोई सारवान प्रश्न विद्यमान है।
(2) ऐसा प्रश्न विवाद योग्य हो ।
(3) ऐसा प्रश्न पहले विनिश्चय न किया गया हो।
(4) उसका विनिश्चय किया जाना पक्षकारों के अधिकारों के अवधारण के लिये आवश्यक हो। विधि का सारवान् प्रश्न विधि के सारवान् प्रश्न को विधायिका ने परिभाषित नहीं किया है। कोई कठोर एवं सटीक नियम नहीं है जिसे विधि का सारवान प्रश्न कहा जा सके। द्वितीय अपील किये जाने का आधार विधि का सारवान् प्रश्न है।
चुन्नी लला बी० मेहता बनाम सेन्चुरी स्पिनिंग एण्ड मैनुफैक्चरिंग कम्पनी लिमिटेड (1962 SC) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने विधि के सारवान् प्रश्न की व्याख्या इस प्रकार की है |
“किसी मामले में उठाया गया विधि का प्रश्न सारवान् है इसके निर्धारण के लिए हमारे मत में उपर्युक्त परख यह होगा कि क्या ऐसा प्रश्न व्यापक सार्वजनिक महत्व का है या क्या ऐसा प्रश्न पक्षकारों के अधिकारों को प्रत्यक्षतः और सारतः प्रभावित करता है और यदि ऐसा है तो क्या यह खुला हुआ प्रश्न है। इन अर्थों में कि ऐसे प्रश्न का अन्तिम रूप से निपटारा इस न्यायालय द्वारा या प्रिवी कौन्सिल द्वारा नहीं किया गया है या क्या यह कठिनाइयों से मुक्त नहीं है, या क्या यह वैकल्पिक विचार के विवेचना की अपेक्षा करता है?
अगर प्रश्न का निपटारा उच्चतम न्यायालय द्वारा कर दिया गया है और यहाँ मात्र प्रश्न उन सिद्धान्तों को लागू करने का है या मामले में उठाया गया तर्क स्पष्ट रूप से असंगत है तो प्रश्न विधि का सारवान् प्रश्न नहीं होगा।”
संहिता की धारा 100 स्पष्ट रूप से यह प्रावधान करती है कि द्वितीय अपील विधि के सारवान् प्रश्न पर सुनी जायेगी। जिसकी (विधि के सारवान् प्रश्न की) उच्च न्यायालय द्वारा विरचना किया जाता है।
निम्नलिखित प्रश्नों को विधि का सारवान् प्रश्न कहा जा सकता है-
प्रथम अपील और द्वितीय अपील के प्रावधान
(i) एक विधि का ऐसा प्रश्न जिसमें न्यायिक राय में विरोध हो:
(ii) अभिलेख पर किसी साक्ष्य के बिना निष्कर्ष अभिलिखित करना;
(iii) ग्राह्य या सुसंगत साक्ष्य पर विचार न करना;
(iv) असंगत या अग्राह्य साक्ष्य को विचार में लेना;
(v) दस्तावेज या साक्ष्यों को नष्ट करना;
(vi) साक्ष्य की ग्राह्यता का प्रश्न;
(vii) सबूत का भार गलत पक्षकार पर डालना;
(viii) आदेश 41 नियम 27 के अधीन अतिरिक्त साक्ष्य, लेने के लिए दिये गये आवेदन के निस्तारण किये बिना अपील का निस्तारण कर लेना;
निम्नलिखित प्रश्न विधि का सारवान् प्रश्न नहीं माना जा सकता –
(i) जहाँ दो तरह के विचार सम्भव हों;
(ii) प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा तथ्य का निष्कर्षण अभिलिखित किया गया है;
(iii) सामान्य प्रकृति के प्रश्न;
(iv) द्वितीय अपील में जहाँ नया मामले बनाता हो;
(v) जहाँ उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसे प्रश्न पर निष्कर्ष दे चुका है;
कुछ मामलों में आगे अपील का न होना (धारा 100 – क) – किसी उच्च न्यायालय के लिए किसी लेटर्स पेटेन्ट में या विधि का बल रखने वाली किसी अन्य लिखत में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी जहाँ किसी मूल या अपीली डिक्री या आदेश की सुनवाई और उसका विनिश्चय उच्च न्यायालय के किसी एकल न्यायाधीश द्वारा किया जाता है वहाँ ऐसे एकल न्यायाधीश के निर्णय और डिक्री की आगे कोई अपील नहीं होगी।
द्वितीय अपील का किसी भी अन्य आधार पर न होना (धारा 101) – कोई भी अपील द्वारा 100 में वर्णित आधारों पर ही होंगे, अन्यथा नहीं।
कतिपय वादों में द्वितीय अपील का न होना (धारा 102) – जब मूल वाद की विषयवस्तु पचीस हजार रुपये से अनधिक धनराशि की वसूली के लिए हो तो किसी डिक्री की कोई भी द्वितीय अपील नहीं होगी |
अपील में नया आधार कब उठाया जा सकता है? – अपीलार्थी न्यायालय की इजाजत से आक्षेप के किसी भी ऐसे आधार को जो अपील के ज्ञापन में उपवर्णित नहीं है पेश कर सकेगा। लेकिन ऐसे आधार पर न्यायालय अपना विनिश्चय तभी देगा जब उस पक्षकार को जिस पर इसके द्वारा प्रभाव पड़ता है उस आधार पर मामले को प्रतिवाद करने का पर्याप्त अवसर मिल गया हो। अपील न्यायालय अपील का विनिश्चय करने में आक्षेप के उन आधारों तक ही सीमित न रहेगा जो ज्ञापन में उपवर्णित है। (आदेश 41 उपनियम 2)|
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