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रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण-Rosha Syahi Dhabba Parikshan
रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण- इस विधि का आविष्कार स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हरमैन रोर्शाक ने 1921 ई० में किया। इस परीक्षण के अन्तर्गत 10 प्रामाणिक स्याही के धब्बों के कार्डों को प्रयुक्त किया जाता है। इन कार्डों में 5 बिल्कुल काले, 2 काले और लाल तथा 3 में कई रंग मिले होते हैं।
इस विधि का प्रयोग करने हेतु परीक्षक को विशेष रूप से प्रशिक्षित होना आवश्यक है। परीक्षण का प्रयोग करने से पूर्व परीक्षार्थी को ये आदेश दिए जाते हैं भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को इन धब्बों में भिन्न-भिन्न वस्तुएँ दिखाई देती हैं। आपको ये धब्बे एक-एक करके दिखाये जायेंगे। प्रत्येक कार्ड को ध्यान से देखिए और बताइए कि आप इसमें क्या देखते हैं? आप जितनी देर तक कोई देखना चाहें, देख सकते हैं किन्तु जो वस्तुयें इस चित्र में आपको नजर आती हों उन सबको बताते जाइए। जब आप उसे पूरी तरह से देख लें तो उसे मुझे लौटा दें। एक धब्बा (चित्र) दिखाते हुए, यह क्या हो सकता है?
उपर्युक्त आदेशों के पश्चात् एक-एक करके कार्ड विद्यार्थी अथवा परीक्षार्थी को दिखाये जाते हैं। परीक्षार्थी इन धब्बों को देखकर जो प्रतिक्रिया व्यक्त करता है उसे लिखते जाते हैं।
विश्लेषण- परीक्षार्थी के उत्तरों का विश्लेषण निम्न चार बातों के आधार पर किया जाता है-
(1) स्थान- इसमें यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी ने धब्बे के किसी विशिष्ट भाग के प्रति प्रतिक्रिया की है अथवा पूरे धब्बे के प्रति ।
(2) गुण- इसमें यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी की प्रतिक्रिया धब्बे की बनावट के फलस्वरूप है अथवा विभिन्न रंगों के कारण अथवा गति के कारण।
(3) विषय- इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी धब्बे में मनुष्य की आकृति देखता है, पशु की आकृति देखता है अथवा किसी वस्तु की आकृति या प्राकृतिक दृश्यों की आकृति देखता है।
(4) समय- इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी ने प्रत्येक धब्बे को दिखाने के हेतु कितना समय लिया है।
मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर व्यक्ति की चेतन और अचेतन विशेषताओं की जाँच की जा सकती है। इस परीक्षण के द्वारा व्यक्ति की सामाजिकता, संवेगात्मक प्रतिक्रिया, रचनात्मक और कल्पनात्मक शक्तियों का विकास, समायोजन क्षमता और अन्य व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं का पता लगाया जाता है।
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