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समावेशी शिक्षा
समावेशी शिक्षा का प्रत्यय (Concept of Inclusive Education)
समावेशी शिक्षा कक्षा में विविधताओं को स्वीकार करने की एक मनोवृति है जिसके अन्तर्गत विविध क्षमता वाले बालक सामान्य शिक्षा प्रणाली में एक साथ अध्ययन करते हैं। समावेशित शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत प्रत्येक बालक अद्वितीय है और उसे अपने सहपाठियों की भाँति विकसित करने के लिए कक्षा में विविध प्रकार के शिक्षण की आवश्यकता हो सकती है। बालक के पीछे रह जाने पर उनको दोषी नहीं ठहराया जा सकता है बल्कि उन्हें कक्षा में भली प्रकार समाहित न कर पाने का जिम्मेदार अध्यापक को स्वयं समझना चाहिए। जिस प्रकार हमारा संविधान किसी भी आधार पर किए जाने वाले भेद-भाव का निषेध करता है, ठीक उसी प्रकार समावेशित शिक्षा विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों, शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक आदि कारणों से उत्पन्न किसी बालक को, विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उन बालकों को भिन्न देखे जाने की बजाय स्वतंत्र अधिगमकर्ता के रूप में देखती है।
समावेशी शिक्षा में प्रतिभाशाली बालक तथा सामान्य बालक एक साथ कक्षाओं में पूर्ण समय या अर्द्धकालिक समय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। इस प्रकार समायोजन, सामाजिक या शैक्षिक अथवा दोनों को सम्मिलित करता है। कुछ शिक्षाविद् ऐसा सोचते हैं कि समावेशी शिक्षा अपंग बालकों हेतु सामान्य स्कूल में स्थापित करनी है जहाँ उन्हें विशिष्ट शिक्षण में सहायता तथा सुविधाएँ दी जाती हैं। समावेशी शिक्षा का आन्दोलन सभी नागरिकों की समानता के अधिकार को पहचानने और सभी बालकों को विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ-साथ शिक्षा के समान अवसर प्रदान करने पर बल देता है।
कहा जाता है कि उन्हें (बाधित बालकों को) कम नियन्त्रित तथा अधिक प्रभावशाली वातावरण में शिक्षा देनी चाहिए। कम प्रतिबन्धित वातावरण जो बाधित बालकों को चाहिए केवल सामान्य शिक्षण संस्थाओं में ही दिया जा सकता है। इस प्रकार समावेशी शिक्षा, अपंग बालकों की शिक्षा सामान्य स्कूल तथा सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की ओर इंगित करती है। यह शारीरिक तथा मानसिक रूप से बाधित बालकों को सामान्य बालकों के साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा प्राप्त कर एवं विशिष्ट देकर विशिष्ट आवश्यकताओं को प्राप्त करने के लिए सहायता करती है।
समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Inclusive Education)
समावेशन शब्द का अपने आप में कुछ विशेष अर्थ नहीं होता है। समावेशन के चारों ओर जो वैचारिक, दार्शनिक, सामाजिक और शैक्षिक ढाँचा होता है वही समावेशन को परिभाषित करता है। समावेशन की प्रक्रिया में बच्चों को न केवल लोकतंत्र की भागीदारी के लिए सक्षम बनाया जा सकता है बल्कि उन्हें यह एवं विश्वास करने के लिए सक्षम बनाया जाता है कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए दूसरों के साथ रिश्ते बनाना, अन्तःक्रिया करना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है।
