रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण, (RAS IN HINDI Grammar PDF Download) – Hello Friends,currentshub में आपका स्वागत हैं , आज हम आपके साथ रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण (RAS IN HINDI Grammar PDF Download) महत्वपूर्ण Notes And Question – Answer शेयर कर रहे है. जो छात्र SSC CGL, MTS, CPO, RAS, UPSC, IAS and all state level competitive exams. या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे उनके लिए ये Hindi Notes का PDF Download करके पढना किसी वरदान से कम नहीं होगा. आप इस सामान्य हिंदी का इतिहास एवं परिचय PDF नोट्स को नीचे दिए हुए Download Link के माध्यम से PDF Download कर सकते है.
अनुक्रम (Contents)
Ras (रस)- रस क्या होते हैं? रस की परिभाषा
रस : रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनन्द’। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।रस को काव्य की आत्मा माना जाता है। प्राचीन भारतीय वर्ष में रस का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। रस -संचार के बिना कोई भी प्रयोग सफल नहीं किया जा सकता था। रस के कारण कविता के पठन , श्रवण और नाटक के अभिनय से देखने वाले लोगों को आनन्द मिलता है। or श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार – काव्य रचना के आवश्यक अवयव हैं।
- पाठक या श्रोता के हृदय में स्थित स्थायीभाव ही विभावादि से संयुक्त होकर रस के रूप में परिणत हो जाता है।
- रस को ‘काव्य की आत्मा’ या ‘प्राण तत्व’ माना जाता है।
भरतमुनि द्वारा रस की परिभाषा-
रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है। उन्होंने अपने ‘नाट्यशास्त्र‘ में रास रस के आठ प्रकारों का वर्णन किया है। रस की व्याख्या करते हुए भरतमुनि कहते हैं कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत एक भावमूलक कलात्मक अनुभूति है। रस का केंद्र रंगमंच है। भाव रस नहीं, उसका आधार है किंतु भरत ने स्थायी भाव को ही रस माना है।
काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने काव्य की आत्मा को ही रस माना है।
अन्य विद्वानों के अनुसार रस की परिभाषा
आचार्य धनंजय के अनुसार रस की परिभाषा
साहित्य दर्पणकार आचार्य विश्वनाथ ने रस की परिभाषा देते हुए लिखा है:
डॉ. विश्वम्भर नाथ के अनुसार रस की परिभाषा:
आचार्य श्याम सुंदर दास के अनुसार रस की परिभाषा:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार रस की परिभाषा-
रस के अंग
हिन्दी व्याकरण में रस के चार अवयव या अंग होते हैं। जो इस प्रकार हैं-- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव
- स्थायीभाव
1. रस का विभाव
जो व्यक्ति , पदार्थ, अन्य व्यक्ति के ह्रदय के भावों को जगाते हैं उन्हें विभाव कहते हैं। इनके आश्रय से रस प्रकट होता है यह कारण निमित्त अथवा हेतु कहलाते हैं। विशेष रूप से भावों को प्रकट करने वालों को विभाव रस कहते हैं। इन्हें कारण रूप भी कहते हैं। स्थायी भाव के प्रकट होने का मुख्य कारण आलम्बन विभाव होता है। इसी की वजह से रस की स्थिति होती है। जब प्रकट हुए स्थायी भावों को और ज्यादा प्रबुद्ध , उदीप्त और उत्तेजित करने वाले कारणों को उद्दीपन विभाव कहते हैं। रस का विभाव दो तरह का होता है-- आलंबन विभाव
- उद्दीपन विभाव
1. आलंबन विभाव
जिसका आलंबन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं आलंबन विभाव कहलाता है। जैसे- नायक-नायिका। आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं:-- आश्रयालंबन
- विषयालंबन
2. उद्दीपन विभाव
जिन वस्तुओं या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव उद्दीप्त होने लगता है उद्दीपन विभाव कहलाता है। जैसे- चाँदनी, कोकिल कूजन, एकांत स्थल, रमणीक उद्यान, नायक या नायिका की शारीरिक चेष्टाएँ आदि।2. रस का अनुभाव
मनोगत भाव को व्यक्त करने के लिए शरीर विकार को अनुभाव कहते हैं। वाणी और अंगों के अभिनय द्वारा जिनसे अर्थ प्रकट होता है उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभवों की कोई संख्या निश्चित नहीं हुई है। जो आठ अनुभाव सहज और सात्विक विकारों के रूप में आते हैं उन्हें सात्विकभाव कहते हैं। ये अनायास सहजरूप से प्रकट होते हैं। इनकी संख्या आठ होती है।- स्तंभ
- स्वेद
- रोमांच
- स्वर – भंग
- कम्प
- विवर्णता
- अश्रु
- प्रलय
3. रस का संचारी भाव
जो स्थानीय भावों के साथ संचरण करते हैं वे संचारी भाव कहते हैं। इससे स्थिति भाव की पुष्टि होती है। एक संचारी किसी स्थायी भाव के साथ नहीं रहता है इसलिए ये व्यभिचारी भाव भी कहलाते हैं। इनकी संख्या 33 मानी जाती है।
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4. स्थायीभाव
स्थायी भाव का मतलब है प्रधान भाव। प्रधान भाव वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुँचता है। काव्य या नाटक में एक स्थायी भाव शुरू से आख़िरी तक होता है। स्थायी भावों की संख्या 9 मानी गई है। स्थायी भाव ही रस का आधार है। एक रस के मूल में एक स्थायी भाव रहता है। अतएव रसों की संख्या भी 9 हैं, जिन्हें नवरस कहा जाता है। मूलत: नवरस ही माने जाते हैं। बाद के आचार्यों ने 2 और भावों वात्सल्य और भगवद विषयक रति को स्थायी भाव की मान्यता दी है। ऐसे स्थायी भावों की संख्या 11 तक पहुँच जाती है और तदनुरूप रसों की संख्या भी 11 तक पहुँच जाती है।रस के प्रकार, Ras Ke Bhed
- श्रृंगार रस
- हास्य रस
- रौद्र रस
