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बालक के सामाजिक विकास में साथियों की भूमिका

बालक के सामाजिक विकास में साथियों की भूमिका
बालक के सामाजिक विकास में साथियों की भूमिका

बालक के सामाजिक विकास में साथियों की भूमिका (Role of Peers in Child’s Social Development)

बालक के सामाजिक विकास में साथियों की भूमिका- बाल्यावस्था में बच्चे बड़ों की छत्रछाया से अपने को मुक्त करने का प्रयास करते हैं। माता-पिता और परिवार के बड़े सदस्यों के साथ कम समय बिताना चाहते हैं। वे हम उम्र बालकों की टोली का सदस्य बनना चाहते हैं। उसके साथी सदस्यों का प्रभाव उसके सामाजिक विकास पर निम्न रूप में देखा जा सकता है-

(i) बालक किसी-न-किसी समूह का सदस्य बनकर समूह द्वारा निर्धारित उचित-अनुचित आदर्शों का अनुसरण करता है और निर्देशों को मानता है, जिससे उसमें उत्तरदायित्व और सहकारिता की भावना विकसित होती है।

(ii) हरलॉक के अनुसार- “समूह बालक में आत्म-नियंत्रण, साहस, न्याय, सहनशीलता, नेता के प्रति भक्ति, दूसरों के प्रति सद्भावना आदि गुणों का विकास करता है।”

(iii) हरलॉक का यह भी मत है कि “समूह के प्रभावों के कारण बालक सामाजिक व्यवहार का महत्त्वपूर्ण प्रशिक्षण प्राप्त करता है, जैसा प्रौढ़ समाज द्वारा निर्धारित की गई दशाओं में उतनी सफलता से नहीं प्राप्त किया जा सकता।”

(iv) साथियों के प्रभाव से बालक सामाजिक कार्यों और गतिविधियों में प्रतिभागिता के लिए प्रोत्साहित होता है, जिससे उसमें बहुमुखी प्रतिभा का विकास होता है, जैसे- साहित्य, संगीत, कला, समाज-सेवा, सामाजिक सम्पर्क आदि।

(v) साथियों के सम्पर्क से बालक को अनुभव होने लगता है कि समाज में उसका क्या स्थान है तथा समाज में उसे किस प्रकार रहना चाहिए।

(vi) साथियों के प्रभाव से बालक में सामाजिक परिपक्वता का भाव विकसित होता है, समाज के प्रति अपने दायित्वों का बोध होता है।

(vii) समूह में रहने के कारण बालक आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी नहीं रहता।

(viii) बालक अपने साथियों के व्यवहार के प्रति अनुक्रिया करता है, सामूहिक क्रियाओं में भाग लेकर आनन्दित होता है तथा स्वाभाविक रूप से सामाजिक व्यवहार सीख लेता है।

(ix) साथियों के साथ बालक केवल गुणों को ही नहीं सीखता, अनेक अवगुणों को भी आत्मसात् कर लेता है।

(x) साथियों के कारण बालक के मूल्यों, नैतिकता और व्यवहार में भी परिवर्तन होता है।

(xi) साथियों के प्रभाव से बालक की प्राथमिकताओं में भी परिवर्तन आता है।

बालकों के सामाजिक विकास पर साथियों का अच्छा और बुरा दोनों प्रकार का प्रभाव पड़ता है। अत: अभिभावकों व अध्यापकों को निम्न बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए-

(i) अक्सर देखा जाता है कि बालक साथियों की धौंस या धमकाने पर ऐसा कार्य भी करते हैं जो उन्हें गलत लगता है। वे असामाजिक कार्यों में लिप्त होने लगते हैं। माता-पिता और अध्यापकों में क्षमता होनी चाहिए कि वे पहचान सकें कि बालक साथियों के दबाव में है, तभी वे सहायता कर सकते हैं।

(ii) यदि किसी बालक पर साथियों का नकारात्मक दबाव है, तो उसके माता-पिता और अध्यापकों को आपस में मिल-जुलकर इस सम्बन्ध में बातचीत करनी चाहिए।

(iii) माता-पिता और अध्यापकों को बालकों से संवाद करते रहना चाहिए, उनका विश्वास जीतना चाहिए कि वे अपनी बातें खुलकर बतायें।

(iv) साथियों से सम्बन्धित मुद्दों पर बात करते समय खुले दिमाग से काम लेना चाहिए कि उनके सुझाव या निर्णय के क्या परिणाम हो सकते हैं।

(v) छोटी-छोटी बातों में हस्तक्षेप न करें। जो बातें लघुकालिक होती हैं, उन्हें अनदेखा करना भी उचित है।

(vi) बालकों का मार्गदर्शन करें कि वे सोच-समझकर मित्र बनायें, अगर वे अच्छे मित्र बनायेंगे तो समाज में उन्हें सराहना मिलेगी।

(vii) साथियों के दबाव का प्रतिरोध करने का कौशल भी बालकों को सिखाना चाहिए।

(viii) बालकों को समझाना चाहिए कि साथियों के प्रभाव में आकर अपनी वैयक्तिक पहचान नहीं होनी चाहिए।

(ix) बालकों के आत्मबल को समृद्ध करना चाहिए, जिससे वे साथियों के सकारात्मक दबाव को स्वीकार कर सकें और नकारात्मक दबाव का प्रतिरोध कर सकें।

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shubham yadav

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