वर्तमान में विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं वाले बालकों के लिए शिक्षा में दो प्रकार की व्यवस्थाएँ हैं। पहली वह जिन्हें हम विशेष विद्यालय कहते हैं, जो ज्यादातर शहरों में स्थित हैं जिनका उद्देश्य केवल एक प्रकार के विशिष्ट बालकों की विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करना है। दूसरी वह जिन्हें अन्य सभी बालकों के साथ आस-पड़ोस के सामान्य विद्यालयों में भेजा जाए और वहीं उनकी विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने की व्यवस्था की जाए। यहाँ पर समावेशी शिक्षा से तात्पर्य एक ऐसी शिक्षा प्रणाली से है जिसमें प्रत्येक बालक को चाहे वह विशिष्ट हो या सामान्य, बिना किसी भेदभाव के एक साथ ही एक ही विद्यालय में सभी आवश्यक तकनीकों व सामग्रियों के साथ उनकी सीखने और सिखाने की आवश्यकताओं को पूरा किया जाए।
समावेशी शिक्षा केवल अशक्त व्यक्तियों के लिए नहीं है बल्कि सभी को समान रूप से शिक्षा प्रदान करना समावेशी शिक्षा का उद्देश्य है। सच यह है कि अशक्त बालक वर्जन का मुख्य शिकार रहे हैं। ये बालक शैक्षिक अलगाव को मुख्य रूप से स्पष्ट करते हैं।
माइकल एफ. फिनग्रेस के अनुसार, “समावेशी शिक्षा मूल्यों, सिद्धान्तों तथा अभ्यासों का एक समूह है जो सभी बालकों के लिए, चाहे वह विशिष्टता रखते हों या नहीं रखते हों, प्रभावशाली तथा अर्थपूर्ण शिक्षा की खोज करता है।
स्टेनबैक तथा स्टेनबैक के अनुसार, “समावेशी विद्यालय से तात्पर्य ऐसे स्थान से है जहाँ प्रत्येक बालक को उसके साथियों तथा विद्यालय समुदाय के अन्य सदस्यों द्वारा स्वीकार किया जाता है व सहारा दिया जाता है जिससे कि वह अपनी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।”
उमा तली के शब्दों में, “समावेशन एक प्रक्रिया है, जिसमें प्रत्येक विद्यालय बालकों की दैहिक, संवेगात्मक तथा सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने संसाधनों का विस्तार करता है।”
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर समावेशी शिक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्य दृष्टिगत हुए हैं-
(1) समावेशी शिक्षा अयोग्य बालकों का विद्यालय के विभिन्न शैक्षणिक, सामाजिक, संवेगात्मक और व्यावसायिक शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से सर्वांगीण विकास करता है।
(2) समावेशी शिक्षा के माध्यम से विशिष्ट तथा सामान्य बालक एक-दूसरे के निकट आते हैं तथा उनमें सहयोग की भावना विकसित होती है।
(3) विशिष्ट अयोग्य तथा सामान्य बालकों को शैक्षिक अनुभवों में भाग लेने के समान अवसर प्राप्त होते हैं।
(4) विशिष्ट तथा सामान्य अयोग्य बालक अपनी आयु के अन्य बालकों के साथ बिना किसी विशिष्टता के शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करता है।
(5) यह समावेशी के सिद्धान्त पर आधारित है अर्थात् सभी बालक अपनी विशिष्टताओं और अयोग्यताओं के साथ भी बिना किसी भेदभाव के सामान्य विद्यालयों तथा कक्षाओं में शिक्षा लेने के योग्य हैं।
(6) समावेशी शिक्षा अयोग्य बालकों को जीवन जीने की कला तथा वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में समायोजन करना सिखाती है।
समावेशी शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Inclusive Education)
समावेशी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) समावेशी शिक्षा केवल अशक्त बालकों के लिए नहीं- समावेशी शिक्षा से अभिप्राय केवल विशिष्ट बालकों के लिए विशिष्ट शिक्षा तक सीमित रहना नहीं है बल्कि समावेशी शिक्षा का सम्बन्ध शिक्षा ग्रहण करने योग्य सभी बालकों से है।
(2) शिक्षा एक मौलिक अधिकार- शिक्षा के मौलिक अधिकार को सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक रूप में अपनाना समावेशी शिक्षा की एक प्रमुख विशेषता है। शिक्षा की अन्य पद्धतियों में भी बालकों के शिक्षा के अधिकार को मान्यता दी गई है लेकिन इस अधिकार की भावना सबसे अधिक इस शिक्षा पद्धति में निहित है। जिसके अन्तर्गत कोई भी स्कूल किसी भी निम्न दैहिक, मानसिक एवं आर्थिक स्तर के बच्चे को प्रवेश लेने से वंचित नहीं कर सकता है।