- करुण रस
- वीर रस
- अद्भुत रस
- वीभत्स रस
- भयानक रस
- शांत रस
- वात्सल्य रस
- भक्ति रस
विस्तार से Hindi में Ras
एक पेज पर रस के सभी भेदों को समझा पाना आसान नहीं था इसलिए सभी रस विस्तार से आसान भाषा में अलग अलग पेज पर दिये गये है। आपको जिस रस के बारे में जानना है उस रस पर क्लिक करें।Ras Ke Udaharan
Ras in Hindi – Index
हिन्दी में रस की संख्या नौ हैं – वात्सल्य रस को दसवाँ एवं भक्ति रस को ग्यारहवाँ रस भी माना गया है। वत्सलता तथा भक्ति इनके स्थायी भाव हैं। विवेक साहनी द्वारा लिखित ग्रंथ “भक्ति रस- पहला रस या ग्यारहवाँ रस” में इस रस को स्थापित किया गया है। इस तरह हिंदी में रसों की संख्या 11 तक पहुंच जाती है। Hindi में रस निम्नलिखित 11 Ras हैं-- श्रृंगार रस – Shringar Ras in Hindi
- हास्य रस – Hasya Ras in Hindi
- रौद्र रस – Raudra Ras in Hindi
- करुण रस – Karun Ras in Hindi
- वीर रस – Veer Ras in Hindi
- अद्भुत रस – Adbhut Ras in Hindi
- वीभत्स रस – Veebhats Ras in Hindi
- भयानक रस – Bhayanak Ras in Hindi
- शांत रस – Shant Ras in Hindi
- वात्सल्य रस – Vatsalya Ras in Hindi
- भक्ति रस – Bhakti Ras in Hindi
1. श्रृंगार रस – Shringar Ras
नायक नायिका के सौंदर्य तथा प्रेम संबंधी वर्णन को श्रंगार रस कहते हैं श्रृंगार रस को रसराज या रसपति कहा गया है। इसका स्थाई भाव रति होता है।Example
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नहि जाय।2. हास्य रस – Hasya Ras
हास्य रस का स्थायी भाव हास है। इसके अंतर्गत वेशभूषा, वाणी आदि कि विकृति को देखकर मन में जो प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है, उससे हास की उत्पत्ति होती है इसे ही हास्य रस कहते हैं।उदाहरण
बुरे समय को देख कर गंजे तू क्यों रोय। किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय।3. रौद्र रस – Raudra Ras
इसका स्थायी भाव क्रोध होता है। जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं।Example
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे। सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे॥ संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े। करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खड़े॥4. करुण रस – Karun Ras
इसका स्थायी भाव शोक होता है। इस रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है उसे करुण रस कहते हैं ।Easy Example
रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के। ग्लानि, त्रास, वेदना – विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके।।5. वीर रस – Veer Ras
इसका स्थायी भाव उत्साह होता है। जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है, तो उसे वीर रस कहा जाता है। इस रस के अंतर्गत जब युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना विकसित होती है उसे ही वीर रस कहते हैं।सरल उदाहरण
बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।।6. अद्भुत रस – Adbhut Ras
इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं उसे ही अदभुत रस कहा जाता है।उदाहरण
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया। क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया॥7. वीभत्स रस – Veebhats Ras
इसका स्थायी भाव जुगुप्सा होता है । घृणित वस्तुओं, घृणित चीजो या घृणित व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में विचार करके या उनके सम्बन्ध में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कहलाती है।उदाहरण
आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे खा माँस चाट लेते थे, चटनी सैम बहते बहते बेटे8. भयानक रस – Bhayanak Ras
इसका स्थायी भाव भय होता है। जब किसी भयानक या बुरे व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे सम्बंधित वर्णन करने या किसी दुःखद घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता अर्थात परेशानी उत्पन्न होती है उसे भय कहते हैं उस भय के उत्पन्न होने से जिस रस कि उत्पत्ति होती है उसे भयानक रस कहते हैं।उदाहरण
अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल॥ कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार ॥9. शांत रस – Shant Ras
इसका स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है। मोक्ष और आध्यात्म की भावना से जिस रस की उत्पत्ति होती है, उसको शान्त रस नाम देना सम्भाव्य है। इस रस में तत्व ज्ञान कि प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है। वहाँ शान्त रस कि उत्पत्ति होती है जहाँ न दुःख होता है, न द्वेष होता है।उदाहरण
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं10. वात्सल्य रस – Vatsalya Ras
इसका स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है। माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है।उदाहरण
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति11. भक्ति रस – Bhakti Ras
इसका स्थायी भाव देव रति है। इस रस में ईश्वर कि अनुरक्ति और अनुराग का वर्णन होता है अर्थात इस रस में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन किया जाता है।छोटा उदाहरण
अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होईSamas PDF Download (समास उदाहरण सहित संस्कृत व्याकरण )
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