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अधिगम की स्थिति में अधिगमकर्ता की भूमिका (Role of Learner in Learning Position)
अधिगम की स्थिति में अधिगमकर्ता की भूमिका – ज्ञान के सृजन की प्रक्रिया अधिगम कहलाती है। विद्यार्थी अपने क्रिया-कलापों तथा प्रदान की गयी सामग्री से ज्ञान प्राप्त करते हैं। विद्यार्थी निम्नलिखित प्रक्रियाओं से अधिगम करते हैं-
1. विद्यार्थियों के आस-पास का पर्यावरण, प्रकृति, वस्तुएँ, व्यक्ति व भाषा से अन्तक्रिया करके विद्यार्थी अधिगम करते हैं।
2. बच्चों की प्रकृति सीखने की होती है तथा उनमें अधिगम की क्षमता होती है।
3. विद्यार्थी विद्यालय में तथा बाहर दोनों जगह अधिगम करता है। दोनों स्थानों में सम्बन्ध होने पर अधिगम प्रक्रिया सुदृढ़ होती है।
4. विद्यार्थी अपने अनुभव, स्वकार्य, पढ़ने, विमर्श करने, पूछने, सुनने, सोचने व मनन करने से अधिगम करते हैं।
5. विद्यार्थी भाषण क्रिया पर लेखन से या स्व-अभिव्यक्ति से अधिगम करते है।
6. विवेचना करना, आशय निकालना, अमूर्त सोच की क्षमता का विकास करना, आदि सीखने की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण पक्ष हैं।
7. अधिगम का प्रभाव सामाजिक पर्यावरण से प्रभावित होता है जहाँ से शिक्षक एवं विद्यार्थी आते हैं। विद्यालय एवं कक्षा का सामाजिक पर्यावरण अधिगम की प्रक्रिया तथा पूरी शिक्षा प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
8.विद्यालयों में शिक्षण अधिगम सुन्दर एवं सुखद पर्यावरण में हो।
शिक्षक द्वारा कक्षागत व्यवहार का निर्माण (Preparation of Class Behaviour by the Teacher)
शिक्षक द्वारा कक्षा को नेतृत्व दिया जाता है। नेतृत्व अच्छा होने पर कक्षा का व्यवहार भी अच्छा होता है। शिक्षक का प्रदर्शन एवं अभिव्यक्ति का प्रभाव छात्रों के अधिगम एवं कौशल पर होता है। शिक्षक द्वारा कक्षागत व्यवहार में तकनीकी के माध्यम से व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है। शिक्षक द्वारा कक्षा मे शिक्षण अधिगम की पूरी रूपरेखा बनायी जाती है तथा उसे व्यवस्थित रूप से लागू किया जाता है। शिक्षण की गतिविधि में आधार दर्शन तथा व्यवहार मनोविज्ञान है। इसमें सीखने के उद्देश्यों तक पहुँचा जाता है।
कक्षागत व्यवहार को बनाने में शिक्षक द्वारा किये जाने वाले प्रयास निम्नलिखित हैं
1.शैक्षिक लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करना।
2. अधिगम करने हेतु छात्रों को अभिप्रेरित करना।
3. शिक्षण क्रियाकलापों में मानवीय एवं यान्त्रिक संसाधनों को उपयोग में लाना।
4.शिक्षक छात्र सम्बन्धों को विकसित करना।
5. पाठ्य विषय-वस्तु को तर्कपूर्ण क्रम में समझाना।
6. विज्ञान एवं मनोविज्ञान के साधनों का शैक्षिक उपयोग करना।
7. वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर विद्यार्थियों की क्षमता का विकास करना।
8. कक्षागत व्यवहार को हल करने में अनुदेशन तकनीकी को प्रयोग करना।
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