(3) सबके लिए शिक्षा एवं सबके लिए विद्यालयों का प्रावधान होना- समावेशी शिक्षा में सभी के लिए शिक्षा एवं सबके लिए विद्यालयों का प्रावधान होना चाहिए। इस शिक्षा पद्धति में सामान्य तथा बाधित बच्चों के लिए विद्यालयों में सभी के लिए शिक्षा के प्रावधान रखे गए हैं। शिक्षा सबके लिए होनी चाहिए न कि कुछ विशेष बालकों के लिए शिक्षा होनी चाहिए।
(4) विभिन्नता की पहचान- समावेशी शिक्षा बालकों की विभिन्नताओं, जैसे- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आदि की पहचान करती है। विभिन्नताओं के आधार पर बालकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संज्ञानात्मक, संवेगात्मक एवं सृजनात्मक विकास के अवसर प्रदान करने चाहिए।
(5) अभिभावक एवं समाज की भागीदारी- समावेशी शिक्षा एक संयुक्त प्रयास है जिसमें माता-पिता तथा अभिभावकों को विशेष रूप से तथा समाज को सामान्य रूप से सम्मिलित किया जाता है। चाहे वह नियन्त्रण-वितरण का कार्य हो या उत्तरदायित्व निर्वहन का कार्य हो। समावेशी शिक्षा में अभिभावक एवं समाज की भागीदारी का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान होता है।
(6) विविधता कोई समस्या नहीं- बालकों की संख्या के साथ उनकी बढ़ती हुई विभिन्नताएँ इस पद्धति में कोई समस्या नहीं समझी जाती हैं। भाषा, धर्म, लिंग, संस्कृति, तथा सामाजिक रूप से सम्बन्धित होने एवं शारीरिक मानसिक गुणों की विविधता बालकों को एक-दूसरे से सीखने तथा समायोजित होने के बहुमूल्य अवसर प्रदान करती है।
(7) सामान्य तथा विशिष्ट शिक्षा में निकट सम्बन्ध- समावेशी शिक्षा पद्धति में सामान्य एवं शिक्षा, औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा तथा विद्यालय एवं समाज में स्पष्ट एवं निकटतम शैक्षिक सम्बन्ध होता है ताकि सभी बालकों को अधिकतम लाभ मिल सके।
(8) मजबूत नीतियाँ एवं नियोजन का होना- समावेशी शिक्षा में इस शिक्षा पद्धति के अन्तर्गत शिक्षा के अधिकार का रक्षण करने तथा उसे लागू करने के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर नीतियाँ मजबूत एवं हैं तथा उनका नियोजन भी सफलता से किया जा रहा हैं।
(9) समावेशी शिक्षा प्रथक्कीकरण का विरोधी है- समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत शारीरिक रूप से बाधित बालक तथा सामान्य बालक साथ-साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा ग्रहण करते हैं। अपंग बालकों को कुछ अधिक सहायता प्रदान की जाती है। इस प्रकार समावेशी शिक्षा अपंग बालकों के पृथक्कीकरण की विरोधी व्यावहारिक समाधान है।
(10) समावेशी शिक्षा, विशिष्ट शिक्षा का विकल्प नहीं है- समावेशी शिक्षा को विशिष्ट शिक्षा संस्था में प्रवेश कराया जा सकता है। शारीरिक रूप से अपंग बालक को जो विशिष्ट शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण करते हैं, सम्प्रेषण व अन्य प्रतिभा ग्रहण करने के पश्चात् वे समन्वित विद्यालयों में भी प्रवेश पा सकते हैं।
समावेशी शिक्षा का कार्यक्षेत्र (Scope of Inclusive Education)
समावेशी शिक्षा शारीरिक रूप से बाधित बालकों को निम्न प्रकार की शिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध कराती है-
(1) अस्थिबाधित बालक।
(2) श्रवणबाधित बालक।
(3) दृष्टिबाधित अथवा एक आँख वाले बालक।
(4) मानसिक मन्दित बालक जो शिक्षा के योग्य हैं।
(5) विभिन्न प्रकार से अपंग बालक (श्रवणबाधित, दृष्टिबाधित, अस्थि अपंग आदि) इन्हें बहुबाधित भी कहते हैं।
(6) अधिगम असमर्थी बालक।
