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सबूत के भार के नियम। Rule of Burden of Proof in Hindi

सबूत के भार के नियम
सबूत के भार के नियम

सबूत के भार के नियम (Rule of Burden of Proof in Hindi)

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 101-114 ‘क’ सबूत के भार के विषय में उपबन्ध करती है। परंतु धारा 101 से 106 तक ही सबूत के भार से सम्बंधित है, एवं धारा 107 से 114 ‘क’ तक उपधारणा के नियम से सम्बन्धित है, जो सबूत के भार को भी प्रभावित करते हैं।

सबूत का भार का अर्थ

‘सबूत का भार’ का अर्थ हैं किसी तथ्य को सिद्ध करने का दायित्व है।

सबूत का भार की परिभाषा

‘सबूत का भार की परिभाषा धारा 101 में दी गई है, इस परिभाषा के का अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य को साबित करने के लिए आबद्ध या बाध्य हो तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर ‘सबूत का भार’ है।

धारा 101 यह निर्धारित करती है कि सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है, जो तथ्यों के सकारात्मक पहलू का दावा करता है जो सुविधा का नियम है, तथा जो रोमन विधि को उद्धृत करता है कि (Ei incumbit probatio qui dicit, non qui negat) The proof lines upon him who affirms, not upon him who denies.

(सबूत का भार प्रकथन करने वाले पर है न कि प्रत्याख्यान करने वाले पर) सिद्धान्त पर आधारित है।

सबूत के भार से सम्बंधित विधि- (धारा 101-106)

धारा 101 सबूत का भार जो कोई न्यायालय से यह चाहता है कि वह ऐसे किसी विधिक अधिकार या दायित्व के बारे में निर्णय दे, जो उन तथ्यों के अस्तित्व पर निर्भर है, जिन्हें वह प्राख्यात करता है, उसे साबित करना होगा कि उन तथ्यों का अस्तित्व है। जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य का अस्तित्व साबित करने के लिए आबद्ध है, तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर सबूत का भार है।

दृष्टान्त- (क) ‘क’ न्यायालय से चाहता है कि ‘ख’ को उस अपराध के लिए दण्डित करने का निर्णय दे, जिसके बारे में ‘क’ कहता है कि वह ‘ख’ ने किया है। ‘क’ को यह साबित करना होगा कि ‘ख’ ने वह अपराध किया है।

धारा 102 सबूत का भार किस पर होता है किसी वाद या कार्यवाही में सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो असफल हो जायेगा, यदि दोनों में से किसी भी ओर से कोई भी साक्ष्य न दिया जाय।

दृष्टान्त-(क) ‘ख’ पर उस भूमि के लिए ‘क’ वाद लाता है जो ‘ख’ के कब्जे में है और जिसके बारे में ‘क’ प्राख्यान करता है कि वह ‘ख’ के पिता ‘ग’ की विल द्वारा ‘क’ के लिएbदी गई थी। यदि किसी भी ओर से कोई साक्ष्य नहीं दिया जाये, तो ‘ख’ इसका हकदार होगा कि वह अपना कब्जा रखे रहे। अतः सबूत का भार ‘क’ पर है।

धारा 103 विशिष्ट तथ्य के बारे में सबूत का भार- किसी विशिष्ट तथ्य के सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है, जो न्यायालय से यह चाहता है कि वह उसके अस्तित्व में विश्वास करे जब तक कि किसी विधि द्वारा उपबन्धित न हो कि उस तथ्य के सबूत का भार किसी विशिष्ट व्यक्ति पर होगा|

दृष्टांत- (क) ‘ख’ को ‘क’ चोरी के लिए अभियोजित करता है और न्यायालय से यह चाहता है कि न्यायालय यह विश्वास करे कि ‘ख’ ने चोरी की स्वीकृति ‘ग’ से की। ‘क’ को यह स्वीकृति साबित करनी होगी। ‘ख’ न्यायालय से चाहता है कि वह यह विश्वास करे कि प्रश्नगत समय पर वह अन्यत्र था। उसे यह बात साबित करनी होगी।

धारा 104 साक्ष्य को ग्राह्य बनाने के लिए जो तथ्य साबित किया जाना हो, उसे साबित करने का भार- ऐसे तथ्य को साबित करने का भार जिसका साबित किया जाना किसी व्यक्ति को किसी अन्य तथ्य का साक्ष्य देने को समर्थ करने के लिए आवश्यक हैं, उस व्यक्ति पर है, जो ऐसा साक्ष्य देना चाहता है।

दृष्टान्त- (क) ‘ख’ द्वारा दिये गये मृत्युकालिक कथन को ‘क’ साबित करना चाहता है। ‘क’ को ‘ख’ की मृत्यु साबित करनी होगी।

धारा 105 यह साबित करने का भार कि अभियुक्त का मामला अपवादों के अन्तर्गत आता है जबकि कोई व्यक्ति किसी अपराध का अभियुक्त है, तब उन परिस्थितियों के अस्तित्व 5 को साबित करने का भार जो उस मामले को भारतीय दण्ड संहिता के साधारण अपवादों में से किसी के अन्तर्गत या उसी संहिता के किसी अन्य भाग में, या उस अपराध की परिभाषा करने वाली विधि में, अन्तर्विष्ट किसी विशेष अपवाद या परन्तुक के अन्तर्गत कर देती है, उस व्यक्ति पर है और न्यायालय ऐसी परिस्थितियों के अभाव की उपधारणा करेगा।

दृष्टान्त – (क) हत्या का अभियुक्त, ‘क’ अभिकथित करता है कि वह चित्तविकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति नहीं जानता था। सबूत का भार ‘क’ पर है।

