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रचनात्मकता का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Creativity)
रचनात्मकता का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Creativity)– रचनात्मक का सामान्य अर्थ मौलिकता (Originality) से लगाया जाता है।
ड्रेवडाल (Drevedohl) के अनुसार- ” रचनात्मकता व्यक्ति की उस क्षमता को कहा जाता है जिससे वह कुछ ऐसी नई चीजों, रचनाओं या विचारों को पैदा करता है जो नया होता है एवं जो पहले से उसे ज्ञात नहीं होता। “
स्टेन के अनुसार- “जब किसी कार्य का परिणाम नवीन हो, जो किसी समय में समूह द्वारा उपयोगी मान्य हो, वह कार्य सृजनात्मक या रचनात्मक कहलाता है।”
जेम्स ड्रेवर के अनुसार – “रचनात्मकता मुख्यतः नवीन रचना या उत्पादन में होती है।”
मानव स्वभाव से ही विचारशील प्राणी है। प्रत्येक व्यक्ति प्रतिपल कुछ-न-कुछ सोचता रहता है। मनोवैज्ञानिक का मानना है कि चौबीस घण्टे में व्यक्ति के मस्तिष्क में 60,000 विचार बनते और बिगड़ते हैं। इन विचारों में कुछ विचार ऐसे भी हो सकते हैं जो सार्थक हैं। यदि उन विचारों को अन्य व्यक्तियों तक पहुँचाया जाये तब हो सकता है कि वह विचार समाज एवं राष्ट्र के विकास में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। बालक के मस्तिष्क में जन्म लेने वाले विचारों को यदि भाषा द्वारा रचनात्मक ढंग से अभिव्यक्त करना सिखा दिया जाये तो भविष्य में बालक अच्छा साहित्यकार गीतकार और दार्शनिक बन सकता है। यह अनुमान लगाना मुश्किल कार्य है कि किस बालक के अन्दर कौन-सी प्रतिभा छिपी हुई है। बालक की छिपी आन्तरिक प्रतिभा की अभिव्यक्ति भाषा द्वारा ही करायी जा सकती है।
रचनात्मक कौशल का विकास
छात्रों या बालकों में रचना कौशल का विकास निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
(1) निबन्ध कला – निबन्ध वह रचना है जिसके द्वारा किसी भी विषय पर सुसंगठित विचार व्यक्त किये जा सकते हैं। जैसे कि निबन्ध शब्द से ही स्पष्ट होता है-सुसम्बद्धता, सुसंगठित और श्रृंखलाबद्धता इसके आवश्यक गुण हैं। ये गुण भाषा एवं विषयवस्तु दोनों पक्षों में प्रतिबिम्बित होने चाहिए।
निबन्ध लेखन के लिए किसी बहुत बड़े शास्त्रीय विषय की आवश्यकता नहीं पड़ती है। बहुत आसान आस-पास की घटनाओं या जीवन से सम्बन्धित विषय-वस्तु पर भी अच्छे निबन्ध लिखे जा सकते हैं। निबन्ध लेखन की प्रारंभिक अवस्था में बच्चे को उसके आस-पास की सरल वस्तुओं और विषयों को विषय सामग्री कर देना चाहिए। प्रारम्भ में दस-पन्द्रह वाक्यों द्वारा विषय सामग्री का स्थूल वर्णन करना सिखाया जाये। फिर धीरे-धीरे उसकी योग्यता को विकसित किया जाये और उसको स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर करना चाहिए।
जैसे-जैसे बालक आगे कक्षाओं में बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे उसकी भाषा, अनुभव एवं शब्दकोश में वृद्धि होती जायेगी। इसी प्रकार प्राथमिक स्तर पर आसान विषय, उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर निबन्ध लेखन के लिए गहन वैचारिक और कठिन विषयों को चुना जा सकता है । अच्छे निबन्ध लेखन के लिए बालकों को समय-समय पर मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन अवश्य मिलता रहना चाहिए, जिससे उनकी रचना में और निखार लाया जा सकता हैं ।
निबन्ध रचना द्वारा बालकों की भावनाओं, वैचारिक दृष्टिकोण, आकांक्षाओं और भाषा-ज्ञान का आसानी से पता लगाया जा सकता है, क्योंकि उनकी आन्तरिक अभिव्यक्ति का रचना-कौशल पर अवश्य प्रभाव पड़ता है। अतः बालकों में रचनात्मक कौशल का विकास करने में निबन्ध रचना सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है।