(7) दृष्टिहीन छात्र जिन्होंने ‘ब्रेल में’ पढ़ने और लिखने का शिक्षण प्राप्त कर लिया है तथा उन्हें विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
(8) बधिर बालक जिन्होंने सम्प्रेषण में निपुणता तथा पढ़ना सीख लिया है।
समावेशी शिक्षा क्षेत्र में सामान्य स्कूल जाने से पहले अपंग बालक का प्रशिक्षण, माता-पिता को समझाना, प्रारम्भिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा +2 स्तर और व्यावसायिक शिक्षा भी सम्मिलित है।
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Inclusive Education)
स्वतन्त्रता के बाद से भारत में हुए शैक्षिक व्यवस्था का विकास इस बात की पुष्टि करता है कि भारतीय शिक्षा ने विभिन्न क्षेत्रीय विविधताओं और भिन्न सीमाओं के अतिरिक्त समावेशी शिक्षा के लिए उपकरण के रूप में कार्य किया है। समावेशी शिक्षा से हमारा तात्पर्य ऐसी शिक्षा प्रणाली से है जिसमें सभी शिक्षार्थियों को बिना किसी भेद-भाव के सीखने-सिखाने के समान अवसर मिलें परन्तु आज भी यह समावेशी शिक्षा उस लक्ष्य पर नहीं पहुँची है जहाँ इसे पहुँचना चाहिए। समावेशी शिक्षा की परिकल्पना इस संकल्पना पर आधारित है कि सभी बच्चे के विद्यालयी शिक्षा में समावेशन व उसकी प्रक्रियाओं की व्यापक समझ की इस प्रकार आवश्यकता है कि उन्हें क्षेत्रीय, सांस्कृतिक परिवेश और विस्तृत सामाजिक-आर्थिक एवं राजनैतिक प्रक्रियाओं दोनों में ही संदर्भित करके समझा जाए क्योंकि भारतीय संविधान में समता, स्वतन्त्रता, समाजिक न्याय एवं व्यक्ति की गरिमा को प्राप्त मूल्यों के रूप में निरूपित किया जाता है जिसका संकेत समावेशी शिक्षा की ओर ही है।
हमारा संविधान जाति, वर्ग, धर्म, आय एवं लैंगिक आधार पर किसी भी प्रकार का विभेद का निषेध करता है और इस प्रकार एक समावेशी समाज की स्थापना का आदर्श प्रस्तुत करता है जिसके परिप्रेक्ष्य में बच्चों के सामाजिक जातिगत, आर्थिक, वर्गीय लैंगिक शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से भिन्न देखे जाने के अतिरिक्त एक स्वतन्त्र अधिगमकर्ता भाग के रूप में देखे जाने की आवश्यकता है जिससे लोकतान्त्रिक स्कूल में बच्चे के समुचित समावेशन हेतु समावेशी शिक्षा के वातावरण का सृजन किया जा सके। समावेशी शिक्षा की आवश्यकता निम्न कारणों से है-
(1) समावेशी शिक्षा अन्य छात्रों को अपनी उम्र के छात्रों के साथ कक्षा वातावरण में लेने और व्यक्तिगत लक्ष्यों या काम करने हेतु अभिप्रेरित करती है।
(2) समावेशी शिक्षा प्रत्येक बच्चे के लिए उच्च और उचित अपेक्षाओं के साथ उसकी व्यक्तिगत शक्तियों का विकास करती है।
(3) समावेशी शिक्षा बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में व उनके स्थानीय स्कूलों की गतिविधियों में उनके माता-पिता को भी सम्मिलित करने की पक्षधर है।
(4) शिक्षा सम्मान और अपनेपन की स्कूल संस्कृति के साथ-साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करती है।
(5) समावेशी शिक्षा बच्चों में अपनी स्वयं की व्यक्तिगत आवश्यकताओं और क्षमताओं के साथ प्रत्येक बालक में एक व्यापक विविधता के साथ मित्रता का विकास करने की क्षमता उत्पन्न करती है। इसी प्रकार समावेशी शिक्षा समाज के सभी बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने की बात का समर्थन करती है।
(6) समावेशित शिक्षा प्रत्येक बालक के लिए उच्च और उचित उम्मीदों के साथ, उसकी व्यक्तिगत शक्तियों का विकास करती है।
(7) प्रत्येक बालक स्वभाविक रूप से सीखने के लिए अभिप्रेरित होता है।
(8) समावेशी शिक्षा बालक को अन्य बालकों के समान कक्षा गतिविधियों में भाग लेने और व्यक्तिगत लक्ष्यों पर कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करती है।