धारा 106 विशेषतः ज्ञात तथ्य को साबित करने का भार जबकि कोई तथ्य विशेषतः किसी व्यक्ति के ज्ञान में है, तब उस तथ्य को साबित करने का भार उस पर है।

दृष्टांत-(ख) ‘ख’ पर रेल से बिना टिकट यात्रा करने का आरोप है। यह साबित करने का भार उसके पास टिकट था, उस पर है।

उपेक्षा साबित करने का भार और स्वयं प्रमाण- सूत्र-रेस इप्सा लोक्युटर को स्काट बनाम लन्दन सेण्ट कैथरीन डाम्स कं. के वाद में मुख्य न्यायाधीश इरले ने प्रतिपादित किया था यह धारा 106 पर आधारित है।

सबूत का भार तथा साबित करने का भार (Burden and onus of proof) सबूत का भार तथा साबित करने के भार की तुलना करते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने रणछोड़ बनाम बाबू बाई, 1982 के बाद में कहा कि इसमें एक आवश्यक भेद है। सबूत का मार उस व्यक्ति पर होता है जिसे कोई तथ्य साबित करना होता है और कभी बदलता नहीं, परन्तु साबित करने के भार का स्थान बदलता रहता है।

अब्दुला मुहम्मद बनाम स्टेट, 1980 एस.एस.सी. में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि आरोप के प्रत्येक आवश्यक तत्व के अस्तित्व को साबित करने का भार हमेशा अभियोजन पर होता है और वह कभी अभियुक्त पर नहीं डाला जाता है।

सबूत के भार के दो अर्थ होते हैं-

(1) सबूत का भार जो विधि तथा अभिवचन के नियमों के अनुसार पूरा किया जाता है, तथा (धारा 101)

(2) साक्ष्य पेश करने के द्वारा किसी तथ्य को साबित करना। (धारा 102)

सबूत के भार के प्रकार

फिप्सन ने कहा है- पद “सबूत के भार को जब न्यायिक कार्यवाही में उपयोग किया जाता है तब उसके दो स्पष्ट और सुभिन्न अर्थ होते हैं, अर्थात्

(1) किसी मामले को स्थापित करने का भार(2) साक्ष्य पेश करने के कर्त्तव्य या आवश्यकता के अर्थ में सबूत का भार ( 1 ) किसी मामले को स्थापित करने का भार (धारा 101)- सबूत का भार उस पक्षकार पर होता है जो न्यायालय से उन अमुक तथ्यों के, जिन्हें वह प्राख्यात करता है,

अस्तित्व के बारे में कोई विनिश्चय चाहता है। (के.एस. नाना जी एण्ड कं. बनाम जयशंकर डोसा, 1961 एस.सी.)

अभिवचन पर सबूत का भार विधि और अभिवचनों के सन्दर्भ में एक पक्षकार द्वारा अपने केस को साबित करने के भार को दर्शित करता है, जो नियम 101 में समाविष्ट है। जो भार अभिवचन से उत्पन्न होता है वह प्रतिपादित या इन्कार किये गये तथ्यों पर आधारित होता है। और मौलिक तथा परिनियत विधि के नियमों द्वारा, या विधि और तथ्य की उपधारणा द्वारा निश्चित होता है, यह हमेशा स्थित है।

( 2 ) साक्ष्य पेश करने के कर्त्तव्य या आवश्यकता के अर्थ में सबूत का भार-सबूत पेश करने के अर्थ में सबूत का भार स्थिर नहीं रहता है। यह भार पेश की गई साक्ष्य तथा विधि की उपधारणा के अनुसार एक पक्षकार से दूसरे पक्षकार पर बदलता रहता है। (धारा 102)I

साक्ष्य पेश करने का भार धारा 102 में समाविष्ट है। साक्ष्य पेश करने का भार उस पक्षकार पर होता है, जो असफल हो जायेगा, यदि दोनों में से किसी पक्षकार द्वारा साक्ष्य नहीं पेश किया जाता है।

उदाहरण- ‘क’ प्रोनोट के आधार पर वाद प्रस्तुत करता है। ‘ख’ प्रोनोट का निष्पादन स्वीकार करता है, किन्तु दलील देता है, कि प्रोनोट उससे धोखा देकर लिखा लिया गया। इस केस में प्रोनोट का निष्पादन स्वीकार है और इसलिए यदि ‘ख’ द्वारा धोखा पर कोई साक्ष्य नहीं दिया जाता तो ‘क’ की डिक्री हो जायेगी और ‘ख’ हार जायेगा। इसलिए सर्वप्रथम साक्ष्य प्रस्तुत करने का भार ‘ख’ पर है, सर्वप्रथम वह साक्ष्य देगा और तब ‘क’ ‘ख’ द्वारा दिये गये साक्ष्य का खण्डन करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करेगा। इस प्रकार के सबूत के भार को कभी-कभी साबित करने का भार कहते हैं।

साक्ष्य पेश करने का भार बदलता रहता है। धारा 102 यह बताती है कि प्रथमदृष्टया केस अपने पक्ष में स्थापित करने का प्रारम्भिक भार सदैव वादी पर होता है। जब वह ऐसा साक्ष्य दे देता है जिससे प्रथमदृष्ट्या केस साबित हो जाता है, तो उसका खंडन करने के लिए साक्ष्य देने का भार प्रतिवादी पर चला जाता है। जैसे-जैसे केस आगे बढ़ता है भार दोबार वादी पर वापस आ सकता है।

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shubham yadav

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