2. कहानी कला- कहानी विधा बालकों की सर्वप्रिय विधा है। कहानी पढ़ना और सुनना मानव को प्रत्येक आयु में अच्छा लगता है। बदलाव बस इतना हो सकता है कि के साथ-साथ कहानी के विषयों की गम्भीरता और भाषा-शैली में परिवर्तन होता रहता है। आयु बालक बाल्यावस्था से ही विभिन्न प्रकार की कल्पनाएँ करता रहता है। उन्हीं कल्पनाओं को पात्रों द्वारा सजीव भाषायी वर्णन कहानी का स्वरूप धारण कर लेता है। कहानी कला का प्रारम्भिक अवस्था में विकास चित्रों की सहायता से वर्णन करवाकर या बातचीत करके प्रेरित किया जा सकता है। फिर अनुभव की गयी घटनाओं के आधार पर कहानी रचना को विकास की ओर अग्रसर किया जा सकता है।
माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर दी हुई रूपरेखा के आधार पर कहानी रचना का अभ्यास कराया जा सकता है। अंत में बालकों को काल्पनिक स्थितियों पर भी कहानी रचना के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
बालकों में कहानी द्वारा रचनात्मक कौशल का विकास किया जाना भाषा की सबसे उत्कृष्ट सेवा होगी। कहानी कला में बालकों की रचनात्मकता के साथ कल्पना – शक्ति एवं संवेदनाओं की भी अच्छी अभिव्यक्ति होती है। अच्छे कहानी लेखन के लिए बालकों को समय-समय पर प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन देते रहना आवश्यक है, जिससे बालकों का मनोबल ऊँचा होता रहता हैं इसके उपरान्त उनकी रचनात्मक क्षमता में और अधिक निखार आता है। प्रारम्भिक अवस्था से ही अच्छे मार्गदर्शन और प्रोत्साहन के मिलने से बालक को भविष्य में अच्छे कहानीकार के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
(3) कविता कला – कविताएँ बालकों को आसानी से याद हो जाती हैं। साथ ही यदि कविता छोटी और गाने में आसान है तब बालक उसे बहुत मन लगाकर पढ़ता है। कविता कला के द्वारा भी बालकों में रचनात्मक कौशल का विकास किया जा सकता है। कविता करना आसान कार्य नहीं है किन्तु अनवरत अभ्यास और उचित मार्गदर्शन द्वारा सीखा भी जा प्रारम्भिक अवस्था में बालक को कोई दृश्य दिखाकर या बताकर चार-चार पंक्तियों में तुकबन्दी करना सिखाया जाये। उसके उपरान्त शनैः-शनैः साहित्यिक भाषा का विकास करते हुए बालक को आगे बढ़ाया जाये। कभी-कभी बालक छोटी अवस्था में ही अच्छी कविता करना जाते हैं। यदि किसी बालक में ईश्वर-प्रदत्त कविता करने का गुण है तो सही मार्गदर्शन प्रोत्साहन द्वारा उसके रचनात्मक कौशल का और अच्छा विकास किया जा सकता है। रचनात्मक कौशल का विकास कविता द्वारा अच्छी प्रकार से हो सकता है।
(4) पत्र-लेखन कला – पत्र लेखन द्वारा रचनात्मक कौशल का विकास करना अत्यन्त आसान कार्य है, क्योंकि पत्र लेखन में किसी बहुत लम्बे-चौड़े लेख की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें सीमित शब्दों द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति की जाती है। यह जीवन की वास्तविक स्थिति से सम्बन्धित विधा है। पत्र लेखन विधा में अत्यधिक कल्पनाओं की आवश्यकता नहीं होती है। पत्र लेखन में निश्चित उद्देश्यों को ध्यान में रखकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करता है। अतः पत्र रचना का भाषायी विकास के साथ एक उद्देश्य यह भी होना चाहिए कि उद्देश्यपूर्ण सम्प्रेषण की कुशलता का विकास भी छात्रों में हो सकें। प्रारंभिक अवस्था में बालकों को सीधे-सीधे पत्र लेखन सिखाया जाये, जब वह सम्बोधन आदि लिखना सीख जाये, तत्पश्चात् उनको साहित्यिक रचनात्मकतापूर्ण पत्र लेखन सिखाना चाहिए। रचनात्मक कौशल के विकास में पत्र लेखन कला भी महत्त्वपूर्ण सहायक है।