(9) समावेशी शिक्षा बालकों की शिक्षण गतिविधियों में उनके माता-पिता को भी सम्मिलित करने के लिए वकालत करती है।
समावेशी शिक्षा सही मायनों में शिक्षा का अधिकार जैसे शब्दों का रूपान्तरित रूप है जिसके कई उद्देश्यों में से एक उद्देश्य है, विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकता वाले बालकों को एक समतामूलक शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करना। समावेशी शिक्षा वर्तमान समाज की एक अपरिहार्य आवश्यकता बन गई है। वैयक्तिक पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास की दृष्टि से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
समावेशी शिक्षा का महत्व का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
(1) राष्ट्र का विकास (Development of the Country)- देश की खुशहाली एवं संगठन के लिए विकास एक अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकता है जिसमें सभी नागरिकों के योगदान की सदैव आवश्यकता होती है लेकिन अपनी क्षमता एवं सामर्थ्य की उपयुक्तता की अनुभूति एवं प्राप्ति के बिना किसी देश की एक बहुत बड़ी संख्या उसके नवनिर्माण में कैसे तथा कितनी सकारात्मक भूमिका निभा सकती है। शिक्षा से वंचित व्यक्तियों से राष्ट्र के विकास में योगदान की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। राष्ट्र के विकास में योगदान से पहले उपयुक्त संसाधनों के उपयोग से व्यक्ति के लिए स्वयं की क्षमताओं का विकास करना आवश्यक होता है। समावेशी शिक्षा व्यक्ति विकास के लिए एक उत्तम साधन है।
(2) शिक्षा की सर्वव्यापकता या सर्वभौमिक विकास (Universality or Universal Development of Education) – शिक्षा में विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा को तभी सार्वभौमिक बनाया जा सकता है जब प्रत्येक बालक के गुणों, स्तरों तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा का विस्तार किया जाए। समावेशी शिक्षा की मुख्य अवधारणा को ध्यान में रखते हुए शिक्षा पाठ्यक्रम निर्धारित करने पर बल देती है। समावेशी शिक्षा सार्वभौमिक शिक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों में योगदान देती है।
(3) शिक्षा का स्तर बढ़ाना (Increasing the Level of Education) – समावेशी शिक्षा न केवल सबके लिए शिक्षा है बल्कि सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अवधारणा पर आधारित है। इस शिक्षा प्रणाली में सभी बच्चों के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के मूलभूत सिद्धान्त पर पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों को लचीला बनाने पर विशेष बल दिया गया है क्योंकि इस विधि (शिक्षण विधि) से ही बच्चों का सर्वपक्षीय अथवा सार्वभौमिक विकास सम्भव हो सकता है।
(4) सामाजिक समानता का उपयोग (Use of Social Equality)- समावेशी शिक्षा के द्वारा अधिकारों तथा सम्भावनाओं से लाभान्वित होने की समानता का कार्यक्षेत्र समावेशी शिक्षा है। संवैधानिक समानता के सिद्धान्तों का व्यक्तियों तथा समाज को तभी लाभ हो सकता है जब उन्हें कार्यान्वित किया जाए तथा विद्यालय इस दृष्टि से सबसे उपयुक्त स्थान है। समावेशी शिक्षा इसलिए उपयुक्त है क्योंकि इसमें रंग-भेद, जाति, समुदाय, धर्म, आयु, लिंग तथा शारीरिक एवं मानसिक गुणों की विभिन्नता के कारण किसी भी बालक को शिक्षा ग्रहण करने से वंचित नही किया जा सकता है।
(5) समाज के विकास के लिए (For the Development of Society) – समावेशी शिक्षा व्यक्तियों के सहयोग से समाज का निर्माण करता है। व्यक्ति समाज के निर्माण की नींव है। व्यक्तियों की प्रगति, परिश्रम, सूझबूझ एवं प्रयत्नों से उनका व्यक्तिगत जीवन सँवरता है जिसमें शिक्षा का योगदान सबसे अधिक महत्व रखता है।
(6) व्यक्तिगत जीवन एवं उनका विकास (Individual Life and their Development)– समावेशी शिक्षा की सबसे अधिक आवश्यकता बालकों के व्यक्तिगत जीवन को खुशहाल बनाने तथा उसके विकास के दृष्टिकोण को अपनाने से है। बालक समावेशी का केन्द्र है। इस शिक्षा प्रणाली का सबसे अधिक महत्व बालक के लिए है।
(7) सामान्य मानसिक विकास सम्भव है (Normal Mental Growth is Possible) – विशिष्ट शिक्षा में मानसिक जटिलता मुख्य है। अपंग बालक अपने आपको दूसरे बालकों की अपेक्षा तुच्छ तथा हीन समझते हैं जिसके कारण उनके साथ पृथकता से व्यवहार किया जाता है। समावेशी शिक्षा-व्यवस्था में, अपंगों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्रदान किया जाता है। प्रत्येक बालक सोचता है कि वह किसी भी प्रकार से किसी अन्य बच्चे से तुच्छ रहा है। इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों की सामान्य मानसिक प्रगति की ओर अग्रसर करती है।
(8) सामाजिक एकीकरण को सुनिश्चित करती है (Social Integration is Ensured by it)- अपंग बालकों में कुछ सामाजिक गुण बहुत संगत होते हैं। जब वे सामान्य बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं। अपंग बालक अधिक संख्या में सामान्य बालकों का साथ पाते हैं तथा एकीकरणता के कारण वे सामाजिक गुणों को अन्य बालकों के साथ ग्रहण करते हैं। उनमें सामाजिक, नैतिक प्रेम, सहानुभूति, आपसी सहयोग आदि गुणों का विकास होता है। विशिष्ट शिक्षा-व्यवस्था में छात्र केवल विशिष्ट ध्यान ही नहीं देते बल्कि व्यापक रूप में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्धा की भावना विकसित करती है।
(9) समावेशी शिक्षा कम खर्चीली है (Inclusive Education is less Expensive)– निःसन्देह विशिष्ट शिक्षा अधिक महंगी तथा खर्चीली है। इसके अलावा विशिष्ट अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिक समय लेते हैं।
दूसरे दृष्टिकोण समावेशी कम खर्चीली तथा लाभदायक है। विशिष्ट शिक्षा संस्था को बनाने तथा शिक्षण कार्य प्रारम्भ करने के लिए अन्य कई स्रोतों से भी सहायता लेनी पड़ती है, जैसे- प्रशिक्षित अध्यापक, विशेषज्ञ, चिकित्सक (Physiotherapist) आदि अपंग बालक की सामान्य कक्षा में शिक्षा पर कम खर्च आता है।
(10) समावेशी शिक्षा के माध्यम से एकीकरण सम्भव है ( Integration is Possible through Inclusive Education) – विशिष्ट शिक्षण व्यवस्था की अपेक्षा समावेशी शिक्षण व्यवस्था में सामाजिक विचार-विमर्श अधिक किए जाते हैं, अर्थात् उच्चारण अधिक होता है। अपंग तथा सामान्य बालक में सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत एक प्राकृ तिक वातावरण बनाया जाता है। इस वातावरण में अपने सहपाठियों से सीखना, स्वीकार करना तथा स्वयं को दूसरों द्वारा स्वीकार कराया जाना समावेशी शिक्षा द्वारा सम्भव है। सामान्य वातावरण में छात्र में उपयुक्तता की भावना तथा भावनात्मक समायोजन का विकास होता है।
समावेशी शिक्षा बालकों में अच्छी नागरिकता के लिए आवश्यक गुणों का विकास करती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह शिक्षा प्रणाली अपने पाठ्यक्रम शिक्षण विधियों तथा स्कूल एवं कक्षा में तथा इनके बाहर पारस्परिक सामाजिक क्रिया तथा व्यवहार गतिशीलता तथा समायोजन पर बल देती है। समावेशी शिक्षा की शिक्षण रणनीतियाँ भी गुणवत्ता के पक्ष से मजबूत होने के साथ-साथ अच्छी नागरिकता के गुणों के विकास में सहायक हो सकती है।
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